हमारे देश मे धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायकिता की गजब राजनीति होती है। बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी राजनीति दलों ने खुद अपने आप को धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट दिया है। बीजेपी इन दलों के लिए सांप्रदायिक है। कांग्रेसी इस कार्ड को खेलना खूब जानते हैं। इस कार्ड को वह 2014 के आमचुनाव में भी इस्तेमाल करेंगे। नीतिश कुमार के लिए आडवाणी धर्मनिरपेक्ष ओर मोदी सांप्रदायिक है। 2002 में गुजरात में हुए दंगों के बाद भी मंत्री पद पर वह बने रहे। आज उनकी पार्टी 18 साल गठबंधन तोड़ने के लिए तैयार है। मगर कोई इन राजनीतिक दलों को बताए की इस देश में कौन क्या है, धर्मनिरपेक्ष है या सांप्रदायिक। यह जनता को तय करने दे। अगर यह सही में लोकतंत्र है तो जनता सही व्यक्ति को चुनेगी। सच्चाई यह है कि मोदी का विरोध महज़ एक छलावा है। राजनीतिक दलों को मोदी की खिलाफत में मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण नजर आता है। लालू ने बिहार में यही किया। मुलायम भी यही करते रहें है। ममता भी यही करेंगी। लेकिन आजादी के 64 सालों के बाद भी मुसलमानों की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक हालात कैसे है, सच्चर के सच ने यह देश को बता दिया। यह उन धर्मनिरपेक्षता का स्वांग रचने वाले राजनीतिक दलों के मुंह पर तमाचा है। हम सबको धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के नाम पर बांटा जाता है। सच्चाई यह है की भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश था, है, और रहेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें