भारतीय राजनीति के आज यह दो ध्रुव है। दोनों नेता महत्वकांक्षी है। दो बड़े राजनीति दलों में इनकी तूती बोलती है। एक गुजराती अस्मिता की बात करता है, आपने विकास माडल का डंका पीटता है, तो दूसरा 100 करोड़ को काबिल बनाने की बात करता है। एक महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलितों को साथ लेकर चलने की मंशा सार्वजनिक करता है। वर्तमान राजनीति के ढांचे की खिल्ली उड़ाता है, उसमें प्रधान की कमजोरी भूमिका पर विधवा अलाप करता है। दूसरा आउटले बनाम आउटकम पर ईमानदार बहस चाहता है। कल्याणकारी योजनाओं का लोगो के जीवन पर क्या असर पड़ा है उसके मूल्यांकन की बात कहता है। राज्यों के बीच विकास दर को लेकर छिडी प्रतियोगिता को बेहतर मानता है। एक शिक्षा प्रणाली को बाजारोन्मुख बनाने की पैरवी करता है उसमें उद्योगों की पहल चाहता है दूसरा पी 2 और जी 2 की बात करता है। यानि प्रो पीपुल और गुड गर्वेनेंस। दोनों धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते हैं। एक की नजर में धर्मनिरपेक्षता बीजेपी को सत्ता से दूर रखने का मंत्र है तो दूसरा कहता है इसका मतलब है इंडिया फस्र्ट। दोनों योद्धाओं के पीछे जय बोलने वालों की लंबी कतार खड़ी है। एक की काबिलियत है की वह गांधी परिवार का चिराग है दूसरा मशहूर है कि वह एक अच्छा प्रशासक और फैसले लेने वाला व्यक्ति है। एक भारत मां के कर्ज को उतारने की बात करता है तो दूसरा किसी एक के सहारे सबकुछ बदल जाएगा इस थ्योरी को रिजेक्ट कर रहा है। सच्चाई यह है की दोनों का रणक्षेत्र सज रहा है 2014 के लिए। दोनों का घमासान बढ़ेगा। दोनों आने वाले दिनों में कई मंचों से विचारों की तीर चलाते नजर आऐंगे। मगर यह तीर जनता की वोट को भेद पाऐंगे। यही दोनो का साध्य है।
इतिश्री राहुल मोदी पुराणों प्रथमों अध्याय संपन्नः
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