राजनीति के क्षेत्र में यह जुमला खास हो चुका है। आम आदमी पार्टी जीत से गदगद है। कल जंतर मंतर में धन्यवाद रैली के दौरान आम आदर्मी पार्टी ने राष्टीय राजनीति में भी हाथ आजमाने के संकेत दे दिए हैं। मनीष सिसोदिया ने तो यहां तक कह दिया की राहुल गांधी से कुमार विश्वास दो दो हाथ करने को तैयार हैं। भविष्य में क्या होगा इसका इंतजार करिये। मगर मेरा मानना है कि पार्टी को अतिआत्मविश्वास से ज्यादा सादगी और सरलता का परिचय देना चाहिए। कल यह भी खबर उड़ी कि अब केजरीवाल का अगला वार नरेन्द्र मोदी पर होगा। क्या इन बातों से उत्साह से ज्यादा अहंकार की बू नही आ रही है। इसमें कोई दो राय नही भारत का हर एक नागरिक बदलाव का वाहक बनने के लिए तैयार है। हर कोई भ्रष्टाचार मुक्त परिवेश चाहता है। हर कोई साफ सुथरी राजनीति चाहता है। धनबल और बाहुबल से राजनीति को मुक्त करना चाहता है। धर्म और जाति के प्रभाव को खत्म करना चाहता है। मगर इसके लिए असीम धैर्य का परिचय इस पार्टी को देना होगा। लोगों ने यह साफ कर दिया है की वह राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी से तंग आ चुकें है। मेरे विचार से इन दोनों राष्टीय दलों से जनता का मोहभंग कोई लोकतंत्र के लिए अच्छी खबर नही है। मगर इस बात को ध्यान रखना होगा की जनता के मजबूत विकल्प की तलाश में है। दिल्ली में यही विकल्प आम आदमी पार्टी में उन लोगों को दिखाई दिया। मगर दिल्ली एक बार फिर चुनाव के लिए तैयार हो रही है। जबकि मेरे ख्याल से एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर सरकार को चलाया जा सकता है। क्योंकि ने जिन कार्यो के आधार पर आप को वोट दिया वह सड़क बिजली पानी महंगाईभ्रष्टाचार और सुरक्षा जैसे मुददों पर केन्द्रीत था। मगर राजनीतिक दल यह कहते दिखाई दें रहें है कि हमें विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है। जब सवाल समाज और देश के हित का हो तो राजनीतिक दलों को मतभेद भुलाकर जनता के लिए जुट जाना चाहिए। मगर यहां भी संभावनाओंको भविष्य की कसौटी पर आंका जा रहा है। मैं सिर्फ इतना कहना चाहंूगा की चुनाव में हार जीत लगी रहती है। जो लोग कांग्रेस को खत्म मान रहें है वह यह भूल जाते है कि 1979 में क्या हुआ। यहां तक की 1999 में 114 सीटें पाने वाली कांग्रेस 2009 में 206 सीटों तक पहुंच गई। तो राजनीति में उतार चढ़ाव लगे रहते है। जरूरत है जनता के नब्ज़ टटोलने की। आखिर में आज युवाओं की अपेक्षा और आकांक्षा राजनीतिक दलों से कई ज्यादा है। इसलिए राजनीतिक दल अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ने के बजाय देश को आगे ले जाने में मदद करें।
चुनावी -खुजली
जवाब देंहटाएंहे ,दिल्ली के मतदाताओ! त्ुामने ये कैसा काम किया
प्रजातन्त्र की मर्यादा का पूरा काम तमाम किया
आम,खास के चक्कर मे! क्यो! जनता मे! कोहराम हुआ
बी0जे0पी0और आम आदमी का ये कैसा नाम हुआ
बिजली ,पानी सस्ता देने पर भी जनता भटक गयी
फिर चुनाव की तैयारी , तलवार गले मे! लटक गयी
ये कैसा उदार चरित्र है , राजनीति को गर्माने का
फिर क्या मतलब होता है,जनमत से चुनकर आने का
आम आदमी, भोले और बडबोले बनकर चिल्लाते है!
चैराहो! पर गिरना पडना राजनीति की औकाते है!
ये प्रजातन्त्र उपहास बना है, जनमत के सरदारो! मे!
क्यो! होती है टी0 वी0 चैनल मे! चर्चा मक्कारो! मे!
षब्दो! के सौदागर , देखो तर्को और कु - तर्को मे!
धन, वैभव , मस्ती मे! देखो, न!गे, भूखे नर्को मे!
भले भिखारी फिर से देखो चन्दे की तैयारी मे!
एक बार फिर से जनता की गर्दन फ!सी है आरी मे!
घरबार चाकरी छोड़ चूनावो! मे!,क्यो! दिल्ली आते हो
विधानसभा के जनमत मे! भी क्यो! औकात दिखाते हो
चुनाव जीतकर नेता जी क्या पूरा देष स!भाले!गे
डेढ़अरब की आबादी क्या ,अपने घर से पाले!गे
इस धन्दे मे! कई करोड़ का चन्दा कैसे आता है
प्रजातन्त्र के व्यभिचारो! का े ये चुनाव दिखलाता है
कौन इन्हे देता हेै पैसा अह!कार भडकाने का
षौक लगा है ,आम आदमी को भी गाना गाने का
इस हल्के,फुल्के चिन्तन से क्या देष बचाना चाहते हो
वैष्यालय को चरित्रवान की परिभाशा समझाते हो
राजनीति मे! आना ही तो भ्रश्टाचारी न्यौता है
खुलकर लिखने वाला केवल कवि आग इकलौता है
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
विकल्प
जवाब देंहटाएंहिन्दू,मुस्लिम, सिक्ख, इसाई की भारत मे! बात करो ना
राजनीति मे! ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र आघात करो ना
मानवता की बात करेगा, वो ही अब आसन पायेगा
चन्द्रगुप्त,चाणक्य राज्य का, सि!हासन फिर से आयेगा
सारी कौमे! मिलकर बैठे! , कुछ ऐसा ही साथ करो ना
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख, इसाई की भारत मे! बात करो ना
मजहब,कौम,कबीले झगडे़ये भारत कब तक ढोयेगा
बे-कसूर की मौत महातम से भारत कितना रोयेगा
कितना रक्त बहाया हमने, ये हमको अन्दाज नही हेै
अभी तो झगडे़ सुरू हुये है!,इसका भी आगाज नही है
मानव हो तो मिलकर बैठो,अब कुत्ते की मौत मरो ना
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई की भारत मे! बात करो ना
इतिहासो! के ,राजनीति के अनुभव हमको बता रहे है!
वैमनस्य के रगडे़ झगडे अब तक हमको सता रहे है!
हम आपस मे! लड़कर मरकर,इस भारत मे! क्या पाये!गे!
राजनीति मे! कौम मिटाकर,किसको ये मु!ह दिखलाये!गे!
स्कूल,मदरसो! नई कौमो! मे!,सम्प्रदाय का जहर भरो ना
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई की भारत मे! बात करो ना
कौम,कबीलो! ,क्षेत्र वाद की जो भी राजनीति करता है
वो जनमत को मरवा करके,केवल घर अपना भरता है
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई ,सब नाटक को देख रहे है!
झण्डो,डण्डो और हथकण्डो! पर क्यो! खुद को फे!क रहे है!
ईष्वर ने जब बुद्धि दी है,जानवरो! सी घास चरो ना
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई की भारत मे! बात करो ना
राजनीति के छोटे - छोटे, डबरो! को सागर मे! बदलो
षहर,गा!व और कौम,कबीले,भारत के नागर मे! बदलो
पगडण्डी के भेद -भाव सब,नगर,डगर,डागर मे! बदलो
घडे,पात्र सब कच्ची मिटटी के,पक्की गागर मे! बदलो
अल्लाह, ईष्वर, ईसा, मूसा की नजरो! मे! अखरो ना
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई की भारत मे! बात करो ना
राम, कृश्ण, महावीर, बुद्व के अवतरो! की ये धरती है
स्वाभिमान की कौमे! भारत मा! की रक्षा मे! मरती है!
हमको हरदम, राजनीति के मतभेदो! ने ही काटा है
जाति,पाति और मजहब,क्षेत्र के भेदभाव मे! ही बा!टा है
कवि आग कहता है,चिन्गारी पर अपना ध्यान धरो ना
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई की भारत मे! बात करो ना ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
दिल्ली की दुर्गति
जवाब देंहटाएंबन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया
आम आदमी न!गी तारो! से षर्माया
पानी और जवानी पर ये नाच रहे थे
राजनीति के हर पहलू को बा!च रहे थे
नया नमाजी मुल्ला,मस्जिद से घबराया
बन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया
एक कवि तो कपि की भाशा बोल रहा है
जन्म-जन्म की आषा,तृश्णा खोल रहा है
अल!कार,रस, छ!द ,फ!द मे! फ!सा पडा है
क्यो! राहुल की छााती मे! कविराज चढा है
कालीदास क्यो! डाल काटने दिल्ली आया
बन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया
चैराहो! पर सत्य, अहि!सा गाने वालो!
धर्मयुधिश्ठिर,हरिष्चन्द्र के मन मतवालो!
देख सायना पूरा जोखिम झेल रही है
आज षायरी कविराज से खेल रही है
हिन्दू,मुस्लिम का कैसा गठजोड बनाया
बन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया
क्यो! बुद्वि, अनुभव के उपर दौड़ रही है
क्यो! हल्के पन से स!विधान को तोड़रही है
थुथले वादे आज गले मे! फ!से पडे है!
आम आदमी,बी0जे0पी0 चुनचाप खडे है!
पागल जनता का े दिल्ली मे! पागल भाया
बन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया
झूठे वादो! से जनमत को क्यो! छलते हो
भरी जवानी मे!,बूढो! से क्यो! ढलते हो
म!ा सेनिया बिना षर्त के साथ खडी है
आज मकडिया! जाले मे! खुद फ!सी पडी है!
छल कपटो! से तुमने क्यो!जनमत भरमाया
बन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया
खिचडी पची नही, खिचडा खाने को धाये
ख्वाब दिखाकर आम आदमी खास बनाये
विधान सभा से लोक सभा की तैयारी है
ये राजनीति मे! नये किस्म की बिमारी है
कवि आग भी इन लपटो! को समझ ना पाया
बन्दर के हाथो! मे! खन्जर क्यो! पकडाया ।।
नेक सलाह
जवाब देंहटाएंवैष्यालय की वैष्या भी तो पहले ना-ना करती है
धन्धा तो आखिर धन्धा है फिर काहे को डरती है
लुका छिपी के नाटक छोडो कूद पडो मैखाने मे!
सूरा , सुन्दरी की दुनिया है ,डूब ,जाओ पैमाने मे!
खुद को धोखा देकर जनता को कितना भटकाओगे
राजनीति के अ!कुर फूटे उनको कहाॅ! दबाओगे
आम आदमी के जनमत की भाॅ!शा भी उपयोगी हो
योग - भोग मे! जीने वालो! क्यो! स!क्रामक रोगी हो
अन्ना,का आलि!गन क्या कुछ खेल नये दिखलायेगा
मेरा चिन्तन कहता है ये राजनीति मे! गर्मायेगा
अन्ना के घर आग लगी है राजनीति गलियारे की
थोडी सी भी बुद्धि है तो धार देख लो आरे की
स!विधान के अनुच्छेद मे! मुषलमान को ढूॅ!ढ रहे हो
बिनाधार के हथियारो! से क्यो! भारत को मूॅ!ड रहे हो
प्रजातन्त्र के इस बीहड़ मे! कितनी आग लगाओगे
सत्य अहि!सा की भाशा से कब तक भारत खाओगे
प््रातिश्पर्धा मे! और विरोध मे! मेल कभी हो पाया है
पागलपन के आदर्षो! ने षदियो! से भटकाया है
षब्द निर!कुष हो जाता है मायावी क!कालो! से
राश्ट्र हमेषा ही मरता है दरियादिली दलालो! से
आग लगाने वाली बाते! छोडो ,कुछ निर्माण करो
भटको तो कुछ ऐसा भटको जनता का कल्याण करो
डेढ़ अरब की आबादी को स्वााभिमान दिलवाओगे
लोकसभा की भटकी जनता को कब तक सहलाओगे
अभी - अभी बुनिया पडी है,भवन बाद मे! बनते है!
भले भिखारी, भीख मा!गने से पहले क्यो! तनते है!
बिना षर्त के मिला सर्मथन उसका तो उपयोग करो
राजनीति मे! आये हो तो ,अर्थ,व्यर्थ विनियोग करो
ज्यादा नाटक करने पर वैष्या को घास नही मिलती
चक्रवात, तूफानो! से,कलिया! भी कभी नही खिलती
राजनीति का अह!कार सडको! पर कुचला जाता है
ये जग जाहिर है ,का!ग्रेस का पतन हमे! समझाता है
विभत्स, रोद्र की दुनिया मे! श्रृ!गार स्वय! खो जाता है
आडम्बर की दुनिया को बष! आडम्बर ही खाता है
धोती और ल!गोटो! से क्या , राश्ट्र बदलने वाला है
ये कलम,ईलम का ब्रह्म-अस्त्र भी आग लगाने वाला है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
लोकपाल का काल(राज्यसभा प्रसारण)
जवाब देंहटाएंना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
तर्को और कू-तर्को मे! षब्दो! का ठेलम-ठेल हुआ
ये लोकपाल आत!की है विस्फोट कराने वाला है
स्!ाविधान की धाराओ! मे! खोट दिखाने वाला है
सत्ता के गलियारो! मे! ये बिल सरदार पटेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ,देखो ये कैसा खेल हुआ
जो राजनीति के टस्कर थे मदमस्त हुये थे सपनो मे!
जागीर समेटे बैठे थे और अस्त-व्यस्त थे अपनो मे!
चमन उजडता दिखता है इस बिल को पास कराने मे!
मुझको तो मातम दिखता है इस उजडे़ हुये घराने मे!
मेरा चिन्तन कहता है,ये घर कम है ,अब जेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ,देखो ये कैसा खेल हुआ
छोड़ रहे है! तीर यहाॅ! सब तरकस और कमानो से
ये स!सद यहाॅ! अदालत है बचते है! सभी बहानो से
जन-भावनाओ! से षब्दो! के, सौदागर कैसे मूक हुये
लोकपाल की भाशा मे!, हर षब्द यहाॅ! दो-टूक हुये
स्!ाविधान के छप्पर मे! ये लोक-पाल खपरैल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ,देखो ये कैसा खेल हुआ
ये राजनीति का अ!कुस है पूरे भारत मे! फैलेगा
कानून यहाॅ! मजबूर नही ,हर घर मे! खुलकर खेलेगा
भ्रश्ट व्यवस्था के माहिर भयभीत हुये है! इस बिल से
अरबो!-खरबो! की ये माया मिलती है कैसे महफिल से
लोक-पाल बतलायेगा क्यो! मॅ!हगा डीजल,तेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ,देखो ये कैसा खेल हुआ
राजनीति कतराती है क्यो! बिल को पास कराने मे!
क्यो! सबकी नजरे! टिकी हुयी सत्ता के राज घराने मे!
चन्दो-धन्धो! की लिस्टे! भी ,उद्योग-पति दिखलायेगे!
मस्त - कलन्दर खादी के सीधे सडको! पर आये!गे!
अभी तो राजा,कनिमोझी,कलमाडी को ही जेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ,देखो ये कैसा खेल हुआ
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो09897399815
आम आदमी की अकड़
जवाब देंहटाएंआओ मेरे साथ लेट लो,पर कुछ गड-बड करना मत
मै! तुमको जूते मारू!गी, ज्यादा बड- बड करना मत
साथ रहू!गी ,पर सारे इल्जाम तुम्ही पर लगवाउ!गी
तुम चकले मे! तबला पीटो , मै! केवल गाना गाउ!गी
ढोल म!जीरो! तुम भी सुन लो,ज्यादा भड-भड़करना मत
आओ मेरे साथ लेट लो,पर कुछ गड-बड करना मत
बलात्कार के सारे चिटठे, मै! चैराहो! पर खोलू!गी
तुम सब मौन बने रहना ,मै! न!गी होकर सब बोलू!गी
बी0जे0पी0 और का!ग्रेस को भाण्ड बनाकर मै! छोडू!गी
राजनीति के परकोटो! को राण्ड बना कर मै! छोडू!गी
मै! जो कुछ आरोप लगाउ, हा! करना और मुकरना मत
आओ मेरे साथ लेट लो,पर कुछ गड-बड करना मत
ये आम आदमी की हरकत है,मौन हुये सब सह लेना
मै! जो चाहू!, वही करू!गी, ये बात किसी से मत कहना
मेरे कारण ही अन्ना को ,पूरा भारत जान रहा है
देष का बच्चा-बच्चा,अन्ना अब मुझको ही मान रहा है
जनता से जूते मरवाये!गे, बस , तुम थोडा डरना मत
आओ मेरे साथ लेट लो,पर कुछ गड-बड करना मत
लोक -सभा की तैयारी मे! मुख्यम!त्री बन जाउ!गा
भारत की स!सद मे! आकर , मै! उत्पात मचाउ!गा
स!विधान को हटवा करके , लोकपाल से देष चलेगा
राश्ट्रपति की क्या जरूरत है,हमसे ही ये राश्ट्र पलेगा
डेढ़ अरब की जनस!ख्या से मै! कहता हू! मरना मत
आओ मेरे साथ लेट लो,पर कुछ गड-बड करना मत
कवि-राज विष्वास, केजरी, स!जय, सलमा सब आये!गे
हमे! आ!कडे़ योगेन्दर, गोपाल राय अब दिखलाये!गे
आम आदमी - आम आदमी पूरे भारत मे! छायेगा
अन्ना दल भी हाथ जोड़ कर अब इनके पीछे आयेगा
हास्य-व्य!ग की इस कविता मे! आग बहुत है डरना मत
आओ मेरे साथ लेट लो,पर कुछ गड-बड करना मत!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
आप का सासन (रमेषभट्ट जी की टिप्पणी पर)
जवाब देंहटाएंचित्त भी मेरी पटट भी मेरी ,अण्टा मेरे बाप का
प्रजातन्त्र के हम मालिक है!, ये कहना है आपका
हम सबके कच्छे खोले!गे ,मौन सभी को रहना होगा
बी0जे0पी और का!ग्रेस को बलात्कार भी सहना होगा
अब पूरे देष मे! राज चलेगा प!चायत के खाप का
चित्त भी मेरी पटट भी मेरी ,अण्टा मेरे बाप का
राहुल से विस्वास लडेगा, और सायना सोनी से
स!जय, सिब्बल को देखेगा, योगेन्दर एण्टोनी से
गोपाल राय असहाय भिडेगा,बी0जे0पी0 के मोदी से
अगडे - पिछडे भी ढू!ढेगे, कुछ यादव, कुछ लोदी से
बिजली हम दिल्ली को दे!गे, रेल का इन्जन भाप का
चित्त भी मेरी पटट भी मेरी ,अण्टा मेरे बाप का
ये लोकपाल सरकारी है, हम नया बना के लाये!गे!
बचे,खुचे कुछ आम आदमी, लोका-युक्त बनाये!गे
स!भ्रान्त-प्रान्त के राज्यपाल भी अपने घर के छोडे!गे
मुख्यम!त्री , बिना लाल बत्ती के घर - घर दौडेगे!
हम फूकेगे! म!त्र - त!त्र, शडयन्त्र , सुरक्षा जाप का
चित्त भी मेरी पटट भी मेरी ,अण्टा मेरे बाप का
कर की चोरी करने वाले मठ , मन्दिर भी पकडेगे!
मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारो! मे!, सभी षिक!जे जकडेगे!
क!ही आशूमल और नारायण, क!ही रामदेव ख!गाल!ेगे
बडे़- बडे़ ट्रस्टो! की माया से हम भारत पाले!गे
अब फा!सी का फ!दा होगा ,हर गर्दन की नापका
चित्त भी मेरी पटट भी मेरी ,अण्टा मेरे बाप का
डी0एन0ए0 का टेस्ट करे!गे, राजनीति के सन्तानो! की
नसबन्दी भी करवाये!गे, लूले, ल!गडे़ और काणो! की
जो भी भारत मे! आयेगा ,उस पर ये फरमान रहेगा
आम आदमी की भाशा मे!,जय हो हिन्दुस्तान कहेगा
कवि आग कहता है,हमको दण्ड मिला अभिषाप का
चित्त भी मेरी पटट भी मेरी ,अण्टा मेरे बाप का!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
लाचार मनमोहन
जवाब देंहटाएंमेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
सारा किस्सा तुम्हे पता है, मेरी पगडी तो मत खोलो
मै! तो मम्मी जी के आदेषो! का पालन करता आया
मुझे नही मालूम,य!हा पर,कब-कब किसने कितना खाया
इस राजनीति मे! भ्रश्टाचारी भरे पडे़ है! उन्हे टटोलो
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
म!हगायी और भ्रश्टाचारी, भारत मे! नई बात नही है
सत्ता के लालच मे! सबने ,कम करने की बात कही है
सासन चाहे किसका भी हो, म!हगायी बढती जायेगी
डेढ़अरब की जनस!ख्या क्या मोदी के घर से खायेगी
ळे,आर.एस.एस हे ,बी.जे.पी.खुले सा!ड होकर मत डोलो
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
राहुल भैया और मम्मी से मुझको कोई गिला नही है
पी.एम बनकर,पी.एम का सम्मान मुझे भी मिला नही है
इस का!ग्रेस मे! पी. एम होना चपरासी से भी बत्तर है
टुच्चे, लुच्चे, चोर, उचक्के, खसम य!हा पर भी सत्तर है!
मोदी भैया,मुझको छोडो अपना मु!ह इन पर भी खोलो
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
मौनी बाबा कहकर तुमने क्यो! मेरा अपमान किया है
मुझे बताओ मै!ने अब तक उद्योगपति से दान लिया है
अपने घर की हरकत भूला ,मोदी मुझको डरा रहा है
प्रजातन्त्र मे! बी.जे.पी .के पषुओ! को क्यो! चरा रहा है
राजनीति के इस कीचड़मे!,मोदी ज्यादा जहर ना घोलो
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
माना राहुल छोटा है और भाशण की भी अकल नही है
राजनीति के ज!जालो! मे!, डाकू जैसी दखल नही है
उल्टे, सीधे भाशण, चमचे, मम्मी, भैया को देते है!
का!ग्रेस की नाव, र्जाज और सिब्बल जैसे ही खेते हे!
मम्मी क्यो! बदनाम हुयी है ,फुन्षी, फोडो और फफोलो!
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
नैपाली और ब!गला देषी, पाकिस्तानी भरे पडे़ है!
बोट-बै!क की राजनीति मे! क्यो! सबके मु!ह बन्द पडे़है!
लालू, माया और मुलायम की धमकी से बच पाओगे
क्षेत्रवाद की, जातिवाद की नीति तुम भी अपनाओगे
हिम्मत है तो अपने साथी, एन.डी.ए. की पोले खालो
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो
प्रजातन्त्र है राजनीति की उथल- पुथल होती जाये!गी
जनमत का बेवकूफ बनाकर, सरकारे! खुलकर खाये!गी
लहर देख लो ‘आप ’ पार्टी घर की माया लुटा रही है
मध्य-वर्ग और भूखे, न!गो की भीडो! को जुटा रही है!
इन बच्चो! से कुछ तो सीखो,हे बी.जे.पी. के उडन खटोलो!
मेरा पीछा छोडो भैया, अब राहुल को पी0एम बोलो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
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जवाब देंहटाएंनेता की नक्कासी
जवाब देंहटाएंअगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो
एक षब्द काफी है ,चैराहो! पर पूरी पोल ना खोलो
खादी कुर्ता और पजामा, मफलर ,टोपी, सब कहती है
प्रजातन्त्र मे! जनता,नेता जी को षदियो! से सहती है
फिर चुनाव आने वाले है!,जाओ जोकर के स!ग डोलो
अगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो
सडक छाप पर मुहर लगाकर सभी नमूने तूने चूने
बोट माॅ!गने घर - घर जाकर ये झुनझूने तूने चूने
जिसका कोई ठौर ठिकाना काम,धाम पैगाम नही था
षहर,गाॅव के गली,मुहल्लो! मे! नक्कारा,नाम नही था
न!ग , मत!गो और मल!गो! मे! भूखा हो उसे टटोलो
अगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो
झूठ,कपट,छल,बलात्कार और व्यभिचार इनका पेषा है
जूते, चप्पल, गाली खाकर षान्त खडा , कैसा भै!सा है
गाॅ!धी जी के आर्दषो! का लालन-पालन करने वालो!
उपवाषो! के जनवासो! मे! ,चैबीस घण्टे चरने वालो!
लोकतन्त्र की खुली तुला पर भूखी,न!गी जनता तोलो
अगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो
भाशण की भी भाशा देखो, रामराज की आषा देखो
दाॅ!व लगे तो पाषा फे!को, सारा सदन, तमाषा देखो
एक टाॅ!ग रेलो! मे! देखो, एक टाॅ!ग जेलो! मे! देखो
जूॅआ, सट्टा और अय्यासी, लूटमार खेलो! मे! देखो
हे ,कु - कर्मो के बे - षर्मो, मुस्टन्डो! के झण्डो झोलो!
अगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो
अब तो सडक छाप आवारा जनमत से चुनकर आते है!
चाट पकोडी बेचने वाले राश्ट्र-ध्वजो! को फहराते है!
रहने को घर-बार नही था,फारम -हाउस की बाते! है!
राजनीति मे! हिन्दुस्तानी नेता की कितनी जाते! है
प्रजातन्त्र के विश मन्थन से,सागर मे! अब विश ना घोलो
अगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो
डेढ़अरब की जनता भूखी इनके कारण ही मरती है
इतिहास उठाकर देखो इनका,राजनीति क्याक्या करती है
सोने की चिडिया का भारत मिट्टी मे! क्यो! मिल जाता है
स!विधान का प्राविधान क्यो! ,नेताओ! से हिल जाता है
कवि‘आग’ के श्रोताओ! को क्यो! डसते हो सर्प सपोलो!
अगर किसी को गाली देनी हो तो बष,नेता जी बोलो!! !!
बाबा की ना-समझी
जवाब देंहटाएंअगर किसी मे! हिम्मत हो तो मठ-आश्रम मे! टैक्स लगओ
मन्दिर,मस्जिद,गुरूद्वारो! को कर-निदान परिधी मे! लाओ
अगर किसी मे! हिम्मत हो ,धमार्थ-ट्रस्ट पर जा!च बिठाओ
जितने भी कर-मुक्त देष मे!,ढू!ढो उन पर केस चलाओ
बिन धन्धे के अरबो!-खरबो! की माया की चैकीदारी
मध्य-वर्ग और निम्न-वर्ग भी इनके कारण बना भिखारी
धर्म-ध्वजा ही आय-करो! की ,सारी सीमा चाट रही है
काले-धन को धवल बनाकर, गैर-काम मे! बा!ट रही है
बाबाओ! का, बे-षुमार धन ,अय्यासी को पाल रहा है
आज गेरूआ कालेधन से राजनीति स!भाल रहा है
योग-गुरू भी कर -निदान की नई तरकीबे! ढू!ढ रहा है
आटा, मिर्च, मषाला बेचा, आधा भारत मू!ड रहा है
बडे़- बडे़ भवनो! मे! यवनो! का डेरा बन जाता है
ये , बाबा धमार्थ - ट्रस्ट का पूरा लाभ उटाता है
इतिहास गवाह है,ऋशि, मुनि से, राजा भी कर लेते थे
राज - काज की सारी षिक्षा , आषीशो! से देते थे
आर्य-खण्ड मे! उनके कारण, राश्ट्र नियम से चलता था
वैभवता मे! भूखा-न!गा भी पलता और स!भलता था
जप औेर तप की ऐसी महिमा, राश्ट्र सुरक्षित रहता था
मनवता मे! , सत्य, अहि!सा, दान रगो! मे! बहता था
हर मसले पार भौ!क रहे हो,वित-व्यवस्था छो!क रहे हो
राज-काज के सारे धन्धे, भीड़जुटाकर रोक रहे हो
ओने-पौने दामो! मे! क्यो! जमीन किसान की लुट जाती है
क्या हेरा-फेरी पात!जलि के योग षास्त्र को दोहराती है
चाण्क्यो! की परिभाशा मे! अर्थषास्त्र को आम करो
उल्टी - सीधी बातो! से ना, भारत को बदनाम करो
काले-धन के रखवालो! को,अपने घर मे! ही ख!गालो
कवि आगb कहताb है बाबा गलत फहमियो! को मत पालो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
बन्दर का खन्जर
जवाब देंहटाएंराम देव जी नौ के दस को करने वाले खडे़ हुये है!
व्याज-दरो! के इनके आफिस षहर, गा!व मे! पडे़हुयेहै!
अस्सी प्रतिषत व्यापारी और बाबा भी इसका खाते है!
मूल व!ही पर पडा हुआ है, दबे व्याज से मर जाते है!
ना कोई लेखा,ना कोई जोखा,घर-घर माया बा!ट रहे है!
न!गे - भूखे हर गरीब को , ये माफिया काट रहे है!
घर,जेवर,जमीन भी गिरवी,रख कर धन्धा चल जाताहै!
भारत के हर मध्य-वर्ग को,नौ के दस वाला खाता है!
बै!क व्यवस्था की ऋण सुविधा,महीनो! चक्कर कटवाती है
हर किसान को सरल प्रणाली,नौ के दस वाली भाती है
मूल, मूल मे!, व्या जवानी, रो!द-रो!द कर ही खाता हेै
दीन, दुखी होकर किसान तो, मजबूरी मे! मर जाता हेै
बे - मौतो! से मरने वाले, उस गरीब का हल तो ढू!ढो
राम देव जी भाशण-बाजी से ना इस भारत को मू!डो
तुम तो अरब-खरब की माया, बिन धन्धे के कमा रहे हो
राजनीति मे! बने षिखण्डी, निषाचरो! को जमा रहे हो
केवल अपनी ही माया का अर्थ - षास्त्र मुझको समझादो
अलोमविलोम की सा!से छोडो, बे-मतलब इतना मत पादो
तुम बाबा हो या राजनीति मे! उलझे हुये ल!गोटे हो
गुफा, झोपडी भूल गये! ,अब मोदी के परकोटे हो
इस भारत की अर्थ -व् यवस्था कौन समझने वाला है!
बाबाओ! को अय्यासी की नक्कासी ने पाला हे!
आषूमल और नारायण पर इतनी माया क!हा से आयी
जाने कब से जोड़रहा था,क्या इस पर भी नजर घुमायी
एैसे कितने कालनेमि है!, जो भारत मे! छिपे पडे़है!
राजनीति की आड़ पकड़ कर, धर्मो के बदनाम धडे़है!
धमार्थ ट्रस्ट मे!भ्रश्ट छिपे है!,हे,रामदेव उन पर भी बोलो
कवि‘आग’ की इस ग!गा मे!,धोती और ल!गोटे धोलो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
काष्मीर
जवाब देंहटाएंदेख लो अब नर्क कैसा बन गया कष्मीर है
दो वतन के बीच में क्यों खिच रही षमषीर है
हिन्दुओं का स्वर्ग था जन्नत थी मुषलमान की
स्वर्ग सी जिन्दगी कष्मीर मे इन्षान की
कैसा धरा में मेाक्ष था कष्मीर हिन्दुस्तान में
पाक तू क्यों मर रहा बे - वजह की षान में
ये ताज है मेरे वतन का पुश्टि है इतिहास में
बांग मुर्गे दे रहें हैं जन्नते तालाष में
मल्कियत मेरे वतन की किस तरह से खायेगा
इतिहास में नजरें घुमा तो होष में आ जायेगा
मर खप गये कितने लुटेरे देख हिन्दुस्तान में
मेरे वतन की आस्था है आज भी रहमान में
अपना निवाला काट कर,भूखण्ड को हम पालते है!
हर कश्ट को हम झेल कर,कष्मीर को स!भालते है!
हर चीज सस्ती दे रहे है!,मन स्वय! का मार कर
क्यो! लुट रहे है!,आज अपने खून से ही हार कर
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई भेद हम करते नही है!
पाक की लावारिसी ,इस नस्ल से डरते नही है!
बे - खुबी स!हार करने की कला हम जानते है!
कमजोर की औकात को स!स्कार से पहचानते है!
युद्व के इतिहास को तो ये धरा खुद बोलती है
अ!ग्रेज और मुगलो!,यवन की पृश्ठभूमि खोलती है
सब कुछ लुटाकर आज भी हम जी रहे है!षान से
बे - मौत मरते जा रहे, क्यो!,पूछ पाकिस्तान से
चीन, अमरीका के टुकडो से तेरा घर पल रहा है
मर रहा है षीत मे!फिर भी फफक कर जल रहा है
सा!स लेकर दुष्मनो की आड़ मे! कब तक जीयेगा
और कितना खून ,तू आवाम का भी अब पीयेगा
कितने यवन कितने मुगल अंगे्रज आये चल गये
कुछ बात हिन्दुस्तान में है हाथ खाली मल गये
तू खण्ड है मेरे वतन का एक दिन मिल जायेगा
इस आग की इस आग को इतिहास भी दोहरायेगा ।।
आप को चिन्तन का चिराग
जवाब देंहटाएंसत्-पथ पर धीरे चलने से, पग - मग, दृग मे!जमजाता है
तुर!ग सी तेज गति का रथी ,आधे पथ पर गिरजाता है
बुनियाद गहन हो भवनो! की , गिरने का डर कम होता है
सोना भी अपनी चमक - दमक,कीचड़ मे! गिरकर खोता है
नई - नई दुल्हन पर हर नजरे!,अच्छी, बूरी सब होती है!
ये परिभाशा पतिव्रता की है!,जो भार कुटुम्ब के ढोती है
छिनार सी नार से दो दिन मे!, औकात सडक पर आती है
गम्भीर सी धीर गहन गृहस्थी , ये सीख हमे! समझाती है
हे आप के दल - दल अ!कुर, पौधे बनकर मौसम को सहो
वट वृक्ष के ख्वाब ना देख अभी,मारूत के र!ग के स!ग बहो
चीड़ के नीड़की भीड़लगी, पद के मद मे! सब साथ लगे
ये दूर के ढोल सुहावने से है!,जो आस के पास हतास ठगे
ज!ाचो, परखो सत् जनमत के, मनमत से जनमत को जोडो
ठोक के चाल, चरित परखो, जनहित मे! जन-जन को मोडो
सब देख रहे,पथ को रथ को, इस पूत के पा!व के पालन को
बिन वेतन के नव -चेतन के,सुर के उर के इस बालन को
कुछ सूखे पेड़की झाड़भी है!,कुछ बे-मतलब के ताड़भी है!
कुछ उ!चे-नीचे खाड़ भी है!, हिम -मण्डित खडे़ पहाड़भी है!
कुछ असम!जस के गााढ़ भी है!,कुछ रार,दरार के फाड़भी है!
कुछ मतिमन्द से राड़भी है!,बिन दन्त के,मा!स के हाड़भी है!
तोल के मोल के बोल जरा,हर षब्द की धार को भार बना
सुर,ताल के साज को राग बना,हर हार को जीत का हार बना
मरूस्थल सी बन्जर है धरा, इसको जल, थल का जार बना
कवि‘आग’ की बात पे हाथ धरो, जज्बात को घात की धार बना!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
सुरक्षा का सम्मान
जवाब देंहटाएंमाना की तुम मे! हिम्मत है हिम्मत की कदर नही होती
हिम्मत मे! होष जरूरी है,राजीव को धरती क्यो! खोती
इन्दिरा भी फ!सी थी चालो! मे!,हम देष की नेता खो बैठे
जो भारत मा! की ताकत थी, हम हाथ उसी से धो बैठे
वो लाल बहादुर चले गये, लेटे थे षयन, सितारो! मे!
तुम गा!धी की ही बात करो,जो खडे़ थे अपने प्यारो! मे!
भगत सिह, षेखर, सूभाश जिनमे! जज्बा था जोष भी था
अब्दुल हमीद की वीरगति बिसमिल्ला का अफषोश भी था
चक्रव्यूह मे! अभिमन्यु अपनो मे! फ!सा, महाभारत मे!
उस टीपू औेर षिवाजी का लोहा था पूरे भारत मे!
चन्द्रगुप्त, चाणक्य य!हा एकान्त मे! चैकस रहते थे
नजरे! थी सभी दिषाओ! पर, सरल, मौन से बहते थे
स!कल्प लिया कुछ ठीक भी है,चैकन्ना भी मजबूरी है
स्वस्थ पौध का मौसम से बचना भी बहुत जरूरी है
टक्कर मे! आदम की जातो! के हाथ मे!तीर है! भाले है!
ये भी तुम जैसे दिखते थे,जो अब तक हमने पाले है!
भार लिया हैे भारत का ,कुछ रक्षा पर भी ध्यान धरो
उत्साह की राह मे! भावुकता,जीवन पर ना अभिमान करो
जर - जर भवनो! के गिरने से, गारे गमगीन उजडते है!
यहा! कवि ‘आग’के छन्द सदा ,सीधे हेै!,उल्टे पडते हेै! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
जवाब देंहटाएंसमाज वाद मे! नारी
चलचित्रो! मे! न!गी नारी हम कहते हैं कलाकार है
पुरुश प्रेम में लिपट रही है सच्चाइ्र्र है बलात्कार है
निर्माता भी चूम रहा धन से यौवन लाचार है
न!गे नर-नारी को देखो फिर कहते हैं व्यभिचार है
विज्ञापन में न!गा पन है भारत माता लुटी पढी है
बात धरम की करने वालोंकी क्या आ!खे फुटी पढी हैं
अब तो दुनिया ही न!गी है षर्म हया की कह!बात है
काम वाषना की कौमौ में मानवता की कहांजात है
श्रं!गार रसों की रचना में अ!गार धधकते देख रहा हूं
दुविधा मेरी मजबूरी है मैं भी आ!खें से!क रहा हूॅं
कटु सत्य है दुनिया में जब न!गा यौवन हो जाता है
स!स्कार श्रृश्टि मे!दानवतापन ही मानवता को खाता है
षास्त्र गवाह है मर्यादा और इज्जत नारी को कहते थे
मातृषक्ति की भावभक्ति मे! ईष्वर के भी गुण रहते थे
आसक्ति कीअभिव्यक्ति ही नारी क्यो! बनती जाती है
राश्ट्रपतन का कारण नारी,भारत मा! को क्यो! खाती है
समाजवाद में देख मुलायम, नारी से नाच नचाता है
मुख्यम!त्री , पुत्र साथ मे! पूरा लुफ्त उठाता हेै
अमचे, चमचे, गमछे सारे ज!घाओ! पर नजर गढाये
अवतार लोहिया के यू0पी मे! समाजवाद धरती मे! लाये
षीत लहर और भूख कहर से जनता मरती जाती है
सलमान,माधुरी, पिता, पुत्र, चाचा के मन को भाती है
और ना जाने कितनी,अधन!गी म!चो! पर नाच रही थी
अय्यासी मे! समाजवाद की आ!खे लोहिया बा!चरही थी
क्यौ! करते हो ऐसे नाटक लोक-तन्त्र कमजोरी मे!
गलती का अहसास नही हेै सब हे!ै सीना-जोरी मे!
समाज वाद का ये अन्तिम अध्याय नजर मे! आता हेेै
यू0पी0से तो कवि ‘आग’और पूरा भारत षर्माता है।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा ;(आग )
मो0 9897399815
(स्वामी विवेकानन्द जी को समर्पित)
जवाब देंहटाएंसन्यास
सन्यस्त का लक्षण यही है तन भरा हो मन भरा हो
ज्ञान हो या भक्ति हो उद्यान हृदय का हरा हो
साकार हो निर्गुण हो चाहे भाव,अन्दर का खरा हो
प््राफुल्लता से वाषनाऐं,हों तिरोहित मन मरा हो
प््राारब्ध का दारिद्रता से स्मरण होता नही
जागृत,हुआ दिखता तो है पर ध्यान मेंखोता नहीं
तुच्छ वैभव का भ्रम भी भाव में, रोता नहीं
भटकी हुयी हो आत्मा तो मन,कभी सोता नहीं
आकांछा आडम्बरों की क्षण भ्रमित होती तो है
श्रृंगार की दुनिया,क्षणिक पल्लवित होती तो है
विभत्सता कब तक छिपेगी, दृश्टिगत् होती तो है
आत्मा, उपराम होकर भी द्रवित रोती तो है
प्रारब्ध के इस मार्ग को अवरूद्य करना छोड़दो
आड़ लेकर धर्म की वैभव में मरना छोड़दो
चैराहे में भगवान का, व्यवसाय करना छोड़दो
आध्यात्म के इस भेश में सजना संवरना छोड़दो
ब्रहमाण्ड की पूरी व्यवस्था षास्त्र ही तो बोलता
श्रृश्टि का नयता नियन्ता षास्त्र ही तो खोलता
मोक्ष की परिधि विनायक षास्त्र ही तो डोलता
षास्त्र से साक्षात् हो हर जीव कर कल्लोलता
सम्प्रदायों का भजन कब तक धरा में गाओगे
रक्त-रंजित है धरा कब तक धरा को खाओगे
प्रारब्ध के इस मार्ग में प्रारब्धता, कब लाओगे
ब्रहम के उद्घोश से क्या ब्रहम को पाजाओगे
कुम्भ के स!गम,विह!गम बन के थोडा नाचलो
धर्म का मौका मिला है ,हो सके तो बाॅ!चलो
मन्थन करो इस नीर का नवनीत लो या छाछ लो
‘आग’के हर षब्द को बष,तोललो और जाॅ!च लो।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो0 9897399815
मॅंहगाई
जवाब देंहटाएंपहले हम खाना खाते थे,अब खाना हमको खाता है
मॅंहगाई के इस आलम में, यारों बडा मजा आता है
खाद्यान की कीमत सुनकर, मध्य - वर्ग ही षर्माता है
चीनी की कडवाहट से तो तीखा भी मन को भाता है
अब तो खुद का भोजन खुद सेेंये मजाक भी कर जाता है
मॅंहगाई के इस आलम में--------------------
दालें आॅंखे फाड रही हैं जेबें सब की ताड रही हैं
चावल की कीमत तो देखो,धरा में जिन्दा गाढ रही हैं
आटा टाटा बोल रहा है मैदा सब को तोल रहा है
घी तेल की मजबूरी है तभी तो चर्बी घोल रहा है
हर भोजन में षूगर सुनकर, थोडा धीरज बॅंध जाता ह
मॅंहगाई के इस आलम में--------------------
आलू ,मटर ,टमाटर,अदरक , हमें देखकर चिल्लाते है
प्याज लहसुन नरभक्षी बनकर जिन्दा ही हमको खाते है
गोभी,बेंगन ,लौकी,तोरी,भिन्डी,टिन्डा और चचिन्डा
हमको एैसे काट रहे हैं महिसासुर को,माॅं चामुन्डा
मध्य -वर्ग भूखा मरता है धनवाला दावत खाता है
मॅंहगाइ के इस आलम में-------------------
राजनीति, अब फेल हो गयी,सारी जनता खेल हो गयी
घुॅंस पेंठिये घुसे जा रहे ,ये भारत की रेल हो गयी
षंषद की कैंटिन है सस्ती ,नेता के घर पल जाते है
मॅंहगाई का कारण पूछो , सारे नेता टल जाते है
लोकसभा में देखो इसको जोर -जोर से चिल्लाता है!
मॅंहगाई के इस आलम में---------------------
नैपाली और बंगला देषी ,रोज यहाॅं पर घुस आता है
पाकिस्तानी अगल-बगल का भारतवाषी कह लाता है
घुॅंस -पैंठिया , मेरे घर का ,सारा राषन खा जाते हैं
इस लावारिस बोट बै!क से टुच्चे नेता बन जातें हैं
जनगणना भी मजबूरी है ,ये आॅंकडा दिख लाता है
मॅंहगाइ के इस आलम में ---------------
घर - घर में खाने के लाले जगह -जगह देखो घोटाले
बे -घर दीन दुखी मरता है चोरों के माले पर माले हर गरीब ये झेल रहा है, खाद्य निगम बष खेल रहा है
सारी दुनिया देख रही है मुॅंह पर कीचढ फेंक रही है
वैमनस्य की राजनीति में ये भी मुद्दा बन जाता है
मॅंहगाई के इस आलम में--------------------
घर-घर में प्रापर्टी डीलर खेत के टुकडे काट रहा है
अव्वल दोयम की किमत को मानचित्र में छाॅंट रहा है
धरती माता भू-माफिया के हाथों से बिक जाती है
नई पीढियों की किस्मत को ये मजबूरी लिख जाती है
माया की इस भाग दौड में गाॅंव घिसट कर मर जाता है
मॅंहगाई के इस आलम में---------------------
व्यापारी भी जमी!दार है! सस्ती धरती ढू!ढ रहे है!
सीधे -साधे हर किसान को उल्टा-सुल्टा मू!ड रहे है!
सौ-सौ एकड़ ब!जर भूमि ,बिन खेती के पढी हुयी है
भारत मे! भूखे मरने की ये देखो तकनीक नई है
भू - माफिया कैसे ,खेती-बाडी वाला बन जाता है
मॅंहगाई के इस आलम में-------------------
जनसंख्या को डेढ अरब से उपर हम ही बढा रहे हैं
मॅंहगाई का भूत स्वयं के उपर हम ही चढा रहे हैं
जनसंख्या और मॅंहगाई से अर्थ व्यवस्था डोल रही है
प्रजातन्त्र के इस नाटक की सारी पोलें खोल रही है
आत्मदाह का सबसे सस्ता ये कारण हमको भाता है
मॅंहगाई के इस आलम में-------------------
सरकारी ऋण चाहने वाला सौ-सौ चक्कर काट रहा है
धनपतियोंके घर-घर जाकर बैंक लोन को बाॅंट रहा है
घर-बारों को गिरवी रख कर ये गरीब तो मर जाते है
खून पसीने का वो पैसा फर्जी षपत -पत्र खाते है
रिजर्व-बैंक तो नौ के दष को करने वाला बन जाता है
मॅंहगाई के इस आलम में -------------------
स!भ्रान्त प्रान्त के सारे नेता देष के टुकडे़ काट रहे है!
धर्म,मजहब और क्षेत्र,जाति मे! हमको,तुमको बाॅ!ट रहे है!
देख रहे हो , ये लावारिस कैसे वारिस बन जाते है!
पाॅ!च साल की राजनीति मे! बोटी नो!च-नो!च खाते है!
भटक रही इस मूरख जनता को ये जोकर क्यो! भाता है
मॅंहगाई के इस आलम में -------------------
वित्त व्यवस्था डोल रही है क्या इस पर चिन्तन होता है
कृशि प्रधान ये वसुन्धरा है,अन्न कहाॅं पर क्यों खोता है
भाव - भंगिमा नेताओं की व्यापारी को दिख जाती है
प्रजातन्त्र की षेयर -बाजारों से किमत लिख जाती है
लोकतन् त्र के इस कीचढ में फंसी पढी भारत माता है
मॅंहगाई के इस आलम में,यारों बडा मजा आता है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
साहित्य के षत्रु
जवाब देंहटाएंक्या तालाबो! की मछली सागर पार करे!गी
हम दो पैरो! पर चलते थे ,ये चार करे!गी
क्या षब्दो! की षमसीरे! अब लाचार करे!गी
क्या आप पार्टी स!सद मे! भी मार करेगी
गम्भीर, गहन गरिमा योगेन्दर यादव मे! है
मिट्टी कूट रही कविता, मिट्टी के माधव मे! है
राजनीति क्यो! उथली, िछछली बन जाती है!
कविताए! क्या प्रजातन्त्र को सहलाती है
कवि कलम के हथियारो! का षब्द जखीरा
दुर्भाग्य कवि ने कवि हृदय को कैसक चीरा
अच्छा होता कवि - राज तुम कविता गाते
साहित्य जगत को राजनीति से ना भरमाते
आदर्ष कवि अ!कुष होता है व्यभिचारो! पर
उसकी नजरे! क!ही चा!द पर क!ही तारो! पर
विस्वास गिरा धरती पा मलिया मेट हो गया
आज कवि सम्मान सडक पर लेट सो गया
प्रजातन्त्र की परिभाशा को समझो प्यारे
कोइ भी नेता हो , सब जन - मत हत्यारे
दुर्भाग्य क!हूगा , जब षिक्षक नेता होता है
साहित्य जगत का गधा आज बोझाा ढोता है
क्या जरूरत है राहुल, मोदी से लडने की
क्या जरूरत है पद, मद मे! हद से अडने की
बुनियादो! का परिचय षब्दो! से होता है
क्यो! एक कवि लावारिस भीडो! मे! रोता है
साहित्यकार ने राजनीति का पथ क्सो! खोला
साहित्य जगत का छोडो तुम विस्वास ये चोला
साहित्यकार तो ऋशि,मुनि है हर चिन्तन का
वो सागर है देवो! और दानव मन्थन का
साहित्य जगत मे! कुत्सित परम्परा ना लाओ
बचे, खुचे कवियो! मे! अब ना भाव जगाओ
साहित्य हमेषा भाट, चारणो! ने खोया है
आज कवि मन,‘कवि’आग’ का भी रोया है!!
भारत के भाण्ड
जवाब देंहटाएंसारे पागल राजनीति के चोराहो! पर भो!क रहे है!
हिन्दू,मुस्लिम ,सिक्ख, इसाई धडे़सभी के चै!क रहे है!
जाति,पाति की दाल मुलायम,माया मिलकर छो!क रहे है!
अपनी ताकत, राहुल, मोदी, आप पार्टी झो!क रहे हेै!
ना कोई चिन्तन,ना कोई मन्थन,षब्दो! मे! दोशारोपण हेै
दिषा हीन इस जनमत का ये प्रारब्ध कैसा पोशण हेै
आप की टोपी,बाप की टोपी,बी.जे.पी. सन्ताप की टोपी
गा!धी,नेहरू, खाप की टोपी,हिन्दू, मुस्लिम जाप की टोपी
खानदानी षिक्षक का बेटा,भीख बोट की मा!ग रहा है
मा!सरस्वति को लक्ष्मी की खू!टी पर क्या!े टा!ग रहा हेै
जोर-जोर से चिल्लाता है, म!चो! पार कविता गाता है
षब्द - भेद का ये जादूगर, क!गला है या सहजादा है
राश्ट्र सुरक्षित कैसे होगा,भाशण मे! कोइ बात नही हेेै
म!हगाई, भुखमरी ,गरीबी की क्या कोइ औकात नही है
म!हगे - म!हगे, होटल, बॅगले, अय्यासी मे! रहने वाले
कालेधन और स्वाभिमान के अ!गले-क!गले हमने पाले
राश्ट्र सुरक्षा की गारन्टी , हम सब इनमे! ढू!ढ रहे है!
ये नव्वे भी बिना धार के हथियारो! से मू!ड रहे है!
भेड़, बकरिया ! भीड़ जुटा कर मु!डवाने को आजाती है!
यही कारण है प्रजातन्त्र को नष्ल भेडियो! की खाती है
हिन्दू भेडे़,मुस्लिम भेडे़, सिक्ख, इसाई, नेडे़- नेडे़
ब्राह्मण, ठाकुर, वैष्य, षूद्र सब कट जाते है! टेडे़-मेडे़
हर म!चो पर खटिक, कसाई,समषीर षब्द की टा!ग रहे है!
जनमत की इस वध -षाला से भीख बोट की मा!ग रहे है!
मेरे बोट की, बकरो! , मुर्गो से ज्यादा ओकात नही है
हम षदियो! से कटते आये, ये घातक, आघात नही है
राहुल काटे, मोदी काटे, आप पार्टी, बा!टी बाटे
कवि ‘आग’ कहता है जनमत, नेताओ! की मिलकर चाटे!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
नीलाम सियासत
जवाब देंहटाएंहे, अटलबिहारी के अर्जुन जरा तीर निषाने पर मारो
अरूण जेटली राजनाथ, सुशमा ,जोषी को भी तारो
लालकृश्ण से पितामाह ,लेटे है ! सर सन्धानो मे!
बी.जे.पी.क!ही षिव सैना,क!ही स!घ है तानो!बनो मे!
आप पार्टी की गाजर घासो! ने खेल बिगाडा है
प्रजातन्त्र के ज!गल मे!,ये नये पषुओ! का बाडा हेै
नई-नई नष्ल के षेर य!हा,नित भर्ती होने आते है!
ना ह!सते हो ना रोते हो,अन्दर ही धू!आ उडाते हे!
ये का!ग्रेस को चाट गये, बुनियाद तुम्हारी खोदे!गे
नये किस्म के साबुन हे!,ये मैल सभी का धो देगे!
रफ्तारो! का अनुमान नही,ये कितनी दौड लगाये!गे
ये पथ पर खुद भी भागेगे!,तुमको भी खूब भगाये!गे!
का!ग्रेस की सैना मे! भग-दड़ सी दिखायी देती है
ये ग्रामसभा की कटि लीज अब बेनामी सी खेती हेै
ब्!ाधुवा मजदूर है!इस दल मे!,गा!धी के बन्दर बैठे है!
मालिक के फतवो! के आगे,ये मौन हुये सब ऐ!ठे! हेै
मनमोहन कहने को पीएम.है सा!स घोट के जीता है
उद्घाटन राहुल करता है,ये कटा हुआ सा फीता है
घोटाले दर घोटाले है! बदनाम बेचारा अपनो! मे!
का!ग्रेस की दषा देख ,रोता है गा!धी सपनो मे!
एक तरफ बे - रोजगाार है! ,घूम रहे है! धन्धे को
कुछ छोड़चाकरी बने सियासी,ढू!ढ रहे है! चन्दे को
कुछ ना कुछ तो मिलता होगा, राजनीति मे! आने से
क्या मतलब है ,बिना बात के सडको पर गुर्राने से
प्रजातन्त्र मे! सबको मौका मिलता खुरक मिटाने का
कुछ ना कुछ तो हल ढू!ढो,बे-तुके गीत को गाने का
बुद्वि - बल्लभ, वाणी-भूशण,कब तक राश्ट्र चबायेगे!
समय-समय पर कवि‘आग’ के,छन्द इन्हे गर्मायेगे! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
वर्ण-ष!कर
जवाब देंहटाएंबन गयी है वर्ण ष!कर ,आस्था अब देष मे!
वर्ण - ष!कर दिख रहा है, हर जगह हर वेश मे!
स!स्कार की बाते! करे!, क्या ये हमारी भूल हेै
इस वतन मे! आज देखो, वर्ण - ष!कर मूल है
वर्ण -ष!कर गाय का हम दूध पीते जा रहे है!
वर्ण-ष!कर के फलो! को ,षौक से हम खा रहे है!
खाद्यान मे! भी वर्ण -ष!कर जीव का आधार है
य े हमारी मुढता है , अब धर्म भी लाचार है
ष्वान देखो वर्ण - ष!कर, हर घरो! मे! पल रहा है
जर्सी,फ्रिजन गाय से भी दूध सबको मिल रहा है
राश्ट्र खग, मृग, सि!ह देखो वर्ण ष!कर हो रहे है!
ये समय की मा!ग है ,र्निबीज को हम बो रहे है!
दिन रात बच्चे आदमी, बे - भाव पैदा कर रहा है
बढती हुयी इस भीड़ से केवल वतन ही मर रहा है
हर जीव को भोजन जुटाने की व्यवस्था चाहिये
वर्ण - ष!कर ही भरोसा ,अब वतन मे! पाइये
कारण बनी है आवष्यकता ,खोज होती जा रही है
आज जनस!ख्या, समस्या ही वतन को खा रही है
वस्तू का, हर जीव का स!स्कार खोता जायेगा
वर्ण - ष!कर एक दिन ये राश्ट्र भी हो जायेगा
इस वर्ण मे! भी कर्ण जैसे वीर होने चाहिये
वो वर्ण-ष!कर हो! भले, पर धीर होने चाहिये
टेस्ट - ट्यूबो! मे! षिषू, समषीर होने चाहिये
कवि‘आग’ के हर छन्द मे! ,बस,तीर होने चाहिये!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
चम्पू की चाय
जवाब देंहटाएंराहुल,मोदी और केजरी से हम को कोइ आस नही है
मै भी चाय बनाता हू! पर मुझेको भी विस्वास नही है
षब्द-भेद के बाजीगर का ये सर्कस चलता आया है
कलमाडी ने चाय बेच कर एक उदाहरण दिखलाया है
कितने चाय पकौडी वालो! ने अब तक उत्थान किया है
हर भाशण मे! चाय,पकौडी वालो! का गुण-गान किया है
लोक सभा मे! चाय,इलायची ,चीनी, पत्ति भरवाओगे
स!विधान से, डोसा, इडली, चाय,समोसा बिकवाओगे
चाय-चाय चिल्लाने वाले,क्या अब स!सद मे! आये!गे
स्कूल,मदरसे क्या बच्चो! को चाय बेचना सिखलाये!गे
वाह रे भारत -भाग्य विधाता,अब्राहम लि!कन के नाती
वाह रे जणगणमणअधिनायक इस ज!गल के टस्कर हाथी
केवल चारण अच्छे- अच्छे षब्दो! की कविता गाते है!
प्रजातन्त्र मे! केवल षब्दो! के सौदागर ही आते है!
आजादी के बाद देष मे! सबने चाय, पकौडी बेची
भारत मा! के चीर हरण की,मिलकर हमने साडी खै!ची
टाटा, बिडला, डालमिया की चाय की चुस्की लेने वालो!
अम्बानी, मित्तल जैसो! के, चैबारो!, चमचो! रखवालो!
कब तक हम जैसे न!गो! को कप, केतलियो! से पालोगे
चाय उडेल कर कब तक जनमत ग!जो! के सिर पर डालोगे
चाय पिला कर सारे नेता आज देष को लूट रहे है!
चाय के प्याले आज गरीबो! के हाथो! से छूट रहे है!
चाय-चाय के चक्कर मे! क्यो! जनमत के सिर फूट रहे है!
सब चाय बनाने वाले चैराहो! मे! मिट्टी कूट रहे है!
हे ,चाय पकौडी ,चमत्कार, हे, च!चल चितवन चार्वाक
मुर्दो के मु!ह मे! चाय डालकर,ना कर सपने सबके खाक
मेहनत की दो रोटी खाने वालो! को क्यो! भरमाता है
मध्य - वर्ग, मजदूर देष का, हिन् दुस्तान बनाता है
सबसे पहले, घुसपै!ठियो! और जनस!ख्या पर रोक लगाओ
भू - माफिया ,काले धन को लोकपाल परिधी मे! लाओ
फिर चाय, पकौडी, इडली ,डोसा चोराहे मे! खुल कर बेचो!
कवि‘आग कहता है,भारत मा! की साडी और ना खै!चा!े!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष
मो09897399815
लावारिस के वारिस
जवाब देंहटाएंइस राजनीति मे नई - नई तस्वीर उभर कर आती है
अब तक जो अनजान थी जनता अब वो भी षर्माती है
नयी तकनीकी नया दौर हैे, नये नमूने आये!गे!
फेसबुको!से ओैर ट्वीटर से,ये जन-मत को भरमाये!गे
रस्ते और घुमस्ते रोको ,टम-टम गाडी दस्ते रोको
सन्ता,बन्ता,जनता रोको ,अगर मिले भगवन्ता रोको
आप,बाप के खाप को रोको,भीडो! के अभिशाप को रोको
लावारिस इस चाप को रोको,कोई सडक छाप को रोको
आम आदमी इतना न!गा,क्यो! बनता है खास मत!गा
ग!जा बेच रहा है क!घा, कवि राज का देखो प!गा
लोक-तन्त्र का कीट पत!गा,सडको! पर करता हैे द!गा
हाथ के उपर फ!सा हैेेछ!गा,बी.जे.पी.का देख अड!गा
आज केजरीवाल खडा है,प्रजा-तन्त्र का काल खडा हेै
घर केअन्दर अलग घडा है,किरण चमक गयी चा!द चढा है
लावारिस का अलग धडा हेै,टुच्चा इज्जत-दार बडा है
भालू ,बन्दर ,खूब लडा है ,लोक-तन्त्र चुप-चाप खडा है
भारत मा! के गीत सुनाओ,गा!धी को सडको पर लाओ
सब टी0वी0चैनल मे! छाओ,आम, खास के गाने गाओ
नारे बोलो देष बचाओ,राजनीति की आड मे! खाओ
दिल्ली को दरवेष बनाओ ,दुनिया को औकात दिखाओ
वैष्या वृत्ति,भा!ड को पकडो,चैराहौ! सडको पर अकडो
घरघर के हर का!ड को पकडो,मुस्ट!डो!की टा!ड को पकडो
राम देव ब्रह्माण्ड को पकडो,मोदी नये ब्राण्ड को पकडो
म!हगा!इ है खा!ड को पकडो,बिखरे चावल,मा!ड को पकडो
स!विधान के पन्ने कोरे, खोल रहे है! सभी छिछोरे
दक्षिण काले, उत्तर गोरे, डाल रहे जनमत पर डोरे
लावारिस सब छोरी , छोरे, राजनीति की पकडे़ डोरे
सब के घर नोटो के बोरे,फिर भी हाथ मे भीख कटोरे
मन्दिर, मस्जिद, गिरजे न्यारे, झण्डे उ!चे रहे हमारे
सम्प्रदाय सबके है! प्यारे, इनसे राश्ट्र - ध्वजा भी हारे
सभी सपूत भारत के प्यारे, चाट रहे है! नेता चारे
कवि ‘आग’ के छन्द करारे, फेस-बुको! मे! भटके हारे!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
तिर!गा -बचाओ
जवाब देंहटाएंऐरो! - गैरो! के हाथो! मे! आज तिर!गा रोता है
जो लालकिले की षोभा हेै,वो भीडो! मे! खोता है
आम आदमी आज तिर!गे से जनमत को ढोता है
ऐसा नाटक प्रजा-तन्त्र के सर्कस मे! क्यो! होता है
भोग विलासी राज-योग के सिहासन बन जाते है!
