क्यों जीती आप? जवाब आप सबको मालूम है। देश के दो बड़े महारथियों ने क्या आप से सबक लिया होगा। युवराज का प्रयोग तो नही चला मगर आप के करिश्में को वह भी सलाम कर रहे हैं। आप से सीखने की बात कर रहें है। मगर क्या करें उनके पास आज कार्यकर्ता कम, नेता ज्यादा है। राजनीतिक पंडित अब कह रहें है की आप का प्रदर्शन अप्रत्याशित था। मगर दिल्ली की सड़कों पर यह दिख रहा था। लोगों ने नजरियें में यह भाव पड़ा जा सकता था। एक सवाल जिसका जवाब नही मिल रहा है वह है मोदी लहर दिल्ली में कहां गई। क्योंकि उनकी जापानी पार्क की रैली को ऐतिहासिक करार दिया गया। मगर नतीजों में यह नही दिखा। अब कांग्रेस से ज्यादा चिंता बीजेपी के खेमे में है। कहीं मोदी की लहर के आगे केजरीवार भाड़ी न पड़ जाए। क्योंकि आम आदमी का यह प्रयोग लोकसभा चुनाव में भी हुआ तो मोदी का प्रधानमंत्री बनने का सपना काफूर हो जाएगा। इसलिए अब बीजेपी के रणनीतिकार सतर्क हो गए है। बहरहाल मिशन मोदी के सामने अब कांग्रेस के साथ साथ केजरीवाल खड़े होंगें। दिल्ली में जनता के समर्थन के बाद अब साफ हो गया है की देश एक अच्छे विकल्प की तलाश में हैं? दूसरी बात लगता है राजनीतिक दलों ने जनता की मनोभाव पड़ना छोड़ दिया है। अगर ऐसा होता तो भ्रष्टाचार और महंगाई को सरकार हल्के में नही लेती। मगर अभी इस पार्टी को साबित करना है। क्योंकि देश में जाति का वर्चस्व हावी है। ऐसें में ईमादारी की लहर क्या नेताओं के बनाए गए जाति के चक्रव्यूह को तोड़ पाती है, इसका जवाब हमें देश के कुछ बड़े राज्यों के चुनाव के बाद मिलेगा। बहरहाल दिल्ली में आप की इस अप्रत्याशित जीत ने सबको हैरान कर दिया। अब आत्ममंथन की इनका चिंतन जनता के प्रति होता है या नही, यह भी देखना दिलचस्प होगा?
लोकपाल की ढाल
जवाब देंहटाएंकोई भी कानून बनालो, चोर धरा मे! जिन्दे है!
मध्यवर्ग और भूखे न!गे, बस, पर -हीन परिन्दे है!
सबकी नजरो! मे! डाकू है!, बोलोगे तो खैर नही है
चोर, उचक्के, सभी एक है!, इनमे! कोई बैर नही है
लोकपाल मे! का!ग्रेस और,बी.जे.पी. क्यो! एक बनी है
सबके कच्छे अलगअलग है!,पर अन्दर से एक तनी है
चोर ,उचक्को! के झगडे़मे! बैर क!हा पर कब होता है
झण्डा,डण्डा ढोने वाला अपनी किस्मत को रोता है
पा!च साल मे!अरब-पति और खरब-पति कैसे होते है
राजनीति मे! व्यभिचारी और भ्रश्टाचारी के न्यौते है!
आज मुलायम भाग रहा है,ये उसका डर बतलाता है
जो विरोध मे! खडा हुआ है उसका इससे क्या नाता है
षमषानो! मे! षव जलता है,हम सब मौन खडे़होते है!
षदियो! से हम व्यभिचार के इन मुदोर्! को ही ढोते है!
टी0वी0 चैनल देख रहा हू! ,सारे पागल चिल्लाते है!
हम सब भ्रश्टाचारो! और व्यभिचारो! की रोटी खाते है!
जो इमानदार है समझो उसको,मौका हाथ नही आया
आम आदमी चरित्रवान की परिभाशा से षर्माया
हम सब कोठो मे! बैठे है!, कब तक आन बचायेगे!
लोकपाल से अपने मुख की कालिख अब धुलवाये!गे!
इस डेढ़अरब मे! लोकपाल से देष सुधरने वाला है
साधू मे! और व्यवसायी मे! कितना धन है,जो काला है
पढे़लिखे बदमास पनपते ,मै! भारत मे! देख रहा हू!
कवि‘आग’ हू!,चोरो! मे! भी लगी आग को से!क रहा हू! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
गजर घास
जवाब देंहटाएंखिसयानी बिल्लीअब क्यो! खम्बा नोच रही है
इस लोकपाल मे! सबकी अपनी सोच रही है
क्यो! बाप छोड़कर चले गये,ये पछतावा है
तुम तो बस, चिन्गारी थे अन्ना लावा है
अह!कार मे! घर से निकलो बदनामी है
फटी ल!गोटी बडे़ आदमी की दामी है
आम आदमी बनकर अब तुम खास हो गये
जिसने छोडा बाप ,सभी उपहास हो गये
लोकपाल मे! अब क्यो! कमिया! ढू!ढ रहे हो
इस जनता पर रहम करो क्यो! मू!ड रहे हो
अच्छी खासी छोड़ चाकरी डाकु पकडे़
कविराज षिक्षक थे अब सडको पर अकडे़
कुछ पत्रकार थे सम्मानित थे कुद पडे़थे
ये राजनीति की लाइन मे! चुपचाप खडे़थे
क!ही बीजेपी,क!ही का!ग्रेस,क!ही ,कू!आ खायी
धरी रह गयी च!चल मन की सब चतुरायी
सरकार बनाने निकले थे ,सरकार बनाओ
सर आ!खो! पर रखा था अब ठोकर खाओ
पहले जनमत मा!गा था,अब चिटठी,पत्री
ये सूनामी है ,काम नही आयेगी छतरी
जब अन्ना को छोडा था, जनता से पूछा
जब राजनीति मे! आये,क्या जनता से पूछा
जब आप पार्टी बने स्वय! ,जनता से पूछा
जब राश्ट्रपति से मिले थे क्या जनता से पूछा
का!ग्रेस ,बी. जे. पी. को, क्यो! चिटठी डाली
क्या जनता से पूछी थी करतूते! काली
गले मे! हड्डी फ!सी पडी है क्यो! रोते हो
क्यो! तर्को औेर कूतर्को से गरिमा खोते हो
नवजात षिषू हो ,घर मे! बैठो निप्पल चूसो
राजनीति के ग्रास, गले मे! और ना ठूसो
बची,खुची इज्जत और अपनी लाज बचाओ
तुम हार गये हो,मौन रहो ,ना झे!प मिटाओ
बुनियादो! क े बिना भवन खुद गिर जाते है!
मजबूत जडो! के वृक्ष हमेषा लहराते है!
अब राजनीति मे! आये ,हो बुनियादे! डालो
कवि ‘आग’ कहता है,ये विशधर मत पालो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
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तन्त्र का शडयन्त्र
जवाब देंहटाएंये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है!
सारे कुत्ते सुधर गये, ये झगड़ रहे है!
हर एक दूसरे पर गाली की बौछारे! है!
अष्लील षब्द स!बोधन मे! कितने प्यारे है!
सब एक दूसरे को षब्दो! से रगड़ रहे है!
ये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है!
घूस -काण्ड तो नौकर -साही का पेषा है
जो अरब-खरब मे! खेल रहा नौेकर कैसा है
कोठी ,ब!गले,फारम -हाउस क!हा से आये
पुलिस सडक पर ,चिल्लाते है! सब चैराहे
देष के रक्षक आज देष मे! अकड़ रहे है!
ये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है!
नौकर ,म!त्री के आदेषो! पर ही जीते है!
म!त्री जी मोटा खाते है!, ये रस पीते है!
नोकर, नेता साथ है कच्छो! नाडो! जैसा
वो आवारा साण्ड सदन,ये सडक का भै!सा
खनिज, तेल भी आ!ख मू!द कर रगड़रहे है!
ये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है!
दूध की चैकीदारी बिल्ली से होती हेै
घूस-काण्ड सुरूवात भी दिल्ली से होती हैे
इस सुर-सरिता मे! नौकर,म!त्री सब बहते है!
नाकाम हुये है! फन से,वो सब कुछ कहते है!
अब कोतवाल ही कोतवाल को पकड़रहे है!
ये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है!
राजा ,जनता साथ सडक पर दोनो आये
ये नया नमूना,राजनीति ,हम समझ ना पाये
जनमत की सरकार सडक के चोैराहे पर
बलात्कार, मस्ती मे! नेता की बा!हो पर
सभी सियासी, यति ,सती को जकड़ रहे है!
ये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है!
क्या जनता ,नेता ,नौकर,चाकर सभी चोर है!
जो झााडू लेकर नाच रहे वो सभी मोर है!
कौन चोर है, कौन है साहू,समझ ना पाया
गा!धी की आजादी ने क्या दिन दिखलाया
कवि ‘आग’ से अ!गारे क्यो! बिछुड रहे है!
ये मेरे देष के नेता काहे बिगड़रहे है! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815