चोर, उचक्के, सारे डाकू ,राश्ट्र-गीत क्यो! गाते है!
मर्यादा झण्डे के नीचे, हथ-कण्डे अपनाती है
व्यभिचारिणी, बलात्कार की परिभाशा समझाती है
आज राश्ट्र के प्रतीको! की नीलामी चोराहा!े मे!
भारत माता फ!सी पढी है ,बे-ष् ार्मो की बा!हो मे!
मौन ध्वजा की चित्कारे!,सरहद का मान बढाती है!
राजनीति के सढे षवो! की, कफन ध्वजा बन जाती है
अब कितना अपमान करोगे झण्डो! का हथकण्डो! से
कब तक मुर्दो! को ढोओगे, लोक-तन्त्र के फण्डो से
अस्सी प्रतिषत नेताओ! को,राश्ट्रगीत नही आता है
आज देष का बच्चा - बच्चा नेता से षर्माता है
राश्ट्र - तिर!गा गोैरव- गाथा है, इस हिन्दुस्तान का
हिन्दू,मुस्लिम, सिक्ख, इसाई, कौमी र!ग इमान का
इस भारत मे! षान्ती,का्रन्ती औेर हरियाली,हर्शाती हेै
सारी कौमे! गीत तिर!गे का घर-घर मे! गाती है!
आज तिर!गा महज कफन ह!ै,राश्ट्र-द्रोह,हत्यारो! का
लावारिस हथियार बना हेै,गुण्डो, चोरो! जारो! का
कौन बचाने वाला है ,इस आजादी के अम्बर को
कौन सजाने वाला हैे, इस रिद्व, सिद्व, पैगम्बर को
आज हमारा स्वाभिमान, लहरा - लहरा कर रोता है
आर्य - खण्ड का ये भारत, भारत को कैसे ढोता है
नियम बने कुछ ऐसे, ना टुच्चो! के हाथ तिर!गा हो
कवि‘आग’ के छन्दो!की, हर दिल मे! बहती ग!गा हो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
साहित्य-सुरक्षा
जवाब देंहटाएंराजनीति और कविता मे! भी फर्क बहुत है
कविता है सन्देष, सियासत तर्क, नर्क है
राजनीतिक शडयन्त्र हमेषा से रचता है
कवि हमेषा कीचड़, लीचड़ से बचता है
तथा कथित कवियो! को सत्ता भा जाती है
भाट, चारणो! की नसल े!फसल!े खाती है!
व्य!ग , र!ग की भाशाए! कविता गाती है
त!ज, र!ज की परिभाशा भाटो! से आती है
राजनीति के षूल , फूल को काट रहे है!
नाम कवि का ,तलुवे जनमत चाट रहे है!
साहित्यकार क्यो!, भाट देष मे! झेल रहा है
कवि मौेन है,ये कौन म!च से खेल रहा है
राश्ट्र कवि भी आत्म ग्लानि से मौन खडे़ है!
साहत्यिकार मे! वैमनस्य के अलग धडे़ है!
साहित्यो! की ष्वा!स सडक पर फडक रही है
आज दामिनी बिना मेघ के कडक रही है
उठो कलम के षूर, कू्रर को कलम से काटो
साहित्य जगत मे! इन मुर्दो को ढू!ढो छा!टो
षमषान षवो! की सढी गन्ध ,ये महामारी हैे
क्यो!ल्!ाच,म!च,प्रप!च चारणो! मे!जारी है!
उपहास,आस,विस्वास क!लकित,कविता कीडे़
करम हीन,करकस,सरकस, भाटो! की भीडे!़
साहित्यकार! खरपतवारो! पर भीकलम उठाओ
कवि‘आग ’की कलम,इलम पर धार लगाओ!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
कवि और नेता
जवाब देंहटाएंनेता में और कविता में बष,फर्क यही है
आत्मसात् होता है कवि,मस्तिश्क नही है
जनता , नेता की सत्ता है ,जोत बही है
कविता ने तो सतत सत्य की बात कही है
कवि,औेर नेता दोनो को भीडें ही भाती हैं
कवि सूक्ष्म जीव है,नेता तो तस्कर हाथी है
इनको तो बष लंच , मंच ,प्रपंच चाहिये
प्रजातंत्र की भीडों के सरपंच चाहिये
राजनीति और कविता जनता से पलती है
कवि श्रेश्ठ है ,नेता जनता की गलती है
जनता कविताओं से खुष है,खेल रही है
राजनीति के दंष दषक से झेल रही है
राजनीति के दल में दल-दल गन्ध भरा है
नेताओं में भ्रश्ट आचरण, आज खरा है
अलंकार,रस,छन्द चरण कवि अर्पण करता
श्रृश्टि स!रचना कैसी हो,छवि दर्पण धरता
तुलसी सूर,कबीर राश्ट्र की अमुल्य निधि है
धर्म मजहब निर्पेक्ष बने, बष एक विधि है
राजनीति मजहब के डबरे खोल रही है
जा!ति-पा!ति का जहर जगत मे!घोल रही है
आजादी का गीत कवि ने ही गाया था
स्वाभिमान का पथ भारत को दिखलाया था
भीडो में बष नेता षक्लें दिखलाते है
फसल हमारी, काट- काट कर ये खाते है
सूर्यकान्त त्रिपाठी , दिनकर और निराला
राश्ट्र-गीत को बकिंम,रविन्द्रनाथ ने पाला
श्रृंगार , रोद्र को,वीर रसों में ढाल रहे थे
आजाद हिन्द को, हम कविता से पाल रहे थे
अखण्ड राश्ट्र की परिभाशा कविता गाती है
राजनीति तो खण्ड - खण्ड को समझाती है
ये मान चित्र खादी की व्याधि बतलाता है
राजनीति का भाट कविता क्यो! गाता है
अब तो ये वेतन भत्तों पर भी जीते हैं
हम सींचते लहु वतन पर , ये पीते हैे
आदर्ष कवि है ,मंचो पर मन भावन,सावन
ये राजनीति मारीच, कहीं लंकापति रावन
नेता जी! तुम राश्ट्र -गीत को भूल गये हो
सत्ता और षियासत ,मद में फूल गये हो
आत्म ग्लानि की पीडा से ,कविता रोती है
क्यो! राजनीति और कविता म!चो से होती है?
जनता को कवि कविता में रस दिख जाता है
राजनीति में नेता बातों की खाता है
राश्ट्र सृजन श्रृंगार नियन्ता कवि होता है
इतिहास गवाह है नेता से भारत रोता है
कुछ तथाकथित कवि भाट चारणो! की भाशा मे!
वैभवता के भ्रूण छिपे है! अभिलाषा मे!
साहित्य सतत् इनके कर्मो से षर्मिन्दा है
इस राजनीति मे! केवल चारण ही जिन्दा है
षेर त्रास मे! घास कभी भी नही खाता है
दुर्गन्ध, छन्द की वैभवता को नही गाता है
कवि षिल्पकार है जिसने ये पाशाण तरासा
षोला, षबनम, आग,लपट, षब्दो! की भाशा
षब्द अस्त्र है कविता से जो भेद रहा है
नेता की नौका मे! हरदम छेद रहा है
कटुता और पटुता से कवि हृदय धोता है
ये कवि आग है बुझी आग से ही रोता है।।
पूत के पा!व
जवाब देंहटाएंआप पार्टी अब कोठो! पर झा!क रही है
नगर-वधु दिल्ली की थर-थर का!प रही है
सोमनाथ जी काम-कला की निषा मे! खोये
इस आम आदमी ने कैसे सपने स!जाये
कवि - राज श्रृ!गार म!च पर समझाते है!
विभत्स, रोद्र की,केरल की कविता गाते है!
हे ,काम कला के वात्सायन ऋशि,मुनिराज
चैरासी आसन पर भी, बोलो कुछ अल्फाज
ऐसी कैसी आग लगी थी रात को निकले
चमत्कार है ,षीत लहर मे! बरफ भी पिघले
सीता के कारण ही तो ल!का जलती है
द्रोपदी को भी दुर्योधन की हरकत खलती है
इतिहास गवाह है,फिर भी हरकत मे!आते होे
क्या रामदेव की स्वर्ण भस्म तुम भी खाते हो
आप पार्टी, पक्ष, यक्ष बन, सडके रोके
वैष्यालय मे! कब होती है!,रोक!े, टो!के
पुलिस देष की इस धन्धे मे! मौन खडी है
भाई सोमनाथ,तेरी हिम्मत भी बहुत बडी है
क!ही कविराज क!ही, सोमनाथ कितने प!गे है!
क्या आम आदमी, भारत मे! ज्यादा न!गे है
सब तेरे आगे, प्रषाषन, जज फेल हो गये
स!विधान, कानून ‘आप’ के खेल हो गये
कम से कम कुछ देख भाल कर छापे मारो
नगर - वधु के कारण पूरा नगर ना तारो
भय-भीत बना हैे आज केजरी तेरे कारण
योगेन्दर भी मौेन खडा ,भव-सागर तारण
बचपन अच्छा था, इस भरी जवानी मे! प!गे है!
कवि ‘आग’ क्या आम आप मे! सब न!गे है!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
प्रिय पाठको! मै! 26जनवरी के उपलक्ष्य मे! झण्डो! ओर राश्ट्रीय झण्डे के कारण जो उपद्रव को रहे है!,उनको मै! अपनी तीन अलग-अलग रचनाओ!म्े! व्यक्त कर रहा हू!,आषा है आप अपनी टिप्पणी अवष्य भेजेगे!,क्यो! की आपकी टिप्पणी पर ही मुझे कुछ लिखने की षक्ति मिलती हेै,
जवाब देंहटाएंअन्र्तराश्ट्रीय ध्वजाहंकार
गजभर केे कपडे़से ब!धी है ,आबरु हर देष की
आठ गज के दण्ड म!े लिपटी हैे भाशा क्लेश की
ध्वज धरा मे! गाढ़का परिचय वतन का हो रहा है
मरती है! कौमे! आन पर कैसा जतन ये हो रहा है
पागलो की मूढता से गीत भी बनते गये
मूढता के गीत से सारे वतन तनते गये
हर वतन के अपने - अपने इस जहा! मे! गीत है
कारण यही है बैर का हर वतन विपरीत है
हम,पीर और पैगम्बरो! को भी ध्वजो! से जानते हैं
आवाम भी अस्तित्व अपना ही ध्वजो! को मानते हैं
पैबन्द का अम्बर यहाॅं अखिलेश है हर भेश मंे
क्यों मजहबी आका ,पताका बन रहा है देष मंे
क्यों राजनीति मंे कफन है कौम के सम्मान का
षोक मंे भी झुक रहा है ,राश्ट्र गौरव गान का
ये! सियासी मृत षवो की रूग्णता को ढो रहा है
राश्ट्र का सम्मान भी असितत्व अपना खो रहा है
5
सरहदो! पर भी ध्वजा अब ज!ग का प्रतीक है
हर तरह के द्वन्द मंे भी ,क्यो! ध्वजा सरीक है
हम षपत लेते बष, झण्डा बचाने के लिये
यहाॅंआदमी मजबूर है दो वक्त खाने के लिये
6
मूढता में हर मजहब भी राश्ट्र से उपर बडा
चर्च, मन्दिर,मस्जिदों पर व्योम को झण्डा चढा
हर मजहब ने धर्म को तो ध्वज धूरी पर धर दिया
स्वछन्द सागर प्रेम का पूरा जहर से भर दिया
7
कही! राश्ट्र है कही! धर्म है कितने कबीले कौम है
लड. रहें हैं लक्ष्य कर कौन छूता व्योम है
झण्डा धरम का राश्ट्र् का गर इस तरह बढता रहेगा
जब तक धरा में श्रृश्टि है इन्सान तो लडता रहेगा !!
प्रिय पाठको! मै! 26जनवरी के उपलक्ष्य मे! झण्डो! ओर राश्ट्रीय झण्डे के कारण जो उपद्रव को रहे है!,उनको मै! अपनी तीन अलग-अलग रचनाओ!म्े! व्यक्त कर रहा हू!,आषा है आप अपनी टिप्पणी अवष्य भेजेगे!,क्यो! की आपकी टिप्पणी पर ही मुझे कुछ लिखने की षक्ति मिलती हेै,
जवाब देंहटाएंअन्र्तराश्ट्रीय ध्वजाहंकार
गजभर केे कपडे़से ब!धी है ,आबरु हर देष की
आठ गज के दण्ड म!े लिपटी हैे भाशा क्लेश की
ध्वज धरा मे! गाढ़का परिचय वतन का हो रहा है
मरती है! कौमे! आन पर कैसा जतन ये हो रहा है
पागलो की मूढता से गीत भी बनते गये
मूढता के गीत से सारे वतन तनते गये
हर वतन के अपने - अपने इस जहा! मे! गीत है
कारण यही है बैर का हर वतन विपरीत है
हम,पीर और पैगम्बरो! को भी ध्वजो! से जानते हैं
आवाम भी अस्तित्व अपना ही ध्वजो! को मानते हैं
पैबन्द का अम्बर यहाॅं अखिलेश है हर भेश मंे
क्यों मजहबी आका ,पताका बन रहा है देष मंे
क्यों राजनीति मंे कफन है कौम के सम्मान का
षोक मंे भी झुक रहा है ,राश्ट्र गौरव गान का
ये! सियासी मृत षवो की रूग्णता को ढो रहा है
राश्ट्र का सम्मान भी असितत्व अपना खो रहा है
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सरहदो! पर भी ध्वजा अब ज!ग का प्रतीक है
हर तरह के द्वन्द मंे भी ,क्यो! ध्वजा सरीक है
हम षपत लेते बष, झण्डा बचाने के लिये
यहाॅंआदमी मजबूर है दो वक्त खाने के लिये
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मूढता में हर मजहब भी राश्ट्र से उपर बडा
चर्च, मन्दिर,मस्जिदों पर व्योम को झण्डा चढा
हर मजहब ने धर्म को तो ध्वज धूरी पर धर दिया
स्वछन्द सागर प्रेम का पूरा जहर से भर दिया
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कही! राश्ट्र है कही! धर्म है कितने कबीले कौम है
लड. रहें हैं लक्ष्य कर कौन छूता व्योम है
झण्डा धरम का राश्ट्र् का गर इस तरह बढता रहेगा
जब तक धरा में श्रृश्टि है इन्सान तो लडता रहेगा !!
जवाब देंहटाएंतिरंगें की तौहीन
स्तब्ध है ! मेरा तिरंगा मौन है बेचैन है
मेरा सफर था रोषनी का ,क्यों यंहा पर रैन है
मैं महज कपडा नहीं हूॅं, राश्ट्ª का सम्मान हॅंू
हर षख्ष के दिल मंे बषा हूॅंसत्य हूंूॅ ईमान हूं
अस्मिता हूंॅ इस चमन ,की गुल यंहा खिलते रहैं
भावना के भाव कौमों , के यंहा मिलते रहैं
मैं वतन की षान हूॅं ,,गौरव लूटाता जाउंगा
राश्ट्र के स्वाभिमान में, सम्मान से लहराउंगा
मैं भावना हॅूं राश्ट्र की ,सम्भावना संसार की
मैं षहीदों के दिलों मैं वो फिजाॅं हूूंॅ प्यार की
स्वीकार करता हॅूं सहादत ,सल्तनत के वास्ते
क्यों ? सियासत् मोडती है आज मेरे रास्ते
मजहबों का जंग जननी के हृदय को चीरता
सम्मान मुझको दे रही है सरहदों की वीरता
मैं कफन बनता हॅूं जो मरते हैं मेरे नाम से
मौतें खड.ी हैं राह में, डरते नही परिणाम से
आने वाली नष्ल पूछेगी तिरंगा कौन है
सर षर्म से झुकेगा क्यों ध्वज धरा में मौन है
छोड. दो, अपने हितों को राश्ट्र के सम्मान में
बष! तिरंगा ही रहे सबके दिलों में ध्याान में।।
तिरंगे का अपमान
जवाब देंहटाएंमरकर नेता राश्ट्र तिरंगे में लिपटा
राजनीति का भूत वतन पर क्यों चिपटा है
राश्ट्ª तिरंगा भारत की गौरव गाथा है
षदियों से भारत मुर्दो का बई खाता है
स्वाभिमान मुर्दो का ध्वज से दूर हटाओ
जीवंत राश्ट्ª का भाव तिरंगे में फहराओ
राश्ट्रª ध्वजों से मुर्दों को कब तक ढोओगे
स्वाभिमान भारत का अब कितना खोओगे
सम्मान राश्ट्रª का झण्डे से उंचा होता है
आज प्रतिश्ठा भ्रश्ट आचरण क्यों खोता है
निर्जीव ध्वजों से आज दरिंदे हठ जायेंगे
भारत मां का गीत परिन्दे भी गायेंगे
स्वच्छ छवि क्या राजनीति से बच पायेगी
लगता है भारत को खादी ही खायेगी
हर नेता को स्वाद लगा है अब चन्दे का
राजनीति उद्योग बना है बिन धन्धे का
राजनीति का लाभ धनी ही उठा रहे हैं
भाग , काग , हंसों का देखो जगा रहे हैं
राम ,कृश्ण की धरती क्यों मरती जाती है?
भारत माता क्यों बच्चों से षर्माती है
क्यों राश्ट्र -पर्व ,तौहीन ,तिरंगा झेल रहा है
महाराश्ट्र , सौ - राश्ट्र , लहु से खेल रहा है
क्यों खादी में भ्रश्टाचारी छिपे पडे हैं
एक तिरंगा , राजनीति में लाख धडे हैं
मन्दिर ,मस्जिद , मॅंहगाई , कहीं माओवादी
क्यो आज तिरंगा देख रहा है , ये बरबादी
देष की जनता राजनीति से हरदम हारी
आज तिरंगा हल्का हैं , बष! नेता भारी
आदर्ष राश्ट्रª का चैराहे पर रखना छोडो
राश्ट्रª प्रेम को राजनीति से अब ना जोडो
षव को राश्ट्र््र ध्वजों से ढकना क्यों भाता है
राश्ट्रª - तिरंगा वस्त्र नहीं , भारत माता है ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा ;(आग )
मो0 9897399815
प्रिय पाठको! मै! 26जनवरी के उपलक्ष्य मे! झण्डो! ओर राश्ट्रीय झण्डे के कारण जो उपद्रव को रहे है!,उनको मै! अपनी तीन अलग-अलग रचनाओ!म्े! व्यक्त कर रहा हू!,आषा है आप अपनी टिप्पणी अवष्य भेजेगे!,क्यो! की आपकी टिप्पणी पर ही मुझे कुछ लिखने की षक्ति मिलती हेै,
जवाब देंहटाएंअन्र्तराश्ट्रीय ध्वजाहंकार
गजभर केे कपडे़से ब!धी है ,आबरु हर देष की
आठ गज के दण्ड म!े लिपटी हैे भाशा क्लेश की
ध्वज धरा मे! गाढ़का परिचय वतन का हो रहा है
मरती है! कौमे! आन पर कैसा जतन ये हो रहा है
पागलो की मूढता से गीत भी बनते गये
मूढता के गीत से सारे वतन तनते गये
हर वतन के अपने - अपने इस जहा! मे! गीत है
कारण यही है बैर का हर वतन विपरीत है
हम,पीर और पैगम्बरो! को भी ध्वजो! से जानते हैं
आवाम भी अस्तित्व अपना ही ध्वजो! को मानते हैं
पैबन्द का अम्बर यहाॅं अखिलेश है हर भेश मंे
क्यों मजहबी आका ,पताका बन रहा है देष मंे
क्यों राजनीति मंे कफन है कौम के सम्मान का
षोक मंे भी झुक रहा है ,राश्ट्र गौरव गान का
ये! सियासी मृत षवो की रूग्णता को ढो रहा है
राश्ट्र का सम्मान भी असितत्व अपना खो रहा है
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सरहदो! पर भी ध्वजा अब ज!ग का प्रतीक है
हर तरह के द्वन्द मंे भी ,क्यो! ध्वजा सरीक है
हम षपत लेते बष, झण्डा बचाने के लिये
यहाॅंआदमी मजबूर है दो वक्त खाने के लिये
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मूढता में हर मजहब भी राश्ट्र से उपर बडा
चर्च, मन्दिर,मस्जिदों पर व्योम को झण्डा चढा
हर मजहब ने धर्म को तो ध्वज धूरी पर धर दिया
स्वछन्द सागर प्रेम का पूरा जहर से भर दिया
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कही! राश्ट्र है कही! धर्म है कितने कबीले कौम है
लड. रहें हैं लक्ष्य कर कौन छूता व्योम है
झण्डा धरम का राश्ट्र् का गर इस तरह बढता रहेगा
जब तक धरा में श्रृश्टि है इन्सान तो लडता रहेगा !!
नीलाम - मिडिया (श्री रमेष भटट जी के चिन्तन पर टिप्पणी)
जवाब देंहटाएंराजनीति के र!ग-रूटो! की खबर छपी अखवारो! मे!
क्या अब राखी भी नाचेगी, स!सद के गलियारो! मे!
लोक-तन्त्र मे! ज!घाये! अब अपना खेल दिखाये!गी
नगर वधु,नगरो! से चुनकर अब दिल्ली मे! आये!गी
खादी कुर्तो मे! भी न!गे ,छिपे है!, इज्जत दारो! मे!
राजनीति के र!ग-रूटो! की खबर छपी अखवारो! मे!
राजनीति की देख कल्पना, न!गे, लोक लिबाषो! मे!
उगल रही है गरम-गरम अय्यासी सब की सा!सो मे!
गा!धी, नेहरू,लाल बहादुर,अब राखी की झा!की मे!
कामातुर ही छिले पडे़हे! ,कुछ खादी,कुछ खाकी मे!
हे, बेषर्मो, कुछ तो देखो, म!हगा!ई ,चित्कारो! मे!
राजनीति के र!ग-रूटो! की खबर छपी अखवारो! मे!
वाह रे,उद्धव,वाह रे, माधव, तेरी इस परिभाशा मे!
राखी भी अब नाच रही है राजनीति की आषा मे!
कीचड़ मे! अब हीरे ढू!ढो!, लोक -तन्त्र पैमानो से
गणपति बाबा खुलकर गाओ, न!गे - न!गे गानो से
न!गी,न!गी कलिया! गुलषन,बम्बई, बसन्त बहारो! मे!
राजनीति के र!ग-रूटो! की खबर छपी अखवारो! मे!
बुद्धि बल्लभ ,वाणी भूशण,टी.वी.चैनल मे! मस्ती है
लोकतन्त्र के चैथे खम्बे, लोकप्रियता क्यो! सस्ती है
मिर्च,मषाले वाली खबरो! से न!गा पन दिखलाते हो
स!स्कारो! से गिरे हुये ,क्या, न!गो! की रोटी खाते हो
देष की इज्जत झा!क रहे हो बम्बई के बीयर बारो! मे!
राजनीति के र!ग-रूटो! की खबर छपी अखवारो! मे!
दुनिया भर की खबरे!,चैराहो! सडको! पर बिछी पडी है
दुनिया भर की खबरे,भारत की छाती पर छिपी खडी है!
आवारा गर्दी की बातो! से चैेनल को मुक्त बनाओ
कैसे हिन्दुस्तान बनेगा,ऐसा कुछ चिन्तन भी लाओ
फू!क रहा है कवि ‘आग’ इज्जत के ठेकेदारो! मे!
राजनीति के र!ग-रूटो! की खबर छपी अखवारो! मे! !!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
पप्पू पास हो गया
जवाब देंहटाएंमेरा पप्पू पास हो गया, आम आदमी खास हो गया
वाणी भूशण नास हो गया,बुद्धि बल्लभ लाष हो गया
नेता का उपहास हो गया,खेत मे! गाजर घास हो गया
डाल मे! उल्लू वास हो गया,जनमत मुर्दा मास हो गया
रस्तो! का चैरास हो गया,मस्तो! का मधुमास हो गया
मेरा पप्पू पास हो गया, आम आदमी खास हो गया
कुछ का तो झक्कास हो गया,कुछ का अट्टाहास होगया
घी चर्बी का दास हो गया, दूध मे! मट्ठा पास हो गया
सबको ये अभ्यास हो गया,झूठ, कपट अरदास हो गया
अनुभव का अवकास हो गया,चि!तन भी इतिहास होगया
हम को भी आभास हो गया,देष का सत्यानाष हो गया
मेरा पप्पू पास हो गया,आम आदमी खास हो गया
योग,भोग उच्छ्वास हो गया,जोगी सत्ता दास हो गया
मन्थन सूरदास हो गया, तोता तुलसी दास हो गया
ब््राह्मचर्य का त्रास हो गया,बाबा मे! उल्लास हो गया
धर्मो का मलमास हो गया,मजहब अब नखास हो गया
अल्लाह ,ईष्वर नाष हो गया,स!प्रदाय विस्वास हो गया
मेरा पप्पू पास हो गया, आम आदमी खास हो गया
देष का नेता न्यास हो गया,स!विधान उपन्यास हो गया
धरती का आकाष हो गया, बीहड़ मे! आवास हो गया
हडताल य!हा उपवास हो गया,गाली देना खास हो गया
राज सभा पटवास हो गया, लोकसभा सण्डास हो गया
अब चुनाव चैमास हो गया ,चमचा ,चारण दास हो गया
मेरा पप्पू पास हो गया, आम आदमी खास हो गया
हर दफ्तर जनवास हो गया ,अधिकारी षुकनाष हो गया
सबको यह एहसास हो गया, हर धन्धा प्रतिमास हो गया
लेन- देन अब खास हो गया,देष का सत्या नाष हो गया
इमान,धर्म बनवास हो गया,ये कैसा विकाष हो गया
सबका ये प्रयास हो गया ,अब खुल्ला उपहास हो गया
मेरा पप्पू पास हो गया, आम आदमी खास हो गया
छोटू नेता व्यास हो गया,स!सद भोग विलास हो गया
अब जनमत चपरास हो गया,कुश्ट रोग पटवास होगया
ये जोकर बिन्दास हो गया,घर-घर मे! सूभाश हो गया
अब गिरगिट कुकलास हो गया,भारत का प्रवास हो गया
ये,चारण विस्वास हो गया,कवि‘आग’ बकवास हो गया
मेरा पप्पू पास हो गया, आम आदमी खास हो गया !!
नखास- घोडो! की हाट
पटवास-षिविर,केम्प
कुकलास-डायनासोर
पातक मे! चातक
जवाब देंहटाएंकिस्तो! मे! कुर्सि चलती है ,जैसे जू!वा,नाल हो गया
उत्तराखण्ड की राजनीति भी ,पैरो! मे! फुटबाल हो गया
ठाकुर,पण्डित, वैष्य, षूद्र सब तास के पत्ते फे!ट रहे है!
बिन जनमत के दिल्ली वाले,किस्तो!मे!धन ऐ!ठ रहे है!
सच पूछो तो दिल्ली वालो! से पर्वत क!गाल हो गया
किस्तो! मे! कुर्सि चलती है,जैसे जू!वा, नाल हो गया
ठाकुर दिल्ली पडा हुआ है ,खेल सियासी खेल रहा है
विजय बहुगुणा,मारा - मारा,झटके, झ!झट झेल रहा है
खिला पिला कर चेले चिमटे ,ये बेचारा पाल रहा है
आज विरासत,पुत्र,पिता की गिर,पड कर स!भाल रहा है
विजय बहुगुणा, उत्तराखण्ड की कुर्सि तेरा काल हो गया
किस्तो! मे! कुर्सि चलती है,जैसे जू!वा, नाल हो गया
अरब - खरब की नीलामी के मुख्यम!त्री थो!प रही है
बीच-बीच मे! झटका देकर ,पीठ मे!ख!जर घो!प रही है
नेताओ! को न!गी तलवारो! मे! चलना सीखा रही है
छुट भैयो! को प्रजा तन्त्र के सारे नुक्ते दिखा रही है
बिन धन्धे के आज सियासी कैसे मालामाल हो गया
किस्तो! मे! कुर्सि चलती है, जैसे जू!वा, नाल हो गया
हरक सि!ह भी घात लगाकर ताक रहा अपने बाडे़ से
सत्तू, सत्ता झा!क रहा है, मध्य - मार्ग के पखवाडे़से
इन्दिरा हृदय मे! बैठी है, अब वो भी हृदेष हो गयी
टिहरी, पौडी और कुमैयो! से कुर्सि खबेष हो गयी
राज योग ,न!गो! के हाथो!,उत्तराखण्ड क!गाल हो गया
किस्तो! मे! कुर्सि चलती है, जैसे जू!वा, नाल हो गया
काऊ , साहू, स.पा,बा.स.पा, माया के स!ग डोल रहे है!
प्रणव सि!ह और हीरा, मोती भी अपना मु!ह खोल रहे हे!ै
षूरवीर, रणवीर, धीर भी , रण कौषल मे! डटे पडे़ है!
कलप लगा कर चमक रहे है!,पर अन्दर से फटे पडे़ है!
घायल बाघ, घाघ बन करके, नरभक्षी ज!जाल हो गया
किस्तो! मे! कुर्सि चलती है, जैसे जू!वा, नाल हो गया
भूखी बिल्ली बी.जे.पी. यू.के.डी. है!,छी!का झा!क रहे है
त्रिवेन्दर, निष!क ड!क इस फीका सि!ह को आ!क रहे है!
भगत सि!ह और,खण्डूरी भी, इस रण-कौषल के माहिर है!
इनकी नजरे! क!हा टिकी है! छिपा नही है,जग जाहिर है
कवि ‘आग’ का छन्द सियासी आज सियासी चाल हो गया
किस्तो! मे! कुर्सि चलती है, जैसे जू!वा, नाल हो गया!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
स्वप्न-दोश
जवाब देंहटाएंलगता हैे मोदी का भाशण स्वर्ग, धरा मे! लायेगा
दुनिया के नक्षे मे! भारत स्वर्ग वास कहलायेगा
इन्द्र - अखाडे़ की सब परिया!,भू-मण्डल मे!नाचे!गी
काम -देव से मरी कौम अब,नमोम!त्र को बा!चेगी
षब्दो! की जागीर , जखीरा, मु!ह मे! रोटी डालेगा
डेड़ अरब की जनय!ख्या को नमो म!त्र अब पालेगा
हिन्दू, मुष्लिम ,सिक्ख, इसाई ,एक धर्म बन जायेगा
देवा - सुर स!ग्राम सुना था,धरा मे! फिर से आयेगा
दो बैलो! की जोडी, बछडा गाय हाथ से छूट गया
स.पा. बा.स.पा., आप पार्टी, का!ग्रेस को लूट गया
राहुल भैया, लुटा-पिटा बैठा है, अपने प्यारो! मे!
देख रहा है ज!ग लगे,अब धार नही हथियारो! मे!
दो - चार ही राज्य बचे! है!, नीलामी चैराहे मे!
का!ग्रेस की दुर्गत देखो , प्रजातन्त्र के साये मे!
पुरातत्व की देख हवेली, खण्डहर हमे! बताते है!े
का!ग्रेस मे! ,बस बुनियादो! के पत्थर की बाते है!
छोटे-छोटे दल की दल-दल मे!भारत ध!स जाता है
ये जनमत का लोकत!त्र,खुद जनमत मे!फ!सजाता है
जाति-पाति के क्षेत्रवाद के,केक सियासी काटरहे! ह!ै
सारे अन्धे आज रेवडी ,अन्धो! को ही बा!ट रहे है!
हरीषचन्द्र की नसल देष मे! आप पार्टी फैलाती हेै
व्यभिचारो! मे! धर्मराज की,फसल धरा मे! लहराती है
सारी सुविधा मुफ्त मिले,ये जनमत की आदत है
कैसे अपनी इच्छा पूरी हो, बस यही इबादत हेेै
अब अल्लाह के सारे मल्लाह ना!व सियासी खी!चेगे
हिन्दू, मुष्लिम,सिक्ख,इसाई को सा!चो से! भी!चे!गे
मजहब की औेलाद य!हा ,फौलाद फोडने वाली है
इस भारत मे! राश्ट्र-वाद की परिभाशा ही गाली है
रामराज्य की यही कल्पना ,घर बैठे सब मिलता है
अन्धा दर्जी ,सुइ धागे से कैसे जनमत सिलता है
हे राम-राज्य के क!कालो!,अब धार नही है बाणो!मे!
कवि‘आग’के छन्द य!हा पर फ!से है!,ल!गडे,काणो!मे! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
पोलिटिकल;प्रोडक्सन - (एन.डी.टी.वी.श्री रवीज जी की टिप्पणी पर)
जवाब देंहटाएंराजनीति के उद्योगो! मे!, नेता जी विज्ञापन मे!
टी.वी. चैनल बेच रहे है!,सत्ता,घर-घर आ!गन मे!
टूथ पेस्ट कच्छा,बनियाने,कुछ ना कुछ उपयोगी है!
ये न!गे -भूखे नेता भारत मे! स!क्रामक रोगी है!
टाफी, बिस्कुट, च्वनप्रास और विगोरस है चैनल मे!
बीच- बीच मे! नेताजी दिख जाते है! हर पैनल मे!
पता नही चलता टी. वी. मे!,विज्ञापन है,नेता है
इस भारत का जनमत भी तो इस कुडे़का क्रेता है
सारे चैनल बिके पडे़ है! राजनीति की हाटो! मे!
कुचल रहे है!,विज्ञापन औेर नेता,सडको!,बाटो!मे!
डिटर्जेन्ट, खादी के कुर्ते, हर चैनल चमकाता है
रिवाइटल और च्वनप्रास, खादी का मुर्दा खाता है
तकनीकी के नये दौर मे! नेता जोकर बन जाते है!
रूकी हुयी नदियो! के जैसे, क्रेता पोखर बन जाते है!
तर्को और कुतर्को! से सामान बेचना जारी है
प्रजातन्त्र का पत्थर, विज्ञापन मे! कितना भारी है
का!ग्रेस का प्रोडक्सन, चर्चा मे! कोई खास नही है
बी.जे.पी का नया माल है,जनमत को आभाश नही है
आप पार्टी, परमानेन्ट ऐजेन्ट देष मे! ढू!ढ रही है
असली नकली माल बेचकर,पागल जनमत मू!ड रही है
स.पा.बा.स.पा. का कबाड़तो,यू.पी.मे! बिक जाता है
और बिहार का कुडा,लालू,नितीस,स्वय! ब!ट जाता है
ममता,समता,जयललिता भी विज्ञापन मे! टिकी हुयी है
ये कुटीर उद्योग भी लोकल जनमत से ही बिकी हुयी है
पूरब,पष्चिम, उत्तर, दक्षिण के प्रोडक्सन भी जारी है
लोक- तन्त्र के षेयर बाजारो! मे! ये सबसे भारी है
लोकसभा और राज्ससभा मे! मु!हमा!गी कीमत मिलती है
प्रजातन्त्र की बुनियादे! भी इनके हिलने से हिलती है!
टी. वी. चेैनल नये किस्म का वालमार्ट है भारत मे!
दामोदर मोदी रथ पर है! ,लाल कृश्ण है! सारथ मे!
कम्युनिश्ट ओर आप पार्टी, राहुल घुटने छिलवाते है!
कवि ‘आग ’ के छन्दो! मे!,नेता विज्ञापन बन जाते है! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
क!गाली मे! आटा गीला
जवाब देंहटाएंवाह रे, उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
जाते - जाते दुगने भत्ते हो गये जारी
अरे ,बहुगुणा तुमने से क्या रास रचायी
सिर्फ ल!गोटी इस पर्वत के हिस्से आयी
सुना है तेरे ,पितामाह भी थे पटवारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
पढे ़लिखे सडको! पर न!गे घूम रहे है!
खद्दर धारी साण्ड षिखर मे! झूम रहे है!
क!ही - क!ही खाने के लाले पडे़ हुये है!
पर्वत की छाती पर हाथी चढे़ हुये है!
हे ,कामातुर तुम को भी हैे,अय्यासी प्यारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
हर धन्धे मे! अपनी पत्ती काट रहे है!
घर की दौलत मिलकर बन्दर बा!ट रहे है!
आस्तीन के सा!पो! ने ये ताज डसा है
अब झोपड़ पटटी वाला देहरादून बसा हेै
कफन मे! लिपटे मुर्दो की देखो हुसयारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
एक समय था खाने को मोहताज पडे़थे
चैराहो! पर लावारिस, बिन काज खडे़थे
आज गाडिया! और साडिया! हाथो! मे! हे!ै
बे-षक्लो! का वजन,भजन की बातो! मे! है
आज करोडो! मे! है सबकी हिस्सेदारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
कोदा म!डवा और झ!गोरा चबा रहे थे
नाली, मुटठी अगल, बगल की दबा रहे थे
भीख मा!ग कर नाडा, भाडे़से मिलता था
फटे लिबासो! को कल तक खुद सिलता था
कई एकड़ मे! फारम - हाउस, पट्टे जारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
उत्तरा - खण्ड के मुर्दे, मुर्दा झेल रहे है!
भूत, प्रेत पर्वत मे! खुल कर खेल रहे है!
गाली देकर अपनी खुरक मिटाते जाओ
उत्तराख!ड मे! जनमत से अब सा!ड चराओ
रोडवेज बस की है! ,सारी सफर सवारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी
भीख मा!ग कर उत्तराखण्ड को ये पाले!गे
अब न!गे-भूखे दान- पात्र को ख!गालेगे!
आज आपदा का धन मिल कर लूट रहे हे!ै
नये - नये अण्डे नीडो! मे! फूट रहे है!
खोल रही है, कलम ‘आग’ की ये गद्दारी
वाह रे ,उत्तराखण्ड तेरी किस्मत है न्यारी!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
नारी की सियासत
जवाब देंहटाएंहे ,नारी आयोग, रोग, उपयोग, भोग के रख वालो
नारी निकेतन के चपलो!,घपलो! से नारी मत पालो
नारी को नारी पर छोडो,नारी खुद ही बच जायेगी
देष की नारी सुधर गयी ,क्या राजनीति चल पायेगी
अस्सी प्रतिषत,भारी नारी ,सावित्री को छोड़चुकी है
द्रोपदीयो! के चीर हरण का सारा भण्डा फोड़चुकी है!
ज!गल मे! भी माता सीता ने मर्यादा को पाला
आज षहर मे! सजग पहर,बलात्कार करता मू!ह काला
पढी,लिखी,यौवन पीढी है,पुलिस व्यवस्था चैराहो! मे!
गाडी, घोडे़ दौड़ रहे है!, नारी नर-भक्षी बाहो! मै!
राजनीति भी बलात्कार के प्रचारो! मे! लग जाती है
यति,सती की कथा देष मे!व्यथा स्वय! ही बतलाती है
आप पार्टी नगर - वधु के परकोटे ख!गाल रही है
सोम नाथ की जासूसी से अबला,घपला पाल रही है
छोटी, मोटी घटना टी.वी.चैनल खुलकर दिखलाता है
समाचार का बलात्कार, हर भारत वाषी को भाता है
बडे़-बडे़ फनकार फ!से है!,बलात्कार के आदर्षो मे!
राजनीति की अय्यासी दिखती है हर उ!चे अर्सो मे!
प्रजातन्त्र मे!,बलात्कार और व्यभिचार भी मजबूरी है
अबला जीवन हाय, लाज का ये अल्फाज जरूरी है
क्या राजनीति की सीढी से अबला पीढी बच पायेगी
स्कूल,मदर्सो! की बाला, दुर्गाा, रणचण्डी बन जायेगी
मोबाइल पर एसएमएस, और नेट अय्यासी छुटवाओगे
चैराहो! मे! बिन फेैसन के सबला नारी ला पाओगे
उर्वषी, मेनका, रम्भा, को कामुकता धर्म दिखाते है!
आध्यात्म जगत के तेाते भी तो इससे रोटी खाते है!
बलात्कार की परिभाशा ,कामुता जगत से आती है
सम्भोग समाधी बन जाये,ये ऋचा वेद की गाती है
इस डेढ़अरब के कीडो! के, नीडो! मे!अण्डे मत से!को
प्रारब्ध, षब्द आदर्षो के तुम ,अरे मिडिया मत फे!को
सोन्दर्य करण ओैर फैसन से,व्यभिचार निमन्त्रण देता है
इतिहास की सूखी सरिता मे!क्यो ‘आग’ना!व को खेता है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
अर्थ मे! व्यर्थ(न्यूज नेषन पर श्री रमेष भट्ट जी की टिप्पणी पर)
जवाब देंहटाएंटोल टैक्स के अन्दर भी षिवसैना जनमत झा!क रही हेै
मुफ्त खोर की राजनीति,मुल्या!कन मत से आ!क रही है
बिजली ,पानी की नीलामी आप पार्टी दिखा चुकी है
आमआदमी की सत्ता,ये हरकत भी तो सीखा चुकी है
हे ,उद्यव, हे गणपति बाबा, षिव सैना के रखवाले
भारत मा! के चन्दन बन मे! राजनीति के अजगर पाले
अय्यासी मे! जीने वाले वित व्यवस्था तोड़रहे है!
टोल-टैक्स की मटकी बम्बई की सडको! पर फोड़रहे है!
सब कुछ मुफ्त करो भारत मे!बोटो! की अभिलाशा से
मेरा भारत भटक गया है ,रामराज्य की परिभाशा से
षिवसैना की सुख सुविधा पर हमने अब क्या कहना है
ये स!ाप, नेवले,बिच्छू,औघड, सब ष!कर का गहना है
अच्छी, सडके, बिजली, पानी, चैराहे तुम मा!ग रहे हो
अर्थ-लाभ की वित्त व्यवस्था को खू!टी पर टा!ग रहे हो
लोक सभा के निर्णानायक जज, मुजरिम जैसे घूम रहे है!
लावारिस भी वारिस बन कर प्रजातन्त्र मे! झूम रहे है!
न!गे, भूखे टोल टैक्स की इस परिधी मे! कब आते है!
षिवसैना को बम्बई वाले अय्यासी ही क्यो! भाते है!
अर्थ व्यवस्था चैपट करके , क्या दिखलाना चाहते हो
बैल गाडिया! तकनीकी के नये - दौर मे! चलवाते हो
ये धन्धा तो यू.पी.,उत्तराखण्ड वालो! ने भी अपनाया है
दोनो न!गे घूम रहे है!, दोनो की जर-जर काया है
क्या भारत के सभी राज्य को भीख मा!गना सिखलाओगे
कवि‘आग’ कहता है जनमत से भारत कब तक खाओगे!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
दाग मे! आग(न्यूज नेषन पर श्री रमेष भट्ट जी की टिप्पणी पर)
वाह, केजरीवाल आग मे! घी डाल कर भाग गये
दबे पडे़थे कबर मे! मुर्दे,आज अचानक जाग गये
कौमो! को इन्साफ दिलाने वाले कब तक भौ!केगे!
मुर्दो की छाती मे! कब तक दाल सियासी छौ!केगे!
हिन्दू मुस्लिम,सिक्ख,इसाई,क्यो! मरते है!द!गो! मे!
ऐसे जमघट क्यो! बनते है!,राजनीति के प!गो! मे!
साठ साल की आजादी मे! हिन्दुस्तानी क!हा बने है!
ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैष्य, षूद्र मे! सम्प्रदाय के सभी तने है!
मुर्दो की लाषो! के उपर जनमत कितना ढोओगे
अलगावो! के बीज देष मे! और क!हा तक , बोओगे
आत!कवाद ने कितने हिन्दू,र्निविवादअब तक खाये
कितने मुष्लिम बेचारे, मजहब ने अब तक भटकाये
पूरे भारत के सिक्खो! ने वैमनस्य अब तक झेला है
सम्प्रदाय की भीडो! ने, जेहाद जमी पर ही खेला हैे
सबसे पहला वो दोशी हेै,जो झगडे़ भडकाता है
आत!कवाद का वोट बै!क से जन्मजात का नाता है
राजनीति मे! जहर उगलने वाले अजगर पालोगे
कब तक भारत की सन्तानो! को अपनो से टालोगे
स्कूल ,मदरसे बैर ,भाव की परिभाशा समझाते है!
किस जनमत से सर्प ,सपोले राजनीति मे! आते है!
कब तक हल्के- फुल्के जनमत से नेता पनपाओगे
पढे़लिखे इस भारत मे! नर-भक्षी चुन कर लाओगे
सम्प्रदाय की बात करे जो, जूतो! से आघात करो
कवि ‘आग’कहता है भारत मे!,भारत की बात करो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
बापू का टापू
जवाब देंहटाएंबापू तेरे टापू की ये सारी बस्ती उजड़ रही हेै
तेरे नाम से खाने वाली सारी कौमे बिगड़रही है!
हिन्दू,मुष्लिम का नारा ,स!हार सडक पर करवाता है
तेरे नाम का डाकु,चोर,उचक्को! के घर बई खाता हैे
गा!धी पर चर्चा करते हो,चैराहो! पर क्यो! मरते हो
जातिवाद और,क्षेत्रवाद के कीचड क्यो! घर मे! भरते हो
सत्याग्रह के आदर्षो की परिपाठी मै! समझ ना पाया
आजादी से देष भटक कर ,दिषा हीन हो कर मुर्झाया
बापू का आदर्ष वाद भी चोर, उचक्का पाल रहा है
भारत को तो खादी वादी चरखा ही ख!गाल रहा है
सभी दरिद्र - नारायण बन कर देष की सत्ता भोग रहे है!
मुझे बताओ गा!धी वादी अब तक कितने लोग रहे है!
ईष्वर अल्लाह की भाशा के द!गे अब तक झेल रहे है!
सिक्ख,इसाई इस भारत मे! खेल सियासी खेल रहे है!
हरिजन बस्ती घूमने वाले,गा!धी वादी मुझे बताओ
गा!धी वाद पर जीने वाले वो अवषेश मुझे दिखाओ
आज फ्लेष घर-घर मे! देखो,गा!धीवादी क!हा बचा है
जरजर बुनियादो! ने आलीषान भवन को क!हा रचा है
आदर्षो की बात ठीक है,इतिहासो! को ही भाती है
डेढ अरब की जनस!ख्या क्या चरखे से रोटी खाती है
जिसको देखो,गा!धी वादी, सत्याग्रह की बात करेगा
घनचक्कर,गा!धी के चरखे से घर- घर आघात करेगा
झूठे आदर्षो की बुनियादो! पर भवन बने देखे! है!
ैगा!धी जी के नाम से जीने वाले यवन बने देखे है!
आज परिन्दे चैराहो! के पुतलो! से भी घबराते है!
राजघाट पर गा!धी वादी पुतलो! केे गाने गाते है!
ग!धी टोपी औेर ल!गोटी, जनमत स े सत्ता देती है
राजनीति की ब!जर भूमि, गा!धी वादी की खेती हैे
मन मार कर सभी विरोधी ग!ाधी का गाना गाते हैे!
गा!धीवाद से भटके जन - मत पूरा लाभ उठाते है!
ग!धीवाद के थोथे नारो! से ही गा!धी मर जाता है
ग!धी वाद के इस सर्कस से कवि‘आग’ भी षर्माता है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
षिखरो! का फिकरा
जवाब देंहटाएंअरी, सोनिया माता, ये क्या तीर चलाया
पण्डित का दिल तोडा, ठाकुर का बहलाया
नया बाण्ड है, किस्तो! की जिम्मेदारी है
ये उत्तरा - खण्ड मे! वैसे भी सबसे भारी है
घिसा - पिटा घोडा है, डटकर, खेला खाया
अरी, सोनिया माता, ये क्या तीर चलाया
हेमवती का नन्दन था, बिन खुषबू चन्दन
थका हुआ टट्टू था,ना कुछ क्रन्दन,वन्दन
क!ही -क!ही ठाकुर बागी था, क!ही बगावत
ये सागर का मन्थन है, हाथी ए-रावत
अब लोक-सभा की सीटो! की पलटेगा काया
अरी, सोनिया माता, ये क्या तीर चलाया
वो बिल्कुल ढीला था, ये तैयारी मे! रहता हेै
बस, ह!सते-ह!सते, धीरे से अपनी कहता है
चैपड, पासो! का षकुनि है,म!झा है माहिर
ये उत्तराखण्ड की सत्ता का पत्ता जग जाहिर
अब षब्द-भेद का सर तरकस से बाहर आया
अरी, सोनिया माता, ये क्या तीर चलाया
उत्तराखण्ड क्या राण्ड हो गया,बिन खसमो का
ये हानीमून का अड्डा है, दिल्ली जष्नो का
सब मुर्दे को ग्लूकोश सियासी चढा रहे है!
डी. एन. ए. की भीड़ षिखर पर बढा रहे है
क्या वर- नारायण दिल्ली की मर्जी से आया
अरी , सोनिया माता,ये क्या तीर चलाया
किस्तो! का है खेल ,खसम कोइ भी आये
सतर!जी प्यादे पण्डित क े अब ,ठाकुर खाये
अब घर के सारे भण्डे-बर्तन बदल जायेगे!
जो कल थे मोहताज, प!जीरी अब खाये!गे!
मात्र हड्डिया! बची है!,हो गयी जरजर काया
अरी, सोनिया माता, ये क्या तीर चलाया
उत्तरा-खण्ड मे! स!कट और क!कट है! भारी
घर बिल्कुल नगा! राजनीति की मारा-मारी
य!हा स.पा,बा.स.पा,यू.के डी.भूखे, न!गे है
आप,खाप और बी. जे. पी. के भी प!गे है!
घायल बाघ घाघ बन कर, सत्ता मे! आया
अरी, सोनिया माता, ये क्या तीर चलाया !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
ढाक के तीन पात
जवाब देंहटाएंबदल रहा है आज सियासी, बदल रहा चमचा अरदासी
बदल रहा बाबू चपरासी , बदल रहे है! सभी उदासी
षहर गा!व, देहात भी बदला,गिरा, पडा औकात भी बदला
चारपहर दिन रात भी बदला,माता जी का हाथ भी बदला
ठाकुर आया पण्डित बदला,महिमा मण्डित खण्डित बदला
जनविरोध का दण्डित बदला, उत्तराखण्ड विखण्डित बदला
राजनीति की फौज भी बदली, अय्यासो! की मौज भी बदली
गफलत गाली ग्लौज भी बदली ,भाई,भतीजा ,भौज भी बदली
जनमत से अनजान रहे थे , घर वाले मेहमान रहे थे
चमचे सीना तान रहे थे, साकेत, षिखर को छान रहे थे
चार दिनो! मे! चा!दी काटी, अन्धो! ने भी मिलकर बा!टी
अपनी - अपनी सबने छा!टी, चमचो! ने भी चटनी चाटी
बेसुमार धन भीख मे! आया, क!हा लगा, कितनो! ने खाया
अपनो! से था सदा पराया ,इसिलिये तो हुआ सफाया
अब हरीष बख्षीस बना है , कटे मूल से उगा तना है
ये भीतर से बहुत घना है, भाड फोडता ऐक चना है
लूलू , ल!गडो! की बैषाखी ,रग-म!च की नट- खट राखी
अय्यासी की सुन्दर साखी , गिद्व दृश्टि का अनुभव पाखी
टिहरी, पौडी और कुमैये , देसी और मैदानी भैये
लुटपाट के भाण्ड नचैये , सूखी सरिता नाव खिवैये
स पा बा.स. पा.अलग धडे़ है! ,यू. के.डी. के मौन खडे़ है!
बी. जे. पी. के साण्ड अडे़ है! ,न!गे- भूखे गले पडे़ है!
आप पार्टी सिर पर छायी, सबने अपनी खाप बनायी
उत्तराखण्ड सब की भौजायी,सात खसम फिर भी मुर्झायी
नये राज्य की पा!चो सीटे, हिली पडी बुनियादी ई!टे
राहुल मोदी छाती पीटे!, मुख्य - म!त्री लाष घसीटे!
अब पर्वत की षान नही है,जनमत का अनुमान नही है
हवा किधर है भान नही हेै,अब लोक-तन्त्र अरमान नही है
ये का!टो! का ताज मिला हेै, भाशण का अल्फाज मिला है
घायल को आगाज मिला है, पायल को अन्दाज मिला हैे
अब बूढे को राज मिला है,लुटा, पिटा जहाज मिला है
कुछ को तो ये नाज मिला है,चील गया, अब बाज मिला है
ज!गल मे! भी लगी आग है, सबके भीतर जगी आग है
कुछ के अन्दर सगी आग है, ये सत्ता है , ठगी आग है
पद के मद की मारा मारी, आषा, तृश्णा की चिन्गारी
ठाकुर हल्का है या भारी, कवि ‘आग’ ने कलम स!वारी!!
अपरिपक्वता
जवाब देंहटाएंक्या सतित्व बच पायेगा इस राजनीति के कोठे मे!
मै! भी दम-खम देख रहा हूॅ!,धोती और ल!गोटे मे!
छोटी-छोटी अभिलाशा के अवसर वादी साथ खडे़है!
खेल अभी तो षूरू हुआ है उसमे! भी घाघ कई धडे है!
गा!धी,नेहरू और सूभाश की परिभाॅ!शा से तोल रहे हो
जे.पी.,ठाकुर,लालबहादुर की भाॅ!शा क्यो! बोल रहे हो
बाबाओ! को राजनीति की मजबूरी ने ही पाला है
मु!गेरी के सपनो से क्या देष बदलने वाला है
म!चो पर भी भीड़ लगी है बडे़- बडे़ फनकारो! की
षब्दो! से बौछार देख लो , बुझे हुये अ!गारो! की
अध्यापन की छोड़ चाकरी ,कवि मस्त है भीडो! मे!
बे- मौसम के अण्डे ,बच्चे फूट रहे है! नीडो! मे!
कौतुहल है मचा हुआ कुछ राजनीति पखवाडो मे!
मन मचल रहा है उनका भी ब!जर धरती की झाडो! मे!
भीड़ निकम्मो! की जुटती है लावारिस चैराहो! मे!
चैपायो! का जमघट देखो , मरूस्थल चरगाहो! मे!
सेवा से निवृत्त हुये कुछ समय काटने आयेगे!
ये बान-प्रस्त के बूढे भी अब सर्कस हमे! दिखायेगे!
अधिवक्ता और प्रवक्ता के छल बल कपट कटारो! से
गन्ध भभकती देख रहा हूॅ!,चैनल से, अखवारो! से
भगवान कृश्ण से बालकृश्ण की तुलना देखो जेलो! मे!
एक ल!गोटा मायाधारी , सभी सियासी खेलो! मे!
माया से विपरीत धर्म को षास्त्र सदा से गाता है
धोती और ल!गोटा हमको राजनीति समझाता है
इस कलियुग के कीचड़ मे! आदर्ष कहाॅ! ख!गालोगे
अपने सपनो से भारत मे!,महाभारत को पालोगे
बरसाती नालो! से कीचड़ थोडा सा धुल जाता है
परिपक्व , सम्पन्न सर्मपण केवल राश्ट्र-विधाता है
क्या राहुल, मोदी,आप पार्टी भारत -भाग्य विधाता है
नरभक्षी,नर-मुण्ड झुण्ड क्यो!, द्वन्द, गन्द फैलाता हेै
हिन्दू, मुष्लिम,सिक्ख, इसाई कबर से मुर्दे खोद रहे है!
भारत मा! की छाती,ख!जर,म!जर से क्यो! गोद रहे है!
कौन है,पीएम,कौेन है सीएम भारत मा!को पता नही है
जनमत ही मुर्दा बैठा है ,नेताओ! की खता नही है
भीख मे!आजादी मिलती हैे मुल्य स्वय! ही गिर जाता है
बस,कवि ‘आग’ तो षब्दो! से मुर्दो मे! आग लगाता है!!
फन्द मे! छन्द
जवाब देंहटाएंजनमत स!ग अनाथ ,मत!ग के र!ग की भ!ग चढी हम पर
इन कीट, पत!ग, कुस!ग, दब!ग, मल!ग की ज!ग लढी हम पर
अहि दष ड!क के र!क निष!क की प!क,कल!क,मडी हम पर
इस देष मे! न!ग, धड!ग भड!ग मची हुडद!ग गढी हम पर
भुज!ग से र !क,अभ!ग सी अ!क, मयूर मय!क, सी गात लिये
ल्!ाक कल!क ,मल!ग, मत!ग से कीट पत!ग को साथ लिये
बसन्त के सन्त, हलन्त, हसन्त ,अनन्त के पन्थ को घात लिये
ज्वलन्त, दिगन्त के दन्त को हन्त, हनन्त के कन्त हठात लिये
नोट की चोट पे बोट खसोट के गोट की खोट से ओट करी
घोट, ल!गोट के पोट की जोट के हो!ट, रिमोट से चोट करी
खोट से नोट की पोट भरी परनोट से कोट, कचोट करी
खट से मनमोट, कचोट करीे, हट से नट-खट मत बोट भरी
काल, कराल के व्याल बकाल से, हाल, हलाल की ज!ग मची
चाल कमाल की ख्याल कलाल के गाल गुलाल के र!ग रची
जाल, जलाल के चाल, सुचाल , हवाल के हाल अन!ग बची
बाल की खाल के ताल तमाल की डाल के छाल पे न!ग नची
दरवेश के भेश खगेश कलेश के केष पे खेस नरेष धरे
षेश, महेष , गणेष, दिनेष , धनेष के धाम पे ऐष करे
वरदन्त के सन्त, महन्त अनन्त, हसन्त के हन्त को भेश धरे
कन्त घुमन्त, मनन्त के पन्थ , दिगन्त भवन्त क्लेश करे
धर्म धरा को चरा, चितवन के चोर चकार ने चाल चली
माल मलाल के त!ग, मत!ग के स!ग कुस!ग की दाल गली
बरशात के साथ जो फूल खिले, जल मे! जलकर मुर्झात कलि
बात बे-बात, सू-साथ के साथ, हृदय मे! हठात की बात खलि
सत्ता के सत,पथ के रथ पर, कद के मद की ,हद के पथ पर
चढकर,बढकर, अढ, सढ करके, कियो काल को काम मति मढकर
राज को काज सुकाज गयो, अब दास निराष को वाष भयो
कवि‘आग ’को राग भी काग भयो,अब घाघ सो बाघ सो भाग रह्यो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा (आग)
मो0 9897399815
अभ्यागत का स्वागत
जवाब देंहटाएंटिहरी,पौडी औेर कुमा!उ का,है कोइ भेद मिटा देगा
उत्तराखण्ड की डूबी नैया , है कोइ छेद हटादेगा
पर्वत और मैदानी जनमत का ये खेद मिटा देगा
षिखरो! पर जो घटी आपदा,!िफर मुस्तैद बना देगा
न!गा पर्वत हाथ फैला कर भीख सभी से मा!ग रहा है
हरसाये हरियाली हिम पर,सीख सभी से मा!ग रहा है
लुप्त स!स्कृति परम्परा की,लीक सभी से मा!ग रहा हेै
भारत का ये राज,ताज हो,चीख सभी से मा!ग रहा है
ठाकुर, पण्डित कोइ भी हो, बस, इमान जरूरी है
दुर्गम पथ पर भी नजरे! हो ,ये अरमान जरूरी है
भेद मिटे! सब, प्रेम भाव हो, ये एहसान जरूरी हैे
उत्तराखण्ड को ना लूटे जो, वो मेहमान जरूरी है
घिसे-पिटे की एक परीक्षा, बस,परिणाम दिखाती है
अच्छे राजा की हरकत को भी आवाम दिखाती है
पानी और जवानी की लय ही अन्जाम दिखाती है
जनमत के सुख,दुख की भाशा ही पैगाम दिखाती है
तीन - तीन मुखिया, बी0जे0पी0,का!ग्रेस के झेले है!
ज!हा खडे़ थे व!ही पडे़ है!, खेल सभी ने खेले है!
मजा ले गये लूटने वाले, चेले सब अलबेले है!
राजनीति का मतलब लूटो, सब एक गुरू के चेले है!
सभी विरोधी, अपने तरकस से अब तीर निकाले!गे
ज!ग लगे हथियार सियासी , सब सर्कस को पाले!गे
स.पा.,बा.स.पा.तीन तिल!गे,कुछ ना कुछ ख!गाले!गे
अब बी. जे. पी. इस सर्कस मे! षेर, बघेरे डाले!गे
जल,ज!गल,धरती का जर-जर,और अधिक ना दोहन हो
हर गा!व, देहातो के स!वेदन के प्रति ना सम्मोहन हो
सि!ह के षावक स!ग चले,ना मूक, बघिर मनमोहन हो
षमषीर की धार ना भार बने,झलके हर षब्द मे!यौवन हो
कुछ भी हो सम्मान षिखर का,झगडो! से ना डिगने दो
ये,देव -भूमि है, दानवता से सडको! पर ना बिकने दो
कलुशित हो इतिहास षिखर का, ष्वेत पत्र ना लिखने दो
कवि ‘आग’ की विनती है, ठाकुर भी थोडा टिकने दो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
(यह रचना मै! अपने पर! पूज्य साहित्य गुरू,श्री अषोक चक्रधर जी के चरणो! मे! सादर समर्पित कर रहा हू!)
जवाब देंहटाएंछन्द के फन्द
हम कविता छन्द के प्रतिबन्ध की गाते नही है!
भेद,चरणो! के लघु, गुरू, भी हमे! आते नही है!
रस हृदय मे! हो अगर, रोक कर, जाते नही है!
मुक्तको! के छन्द के मकरन्द को खाते नही है!
व्याकरण के उपकरण की प!क्तिया! मिलती क!हा है!
मात्राए! भी चरण की, सूक्तिया! सिलती क!हा है!
म!च के प्रप!च मे! जनता जुटी ,हिलती क!हा है!
सब कवि है! देष मे!,साहित्य की गलती क!हा है
पार्णिनि के सूत्र, पुत्रो! को समझ आते नही है!
भाट चारण के करण ,अब गीत वो गाते नही है!
मतिम!द को रस,छन्द के,वो फन्द भी भाते नही है!
दो वक्त की रोटी कवि, अब ठीक से खाते नही है!
हो प्रफुल्लित,गर हृदय, रस,छन्द सरिता मे! बहेगे!
आत्मा उपराम हो तो मौन कविता से कहे!गे!
साहित्य मे! भी षब्द की उपलब्धता को ही गहेगे!
सरफरस्ती, त!ज के हर र!ज को,खुल कर सहेगे!
मीरा, कबीरा और दादू के भजन सबने पढे़
कौन सी षिक्षा के दोहे, व्याकरण से थे गढे़
भाव की भाशा ने रस को भी अल!कृत कर दिया
बस, पार्णिनि के सुत्र दोहो!और पदो! मे! भर दिया
डाक्टरो! को डी.लिटे!, दोहावली से मिल रही है
आत्मा साहित्य की रसखान से भी खिल रही हेै
सूर, तुलसी, जायसी, कण्ठस्थ होते जा रहे है!
सूरमा साहित्य के क्यो! अस्त होते जा रहे है!
हो अल!कृत, छन्द, रस भी, हो चरण भी साथ मे!
मा! षारदा के नाम की, बस, लेखनी हो हाथ मे!
षान्त हो तन-मन सरोवर सा,सलिल भी स्वच्छ हो
कवि‘आग ’की हो लेखनी,चिन्गारियो! मे! यक्ष हो!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
साहित्य-समर
जवाब देंहटाएंमेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी
पुश्प से ये खुश्कता की प्रीत कैसे हो गयी
स!गीत मे! जो राग थे , बैराग बन कर चल पढे़
लय छन्द के जो सुर लगे वो आग बनकर जल पढे़
स्तब्ध हूॅ! मे!ै गर्मियो! मे! षीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी]
मै जो गाता हॅू! सरस, वो व्य!ग ही होता गया
साहित्य का ये चीथडा , स!योग स!जोता गया
चारणो! के छन्द कविता मे! कभी गाता नही
करतल ध्वनि की गडगडाहट को कभी भाता नही
साहित्य के स!चार की ये रीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी
श्रृ!गार के अ!गार मे! भ!गार पडती जा रही है
छन्द मे! दुर्गन्ध की ट!कार सडती जा रही है
लय,प्रलय होकर भटकती स्वर गति को तोडती
षब्द की सरिता समाजो! के सफर को मोडती
मै! हार कर बैठा हुआ था, जीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी
मै!समय के साथ कविता का हूनर क्यो!खो रहा हूॅ!
षब्द का बोझा गधो! के साथ मिलकर ढो रहा हूॅ!
कविता कलम के षस्त्र से भी घास छिलती जा रही
माॅ! षारदा की नष्ल सडको! पर फिसलती जा रही
आज लक्ष्मी सरस्वति की मीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी
ये वो जरिया भी नही सम्पन्न तुमको कर सके
अनमोलता हर षब्द की भी खिन्नता को भर सके
साहित्य के तूरीण मे! हर षब्द - भेदी बाण है
रस,छन्द मे! भी ये अल!कृत सा झलकता प्राण है
ये भावना , स!भावना के गीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी
तुक बन्द के हर छन्द से हर षब्द मुर्दा हो गया
साहित्य का जिसमे! हुनर है, चारणो! से खो गया
कश्ट मे! गुणगान की कविता कवि गाते नही
सि!ह भूखे हो! मगर वो घास को खाते नही
पाशाण सी निर्भय कलम नवनीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी
मुर्दे जगाने की कला तुम जानते हो देष मे!
साहित्य मे! चिन्गारियाॅ! हो , हो किसी भी भेश मे!
फिर कलम क्यो! कुन्द होकर, खो रही है धार को
क्यो! बेचती है! पीढीयाॅ! साहित्य के घर बार को
मै! आग हूॅ!, मेरी लपट भय - भीत कैसे हो गयी
मेरे गीत मे! जो रीत थी विपरीत कैसे हो गयी!!
नवोदय का उदय
राश्ट्र के कवि,राश्ट्र के उपर कभी लिखते नही है!
एक हम है!,जो कभी चैराहो! मे! बिकते नही है
ऐसा नही है कि ,हमारी कीमतो! मे! दाग है
हम अभागे है! ,हमारे षब्द मे! बस,आग है
म!च मे! श्रृ!गार करने की कला नही जानते है!
राश्ट्र के सम्भाव को साहित्य अपना मानते है!
चुटकुले सुनने, सुनाने के हुनर आते नही है
भाट,चारण की कविता म!च पर गाते नही है!
चपलूसो! की जमातो! से सदा हम दूर है!
वक्त की तासीर मे! समसीर के हम षूर है!
खुलके गाते है!,भय!कर छन्द की हर चोट से
छल,कपट को फोडते है!,षब्द के विस्फोट से
रोज लिखने का हुनर मा!सरस्वति से मिलरहा है
आसियानो मे! नवोदय पुश्प हरदम खिल रहा है
रो!दने वालो! की नजरो! से अगर बच पाये!गे!
तुम देख लेना गीत हिन्दुस्तान का हम गाये!गे!
बहती हुयी इस सरस्वति मे! एक नाला चाहिये
इस तमस को दीप का थोडा उजाला चाहिये
हाथ मे! सब चाबिया! है! बन्द ताला चाहिये
मै आग हू! मुझको भभकने का मषाला चाहिये!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष मो0 9897399815
बसन्त - उत्सव
जवाब देंहटाएंहर ठू!ठ मे! पत्ते नये,निज को!पलो! को खोल कर
पुश्प मे! भौ!रे भ!वर से गू!जते कल्लोल कर
नवपुश्प, पल्लवित कर छटा, बिखेरती है ये धरा
मरूस्थलो! को भी मरूधानो! सा करती है हरा
क!त कलरव बोलियो! सी, ये बसन्ती चोलिया!
बोलते है! पन्थ, पादप, सन्त सम-रस बोलिया!
मौन स्वीकृति का निमन्त्रण भी बसन्तो! ने दिया
अ!कुरित बीजो! मे! पुश्पित पल्लवित जग कर दिया
मौसमो का ये प्रणय, परिधान ही प्रमाण है
हरियालियो! मे! भी हरित है, ये त्वरित परित्राण है
वषुन्धरा ही मूल से पावन प्रकृति पालती है
मानवो! के मन-मुताबिक, मौसमो! को ढालती है
पीताम्बरो! से पथ,पथिक सत ्मत् रथो! के सारथी
छट - पटाती सी छटा,छन -छन क्षति स!वारती
अ!कुरित पौधे भी पादप, टकटकी से देखते है!
आस के उल्लास के अवसान सर -सर फे!कते है!
जिस तरह हम तन पुराने से कफन को छोडते है!
नवजीव जीवन जन्म लेकर, वस्त्र नूतन ओढते है!
ये बसन्त -उत्सव हमे! भी, चेतना समझा रहा है
हर सफर मे! जीव के जीवन जगत मे! आ रहा है
मन-मुटाओ! के मजहब के म!जरो! मे! मत पडो
सल्तनत, सत्ता, सियासत के सरो! मे! ना सडो
हर तरह का वृक्ष ,धरती ज!गलो! मे! पालती है
भोज और जल , मूल मे! सब के बराबर डालती है
मारूत की ट!कार से , पादप बराबर खेलते है!
धूप, गर्मी, छा!व के हर घाव निर्भय झेलते है!
सम्प्रदायो! की तरह वो ष्वान से लडते नही है!
वाषनाओ! क े षवो! की सल्तनत पढते नही है!
क्या कभी मानव,बसन्तोत्व को समझकर भी जीयेगा
क्या कभी नीरस, मनु रस मौसमो! का भी पीयेगा
बारह महीनो! की ऋतु, ब्रह्माण्ड को स!वारती है
बस,ये ऋतु ही ‘आग’ की आराधना है,आसती है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
विभत्स-भारत
जवाब देंहटाएंमत पेटी के गर्भ - गृह से नेता पैदा क्यो! होते है!
इसिलिये तो प्रजातन्त्र के मालिक मुर्दे ही ढोते है!
लाषो! की गिनती होती है लोकतन्त्र के षमषानो! मे!
वोट बे!क के क्षत-विक्षत षव, प्रजातन्त्र के पैमाने मे!
भूत - प्रेत खादी मे! लिपटे ,विभत्स , रोद्र फैलाते है!
मा!स,रूधिर को चूस - चूस कर , जनता की बोटी खाते है!
फ!स जाते है! भूखे न!गे जन-मत नर -क!कालो मे!
कुत्ते,बिल्ली, चील, गिद्ध और गीदड़,षेरो! की खालो! मे!
गाॅ!धी, नेहरू, लाल बहादुर की कब्रो! को खोद रहे है
भगत सि!ह,षेखर,सूभाश का हल सडको पर जोत रहे है
सढी गली लाषो! के उपर ,स!विधान क्यो! म!डराता है
राष्ट्र-गीत भारत का , कब्रिस्तानी मुर्दा क्यो! गाता है
स!विधान की कसमे! खाने वाले ,स!विधान खोेते है!
यक्ष प्रष्न से ,पक्ष, विपक्षी जनमत अभिलाशा धोते है!
चील,गिद्ध की दिव्य दृश्टि से, सोने की चिडिया मरती है
भारत मे! तो सडी,गली लाषे! भी चमत्कार करती है!
इस भारत मे! ‘आप’ पार्टी चुनने वाले हमी लोग हेै!
मुफ्त-खोर के ताने - बाने बुनने वाले हमी लोग हेै!
म!हगायी मे! सस्ती बिजली ,सस्ता पानी कब मिलता हैे
मेरा भारत भाशण बाजो! के काजो! से ही हिलता हेै
डेढ़अरब की जनस!ख्या मे! आम आदमी ढू!ढ रहे हो
खुण्डे हथियारो! से जनमत के करकस सिर मू!ड रहे हो
पानी से बिजली बनती हेै, बिजली से पानी आता हेै
राम देव और आप पार्टी, अर्थषास्त्र को समझाता हेै
हे भारत के मुर्दो! ,अपने गुर्दो मे! कुछ ताकत लाओ
प्राण-प्रतिश्ठा आ र्य- खण्ड की वषुन्धरा मे! पुनः जगाओ
यौवनता के उथले ,पुतलो! मे! जीवन की अभिलाशा है
मजबूरी मे!,कवि ‘आग’ के छन्दो! की ये परिभाशा है!!
राजेन्द्र प्रसाद राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
ऋशिकेष मो0 9897399815
दलालो! का देष
जवाब देंहटाएंदलालो! के कलालो!के,तरकस,तीर भालो!के
हवाला के हलालो! के,करकस,चीर चालो!के
बलुवे के बबालो! के, बरबस बीर बालो!के
मलवे के मलालो! के, परबस पीर पालो!के
ना खेती हेै ,ना बाडी है,दलाली मारवाडी हेै
फसल मेरी,असल उसकी, ये बिन तेल गाडी है
क!ही सरकार का गल्ला,उसी के बीच मे!दल्ला
ना छत है ना है तल्ला ,सारा खेल है खुल्ला
हर थाना दलाली है , घर जाना दलाली है
षर्माना दलाली हैे, भरमाना दलाली हैेे
दरिया मे! दलाली हैे, समन्दर मे!दलाली हैे
मस्जिद मे!दलाली हैे तो मन्दिर मे! दलाली है
जमीनो! मे!!भी सौेदा हेै,हर धन्धा मसौदा है!
बिना अ!कुर के पौधा है!,कुवा!बातो!मे!खोदा है!
फसलो!का फफो!दा है!,ये दल्ला ही घरो!दा है!
षक्लो! से भी भो!दा हैे,इसी ने देष रो!दा है
ना बोरी है ना बट्टा है, निखट्टू सा ये चट्टा है
तराजू है ना बट्टा है,सडक छापो! का सट्टा है
कागज है ना पट्टा है, ना ही घी,दूघ, मट्ठा है
ना ई!टो! का भट्टा है,बस बातो! का रट्टा है
सियासत मे! दलाली है,रियासत मे! दलाली है
हिरासत मे! दलाली है, विरासत मे! दलाली है
किस्तो!मे! दलाली हेै,फेहरिस्तो! मे! दलाली है
रिस्तो! मे! दलाली है, फरिस्तो!मे! दलाली है
दलालो! के बिना हथियार के सौदे नही होते
दलालो ने कफन सैना के सरहद मे! सदा खोदे
दलालो! से जहाजो! की, खरीदे! रोज होती है!
धन्धो मे! दलालो! के हमेषा मौज होती हेै
भारत को दलालो! से कोइ मुक्ति दिलायेगा
सख्ती से सियासत मे! कोइ कानून लायेगा
दलालो! और कलालो! से ही भ्रश्टाचार बढता है
सुनकर ‘आग’ की लपटो! का पारा रोज बढता है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
बन्दरो! का गूढ़रहस्य
जवाब देंहटाएंगा!धी जी के तीनो बन्दर,देखो स!विधान के अन्दर
दिखने मे!है!मस्त कलन्दर,अपने फन मे!सभी धुरन्धर
आ!ख बन्द है!देख रहा है,नजरे! अपनी सेक रहा हेै
बन्द कान से सब कुछ सुनता,अन्दर ताने बाने बुनता
बस,मु!ह मे!आवाज नही है,षब्दो!के अल्फाज नही है!
मौन हुये,सब कुछ कहते है!,साथ समय के ही बहते है
राजनीति मे! उपयोगी है, कामुक हो कर भी योगी है!
नेहरू,इन्दिरा,अब राहुल है,व!षवाद के ये साहुल है!
ना!व सभी की पार लगाते,बापू कम ,गा!धी कहलाते
सडको!पर अनसन करवाते,आ!ख मू!द कर है!,ये खाते
कानो! से सब कुछ सुनते है!,मतलब की बाते!चुनते है!
मुख मे!राम बगल मे! छूरी, सारी इच्छा करते पूरी
लगते अन्धे, बहरे, गू!गे,ये सागर के छिपे है!मू!गे
जनमत को भी सिखा रहे है!,भारत भूखा दिखा रहे है!
इनसे पाकिस्तान बना है,ना मूल ,ना पता तना है
हरकत पूरी करवाते है!, फिर भी जनता को भाते है!
देख सियासी उपकरणो!मे!,तीनो! नेता के चरणो!मे!
राजनीति के दल हजार है, सब अपने-अपन वर्णो मे!
स.पा.बा.स.पा,का!ग्रेस और बी.जे.पी.के खास धडे़है!
माला के सारे मनके है!, अन्दर बन्दर साथ खडे़हैै
बाहर से मुर्दे लगते है!,अन्दर पूरे जाग रहे है!
गा!धी के चरणो!मे!बैठे,हर मजहब मे! भाग रहे है!
आज देष की जनता नेता, सब कुछ इनसे सीख रही है!
आदम की औलाद देष मे!,बन्दर जैसी दीख रही है!
भारत मे! बजर!गी दल भी इनके कारण ही चलता हेै
बन्दर तो आखिर बन्दर है, सारी दुनिया को खलता हैे
नगर पालिका पकड़ पकड़ कर,इनको ज!गल भगा रही है
हर म!गल को बजर!गी की,जोत ज्ञान की जगा रही हैेे
वाह रे गा!धी चमत्कार हैे,तीनो बन्दरो! कैसे चूने
भारत मे! तो तेरे नामो!के,बजते है घर-घर झुनझूने
मै! भी अब तक समझ ना पाया,ये बन्दर क्या बता रहे है
देष-द्रोही को तेरे दर्षन,अब तक हरदम सता रहे हैै!!
आ!धी मे! गा!धी
जवाब देंहटाएंहे बन्दर के अवतारो!, भगवान बनो, हनुमान बनो
क्षेत्रवाद को छोडो, मानवता के हिन्दुस्तान बनो
मातृ-भूमि पर तरस करो ,इस भारत के उत्थान बनो
चार दिनो! के जीवन म े!भी मालिक कम,मेहमान बनो
बजर!गी ने ल!का जाकर, रावण के मु!ह पर थूका था
अय्यासी की ल!कपुरी को आग लगा करके फु!का था
तुम गा!धी के सत्याग्रह से,राश्ट्र सम्पत्ति फू!क रहे हो
अवतारो! की धरम-धरा से,सोम,व्योम मे! थूक रहे हो
तीन बन्दरो! से गा!धी का, मौन षब्द ,सब बोल रहा है
इस भारत के भाग्य-विधाता की औकाते खोल रहा हेै
आ!ख, कान, मु!ह बन्द पडे़है! स!केतो! से सब होता है
गा!धी - वादी, खादी, व्याधी से तो बापू ही रोता है
सोच रहा है,नाथू के हाथो! से मरना ही अच्छा था
भूल हुयी थी मुझसे ये भी यह,गा!धीवादी ही सच्चा था
देष भक्त भी मुझसे मिलने,स्वर्ग मे! मर कर के आते है!
आजादी के बाद देष के किस्से, रो- रो कर गाते है!
बतलाते है! गा!धी - वादी भ्रश्टाचारो! मे! जीते है!
बात अहि!सा की करते हेे!ै, खून गरीबो! का पीते है!
सत्याग्रह की बात करे!गे, झूठ, फरेबो! की भा!शा से
खादी कुर्ता, गा!धी टोपी,बोट- बै!क की अभिलाशा से
टूटे- फूटे चरखो! से सब, सूत कात कर दिखा रहे है!
व्यभिचार के काले धन्धे नई पीढी को सीखा रहे हेै
सबसे ज्यादा भ्रश्टाचारी गा!धी वादी बन जाता है
घनचक्कर भी,आज देष मे!,चरखे से ही तर जाता है
तेरे नाम की फिल्म बना कर, कुछ तो रायल्टी पाते है!
हर आफिस मे! तस्वीरे! है!,घूस सभी खुल कर खाते है
मोटी, पतली फाइन, चूजे,अय्यासी की परिभाशा है
च्वनप्रास और, स्वर्ण भस्म मे! नेताओ! की अभिलाशा है
जन-स!घी, बजर!गी दल और,षिवसैना को पाल रहे है!
राश्ट्र-स्वय! सेवक भी खुद को बी.जे.पी .मे! ढाल रहे है!
नेहरू,इ!दिरा,राजीव निपट गये अब राहुल गा!धी वादी है
पी.एम. तो मनमोहन सि!ह है, पर सोनिया षहजादी है
तीनो! बन्दर और बापू भी फूट-फूट कर रो जाते है!
मैने तो बकरी पाली थी, गा!धी-वादी क्या खाते है!
देष बचाना चाहते हो तो गा!धीवाद को दूर हटाओ
आखिर गा!धी रोकर बोले,कवि‘आग’तुम लिखते जाओ!!
ग!धी से सम्पर्क
जवाब देंहटाएंबापू तुमको पता नही है, अब चुनाव आने वाला हेै
पूरे भारत का गण नायक, जनमत, मनमत मतवाला हैे
जगह-जगह नौट!की नाटक, चाय, पकौडी बेच रहे है!
प्रतिश्पर्धा मे!डेड़अरब की,भीडो!मे!रथ खे!च रहे है!
कोई कहता हैे भारत मे!स्वर्ण-काल फिर से लााउ!गा
कोई कहता रामराज्य की झलक देष को दिखलाउ!गा
कोई कहता,बिजली, पानी, करमुक्ति का भारत होगा
कोई कहता, यदु-व!ष हैे,माया से महाभारत होगा
लाल ,हरी,बैगनी,बसन्ती,सबके सिर गा!धी टोपी है
रैली, रैला, ीड़ लगी है,भारत मे! आ!धी थोपी है
टी.वी.चैनल, सभी मिडिया,पूरा भाशण सुना रहे है!
जो जितने पैसे देता है, उसको, उतना भुना रहे है!
रामदेव मायावी बाबा ,खुद का चैनल चला रहा है
धरम,करम की बाते! छोडी,का!ग्रेस को जला रहा है
दामोदर मोदी षब्दो! का बाजीगर हेै सौदागर हेै
का!ग्रेस मे!माल ष्वा!स से खी!च रहे सारे अजगर है!
राहुल गा!धी भावुक है पर,भाशण बाजी मे! जीरो है
सारे नेता अय्य्ाासी मे!,कुछ विलियन है!,कुछ हीरो!है!
हर चैनल मे!भाशण देखो,कुत्तो! जैसे भौे!क रहे हे!ै
चैनल वाले सारे अपनी, दाल सियासी छो!क रहे हैे!
एक नयी खरपतवार उगी है, आप पार्टी बता रही हेै
का!ग्रेस और बी.जे.पी.के से!ध वोट मे!लगा रही है
भीम राव के स!विधान मे!,सारी कमिया!ढू!ढ रही है
तकनीकी का ब्लेड हाथ मे! लेकर जनमत मू!ड रही है
सारे तोते नीड़ छोड़कर, भीड़ सियासी पाल रहे है!
पागल जनता जुटी हुयी हेै,जनमत भी ज!जाल रहे है!
स्वप्न दोश मे!भटका भारत,अय्य्ासो! का जाल रहा हेै
लोकतन्त्र मे!मुर्दा बापू, कब से मुर्दा पाल रहा हेै
बापू ,मोबाइल पर रहना, आ!खो देखी बतलाउ!गा
गा!धीवादी क्या करत ेहै!,मे!स!जय हू!,सुनवाउ!गा
बापू , पैसे खतम हो गये, लि!क टूटने वाला हेै
गा!धी बोले कवि‘ आग’ तू लिख, कितना घेटाला है!!
नयी सूचना
जवाब देंहटाएंनयी खबर हेै बापू, दुनिया क!हा सोगयी
मुस्लिम नेता आजम खा! की भेै!स खोगयी
सारे नेता, पुलिस ,भै!स को खोज रहे है
अब तक ये ,सारे भारत मे! बोझ रहे हैे!
विक्टोरिया क्वीन से सुन्दर बता रहा है
ये कामुक सौन्दर्य स.पा. का जगा रहा है
सभी मिडिया आज भै!स की चर्चे मे!है!
क्या सारे चैनल आजम खा! के खर्चे मे!हेै!
बापू सारे खोजी कुत्ते ,फेल हो गये
अब चारा खाने वाले नेता खेल हो गये
आजम खा! की भै!स, कैस को लुटवाती है
माया के खेमे मे! षक की सुई जाती हेै
बापू,भै!सो!के चक्कर मे!न!गे मार खाये!गे?
क्या भैसे पर यमराज , यू.पी. आये!गे
कौेन मजहब, भै!से खाता है,जा!च कराओ
बापू ,इनकी खबर लोहिया तक पहु!चाओ
यू. पी. मे!तो हिन्दू,मुस्लिम झगड़रहे हे!ै
डा!स- बार बाला को , नेता पकड़रहे है!
पिता,पुत्र दोनो ने मिल कर लुफ्त उठाया
ये किस्सा,टी.वी. चैनल ने खूब दिखलाया
लाल बहादुर, गोविन्द भी यू.पी.से आयेे
नेहरू, इन्दिरा आज देष मे! हुये पराये
राम, कृश्ण,महावीर,बुद्व की ये धरती हेै
आजम खा!की भै!स,य!हा पर क्यो!चरती है
खुद बापू देखो नेता ,जानवरो! से बदतर
राजनीति मे! आज सियासी खसम हे!ै सत्तर
गाय सडक मे! पन्नी, कागज चाब रही है
आजम खा! की भै!स प!जीरी दाब रही है
ये आज की खबर थी बापू, जो बतलायी
ये सब गा!धीवादी है!,कुछ समझ मे! आयी
मेरी बात को सुनकर, गा!धी भी चकराया
बोले,बेटा ‘आग’ लिखो तुम मै! फिर आया!!
अगली-खबर
जवाब देंहटाएंबापू मै! तो रोज नयी कविता लिखता हू!
कवि‘आग’ हू! पर षीतल पानी दिखता हू!
आज तुम्हे! मै!भ्रश्टाचारी गिनवाउ!गा
व्यभिचार मे!,फ!से मुखौटे दिखलाउ!गा
तेल,कोयला धरती मे! जो छिपी थी माया
आजादी के बाद खनिज को लूटा खाया
ता!बा, लोहा,दस्ता,पीतल सब गायब है
टाटा,बिडला, अम्बानी सब महानायब हेै!
हर ठेको! मे! नेता की हिस्सेदारी हेै
खुद मालिक है!,टेन्डर मे! रिस्तेदारी है
अरब-खरब की कीमत, कौडी डाल रहे है!
खानदान अपने सब नेता पाल रहे है!
चाल,चरित्र और चेहरे भी इसमे! षामिल हे!ै
न्यायालय के नोटिस भी सबको तामिल है!
हरीषचन्द्र की नष्ले! खुद को मान रहे है!
बापू, प्रजातन्त्र हेै डाकू सीना तान रहे है!
चाय बेचने वाला कलमाडी तिहाड़ मे!
खूब कमाया का!ग्रेस की छिपी आड़ मे!
राश्ट्र खेल मे! तेल लगा कर काट रहा था
षीला दीक्षित से मिल कर सब चाटरहा था
कनिमोझी के अरब - खरब, ये घोटाले
राश्ट्र-भक्त सुखराम, नायडू,गडबड़झाले
जाने, कितने व्यभिचारी ,नेता खेलो!मे!
कुछ बलात्कार के केसो!मे! है!अब जेलो!मे!
एक बिहारी, चारा चाट कर अब अन्दर है
ये भी बापू,सर्कस का,जोकर भी बन्दर है
बापू भारत आज डाकुओ! का बीहड़है
राजनीति तो आज सुरक्षित, टुच्चा गढ़है
बच्चो! के सरकरी भोजन मे! भी हिस्से
आज देष के घर-घर है!,व्यभिचारी किस्से
व्यथा सुनी तो ,गा!धी की आ!खे भर आयी
बापू बोले कवि‘आग ’ तू लिख सच्चायी!!
बापू का भय
जवाब देंहटाएंकवि‘आग’मै!रात डर गया,झटपट जागा
आ!ख खुली तो,देखा जिन्ना खडा अभागा
मुल्ला,छाती पीट-पीट कर चिल्लाता था
क!ही-क!ही रमजान,रामधुन भी गाता था
मै!बोला जिन्ना,तू य!हा पर कैसे आया
क्या कवि आग ने तुझको मेरा पता बताया
सन् 47 से,बापू दर-दर भटक रहा हू!
मुल्ला हो कर,दो जख मे!ही लटक रहा हू!
मेरी और नेहरू की बुद्वि,भ्रश्ट हो गयी
कठमुल्ला औलाद कफन मे! दफन सो गयी
क्या मुर्दो के ताबूत वतन को ढोते जाये!
बापू भारत ठीक,मेरे मुल्ले क्या खाये!
हमको तेरी बातो! पर विस्वास नही था
सब हिन्दू थे,हमको कुछ भीे आस नही था
उपर से ये ,सूभाश,भगत,षेखर की भाशा
मेरी कौमे! छोड़ चुकी थी सारी आषा
यही सोच कर मैने पाकिस्तान बनाया
कट्टर पन,आत!क,बाद मे!उभर के आया
मै! और नेहरू समझ रहे थे ,मजा आ गया
पर भारत को हिन्दू,मुल्ला पाक खा गया
तेरी इन्दिरा पाक के टुकडे़ करके मानी
वो ब!गला देषी बना,हमारा पाकिस्तानी
मेरे दिल मे! ,ये खटका भी खटक रहा था
भूखा, न!गा,ब!गला देषी मटक रहा था
आत!कवाद ने इन्दिरा और राजीव को खाया
बेनजीर को और जिया कोे भी निपटाया
आजाद हुये, पर घर दोनो बरबाद पडे़है!
का!ग्रेस,मुस्लिम लीगो! के लाख धडे़ है!
ये करम हमारे, कौम हमारी झेल रही है
राजनीति जन मत मुर्दाे! से खेल रही है
अब अमरीका भी इन दोनो का बाप बना है
उसी के कारण दोनो! मे! जेहाद घना है
ओ,जिन्ना,क्यो!नमक कटे मे!डाल रहा है
तू और नेहरू झगडे़ का ज!जाल रहा है
तेरे कारण ही,नाथू राम ने गोली मारी
हिन्दू, मुस्लिम तुम दोनो थी बलिहारी
तेरे चमचे मेरे पूतले फू!क रहे थे
पाकिस्तानी मुल्ले मु!ह पर थूक रहे थे
कवि‘आग’बैठा है,जिन्ना,य!हा से जाओ
बेटा,तुम इस पर भी अच्छे छन्द बनाओ!!
ाजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
गा!धी ने मु!ह खोला
जवाब देंहटाएंक्या बापू तेरे बन्दर सभी समाधी मे! है!
सब धोती,कुर्ता,टोपी पहने खादी मे! हे!ै
सन् 47 से चुप बैठे है!,क्या व्याधि मे! हे!ै
या,ये गू!गे,बहरे,अन्धे सब बरबादी मे! है
एक हाथ अन्धे का बापू क!हा है गायब
का!ग्रेस का चिह्न अजब है ,आज अजायब
बेटा ,उपर आकर इन्दिरा ने मुझसे मा!गा था
अब गाय,बछडा,बैल,फेल है!,तो टा!गा था
बापू ,जिसके हाथ है मु!ह पर,खून लगा है
ये ,जूनून का जिन्ना अफलातून सगा है
ये पाकिस्तानी फतवा हेै,बस ,मु!ह ना खोले
आत!क मचा ,भीख मा!ग कर पाल सपोले!
कान बन्द है!जिसके,मु!ह पर कान नही है!
अब बेटा, महाभारत है,हिन्दुस्तान नही है
सम्प्रदाय, मजहब के कीडे़ पनप रहे है!
भारत माता के घावो! पर भिनक रहे है!
आ!ख बन्द है जिसकी सब कुछ देख रहा है
आजादी के तवे मे! रोटी से!क रहा है
कान बन्द है! जिसके,वो भी ,सब सुनता है
केवल मतलब की बाते! दिन - भर चुनता हेै
एक रहस्य बतलाउ!,जो अब तक ना खोला
मुझ तक सब पहु!चाते है!,जो जिसने बोला
एक ही बकरी काफी थी, बन्दर क्यो! पाले
मुझे पता था, नमक हराम , ये गुण्डे साले
बैरिस्टर हो कर क्या, मैने घास छिली थी
आजादी की मुझको ,ये सौगात मिली थी
मै! हर झगडे़के पीछे, छिपी हुयी आ!धी हू!
तू कवि‘आग’है,पर मै! भी पक्का गा!धी हू! !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
बकरी का रहस्य
जवाब देंहटाएंबापू तेरी बकरी का क!ही जिक्र नही है
का!ग्रेस को भी इसकी कोई फिक्र नही है
धोती, चस्मा और घडी के भी चर्चे हे!ै
कई करोड़ की नीलामी के भी पर्चे है!
आत्म कथा मे! तूने भी नही दिया हवाला
वो बकरी थी,या कुत्ता था जो तूने पाला
बादाम,छुआरे,सुना है मै!ने,वो खाती थी
तू खाली था,टाइम पास भी करवाती थी
मा!का दूध पिया जिसने क्या मा! को भूला
दष बच्चो! का बाप बना,खुषियो से फूला
जिसके कारण बना हुआ तू जग का नेता
उसका भी इतिहास क!ही थोडा लिख देता
तेरे दष थे, सने भी कुछ दिये ही हो!गे
छान रहा है पुरातत्व सब कीडे़घो!धे
घोर अचम्भा, बकरी कैसे छूट गयी हेै
इसमे! भी क्या तेरी ही ,कुछ कूट रही है
तू गुजराती, मोदी भी तो गुजराती है
क्यो! तेरी बकरी उसको रास नही आती है
घडी, ल!गोटी,चस्मा बकरी से ज्यादा है
क्या गा!धी वादी ही सतर!जो का प्यादा है
वो मौेन जीव,भी आजादी मे! सहयोगी थी
तू स्वस्थ रहा,वो तेरे कारण क्यो!रोगी थी
कुछ ना कुछ तो कारण हैे,ये बात छिपायी
फोटो मे!चमचे है!बकरी क्यो! नही आयी
तेरे जीवन मे!कुछ बाते!स!दिग्ध रही है!
कुछ बाते!तो अ!ग्रेजो!ने साफ कही है!
एक बडे़ बैरिस्टर ने भी बकरी पाली
यह भी पता नही,सफेद थी,या भूरी,काली
हे,गा!धीवादी बकरी का भी पता लगाओ
उसका डी.एन.ए.ढू!ढो,चर्चा मे!लाओ
गा!धी आम, गौण बकरी है कैसे मानू
गा!धी वाद पर जीने वालो!क्यो! पहचानू
गा!धीवाद का रहस्य, वो बकरी खोलेगी
बापू, क्या- क्या करते थे बकरी बोलेगी
गा!धी बोले बेटा ,मै! तो जग जाहिर हू!
मै! कवि आग हू!षल्यचिकित्सा का माहिर हू!!!
मौसम का मारा गा!धी
जवाब देंहटाएंसुबह-सुबह मिस काल बजी तो मै! भी जागा
एस.एम.एस मे!लिखा था बापू,एक अभागा
बोले बेटा, मेरा भी सिम ,चार्ज करा दो
मन मचल रहा है कुछ कविता के छ!द सुनादो
कविता की बाते! करना, था एक बहाना
भीग रहा था, आजादी का लुटा दीवाना
मौन हुआ सब दुखडे़ रो कर सुना रहा था
घोडा,छतरी, बार -बार दोहरा रहा था
बापू बोले बेटा ये वो हिन्दुस्तान नही हेै
मै!मरा देष के खातिर,कुछ सम्मान नही हैे
चैराहो! पर न!गा कर मुझको रख छोडा
उस राणा और षिवाजी के नीचे है घोडा
लक्ष्मी,पुतली भी घोडे़ पर खडी हुयी है
नेहरू परिवारो! पर नजरे! गढी हुयी है!
षीत,गरम,वर्शात,मै!न!गा झेल रहा हू!
गा!धी-वाद से जिन्दा हू!,तो खेल रहा हू!
भीम राव भी छतरी ओढ े़खडा हुआ है
अगडा पिछडा स!विधान का लुटा जु!वा है
कितनी प्रतिमा श्रृ!गारो!से नाच रही है
ये का!गे्रस न!गो मे!भारत बा!च रही है
कुछ अपने थे, जो मुझसे थे सदा पराये
गा!धी -वादी नया नमूना घाट मे! लाये
गा!धी-वादी देख व्यवस्था मै! हरशाया
नेहरू खान -द ान का छोटा गा!धी आया
राहुल के चरणो! मे! नेता गिरे हुये थे
जन्म-जात न!गो! के दिन भी फिरे हुये थे
छोटे गा!धी को जब देखा तो चिल्लाया
घोडा मा!गा, गधा कौन लेकर के आया
ये गा!धी - वादी कीडे़ भी मस्ती करते हैे!
मेरे नाम से बेटा , पत्थर भी तरते हे!ै
मरा हुआ हाथी भी बेटा डेढ़ लाख का
गा!धीवादीयो! ,आगे पढना छन्द‘आग’का!!
बापू से सिकायत
जवाब देंहटाएंबापू तुमने अच्छा पाकिस्तान बनाया
हर पडोस का कुत्ता मरने भारत आया
हिजबुल और मुझाही द्वीन भरे पडे हे!ै
ज!हा भीड़ है,ढू!ढो तो दो-चार खडे़हैे!
आधा ब!गला देष य!हा रोटी खाता है
नैपाली हिन्दू है, घर-घर का नाता हेै
तिब्बत,ल!का जैसे कितने लावारिस है!
जिसे कही! ी जगह नही भारत वारिस हैे
पहचानपत्र,परमिट,दल्लो!से बन जाता है
ये लावारिस तो नेताओ! को भी भाता हेै
हर षहर मे! झोपड़ पटटी डाल पडे़है!
इनके पीछे हर नेता भी काल खडे़है!
सभी दलो! मे! इनकी होती आज वकालत
इनके कारण भोग रहे है! सभी जलालत
हम 60करोड़ही 60 करोड को पाल रहे है!
ये न!गे-भूखे ही भारत को ख!गाल रहे है!
बिगडे़,हिजडे ़ नेता सत्ता मे! आते है!
ये बोट बै!क ,मेरे भारत की औकाते हैे!
क्या स!विधान स!रक्षण सब को दे देता है
अब तो जनमत भी मुर्दा ,मुर्दा नेता है
कितने दल है!भारत मे!कोई जात नही है
कोइ खिलाफ बोल सके,औकात नही है
कुछ समाज सेवक है मुर्दे मौन पडे़है!
भडुवो! के आयोग,य!हा पर कौन खडे़है!
चालीस करोड छोडे़थे अब तो डेढअरब है
खुद बच्चे पैदा करके भी कहते रब हेै
इन्दिरा ने नस काटी तो बदनाम हो गयी
अब बापू,बोट सियासत ही पैगाम हो गयी
सबसे बडी समस्या,जनस!ख्या कारण हेै
बलात्कार,व्यभिचार य!हा पर भव तारण हेै
प्रजातन्त्र तो बोट- बै!क से मर जाता है
विक्षिप्त भेडिया भीडो से चुन कर आता हेै
यदि भविश्य का कुछ चि!तन बापू कर जाते
आज हमारे आगेे दुर्दिन कभी ना आते
बडे़आदमी की गलती का बडा असर है
कवि‘आग’ का चिन्तन,बापू अजर अमर है!!!
घाव के दा!व
जवाब देंहटाएंहे, खर दूशण, भारत भूशण, हे,राजनीति केे प्रदूशण
हे,आप पार्टी के ,षोशण, हे, काष्मीर केे उद्घोशण
जनमत की बात!ेकरता है,लतपत भारत क्यो!ेमरता है,
क्यो!नियम ताक पर धरता है,ऐसी बाते! क्यो!करता है
जा, पेैरवी उनकी करले, भारत मे! आत!की भरले
जा तू भी कष्मीर मे! चरले ,जा नवाज के स!ग मरले
हिम्मत है तो खुल कर बोल, कितने हिन्दू,मुस्लिम तोल
है मादा,सुख सुविधा काट,बातो! से ना जनमत बा!ट
तेरा दल जज्बात नही है, तेरी भी औकात नही है
इससे तेरा क्या नाता है,क्यो! भारत को भडकाता है
मौत मे!सबको झो!क रहा है,छूरा पीठ मे!भो!क रहा है
कब तक हम विस्वास करे!गे,और क!हा तक पेट भरे!गे
तन भारत मन पाकिस्तानी,न!गो! की कैसी मनमानी
षरीफ तुम्हे!भी बुला रहा है,अपने स!ग मे!सुला रहा है
जाओ जाकर राय बतादो, घर के सब स!राय बतादो
रोटी तुम भारत की खाओ,अलगावो! के गाने गाओ
अधिवक्ता पर षक होता है,बीज घृणा के क्यो! बोता है
कोर्ट कचहरी व!ही बनाले,बची,खुची खुर्चन भी खाले
बे-कसूर क्यो!मरवाते है!,क्यो! भारत को ही भाते है!
आत!क व!हा कैसे आता है,पाकिस्तान से क्या नाता है
सम्प्रभुता मे! भेद नही है,मेरे दिल मे! छेद नही है
जनमत के भारत भावो!को,दिल मे!लगे हुये घावो! को
क्यो! नमक डाल कर तडपाता है, बेनजीर तेरी माता है
इसका भी डी.एन.ए.जा!चो,उपर से नीचे तक बा!चो
आप पार्टी कुछ तो बोलो,हे, बड़बोले मु!ह तो खोलो
हर चैनल मे! चिल्लाते हो,गा!धी का गाना गाते हो
सबको पागल मान रहे हो,क्या तुम ही फरमान रहे हो
कहते हो अन्ना के साथी, बूढे के विस्वास के घाती
हे, सोषलिश्ट योगेन्दर बाबू, करले अपने चेले काबू
कहो ,कुमार से कविता गाये,इस पर भी दो छन्द सुनाये
क!हा सादिया हेै कजरारी,मुस्लिम बोटो! की तैय्यारी
हे, चैनल तोते आषूतोश, अब क्यो! बैठा है खामोस
मै!कविता खुल कर लिखता हू!,जैसा हू!,वैसा दिखता हू!
स्वाभिमान भी नही खोता हू!, भारत टुटेगा रोता हू!
कवि‘आग’भारत का मुख हू!,भारतवाषी का सुख-दुख हू!
देष द्रोह का तू द्योतक है,कवि‘आग’ भी विस्फोटक है!!!
बापू के सिद्यान्त
जवाब देंहटाएंबापू अब सिद्यान्त क!हा है,प्रजातन्त्र मे!
जन - मत ,कीडे़ रे!ग रहे है!,सढे़यन्त्र मे!
सत्य अहि!सा की बाते!, हि!सा जारी है
जितना बडा लफ!गा, उतना ही भारी है
लोभ - लुभावन नारे, मुर्दो! को भाते है!
अब गढे़कबर के मुर्दे ,सत्ता मे! आते है!
सडक मे! मुर्दे ,झण्डा लेकर घूम रहे है!
ये ष!खनाद भी षमषानो! को चूम रहे है!
अब मुन्ना भाई मुख्यम!त्री बन जाते है
चारण भाट म!च पर अब कविता गाते है
आम आदमी बैल बना अब साण्ड हो गया
पर्दे का व्यभिचारी, खुल्ला काण्ड होगया
ये हडताले और ये सत्याग्रह तेरी षिक्षा हेै
भीख मा!ग कर जनमत ,ये कैसी भिक्षा हेै
सभी भिखारी अय्यासी की मस्ती छाने
मोहताज पडे़है! मालिक दर-दर दाने-दाने
पराधीन थे ,पर रोटी तो मिल जाती थी
व्यभि-चारिणी ,नैतिकता से षर्माती थी
बलात्कार की बाते! केवल स्वप्न दोश था
राश्ट्र-भाव, सम्भाव सभी मे!भरा ठोस था
कामुकता थी पर ,कामुक इन्सान नही थे
मानव ,दानवत थे ,पर ऐसे हैवान नही थे
चोर, चकारी ,गुण्डा गर्दी यदा-कदा थी
भ्रश्टाचारी की परिभाशा ही प्रिय!वदा थी
देष, भेश मे! ये परिवर्तन कैसे आया
लाल किले से ऐसा झण्डा क्यो! फहराया
सम्प्रदाय मे!हिन्दू, मुस्लिम,सिक्ख इसाई
हिन्दुस्तानी सम्प्रभुता मे!,हम सब भाई
बापू ,तुम उपर भी मस्ती काट रहे हो
मौन बैठ कर सारी खबरे!,छा!ट रहे हो
आग उगलते नेताओ! के भाशण देखो
कम से कम,दो षब्द प्रेम के अब तो फेको
मै!मान रहा हू! नयी नषल हेै बिगड़गयी हैे
पर बापू तुमने आदर्षो की बात कही है
आदर्ष अगर थोथा हैे ,तो हिसा होती है
कवि‘आग’ की कलम ,मौन से ही रोती है!!
कविता मे! मुहावरे
जवाब देंहटाएंअन्धे को दो नैन मिल गये, सारे सुखऔर चैन मिल गये
आवारा बे-चैन मिल गये, योगेन्दर,गुरू झेन मिल गये
बिल्ली खॅबा नोच रही है,दिल्ली लम्बा सोच रही हेै
जनता आ!षू पो!च रही है,बड-बोलो!की चो!च रही है
हाथ मे! अन्धे के बटेर है,लोक-सभा की लगी टेर है
भीडो!के अपषिश्ट ढेर हेै,गीदड़ भप्की, खाल षेर है
रोल्ड,गोल्ड सोना है भाई,खुष है!सब दिल्ली की माई
ये नकली आर्कशण कैसा, जैसा बोया, काटो वैसा
नौ दिन चले अढाई कोश, चना भाड़मे! है आषूतोश
मुर्दो मे! चढता ग्लूकोश,लोक-सभा का है उद्घोश
अन्धे को मिलती है लाठी,घोडा बिन गद्दी,बिन काठी
दो पर्वत के बीच मे! घाटी,सूरू हुयी है नयी परिपाटी
सोने मे!भी देख सुहागा,मुख्यम!त्री सडक मे!भागा
कबर से उठ कर मुर्दा जागा,भरा बसन्त,बस्ती मे!कागा
कोल दलाली, हाथ भी काला,उ!ची कुर्सी का मतवाला
कविराज का छन्द निराला,मिला ग!ग मे!गन्दा नाला
एक तीर से कई निषाने, आम आदमी गाये गाने
कुछ लूले,कुछ ल!गडे़ काने, अम्मा दाने चली भुनाने
पडी दूध मे! देख खटायी ,पानी सूखा छाई काई
मुफ्त मे!बिजली बा!टो भाई,सब सस्ता है फिर म!हगायी
टके सेर,भाजी और खाजा, न!गे, भूखे सारे राजा
लोकतन्त्र का बजा है बाजा, अभी कटा है मुर्गा ताजा
अन्धो मे! सरदार नही है,काणा भी असरदार नही है
भीड़ तन्त्र सरकार नही है,भ्रूण,गर्भ तैयार नही है
क्यो! लोहे का चना चबाया,भागा भी पर पहु्च ना पाया
जनमत नया नमूना लाया, राहुल, मोदी हुआ पराया
लोकपाल को पास करू!गा,जनता का उपहास हरू!गा
अन्ना भी पीछे आयेगा, वो भी सर्कस दिखलायेगा
एक बार फिर भीड़ बढेगी, अपना ही स!विधान गढेगी
राश्ट्र-पति कुल्फी बेचेगा,मनमोहन पगडी नोचेगा
लोक- सभा अब हाट बनेगी,एक नया इतिहास जनेगी
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख, इसाई,हमको चूनो सारे भाई
ये ,धर्मराज उपर से आया, मिलकर लूटो अपनी माया
अब काला धन भी गुर्राया, राम देव की ढीली काया
दुर्योधन को कृश्ण बनाया,राम भेश मे! रावण आया
गा!धी को गा!धी ने खाया,ये मुहावरा‘आग’ने गाया!!
पोल खुल रही है
जवाब देंहटाएंवाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी
कब से घर मे! घुसा हुआ था धीरू भाई
गैस, तेल के कब्जे मे! भी अम्बानी है
सत्ता और सियासत का दिलवरजानी है
चमत्कार है, अरब, खरब की लूट कमायी
वाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी
उद्योगपति, भारत को कब से लूट रहे है!
माल ष्वा!स से अजगर मिल कर घू!ट रहे है!
सब कुत्तो! के आगे हड्डी डाल रहे है!
ये राजनीति म!े लूले,ल!गडे़ पाल रहे है!
ये गाय काटने वाले सारे खटिक,कसाई
वाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी
कोल, गैस, तेल की किमत क्यो!बढती है
म!हगायी,आकास मे! क्यो!,कैसे चढती है
क्या सौ,पचास परिवारो! मेे!ही राम राज है
ये फुन्सी, फोडे़राजनीति मे! छिपी खाज है
नासूर बने,ये घाव, देष मे! खोदे! खायी
वाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी
टाटा,बिडला,डालमिया! ओैर अब अ!बानी
भारत को न!गा करने की मन मे! ठानी
डोनेषन की सूची मे! सब नाम लिखे! है!
ये भीख मा!गने वाले नेता सभी बिके है!
लोक - सभा मे! इनकी करते! है अगुवायी
वाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी
खनिज स!पदा, तेल, गैस अब खाप हो गया
क्या अम्बानी राजनीति का बाप हो गया
नौेकर - साही इनके कहने पर चलती है
प्रजातन्त्र क्या जनमत की,खलती,गलती है
क्यो!उद्योगपति ही गा!धीवाद के बने ज!वायी
वाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी
हम सभी साथ है!तेरे,बस, तू न!गा करदे
भारत के जन-मानस मे! वो हिम्मत भरदे
इन सभी डाकुओ! के घर मे! छापे पडवाओ
समय आ गया आम आदमी बन दिखलाओ
कवि ‘आग’ की कलम लिखेगी सब चतुरायी
वाह, केजरी वाल तूने हिम्मत दिखलायी!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
तीसरा मोर्चा
जवाब देंहटाएंटेढी मेढी बुनियादो! पर भवन खडा हेै
राजनीति मे! लावारिस भी एक धडा है
हारे थके सिपाही धन्धा ढूॅ!ढ रहे है!
लूले,ल!गडे़,काणे बन्दा ढूॅ!ढ रहे है!
वाह रे,प्रजातन्त्र तेरी माया है न्यारी
भूखे -न!गे पाल रहे है! खद्दरधारी
बीहड़ के डाकू स!सद की षान बढाये!
राश्ट्र-गीत भी राश्ट्र लूटने वाले गाये!
थर्ड- मोरचा बनने की भी तैयारी है
जनमत मे!ये सारे ख!जर,दो धारी है!
गाली देकर भी सत्ता,ख!गाल रहे है!
सपनो के गमले मे!बरगद पाल रहे है!
पहले भी तो थर्ड-फ्रन्ट स्ट!ट बने थे
जनमत की धरती मे!,खरपतवार घने थे
सपा.बासपा,सी.पी.एम और सीपीआइ
ममता,समता ने भी अपनी टाॅ!ग अडायी
पूरब,पष्चिम उत्तर,दक्षिण के लावारिस
वो भी बनना चाहते हे! नाजायज वारिस
तैयारी मे! बाबा और अन्ना के चेले
नीम , गिलोइ के उपर भी चढे़ करेले
ये चैराहो! के लावारिस भी तैयारी मे!
गाजर घासे!प्रजातन्त्र की इस क्यारी मे!
जनमत की पूॅ!जी को ये मिलकर खाये!गे
धोती और ल!गोटे अब स!सद जाये!गेे
भानूमति के कुडमे! के ये प्रतिनीधी है!
सत्ता कब्जाने की इनकी एक विधी है
जनता से क्या लेना,सारे भाड़मे! जाय
ये स!सद है,प्रजातन्त्र का एक सराॅ!य
कटे ठू!ट मे!,हरी-भरी कुछ पत्ती जागी
इस भारत की जनता भी है बडी अभागी
दारू,अय्यासी ,पैसो! मे! बिक जाती है
नालायक सन्तान देष को क्यो! खाती हैे
देख चुनाव के कोठे मे! अब दा!व लगे है!
कल तक थे विपरीत देख लो आज सगे है!
ये,चोर,उचक्के,डाकू,आपस मे!भ्राता है!
कवि आग खुरकी है लिखता ही जाता है!!
बे-षर्मी
जवाब देंहटाएंवाह रे ,भारत की स!सद तू लूटि कमीनो के हाथो!
ये भारत हैे,कोई केक नही,मत काटो हे ,सहजादो!
कुत्ते भी तुम से हार गये,सत्ता की छिपी हुयी घातो!
हे भारत के अपषिश्टो!,हे लीचड, कीचड़ अवसादो!
स!सद की मर्यादा हैे,अब सडक छाप के हाथो! मे!
देष की इज्जत फ!सी पडी,जाति पा!ति जज्बातो!मे!
सभी सवर्णो! को देखो,स!स्कार गये अब पानी मे!
सब आवारा गर्दी के बूढे,स!सद मे! देख जवानी मे!
मिर्च,मषाला फे!क रहे,ये भाशा चोर चकारो!की
सभ्य नसल कैसे बोले!,औलाद धुसी बाजारो! की
कुर्सि,माइक भी तोड़ रहे,आवारा साण्ड समाधी मे!
छवि राम है!बीहड़के,लिपटे!है!,कफन की खादी मे!
आत!की भी घुसे य!हा,ये उस पथ के अनुगामी है!
ये गन्दे,खून के कामी हैे!,ये भारत की बदनामी हे!ै
जातिवाद के जनमत से क्यो!इस मन्दिर मे!आते!है!
भारत के टुकडे़करने मे!,ये सब औकात दिखाते हेै!
जितने भी टुकडे़काटे है!,हालात जरा उनके देखो
सब कीडे़ जैसे रे!ग रहे,कुछ दृश्टि उन पर भी फे!को
छत्तीसगढ,क!ही झारखण्ड,ये उत्तराखण्ड यतीमो!मे!
पहले ही भूखे न!गे थे अब ,चढे़ करेले नीमो! मे!
कितने टुकडे़ काटोगे, कुछ पैमाना, अनुमान भी हो
मा!स नही है बकरे का,कुछ भारत की पहचान भी हो
सरदार पटेल ने जोडा था,तुम गाने उसके गाते हो
राश्ट्र गीत को गा करके,भारत मे! आग लगाते हो
क्या स!सद मे! चुन करके, ऐसे लावारिस आये!गे
स!विधान की खेती मे! क्या गाजर घास लगाये!गे
डेढ़अरब की जनस!ख्या क्या अब मुर्दो! को पालेगी
भारत के मन्दिर,स!सद मे!क्या सडी लाष को डालेगी
इन टुच्चो!का दोश नही,ये दोश जनमत जालो! का
जनता को अनुमान नही,इन षेर,भेड़की खालो! का
क्यो! लाल बहादुर,इन्दिरा के,आदर्ष बिके चैराहे मे!
कवि‘आग’की चिन्गारी,भडकी मुर्दो! क े! साये मे!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
न!गी राजनीति
जवाब देंहटाएंहम राजनीति के न!गे पन को झेल रहे हैं
प्रजातन्त्र मे! देख,लफ!गे खेल रहे हैं
ओछे भद्दे षब्दों की कैसी भाशा है
भ्रश्ट आचरण लोकतन्त्र की परिभाशा है
अषिश्ट षब्द भी षिश्टाचारी बन जाते हैं
छल ,बल ,कपटी नेता जनता को भाते हैं
एक राश्ट्र मे! राजनीति के कितने दल हैं
जनता की ताकत से नेता आज सफल हैं
जनमानस की ताकत जन केा काट रही है
राजनीति डबरो!मे! सागर बा!ट रही है
छोटे- छोटे मजहब मालिक बन जाते हैं
आड़ धरम की लेकर मानव को खाते हैं
गुनाहगार हम हैं जो सब कुछ भूल रहे ह!ै
ये आमलेट से अण्डे , नेता फूल रहे ह!ै
बलात्कार, व्यभिचार देष को भा जाता है
आज राश्ट्र को नरभक्षी नेता खाता है
राम कृश्ण के भजन भाव मे!घाव हरे! हैं
धर्मो में आडम्बर देखो आज खरे हैं
आड़मे अल्ला ईष्वर की मत मिलजाते है!
आज दरिन्दे दानव बन, मानव खाते है!
इस राजनीति मे! नये-नये अ!कुर बोराये
क्षेत्र ,जाति जन-मत के सबने ढेर बनाये
ठाकुर,पण्डित,वैेष्य, षुद्र के तालाबो!मे!
हिन्दू, मुस्लिम आडम्बर काषी काबा मे!
देष के टुकडे़ करने मे! सब लगे हुये हे!ै
सभी विरोधी देखो कितने सगे हुये हे!ै
हम मालिक है! हमको कुछ भी पता नही है
प्रजा-तन्त्र न!गा होता है!,कोइ खता नही है
भीडो! से अच्छा चुनकर के कब आता हेै
अच्छा भी मजबूर, भ्रश्ट बन ही जाता हेै
लावारिस है हरा - भरा मरूधान य!हा पर
डेढ़ अरब के कीडे़ है!,कब कौन क!हा पर
प्रजातन्त्र की बन्जर धरती है झा!सो मे!
फसल नही बस, नेता है गाजर घासो! मे!
नश्ट करो फिर दुगनी होकर उग आती हैे!
कवि‘आग’ की कलम व्यर्थ मे! ही गाती है।।
षहीदो!की तोहीन
जवाब देंहटाएंकभी वतन की षान था मै! आज क्यो! अहसान हॅंू?
दो चार की गिनती य!हा , मजबूर हूॅ बेजान हूॅं
राश्ट्र का गौरव किसी को क्यो! समझ आता नही?
क्या बात है षेखर, भगत नई नष्ल कोभाता नंही
शडयन्त्र की ये राजनीति राश्ट्र से क्यो!दूर है?
पाष्चात्य की परछायी हर दिल मे! भर भरपूर है
हर षख्स अपनी नष्ल कोअ!ग्रेजियत समझा रहा है
किस तरह से राश्ट्र नेता राश्ट्र को ही खा रहा है?
राश्ट्र के बलिदानियो! की याद अब फरियाद है
सूभाश, षेखर औेेर भगत इस देष की बुनियाद है
क्यो!सम्प्रदायी ज!ग मे!स!स्कार अपने खो गये
राश्ट्र के जो पूत थे कैसे मजहब के हो गये?
परतन्त्र थे जब इस जमी! पर ना कबीला कौम था
आधार था धरती बिछौना सर पे साया व्योम था
आज हम आजाद है! पर ना जम!ी आकाष है
हे! भगत इस राजनीति पर तेरी क्यों आष है
इन षहीदो! की षहादत को भुनाना छोड़ दो
उपयोग मे! इन षूर -वीरो! का बहाना छोड़दो
स्वाभिमान तो बष,षोभता है सरहदो! के वीर पर
हे, भगत मै! गीत लिखता हूॅं तेरी तकदीर पर।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा ;(आग )
14 मुखर्जी मार्ग ऋशिकेष,
मो0 9897399815
षहीदो!की तोहीन
जवाब देंहटाएंकभी वतन की षान था मै! आज क्यो! अहसान हॅंू?
दो चार की गिनती य!हा , मजबूर हूॅ बेजान हूॅं
राश्ट्र का गौरव किसी को क्यो! समझ आता नही?
क्या बात है षेखर, भगत नई नष्ल कोभाता नंही
शडयन्त्र की ये राजनीति राश्ट्र से क्यो!दूर है?
पाष्चात्य की परछायी हर दिल मे! भर भरपूर है
हर षख्स अपनी नष्ल कोअ!ग्रेजियत समझा रहा है
किस तरह से राश्ट्र नेता राश्ट्र को ही खा रहा है?
राश्ट्र के बलिदानियो! की याद अब फरियाद है
सूभाश, षेखर औेेर भगत इस देष की बुनियाद है
क्यो!सम्प्रदायी ज!ग मे!स!स्कार अपने खो गये
राश्ट्र के जो पूत थे कैसे मजहब के हो गये?
परतन्त्र थे जब इस जमी! पर ना कबीला कौम था
आधार था धरती बिछौना सर पे साया व्योम था
आज हम आजाद है! पर ना जम!ी आकाष है
हे! भगत इस राजनीति पर तेरी क्यों आष है
इन षहीदो! की षहादत को भुनाना छोड़ दो
उपयोग मे! इन षूर -वीरो! का बहाना छोड़दो
स्वाभिमान तो बष,षोभता है सरहदो! के वीर पर
हे, भगत मै! गीत लिखता हूॅं तेरी तकदीर पर।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा ;(आग )
14 मुखर्जी मार्ग ऋशिकेष,
मो0 9897399815
दिल्ली का लोकपाल
जवाब देंहटाएंना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
तर्को और कू-तर्को मे!षब्दो! का ठेलम-ठेल हुआ
क्या लोकपाल आत!की है विस्फोट कराने वाला है
स्!ाविधान की धाराओ! मे!खोट दिखाने वाला है
सत्ता के गलियारो!मे! ये बिल सरदार पटेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
जो राजनीति के टस्कर थे मदमस्त हुये थे सपनो मे!
जागीर समेटे बैठे थे और अस्त-व्यस्त थे अपनो मे!
चमन उजडता दिखता है इस बिल को पास कराने मे!
मुझको तो मातम दिखता है इस उजडे़ हुये घराने मे!
मेरा चिन्तन कहता है,ये घर कम है ,अब जेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
छोड़ रहे है! तीर यहाॅ! सब तरकस और कमानो से
ये स!सद यहाॅ!अदालत है बचते है! सभी बहानो से
अब जन-मत षब्द लुटेरो! के, सौदागर कैसे मूक हुये
लोकपाल की भाशा मे!,हर षब्द यहाॅ!दो-टूक हुये
स्!ाविधान के छप्पर मे! ये लोक-पाल खपरैल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
ये राजनीति का अ!कुस है पूरे भारत मे! फैलेगा
कानून यहाॅ! मजबूर नही,हर घर मे!खुलकर खेलेगा
भ्रश्ट व्यवस्था के माहिर भयभीत हुये है!इस बिल से
अरबो!-खरबो! की ये माया मिलती है कैसे महफिल से
लोक-पाल बतलायेगा क्यो!मॅ!हगा डीजल,तेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ,देखो ये कैसा खेल हुआ
राजनीति कतराती है क्यो!बिल को पास कराने मे!
क्यो!सबकी नजरे!टिकी हुयी सत्ता के राज घराने मे!
चन्दो धन्धो!की लिस्टे!भी,उद्योग-पति दिखलायेगे!
मस्त-कलन्दर खादी के सीधे सडको! पर आये!गे!
बी0जे0पी0 और का!ग्रेस का देखो कैसा मेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ
क्या लोकपाल के बनने से इतना खतरा म!डराता है
जणगणमणअधिनायक भी क्यो! इस बिल से घबराता है
कुछ ना कुछ तो बाते! है!डाकू का बीहड़का!प गया
उद्योगपति अम्बानी भी अब इस खतरे को भा!प गया
कवि‘आग’ का छन्द आज इस बीहड़ से बे-मेल हुआ
ना पास हुआ ना फेल हुआ, देखो ये कैसा खेल हुआ!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो09897399815
सियासत, क्रिकेट,सट्टा
जवाब देंहटाएंक्रिकेट आप पार्टी का!ग्रेस की पिच मे! खेली
विकेट गिरे, हार , षीला दिक्षित ने झेली
तमाषबीन, बी.जे.पी. दर्षक मौन खडे़ थे
बैटि!ग की इच्छा थी, लेकिन नियम कडे़ थे
षीला की गुगली को अरविन्द समझ ना पाया
स्टम्पि!ग से आउट हो कर भी मुस्काया
राजनीति मे! मैच फिक्सि ग! का नया तरीका
सभी सियासी दल ने भी ये सट्टा भी सीखा
पहले बेटे की कसमे! खायी थी,फेल हो गये
फिर ब!गला और सुरक्षा भी सब खेल हो गये
खिलाफ लडे़ चुनाव, उसी से लिया समर्थन
अब चार दिनो! मे! टकराये आपस के बर्तन
बना विभीशण बिन्नी, घर की पोले! खोली
समझ रहे थे सभी आप की आ!ख -मिचौली
हर चैनल पर सभी बहादुर चिल्लाते थे
सब राश्ट्र-गीत अन्ना,गा!धी के ही गाते थे
राहुल, सोनिया अम्पायर थे, समझ ना पाये
आप पार्टी ने सबको ये गुर सिखलाये
सहयोग करो पर जूते भी,खुल करके मारो
यदि हार नजर आ जाये ,तोे फिर ऐसे हारो
का!गे्रस,बी.जे.पी.फिक्सि!ग नजर आ गयी
जनमत को भी नयी टीम की चाल भा गयी
क्या काला है, क्या सफेद है,खुदा ही जाने
इस राजनीति मे! सब आते है!, लूटने खाने
अब तक तो केवल क्रिकेट मे! ही बाते! थी
सत्ता मे! भी छिपी हुयी, ये सब घाते थी
भीड तन्त्र का जनमत भी ये समझ ना पाया
आप पार्टी का झगडा अब समझ मे! आया
अब ये क्रिकेट और राजनीति ,हैे! साढू भाई
अम्पायर तो जमी! सोनिया राहुल की माई
अम्बानी अब ललित मोदी के किरदारो! मे!
सट्टे बाज सियासी छिपे!है! बाजारो! मे!
क्या जनमत के बाजारो! मे! सट्टा खेलोगे
क्या राजनीति के जु!वे मे! भारत को पेलोगे
मामा षकुनि की औलादो!, कुछ तो षर्माओ
कवि ‘आग’के छन्दो! मे! भी,सट्टा लाओ!!
कुत्ते का आदर्ष
जवाब देंहटाएंविधान सभा और लोक सभा में नेता षोर मचाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
कुत्तों जैसे अगर देष मंे नेता वफादार बन जाते
हिजबुल,नक्सल,माओवादी क्यो भारत मंे कैंप लगाते
अनपढ भोंदू प्रजातंत्र मंे राजनीति की औखातें है
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यो!नेता से षर्माते हैं
कुत्ते आपस मंे लडकर भी वफादार पूरे होते हैं
गली मुहल्लो!मे!रह कर भी गरिमा कभी नही खोते हैं
मेरे देष के सेवक नेता छल,बल,कपटी व्यभिचारी है
चरित्र देख लो दोनो का तो,कुत्ता नेता से भारी है
फिर भी कुत्तों से ज्यादा ये नेता जी हमको भाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
उत्तराखण्ड मंे एक भोटिया सारे बकरे चरा रहा है
स्वाभिमान को नेता कुत्ते से नीचे क्यों गिरा रहा है
कुत्तो का और नेताओं का मौसम भी आने वाला है
चैराहो पर दोन ो का ये कैसा करतब मतवाला है
पूरब पष्चिम दोनो के मुख,सिद्यान्त से जुड जाते हैं
इस कलियुग मे!कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
कोलाहल है लोक सभा मंे कुर्सि, माइक तोड रहे हैं
नुक्कड नाटक के अभिनेता आपस मे! सिर फोड रहे हैं
सभापति भी चिल्लाकर के सदन की मर्यादा ढोते हैं
भ्रश्टाचारी भारत-भाग्य-विधाता भारत मंे होते हैं
ढीले-ढाले संविधान को नर-भक्षी किन्नर खाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते है
लाल बहादुर,नेहरू,इन्दिरा,अटलबिहारी को देखा है
सदनो की मर्यादा मंे भी ,संविधान की कुछ रेखा है
अब तो सीधा प्रसारण है सारी दुनिया देख रही है
लोक तंत्र के खलनायक के मुॅंह मेंकीचड फेंक रही है
जेलों के जल्लाद जगत में,जन-मत जनता से पाते है
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षंर्माते हैं
जूते सिर पर फेंक रहे है कुत्तों जैसे भोंक रहे हैं
सभी मीडिया मिर्च मषालों से खबरों को छोंक रहे हैं
कवियोंको भी लिखनें का ये व्यंग,जंग से मिल जाता है
हिन्दुस्तानी नेताओं को झेल रही भारत माता है
देख रहे जो टी0वी0चैनल हक्के-बक्के रह जाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
ग्राम सभा और नगरपालिका,पंचायत इनकी नष्लेंहैं
खरपतवारें गाजर घासे, बंजर धरती की फसलेंहै
जरमन,डाबर,डैसमण्ड और बाक्सर की ये नई ब्रीड है
मुॅंह आगे है या पीछे है मेरूदण्ड के बिना रीड है
फोडे,फुन्षी,खुजली वाले अपना परचम लहराते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
देष की जनता और व्यापारी ,इनसे उॅंचे कलाकार है
लगता है इस लोकतंत्र का संविधान ही व्यभिचार हैं
जनमत की छलनी से हम भी व्यभिचार को छान रहे हैं
इसिलिये तो खूनी कतली को भाई हम मान रहे हैं
राजनीति के उद्योगों मंे चोर जॅंवाई छा जाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
योग पीठ भी सदन सीट का सस्ता आसन सिखा रहा है
स्वाभिमान से संसद जाने तक का रस्ता दिखा रहा है
काला धन हथियार बनाकर गोला सिर पर दाग रहा है
योगी का मतलब है स्थिर,ये बाबा क्यांें भाग रहा है
नई ब्रीड को,व्यवसायी भी राजनीति मंे ले आते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
जनता की बोटी को नेता कई वर्शों से चाब रहा है
ये कुत्ता हम सब की झूठी रोटी मुॅंह मंे दाब रहा है
कुत्ता हर नेता के घर है फिर भी दिल मंे भरा जहर है
उसकी सेवा आठ पहर है नेता की हर लहर कहर है
कुछ गिने गिनाये नेता भी तो भारत माता को भाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
अपमानों मंे जीने वालो,कुत्ते से कुछ षिक्षा पाओ
राजनीेेति मंे कुत्ते जैसे नेता वफादार बनजाओ
मेरी तुमसे ये विनती है आओ मिलकर देष बचाओ
नेता का अब काम नही है राजनीति मंे कुत्ते लाओ
हर मुजरिम को प्रजात!त्र मेॅ जनमत हम ही दिलवाते हैं
इस कलियुग मंे कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
स्वर्ग लोक मे!धर्मराज के साथ-साथ कुत्ता जाता है
भय,मैथुन,आहार,नी!द को कुत्ते से ही दिखलाता है
आदि गुरू ष!कर ने भी तो कुत्ता गुरू बनाया था
चाणक्यों नंे कुत्ते की,हरकत को श्रेश्ठ दिखाया था
कवि आग के छ!द सदा से कुत्ते के गुण गाते हैं
इस कलियुग म!े कुत्ते भी क्यों नेता से षर्माते हैं
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो0 9897399815
सियासत
जवाब देंहटाएंमुद्दतों से आदमी को अब हंसी आती नहीं
वेदना में प्यार की बातें कभी भाती नहीं
क्या दिखावे की हंसी से आदमी बच पायेगा
रुग्णता का आदमी अपनी नषल को खायेगा
मन प्रफुल्लित हो हृदय ह!सकर ह!सी को खोलता
यह भावना का भाव है जो मौन होकर बोलता
आदमी की हैसियत को बिन तराजू तोलता
प्रसन्न ता का आदमी निष्चल धरा मे!डोलता
ह!सना ह!साना खिल खिलाकर ये दिमागी खेल हेै
आदमी के सामने भगवान भी तो फेल है
देखता हूॅं धर्म और मजहब यहंा बेमेल है
कैसे जलाउं द्वीप मैं ना जोत है ना तेल है
सरकटि लाषें षियासत की नुमाइस हो गयी
राजनीति का अखाडा आजमाइस हो गयी
कौन लूटेगा वतन को आज ख्वाइस हो गयी
खादी लिवाषो! में डकैती की गुंजाइस हो गयी
देेख लो मेर े देष की षंषद अखाडा हो गयी
आज तो मेरे वोट की किमत कबाडा हो गयी
द्व!द सा!डो का सदन मे!खादियों की आड में
ये सा!ड तो लडते रहेगे! देष जाये भाड में
हर वोट का प्रतिबि!ब स!सद मे झलकता जारहा है
वोट से मेरेे वतन को राजनेता खा रहा है
ना समझ का वोट पढता है गधो की पीठ पर
षोभता है सांड सडकों का सदन की सीट पर
मर गयी जनता वतन की इन षवों के साये में
फिर भी मुर्दा बोलता है हर जगह चैराहे में
मरघटो! से पाटते हैं हर षहर हर गाांव को
हम पालते है! षौक से नासूर के इस घाव को
हम अगर चाहे तो ये औकात में आ जायेंगे
इस तरह से नोच कर फिर ना वतन को खायेंगे
मत हमारे हाथ में हिम्मत कहाॅं से पायेंगे
अंकुष लगाना आ गया ये देष के बनजायेंगे !
सोच कर कुछ भी लिखा ,उपहास ही होता गया
आदर्षता के भाव मे,मै! षब्द से खोता गया
मै! सधा सा था गधा,बस, बोझ ये ढोता रहा
मै! आग हू!,बस,राख को ही देख कर रोता रहा ।।
बजट
जवाब देंहटाएंआज सियासी चालो से ये प्रजातन्त्र क्यो! घुटता है
गजट-बजट के चक्कर मे!क्यो!,अर्थ,व्यर्थ मे!लुटता है
व्यय की परिपाठी मे! कैसे,ये राश्ट्र दिवाला होता है
क्यो! वित्त व्यवस्था भारत की हर-दम गरीब ही ढोता हेै
ऋण मिलता है अनचाहो! को जो सब्सीटी के माहिर है!
फर्जी नुकसान दिखाते है! धन डूब रहा जग जाहिर है
ऋण माफ सियासी करता है ,कुछ खाना पीना होता हेै
अनर्थ व्यवस्था भारत मे! ये अर्थ-षास्त्र ही बोता है
अरब - खरब के रखवाले ,ऋण से ही काम चलाते है!
ये हेरा - फेरी चतुरायी सब लेखाकार सिखाते है!
सी0 ए0 का सीधा मतलब है माहिर हो चोर चकारी मे!
ये सभी सरगना बैठे है! ,भारत की चैकीदारी मे!
सुख, सुविधाये! जनता की ये मॅ!हगायी फैलाती है
अब तो विकास की परिभाशा भारत माता को खाती है
फर्जी निर्माण नियन्ता मे!क्यो! आधा बजट समाता हेै
क्या विकास है भारत का जो भारत स्वय! बताता है
ऋण मिलता है परदेषो! से फिर ब!दर बाॅ!टे होती है!
ये तन्त्र व्यवस्था भारत की,इज्जत षदियो! से खोती हेै
कुछ गुणा-भाग के माहिर है! , हर बार बजट बनवाते है
बस,अर्जी-फर्जी बिल ब्यौरे,स!सद मे! पास कराते है!
कर-मुक्त धर्म के व्यवसायी क्यो! कर की चोरी करते है!
दीन, हीन मठ ,मन्दिर के ,माया से बोरी भरते है!
कालेधन की करतूते!,क्यो! पलती धर्म ध्वजाओ! से
बजट हमेषा फेल हुआ आडम्बर छिपे गुनाहो! से
हर हिसाब की कलम इलम हो लेखाकार विभागो! मे!
बस,भारत पूरा एक बने,ना खण्ड-खण्ड हो भागो! मे!
घर-घर मे! कालेधन वाला क्यो!मॅ!हगायी चिल्लाता है
व्यभिचार का गाना भी हर भ्रश्टाचारी गाता है
ये राजनीति मजबूरी हैेे, बोटो! पर से!ध लगाने की
हर विपक्ष की भाश है,बस ,जनमत को गर्माने की
सत्यनिश्ठ हो भारत का व्यवसायी अपने कामो मे!
खुषहाल बजट बन जायेगा भारत के षहरो! ,ग्रामो मे! ।।
Rajendra Bahuguna
जवाब देंहटाएंYesterday
आप का दर्षन
धन्यवाद ,लावारिस जनता,तुमने मुझको पाल लिया
मैने सबके सिर पर चढ कर, कैसा ये कमाल किया
विधान सभा को छोडा मे!ने,लोक-सभा स!भाल लिया
अब टिकटो! की नीलामी से दल को माला माल किया
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Photo: आप का दर्षन
धन्यवाद ,लावारिस जनता,तुमने मुझको पाल लिया
मैने सबके सिर पर चढ कर, कैसा ये कमाल किया
विधान सभा को छोडा मे!ने,लोक-सभा स!भाल लिया
अब टिकटो! की नीलामी से दल को माला माल किया
इनकम-टेक्स मे! नोट देख कर मै!पागल भी बौराया
इसिलिय े तो लोकपाल के सर्कस मे!अन्ना लाया
आई.पी.एस,जज, मुजरिम सारे पागल मेरे साथ मे आये
अधिवक्ता, उद्योगपति और कविराज ने साथ निभाये
मजहब से जो घुटी हुयी थी, बेगम ने पर्चम लहराया
पीछे-पीछे मि!या भी आये,आप खाप का झाप बनाया
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई, सब झाडू के पीडे भागे
ये भारत का भीड़ तन्त्र है, सारे भाडू बने अभागे
उल्टी-सीधी करो घोशणा,टुच्चो! के मन भा जाती है
झूट,कपट,छल की भाशा ही,प्रजातन्त्र को समझाती है
मुफ्त मे!पानी,मुफ्त मे!बिजली,मेरे बाप का क्या जाता है
ये राजनीति का मूलमन्त्र हैे,स!विधान ही समझाता है
समाज वाद, बे-रोजगार,और आरक्षण, समलैगिकता
नारी -षोशण,वृद्वा-पोशण ,विधवा -चोशण, नैतिकता
क!ही बलात्कार,क!ही व्यभिचार,क!ही भ्रूण हन्त की बर्बता
ना जाने कितने मुद्दे है!, उपयोग करे वो अभिकर्ता
प्रोडक्ट चाहे कोइ भी हो, बस, लेबल नया सुहाता है
सौदागर , अच्छे षब्दो! का,बस वो ही लुफ्त उठाता हेै
का!ग्रेस और कम्युनिश्ट ये माल पुराना सडा गला
स.पा.,बा.स.पा,बी.जे.पी.,ये भी किस्तो!मे!ही चला
और हजारो!दल-बल है!,जो ष्वा!स नलीे पर जीन्दे है!
ये भी उडना भूल गये है! अब, सब परहीन परिन्दे है!
नाथू राम और गा!धी पर,अब कब तक दा!व लगाओ!गे
सूभाश,भगत और लाल बहादुर से कितने दिन खाओ!गे
कुछ नया दिखाओ जनमत को, जो सबको पागल बना सके
अब झाडू, भाडू और जूगाडू, इन भेडो! को भुना सके
बस,बडो!-बडो!पर चोट करो,जो पागल जन-मत हर्शाये
कवि ‘आग’ के ये अनुभव,षब्दो! ने छन्दो मे! गाये!!
नयी षराब
जवाब देंहटाएंराजनीति मे बह्मचारी गठजोड ़सूरू है
राहुल, मोदी, रामदेव सब बडे़ गुरू है!
ब्रह्मचारिणी ममता, ललिता माया भी है!
और ना जाने कितनी कामुक काया भी है!
कहते तो है!,ब्रह्मचारी है!,पर पता नही है!
ये राजनीति हे!ै,इसमे! कुछ भी खता नही ह!ै
राजनीति मे! ब्रह्मचारी ?मुझको खलता है
इस धन्धे! मे! तो भैया,सब कुछ चलता है!
नारी,परूश साथ मे! हो!,तो घी, आग है
आ!ख मिचोली होती है, क!हा बचा राग है!
आर.एस.एस.भी ब्रह्मचर्य का एक धडा है
बिना वाषना के, क्या वो चुपचाप खडा है
अन्ना, ममता कलकत्ता मे! एक हो गये
दोनो के सुर मिल े सियासी नेक हो गये
ब्रह्मचर्य गठजोड़ उभर कर अब आयेगा
प्रोडक्ट नया है, ये जनमत को भी भायेगा
ब्रह्मचर्य, सन्यास सडक पर भटक रहा है
तपा लोह,अब ठन्डा हो कर चटक रहा है
ज!ग लगी धातू है,कुछ उपयोग मे! लाओ
गृहस्थ फेल है ,ब्रह्मचर्य का लुफ्त उठाओ
षराब वही है,बस बोतल नयी आजाती है!
सब अमली है!,सबको मदिरा ही भाती है
गोविन्दाचार्य,अटल,उमा भी ब्रह्मचारी थे
अपने फन के माहिर थे, इनसे भारी थे
ब्रह्मा,विश्णु,महेष, य!ही की पैदाइस है!
राजनीति मे! घिसी पिटीे ये भी ख्वाहिस है
ईसा, मूसा, अल्ला भी,उपयोग तन्त्र है
चाण्क्य,द्रोण,दुर्वाशा का ये मूल मन्त्र है
ब्रह्मचार्य हो गृहस्थ,कोइ भी चुनकर आये
एक लक्ष्य है, मेरे देष को काई बचाये
कफन ओढ़ फनकार, य!हा पर आ जाते हे!ै
कवि‘आग’तो बस अपनी कविता गाते!है!!
राजनीति में भगवान
जवाब देंहटाएंदुनिया में कोई राश्ट्र सुरक्षित कहाॅ!बचा हेै नेता से
मुझे बताओ कहाॅ - कहाॅ! इतिहास रचा है नेता से
आज वतन की चैकीदारी सभी सियासी हाथो!में
जनता पागल क्यों बनती है राजनीति के जज्बातो!में
राजनीति का सीधा मतलब दुनिया को टुकडो! मे! बाॅंटो
पक्षो!और विपक्षो!में भी लक्ष्य,यक्ष है मिलकर काटो
प्रजात!त्र भी प्रष्न चिह्न है जिसका हल बष कोलाहल है
इसके अन्दर वो जीता है जिसमें घोर कपट और छल है
दुनिया भर के जन-मानस की भाव - भ!गिमा बहलाते हैं
सात अरब की जनस! ख्या को बस नेता ही सहलाते हैं
कब से नेता इस दुनिया के टुकडे़ - टुकडे़ काट रहा है
क्षेत्र,जाति के घर्म,मजहब मे!मानवता को बाॅंट रहा है
आदम की औलादें देखो , आत!की विस्फोटों में
मनु, संतति लगी पढी है देख सियासी बोटों में
ईसा, मूसा की संताने लगी पढी विस्तारों में
अल्लाह ,ईष्वर फ!सा पढा है कैसे प!च विकारो में
राजनीति ने अवतारों में भी अपना हल खोज लिया
कैसे रगडे़! उस परमेष्वर को धरती में सोच लिया
कुछ भी हो अवतार यहाॅं पर उन्मत है बष है आने को
वो भी अब मोहताज खडा ,दो- वक्त की रोटी खाने को
राम, कृश्ण की राजनीति का दर्षन समझ नही पाया
सोच रहा था इन भगवो! को,भगवानो ने भरमााया
राजनीति के छल कपटी अवतार मर्म का जान गये
ये बीज सनातन है भैया अब तो ये हम भी मान गये
ईषा, मूसा,रामकृश्ण अभिनय के क ुषल खिलाडी थे
हम पूजा-पाठी पग चिह्नो! पर चलत चले अनाडी थे
हम मान रहे थे उसको ही दो वक्त की रोटी देता है
मान गये जगपाल तूझे ,तू छिपा हुआ अभिनेता है
इस कार्टून की रचना से,तू क्या दिखलाना चाहता हेै
इन राजनीति के कीडो! को तू क्सा सिखलाना चाहता हैे
लगता है भारत मे! तू भी,पत्थर पिघलाना चाहता हेै
मै! भी समझ नही पाया, तू क्या जतलाना चाहता हेै
ये तेरी भी मजबूरी हैे कीडो! को खेल खिलाने की
इनको भी आदत पडी हुयी, राम- राम चिल्लाने की
इस रातनीति की चाहत है ,घर कब्रिस्तान बनाने की
कवि ‘आग’ की हिम्मत हेै,मजहब मे! आग लगाने की ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो09897399815
अभिषिप्त अवतरण
जवाब देंहटाएंक्यों होते हो पैदा भगवन भूखे नंगे देषों में
करते हैं दिन रात लफंगे देखो दंगे देषो में
बन जाती हैं परंपरायें कुछ भिखमंगे देषों में
बूरे भले भी तेरे नाम से होते चंगे देषों में
हम षदियों से तेरे नाम की ही रायल्टी खाते हैं
ग्रन्थ,काव्य में तेरी रचना के ही गाने गाते हैं
फिर बनते, ना जाने कितने मजहब तेरे नामों से
छिड. जाती है जंग यंहा पर, पूजा के पैगामो से
कौमे देखो हिंदू,मुष्लिम,सिक्ख,ईसाइ हो जाती हैं
मंडराती हैं, मांैते पूजा घर में मानव को खाती हैं
तेरा नाम सहारा लेकर जनता नेता बन जाती है
रुढीवादी मुर्दा लाषें हर मजहब को क्यों भाती हैं?
दुनिया के ,हर धरम,मजहब में तेरी ओर इषारा है
भारत में तो हर कब्जे के पीछे तू ही सहारा है
हर लावारिस मन्दिर , मस्जिद तेरा गाना गाता है
आज देष में जन-मत से,तू ही ,सरकार ,बनाता है
भारत स्वाभिमान का नाटक अब सडकों में आयेगा
बाबा जी का योग - पीठ ,दिल्ली दरबार दिखायेगा
भरे पडे हैं रोग जॅंहा पर योग वहाॅं मर जाता हैं
परंपरा की , बची धरोहर को भगवा ही खाता है
तू तो इस ब्रह्माण्ड क्षितिज का लोकपाल चलवाता है
लोक -पाल तेरी टक्कर का,अन्ना नया दिखता है
देख तमन्ना अन्ना टीमें बन जाती हैं देष में
व्यभिचार को देख रहा हॅूं भगवन तेरे भेश में
आड में तेरी धर्म जगत के भक्तों ने परचम लहराया
राजनीति में अल्लाह,ईष्वर कैसे कुरूक्षेत्र में आया
हो जाती है षुरू फजीहत ,इन पषुओं की डारों में
मुझे माफ करना,मैं तो बष!पढता हूॅं ये अखबारों में
ब्रह्माण्ड का निर्णायक भी न्यायालय मंे जाता है
पेषकार भी अल्लाह , ईष्वर की आवाज लगाता है
कैसे हिन्दु,मुस्लिम की ,ये पैरोकारी बन जाती है
बच्चों को बच्चा कहने में भारत- माॅं भी षर्माती है
हे! अल्लाह,ईष्वर ये विनती है बख्षो मेरे देष को
कैसे देखूं लडे सड.क पर अल्लाह और अखिलेश को
मानव चरता धर्म भूमि में ,क्या पषुओं का बाड.ा है
इन सब रगडों झगडों का बष!हिंदुस्तानअखाडा है ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा ;(आग )
बिहार बिक रहा है
जवाब देंहटाएंहे बिहार के पासवान, हे राजनीति के नाषवान
हे लावारिस राश्ट्र-गान, हे अवसर-वादी पहलवान
हे सत्तादल के माल छान,हे लक्ष्य-भेद तरकस कमान
हे कटे वस्त्र के फटे थान,हे भीमराव के गुप्त-दान
हे राजनीति,दुर्गन्ध द्वन्द,हे अगडे़,पिछडे़मतिमन्द
हे धरती मे! दबे अन्ध,अपषिश्ट धरा के सडे़कन्द
हे तुकबन्दी के अन्ध बन्द,हे छपरा के छगन छन्द
उलझी सत्ता मे!पडे़फन्द,हे नन्द व!ष के घनानन्द
हे राजनीति के बैसाखी, हे र!ग-म!च नृतक राखी
तू फटे दुध की हैे माखी,हे सत्ता के चम-चम चाखी
हे अगडे़पिछडो! की झा!की,nहे खादी मे!व्याधी खाकी
हे हरिजन, दुर्जन के पाखी, हे सुरा-सुन्दरी के साखी
हे लालू नीतीष के सिर दर्दी,हे राहुल, मोदी हमदर्दी
हे आसमान, गुण्डागर्दी, अब राम लला की है वर्दी
तूने सत्ता मे! हद करदी,अब राजनीति पूरी चरदी
तू हरदी मे! भी है जरदी, नयी-नयी नसल पैदा करदी
तू जोकर भी कि!ग मेकर है, लालू का केयर टेकर है
आर.आर.एस की नेकर है,क!ही ब्रोकर है,क!ही ब्रेकर है
ये राजनीति ही गन्दी है, तू इसमे! पडा फुफन्दी है
कवि ‘आग ’ की भाशा मे!,बस, तू आवारा नन्दी हेै!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
जवाब देंहटाएंसंसद की लाचारी
पुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुनिया का जनपद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंे भारत की संसद हॅूं
मैने मुगलों को देखा था मान नही अपना खोया
अंग्रेजों के अंकुष के नीचे भी दबा नही रोया
आजाद हुआ निर्पेक्ष बना मंे काॅप रहा वो गणपद हूॅं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैं भारत का संसद हॅूं
गाॅंधी, नेहरू,लाल बहादुर की मर्यादा को देखा
हर विरोध की सीमाओं मंे खींची प्यार की थी रेखा
सत्ता और विरोधो में भी कीचढ नही उछलता था
तर्को और कूतर्कों से केवल भारत ही पलता था
उन्ही दिनो की यादों में षिखरों से गिरता हिमनद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
आजादी के साथ-साथ अब अपराधी भी आतें है
देख रहा हॅूं भ्रश्टाचारी ,कैसे षोर मचाते हैं
गुत्थम गुत्था में ये मेरे मेरूदण्ड को तोड रहे है
लोकतन्त्र की लोक-लाज को अय्यासी पर मोड रहे हैं
लाचारी मंे देख रहा हॅूं, नेता से छोटा कद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
पक्षों और विपक्षों का सम्मान सदा मंे पाता था
गौरवषाली भारत का इतिहास जगत मंे गाता था
भ्रश्टाचारी ,वैभवषाली की कुण्ठा से रोता हॅूं
लोक सभा हो राज्य सभा हो आज प्रतिश्ठा खोता हॅूं
सत्य,अहिंसा का प्रतिपालक आज लुटेरों का मद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं, मैे भारत का संसद हॅूं
गुरूग्रन्थ गीता ,रामायण और कूरान बुनियादें थी
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग की भी सारी यादें थी
सम्प्रदाय निर्पेक्ष राश्ट्र हो ऐसा नियम बनाया था
चक्रव्रती सम्राटों ने आदर्ष यहीं से पाया था
मैं भारत का जटाजूट हॅूं कल्प वृक्ष हॅूं बरगद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
भगत सिंह षेखर,सूभाश की आषाओं मंे खडा हुआ
भारत भंजन करने वालों के चरणों मंे पडा हुआ
राजनीति के कीचढ मे!उस प!कज को खोज रहा हॅू
राम राज्य मेंभारत माता जैसी सीता सोच रहा हॅूं
धर्म कर्म की इस धरती मंे पुनः धर्म का धम्पद हूॅ
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंै भारत का संसद हॅूं
संविधान की धाराओंको सबके उपर फे!क रहा हॅूं
संसद की कुर्सी पर बैठे अपराधी मैं देख रहा हॅूं
क्यों होती है आज मंत्रणा,डाकू,चोर चकारों में
स!विधान की देख नुमाइस,आज खुले बाजारोंमें
चीर-हरण होता है मेरा सिद्या!त की सरहद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
फिर से कोई क्या मुझको सम्मान दिलाने आयेगा
फिर से कोई आर्यखण्ड की लाज बचाने आयेगा
मै!निराष हू!देख-देख कर डेढ़अरब की भीडो!को
सभी परिन्दे मौेन खडे़ है! देख के अपने नीडो!को
मै कवि‘आग’हू!,रावण के दरबार खडा हू!अ!गद हू!
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)मो0 9897399815
जवाब देंहटाएंरेल
ये हिन्दुस्तान की रेले!ज!हा का बोझ ढोती है!
गरीबो! और अमीरो! की ये पुस्तैनी बपौती है
कोई कीमत चुकाता है कोई है मुफ्त का आदि
यहा! ए0सी0 मे!बापू की चमकती देख लो खादी
यहाॅ!हिन्दू और मुस्लिम भी सफर मे! साथ चलते है!
यहाॅ! पर सिक्ख,इसाई के,मिलकर मन मचलते है!
यहाॅ! पर धर्म और मजहब का दरिया साथ बहता है
यहाॅ!निर्पेक्ष कौमो! का हमेषा साथ रहता है!
यहा! फिरका परस्ती भी अदब से पेष आते है!
यहाॅ! तहजीब हिन्दुस्तान की ज!क्सन बताते है!
हरी और लाल झण्डी के करारो! के इषारे है!
यहाॅ! पर मौन अनुषाषन ,ये कैसे नजारे! है!
हरकत भी नही होती है जब पटरी बदलती है
यहा! मजहब मचलते है! तो पूरी कौम जलती है
हूकूमत भी तो रेलो! के रवेलो! से ही पलती है
य!हा फिरकापरस्ती भी सियासत से निकलती है
जीवन के सफर मे! भी मिलकर रेल बन जाओ
इसकी मौन भाशा का अमल जीवन मे! दिखलाओ
हर मजहब के डिब्बे को ,ई!जन एक ढोता है
सिमट कर आज भी डबरो मे!,हिन्दुस्तान रोता है
रेलो! के ही खेलो! से ये हिन्दुस्तान पलता है
सियासत की हूकूमत से क्यो! अरमान जलता है
सभी डिब्बो! मे! बैठे है!अमन और चैन लाने को
य!हा ज!जीर खि!चती है वतन अपना जलाने को
हर मजहब सिखाता है अमन और प्रेम को लाना
यहा! इ!जन का हर डिब्बा है पटरी का ही दीवाना
काफिर हो! ,मुसाफिर हो! सफर अ!जाम देता है
ना झण्डा है ,ना सीटी है यहाॅ! फरमान नेता है
सब डिब्बे एक जैसे है!, जो सारा भार ढोते है!
सियासत मे! सभी दल आज क्यो! औकात खोते है!
हमारी सबकी म!जिल एक है इ!जन बताता है
मुसाफिर को सुरक्षित ये, अपना घर दिखाता हेै
सफर का एक ही चिन्तन ,ये जीवन खेल हो जाये
हिन्दुस्तान का जज्बा जगत की रेल हो जाये
बने पटरी मजहब और धर्म , का ये मेल हो जाये
चालक आग जैसा हो , दरिन्दा फेल हो जाये।।
राजेन्द्रप्रसाद बहुगुणा(आग)
मो0 9897399815
सौहार्द
जवाब देंहटाएंजज्बात में भी खुद फना होता हुआ क्यों दिख रहा है
सम्प्रदायी भाग्य भारतवर्श का,क्यों लिख रहा है
हर कौम की भाशा में षमषीरें चमकती देखता हूॅं
ये कारवॅंा तो आज भी बाजार में खुद बिक रहा है
छाछ को भी फूॅंक की पीने की आदत हो गयी
आज हिन्दुस्तान में कैसी इबादत हो गयी
बन्दगी में गन्दगी किस कदर फैली यहाॅं
अब तो पूजा और नमाजी भी षहादत हो गयी
मजहबों के ये मदरसे जालिमो के हो गये
हम तो इस फिरका परस्ती , तालिमो के हो गये
पूजा, नमाजी , खाकसारी,बुतपरस्ती, ये बला
इस जंग में भगवान भी मवालियों हो गये
कौम हिन्दुस्तान की दो-गज जमी को लड रही है
देख लो फिरका परस्ती बे- वजह क्यों अड रही है
पागलों की पैरवी ने ये सबक सिखला दिया
पैगंबरों की नष्ल कब्रिस्तान में क्यों सढ रही है
ये ! षियासी लोग भी केवल बहाना ढूॅंढते हैं
कोहराम की खूनी नदी में,बष! नहाना ढूॅंढते हैं
रोंदते हैं किस कदर , इस मजहबी अंदाज से
हर कफन में भी दफन का षामियाना ढूॅंढते हैं
वो कौन है जो फर्क करता है यहाॅं पर कौम का
नुमाइन्दगी का तर्क करता है यहाॅं पर कौम का
बष ! जालिमो पर गौर करने की कला को ढूॅंढिये
मिल जायेगा जो नर्क करता है यहाॅं पर कौम का
हर पत्थरों पर है लिखी,फरियाद मेरे देष की
इन पत्थरों पर है टिकी ,बुनियाद मेरे देष की
रंजिषों में भी अमन और प्यार की उम्मीद से
बिखरी पडी है हर जगह औलाद मेरे देष की
इतिहास में तो हर दरिन्दों का गवाह मौजूद है
धर्म के इस आसियाने का तवाह मौजूद है
हम तो गुलदस्ता बनाते हैं यहाॅं हर कौम का
सिलसिला हर नष्ल का वो आज भी मौजूद है
मन्दिरों और मस्जिदों को अब ढहाना दो
खूनी नदी में इस तरह से अब नहाना छोड दो
बष!परिन्दों से खुले आकाष मे ं उडते रहो
कवि आग कहता है अदब से,ये बहाना छोड दो!!
नारायण
जवाब देंहटाएंबिन परमिट की कितनी गाडी चला रहे थे
इन्द्र-देव का सिहा!सन क्यो!हिला रहे थे
उर्वषी,मेनका,रम्भा भी तो आॅ!क रही थी
लालाहित हो कर उपर से झाॅ!क रही थी
हे विकास के परिणेता तू चमत्कार है
उत्तराखण्ड की धरती का तू अवतार है
विरह, वेदना नारी की, तूने पहचानी
तू प्रथम पुरूश है वीर्यवान पर्वत मैदानी
एक उज्वला तुझको अपना मान रही है
केवल रोहित से तेरी पहचान रही है
ना जाने कितनी नारी तुझसे सम्मोहित है!
इस पुरातत्व के बरगद पर पक्षी मोहित है
गलती से कोई बीज छिटक कर जमजाता है
तू किसान हेै तेरा इससे क्या नाता है
धन्य-धन्य उस ध रती को जिसने पहचाना
मुष्किल होता है बूढे को बाप बनाना
तू कामदेव का रूप लिये पर्वत मे! आया
जाने कितनी अबलाओ! की तू है छाया
हे गुप्तदान के माहिर तुझको जगवन्दन है
तू देवदार के बीच हिमालय मे! चन्दन है
तेरे जो विपरीत खडे़ है! लाचारी है
इतिहास पुरूश तू वर्तमान मे! भी भारी है
काम-वाषना भी तुझसेे अब षर्मिन्दा है
नारायण, बष ,नारी के कारण जिन्दा है
जाने कितने साडू भाई चरित्र- वान है!
जा!च कराओ लावारिस का मरूधान है
काम - वाषना राजनीति का पायदान है
सत्ता और सियासत का ये अनुदान है
तुम भरत व!ष के षान्तनु हो भीश्मतात हो
पुत्र पिता कहता है फिर , क्यो!अनाथ हो
गलती से ऊसर धरती मे! अ!कुर फूटा
नारायण ही कर सकता है काम अनूठा
महाभारत आदर्ष बना है लावारिस था
मुरलीधर प्रमाण-पत्र का भी वारिस था
नारायण की ग!गा तो निष्चल बहती है
ये राजनीति है, घटनाये! होती रहती है!
आखिर तूने बीज,वृक्ष,फल मान लिया है
कामवाषना का प्रतिफल भी जान लिया हैे
तू धन्य- भाग हैे मूल सूद को लेकर आया
अभी ना जाने क!हा-क!हा बिखरी हैे माया
पा!च साल तक चोराहे मे! भत पिटवायी
चलो, बुढापे मे,एक लाठी हाथ तो आयी
हे वीर्यवान,हे इन्द्र-देव तू चमत्कार हेै
कवि ‘आग’का कामदेव को नमस्कार है!!
अभीशिप्त-वर्ग
जवाब देंहटाएंमै! गरीब हू!,मध्य वर्ग हू!, मेरी बेटी भी जवान है
मै! समाज के तरकस की ,झुकी हुयी सी सर, कमान हू!
परम्परा की प्रत्य!चा को क!पित कर से खी!च रहा हू!
निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के बीच फ!सा हॅ!भ!ी!च रहा हू!
कन्या भ्रूण हनन की बाते! सुनने मे! अच्छी लगती हेै!
मध्यवर्ग की कन्याए! , तालाबो! की मच्छी लगती है
मछुआरो! के इस समाज मे!, का!टा,आटा फ!सा हुआ है
घर कुलीन हो,परम्परा मे!,दीन बाप तो ध!सा हुआ है
मेरी बेटी हाट हो गयी, आज नुमाइस को ढोती हेै
स!स्कारो! की बुनियादो!पर,क्यो! घुट घुट करके रोती है
लडके वाले नाप -तोल कर मण्डी का सौदा करते है!
लावारिस भी मध्य-वर्ग की बुनियादे! ,खोदा करते है!
जन्म -कुण्डली, फोटो लेकर,लडको! के घर झा!क रहे है!
हम लडकी के बाप, श्राप है!,धूल सडक की फा!क रहे है!
इन्टरव्यू के प्रष्न - पत्र भी लाज षरम से भरे पडे़है
हम अनाथ है!, बेषर्मो से , लावारिस चुपचाप खडे़है!
अब तो मेरी बेटी भी बस,पषुओ! सी ही मौन खडी है
नक्षत्र, ग्रह, पल की पैदाइस,ना जाने वो कौन घडी है
ब!जर भूमि, सहमी बछिया,झुके नयन की आस निरासा
मुख मे! भी अब षब्द नही ,केवल मन हेै, तन की भाशा
ना परिचय हेै, ना पैसा है, सूनी राहे! अन्धकार मे!
ना ह!सता हू!,ना रोता हॅ!ू,फ!सा पडा हू!इसी विकार मे!
सामान नही है, मेरी बेटी ,किस हिम्मत से टालू! मे!ै
जीवन भर मै!ने दुख पाले, और क!हा तक पालू! मे!ै
भू्रण हनन और मातृषक्ति पर,प्रष्नचिह्म मै! दाग रहा हॅ!ू
मै बाप हू!,इस बेटी का ,हा!प-हा!प कर भाग रहा हू!
टी.वी.चैनल,अखवारो! मे! सुन करके राहत मिलती है
कन्याभ्रूण गर्भ मे! हो तो कब-किस को चाहत मिलती हेै
ये समाज की विडम्बना है,क्या इसका कुछ हल आयेगा
गर्भपात,कण्डोम दिखाकर, ये विकार क्या रूक पायेगा
अबला जीवन,भ्रूण गर्भ सब,बलात्कार की परिभाशा है
पुरूशो! को लावण्य रूप, सौन्दर्य जगत से ही आषा है
पुरूश प्रधान के इस समाज मे! मध्यवर्ग अभिशाप बना है
सूरज की किरणे! रूकती है!,कोहरा भी है, मेघ घना है
परम्परा और स!स्कारो! की कन्याओ! का यही हाल है
कवि‘आग’की लपटो! से ,हर चिन्गारी को ये मलाल है!!
होली की बोली
जवाब देंहटाएंहोली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे
भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे
इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है
हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है
हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै
र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै
इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!
त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!
क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी
जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी
अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है
मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है
ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है
सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है
इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका
ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका
सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै
निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है
अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है
प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै
ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है
इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है
कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो09897399815
होली की बोली
जवाब देंहटाएंहोली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे
भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे
इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है
हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है
हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै
र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै
इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!
त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!
क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी
जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी
अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है
मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है
ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है
सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है
इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका
ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका
सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै
निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है
अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है
प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै
ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है
इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है
कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो09897399815
होली की बोली
जवाब देंहटाएंहोली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे
भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे
इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है
हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है
हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै
र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै
इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!
त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!
क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी
जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी
अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है
मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है
ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है
सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है
इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका
ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका
सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै
निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है
अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है
प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै
ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है
इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है
कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो09897399815
होली की बोली
जवाब देंहटाएंहोली खेलो, कूदो नाचो ,खुल कर गाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गिरधारी को कितना अब बदनाम करोगे
भा!ग,मदिरा, कब तक गोकुल धाम धरोगे
इस परम्परा मे!गन्दी हरकत तो मत लाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
गोकुल, मथुरा, बृन्दाबन,लठ मार फाग है
हर मजहब मे! प्रेम, प्यार है,क!हा राग है
हिन्दू,मुस्लिम कोइ खेले कुछ भेद नही हेै
र!ग,उम!ग हेै,ज!ग,भ!ग,कोइ खेद नही हेै
इस र!ग बिर!गी होली से, कुछ तो षर्माओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
होली मे! हम कीचड़ मु!ह मे! डाल रहे है!
त्यौहारो! मे! धृणा क्लेश को पाल रहे है!
क्या वैमनस्यता इस होली मे! गले मिलेगी
जाति,मजहब की बुनियादे! हर रोज खिलेगी
अब होली से अल्लाह, ईष्वर को,ना खाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
निर्पेक्ष धरम की भाशा केवल र!ग आज है
मै! देख रहा हू!,उसमे!ही बस,बची लाज है
ये कौम,कबीले, हर मजहब मे! उपयोगी है
सबके अन्दर रमा हुआ, योगी, भोगी है
इन र!गो से मानवता की लाज बचाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
ये भारत माता बागवानी हैे, पुश्प वाटिका
ना जाने कितनी कौमो! की हैे नृत्यनाटिका
सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलियुग परम्परा हेै
निर्मल ग!गा बहती निष्चल धार त्वरा है
अब तो जल की धारा देखो होष मे!आओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ
राजनीति ने भारत का सब कुछ खोया है
प्रहलाद बचा है,बचकर भी घर-घर रोया हेै
ब्राह्ममण,क्षत्रिय,वैष्य,षुद्र का भेद क!हा है
इस बैतरणी मे! भेद-भाव का छेद क!हा है
कवि‘आग’ को रागफाग कुछ तो समझाओ
इस भारत को बरसाना मत याद दिलाओ !!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो09897399815
अचेतन चिन्तन
जवाब देंहटाएंखण्डहरो! से अब सडानो! की महक आने लगी
बुतपरस्ती कौम कब्रिस्तान को भाने लगी
मुर्दा जवानी,गीत मातम के मधुर गाने लगी
ठू!ठ मे!नई को!पले,आयी!,तो घबराने लगी
अब कबर के षव सियासत के सबब बनने लगे
ये भूत भी,मुर्दा मषानो! के गजब बनने लगे
मजहबी,मरघट के जमघट मे! अजब लगने लगे
सिरमोर से ये चोर,हमको मोर अब लगने लगे
भूत ही,जिन्न को जिगर मे!जानकर के पालते है!
ताबूत म!ेभी नाप कर हर लाष को हम डालते है!
हम भविश्यत,लाष मे!इतिहास मे!ख!गालते है!
मौत के सा!चो!मे!,कौमो को हमेषा ढालते हे!ै
हम पिचासो! के लिबासो!, को लपेटे घूमते है!
मुर्दा कहानी की जवानी, को समेटे घूमते है!
कब्र मे!भी सब्र का वो सामियाना ढू!ढते है!
अस्थियो! मे!,आस्था का आसियाना ढू!ढते है!
हर समाधी,व्याधियो!के कीट को क्यो!पालती हेै
ये लोकसाही मरघटो!के,ढीठ को क्यो!पालती है
सल्तनत खच्चर गधो!की पीठ को क्यो!पालती हेै
मुर्दे पूराने,राजनीति ,ढीट को क्यो!पालती है
कीमते!,क्यो! लोकसाही के कबाडी खो रहे है!
मल्कियत क्यो!नौकरो!के हाथ अपनी धो रहे हे!
सम्पन्न है!सारे भिखारी,दीन हो कर रो रहे है!
कवि‘आग’भी इस लाष को बस छन्द ही ढो रहे है!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो098973998
अचेतन चिन्तन
जवाब देंहटाएंखण्डहरो! से अब सडानो! की महक आने लगी
बुतपरस्ती कौम कब्रिस्तान को भाने लगी
मुर्दा जवानी,गीत मातम के मधुर गाने लगी
ठू!ठ मे!नई को!पले,आयी!,तो घबराने लगी
अब कबर के षव सियासत के सबब बनने लगे
ये भूत भी,मुर्दा मषानो! के गजब बनने लगे
मजहबी,मरघट के जमघट मे! अजब लगने लगे
सिरमोर से ये चोर,हमको मोर अब लगने लगे
भूत ही,जिन्न को जिगर मे!जानकर के पालते है!
ताबूत म!ेभी नाप कर हर लाष को हम डालते है!
हम भविश्यत,लाष मे!इतिहास मे!ख!गालते है!
मौत के सा!चो!मे!,कौमो को हमेषा ढालते हे!ै
हम पिचासो! के लिबासो!, को लपेटे घूमते है!
मुर्दा कहानी की जवानी, को समेटे घूमते है!
कब्र मे!भी सब्र का वो सामियाना ढू!ढते है!
अस्थियो! मे!,आस्था का आसियाना ढू!ढते है!
हर समाधी,व्याधियो!के कीट को क्यो!पालती हेै
ये लोकसाही मरघटो!के,ढीठ को क्यो!पालती है
सल्तनत खच्चर गधो!की पीठ को क्यो!पालती हेै
मुर्दे पूराने,राजनीति ,ढीट को क्यो!पालती है
कीमते!,क्यो! लोकसाही के कबाडी खो रहे है!
मल्कियत क्यो!नौकरो!के हाथ अपनी धो रहे हे!
सम्पन्न है!सारे भिखारी,दीन हो कर रो रहे है!
कवि‘आग’भी इस लाष को बस छन्द ही ढो रहे है!!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो098973998
कार्टून बनाने वाले ने किसी भी भाव से कार्टून बनाया हो,पर मै असमे! सकारात्मकता देख रहा हॅ!ू,काष ऐसा हो जाये तो यह देष आदर्ष राश्ट्र बन जायेगा
जवाब देंहटाएंथक गया मोदी धरा मे! आ गया
पक गया मोहन भी अब षर्मा गया
छक गया राहुल, जो धोखा खा गया
बक गया अरविन्द था, भरमा गया
ये चार मिल जाये!तो भारत बन गया
झण्डा हमारा विष्व मे!भी तन गया
दूर सब सिकवे ,गिले हो जाये!गे
आदर्ष को ये चार फिर से लाये!गे!
क्या कल्पना साकार भी हो पायेगी
मा! भरती की आबरू बच पायेगी
पद के मद के कद,हदो! को छोड़दो
बस इस तरह भारत को फिर से जोड़दो
बस,एक ही झण्डा,तिर!गा हाथ हो
अब देष मे! ना सम्प्रदायी जात हो
आदमियत लक्ष्य हो हर भाव मे!
बस,‘आग ’ लगनी चाहिये भटकाव मे! !!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो098973998
मजबूरी
जवाब देंहटाएंभ्रश्टता पर अब कलम का वार भी बेकार है
बे - बेहया सी राजनीति बेवफा बेधार है
कुछ पता चलता नही कब कौन सा नेता क!हा
कौन से दल से दबा है कौन दल देता पनाह
राजनेता की नजर सत्ता षिखर पर है गढी
वाषना के खेल मे! इस देष की किसको पढी
लक्ष्य दिल्ली को बनाकर राजनीति हो रही है
धृतराश्ट्र् की औलाद देखो बीज कैसे बो रही है
हर जगह षकुनि के पासे चैपडो!का खेल है
ये कौरवो! की राजनीति मेल है बेमेल है
न्यायालयो!मे!कृश्ण की गीता गुनाहो!के लिये
हाथ रखता है वही कूकर्म जिसने भी किये
कैसे षपत लेते है नेता राश्ट्ª के उत्थान मे!
क्यो! बदलती है धरा ये मजहबी षमषान मे
फिर चुनावी ज!ग चैराहो!मे!चढकर बोलती है
राजनीति की हवस औकात सब की खोलती है
स!सद भी अब मरघट बनी मुर्दे जलाने के लिये
क्यो! कबर से लाष भी जाती है खाने के लिये
सढ़ रही है लाष, स!सद के सढे़ षनषान मे!
हर जगह मुर्दो!को देखो आज हिन्दुस्तान मे!
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई के कफन मे!वोट है!
जो सियासी मर गये, उनके दफन मे! वोट हेै!
हर कौेम की नयी नष्ल के उजडे़ चमन मे! बोट हैे!
अब तो सियासी के अमन,जनमत दमन मे!बोट है
यह सोचकर ही बोलता हूॅं,अब कवि क्या गायेगा
मृत षवों के बीच से श्रृंगार कैसे आयेगा
विभत्स मे!भी हास्य की और व्य!ग की बौछार है
तुम लिखो लिखते रहो मेरी कलम लाचार है ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा (आग )
मो0 9897399815
षहीदो! की तोहीन
जवाब देंहटाएंकभी वतन की षान थे आज क्यो! अहसान है!
दो चार की गिनती य!हा मजबूर हे!बेजान है!
राश्ट्र के गौरव किसी को क्यो! समझ आते नही?
कुछ बात है नई नष्ल को रणबा!कुरे भाते नंही
शडयन्त्र की ये राजनीति राश्ट्र से क्यो!दूर है?
पाष्चात्य की परछायी हर दिल में भरी भरपूर है
आदमी भी नष्ल को अ!ग्रेजियत समझा रहा है
किस तरह से राश्ट्र नेता राश्ट्र को ही खा रहा है?
राश्ट्र के बलिदानियो!की याद अब फरियाद है
गौवंष के इस देष मे! भी यूरिया की खाद है
सम्प्रदायी जंग मे! स!स्कार अपने खो गये
राश्ट्र के जो पूत थे कैसे मजहब के हो गये?
परतन्त्र थे जब इस जमी पर ना कबीला कौम था
आधार था धरती बिछौना सर पे साया व्योम था
आज हम आजाद है! पर ना जमी आकाष है
हे, तिरंगे राजनीति पर तेरी क्यो! आष है
हम मर गये, गुमनाम है!,आज अपने देष मे!
अब याद भी आते नही हम इस सियासी भेश मे!
हम नही चाहते हे!ैगौरव,मृत षवो!की षान का
प्रष्न उठता है य!हा,इस देष की पहचान का
अब राश्ट्र के मरघट पे तस्वीरे!बिछाना छोड दो
अब हमारी याद म!े झण्डा झुकाना छोड़ दो
स्वाभिमान तो बष षोभता है सरहदो! के वीर पर
मै! लिख रहा हूॅं गीत भारत मां तेरी तकदीर पर ।।
संसद की लाचारी
जवाब देंहटाएंपुरातत्व के मानचित्र मे मंेैइस दुनिया का जनपद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंे भारत की संसद हॅूं
मैने मुगलों को देखा था मान नही अपना खोया
अंग्रेजों के अंकुष के नीचे भी दबा नही रोया
आजाद हुआ निर्पेक्ष बना मंेकाॅप रहा वो गणपद हूॅं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैं भारत का संसद हॅूं
गाॅंधी,नेहरू,लाल बहादुर की मर्यादा को देखा
हर विरोध की सीमाओं मंे खींची प्यार की थी रेखा
सत्ता और विरोधो में भी कीचढ नही उछलता था
तर्को और कूतर्कों से केवल भारत ही पलता था
उन्ही दिनो की यादों में षिखरों से गिरता हिमनद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
आजादी के साथ - साथ अब अपराधी भी आतें है
देख रहा हॅूं भ्रश्टाचारी, कैसे षोर मचाते हैं
गुत्थम गुत्था में ये मेरे मेरूदण्ड को तोड रहे है
लोकतन्त्र की लोकलाज को अय्यासी पर मोड रहे हैं
लाचारी मंे देख रहा हॅूं,नेता से छोटा कद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
पक्षों और विपक्षों का सम्मान सदा मंे पाता था
गौरवषाली भारत का इतिहास जगत मंे गाता था
भ्रश्टाचारी,वैभवषाली की कुण्ठा से रोता हॅूं
लोक सभा हो राज्य सभा हो आज प्रतिश्ठा खोता हॅूं
सत्य,अहिंसा का प्रतिपालक आज लुटेरों का मद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं, मैे भारत का संसद हॅूं
गुरूग्रन्थ गीता ,रामायण और कूरान बुनियादें थी
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग की भी सारी यादें थी
सम्प्रदाय निर्पेक्ष राश्ट्र हो ऐसा नियम बनाया था
चक्रव्रती सम्राटों ने आदर्ष यहीं से पाया था
मैं भारत का जटाजूट हॅूं कल्प वृक्ष हॅूं बरगद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
भगत सिंह षेखर, सूभाश की आषाओं मंे खडा हुआ
भारत भंजन करने वालों के चरणों मंे पडा हुआ
राजनीति के कीचढ मंे मैं उस पंकज को खोज रहा हॅू
राम राज्य में भारत माता जैसी सीता सोच रहा हॅूं
धर्म कर्म की इस धरती मंे पुनः धर्म का धम्पद हूॅ
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मंै भारत का संसद हॅूं
संविधान की धाराओं को सबके उपर फेंक रहा हॅूं
संसद की कुर्सी पर बैठे अपराधी मैं देख रहा हॅूं
क्यों होती है आज मंत्रणा,डाकू,चोर चकारों में
स!विधान की देख नुमाइस,आज खुले बाजारोंमें
चीर-हरण होता है मेरा सिद्या!त की सरहद हॅूं
चैराहे पर हाॅंप रहा हॅूं मैे भारत का संसद हॅूं
आरक्षण,क!ही स!रक्षण,क!ही सम्प्रदाय से मरता ह!ू!
सबकी इच्छा घुट-घुट करके लुट के पूरी करता हू!
जाति,वर्ण और कौम कबीले मेरे पन्ने फाड़रहे है!
राजनीति के सारे दल भी स!विधान को ताडरहे है!
कवि‘आग’के छन्दो! से मै!,बस थोडा सा गदगद हू! ।।
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
मो0 9897399815
सियासत मे! भगवान
जवाब देंहटाएंपहले हर-हर महादेव था,अब है हर-हर मोदी
आज सनातन की बुनियादे!,राम-भक्त ने खोदी
राम-राम को छोडो अब तो रामदेव को गाओ
आज कृश्ण का काम नही है, बालकृश्ण को लाओ
षिव तो हिम पर चुप बैठा है,षिव सैना ही काफी
गणपति बाबा गण-नायक से मा!ग रहा है माफी
बलराम नही,सुखराम चलेगा,राजनीति है भाई
दुर्गा,लक्ष्मी गौण हो गयी,माया,ममता माई
अब कुबेर का क्या मतलब हैे, डाकू घर-घर छाये
तै!तिस कोटि देवता घर के हो गये सभी पराये
यति,सति चुप चाप है!बैठी,देख के न!गी नारी
सडको! पर मर्यादा रोए,राजनीति बलिहारी
अब तिहाड़मे!ब्रह्मा,विश्णु,सब पि!जरे के कैदी
द्वार-द्वार पर राजनीति के प!डित है मुस्तैदी
अल्लाह, ईष्वर, ईषा,मूसा,जेल की रोटी खाये!
जैसी करनी,वैसी भरनी, क्यो! धरती मे! आये
ग!गा,यमुना मल ढोती है,वाह रे,भक्तो! प्यारे
गउ, ग!गा गायित्री के ये जलवे देखो न्यारे
राजनीति के चैराहो! पर भगवानो! की बोली
बाबा जी भी खेल रहे है!, देख सियासी होली
बलात्कार मे! बाबा अन्दर, भीड़भक्त की रोये
ब्रह्मचर्य के सभी ल!गोटे ,अपनी गरिमा खोये
वेद, षास्त्र की चैराहो! पर होती,देख नुमाइस
तर्को और कुतर्को मे! भी होती है अजमाइस
दो माह पहले लिखा था, ये मुर्दे देर से जागे
सभी सर्मथक मौेन हो गये षिव ष!कर के आगे
धर्मो के ठेकेदारो! से धर्मो का उपहास हुआ है
भारत का भगवानो! के अपमानो से नाष हुआ है
राम देव क्यो! चुप बैठा था,योग के टुकडे़ चाटे
ये सभी गेरूवे लाल,ल!गोटे षिव ष!कर ने बा!टे
राजनीति के कालनेमि से क्यो! बिकता हैे भोला
कोतवाल क्यो! षान्त खडा हेै,काषी का टण्डोला
राम,नाम पर जीने वालो! अब तो कुछ षर्माओ
भगवान को कुछ तो बख्सो,ना औकात दिखाओ
कवि ‘आग’कहता है,तुमने मर्यादा क्यो! धोदी
पहले हर-हर महादेव था, अब है ,हर-हर मोदी!!
न्याय में अन्याय
जवाब देंहटाएंन्यायालयो की आड में कानून गिरता जा रहा है
राजनितिक भेश मे! मुजरिम षिखर को पा रहा है
खूनी खडा है सामने जज पूछता है कौन है
मजबूर है कानून देखो बिन गवाह के मौन है
वकील तो हर भ्रश्टता बात को भी जानते है
कब कहां कैसे हुआ बारीकियों को छानते हैं
असत्य मेंऔर सत्य मे! क्या फर्क है पहचानते हैं पालकर कर अन्याय को ये कैसे सीना तानते है
कानून भी न्यायालयो!की नालियो से बह रहे है!
हम नही अखवार, टी वी.चैनलो! से कह रहे है!
खुलकर दलाली हो रही हैे कचहरी परिवेश मे!
अब तो जज भी मुजरिमो! सा दिख रहा है देष मे!
न्याय तो मजबूर है बन्द आंख है बष सुन रहा है
तर्क बे सिर पैर के ना जाने कैसे गुन रहा है
अन्त में सच्चाई की ही मौत हेाती जायेगी
एसी व्यवस्था देष में आतंक ही फैलायेगी
गीता भरोसा बन गया न्याय में ईमान का
घनष्याम भी है बे खबर क्या हश्र है ईन्सान का
न्याय मेंगीता भरोसा क्या आदमी सच बोलता है
देेखो तराजू न्याय का अन्याय कैसे तोलता है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो098973998
न्याय में अन्याय
जवाब देंहटाएंन्यायालयो की आड में कानून गिरता जा रहा है
राजनितिक भेश मे! मुजरिम षिखर को पा रहा है
खूनी खडा है सामने जज पूछता है कौन है
मजबूर है कानून देखो बिन गवाह के मौन है
वकील तो हर भ्रश्टता बात को भी जानते है
कब कहां कैसे हुआ बारीकियों को छानते हैं
असत्य मेंऔर सत्य मे! क्या फर्क है पहचानते हैं पालकर कर अन्याय को ये कैसे सीना तानते है
कानून भी न्यायालयो!की नालियो से बह रहे है!
हम नही अखवार, टी वी.चैनलो! से कह रहे है!
खुलकर दलाली हो रही हैे कचहरी परिवेश मे!
अब तो जज भी मुजरिमो! सा दिख रहा है देष मे!
न्याय तो मजबूर है बन्द आंख है बष सुन रहा है
तर्क बे सिर पैर के ना जाने कैसे गुन रहा है
अन्त में सच्चाई की ही मौत हेाती जायेगी
एसी व्यवस्था देष में आतंक ही फैलायेगी
गीता भरोसा बन गया न्याय में ईमान का
घनष्याम भी है बे खबर क्या हश्र है ईन्सान का
न्याय मेंगीता भरोसा क्या आदमी सच बोलता है
देेखो तराजू न्याय का अन्याय कैसे तोलता है!!
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा;आग
मो098973998