बुधवार, 12 जून 2013

गठबंधन का भविष्य

गठबंधन न बनाना आसान है न चलाना बावजूद इसके की यह भारतीय राजनीति की सच्चाई है। जेडीयू और बीजेपी का 17 साल पुराना गठबंधन टूटने के कगार पर है। कहा जा रहा है की ममता नवीन पटनायक और नीतीश कुमार मिलकर एक नये फ्रंट की घोषणा कर सकते है। बाद में कुछ और दलों के इसमें मिलने की संभावना है। मगर भारत में ऐसे फ्रंट का ना तो पहले कोई भविष्य था नही है भविष्य में दिखाई देता है।
भारत में बिना कांग्रेस या बीजेपी के सरकार नही बन सकती। यह बात सही है कि आने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दल मजबूत होंगे। मगर सरकार बनाना इन दलों के लिए दूर की कौड़ी है। हमेशा लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही इस तरह के मोर्चे की कवायद शुरू हो जाती है। इसलिए राजनीतिक पंडितों ने ऐसे मोर्चे को भाव देना बंद कर दिया है। मोदी को बीजेपी की प्रचार अभिायान समिति का प्रमुख बनान जेडीयू को इतना  खराब लगा कि उसने एनडीए से हटने का मन बना लिया है। अब तो बीजेपी भी आर पर के मूड में दिखाई देरही है। आने वाले दिनों में कुछ राजनीतिक दल एक फ्रंट के साथ आऐंगें इसकी पूरी संभावना है। मगर नेशनल पार्टी का कमजोर होना केन्द्र में न सिर्फ खतरनाक है बल्कि देश के हित में नही है। ऐसे में यूपीए और एनडीए दोनों की राजनीति आने वाले वक्त में क्या रहेगी देखना दिलचस्प होगा।

आइये नजर डालते है पिछले घटनाक्रमों में क्या कुछ घटा।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए और यूपीए दोनों मे फूट पड़ गई है। जहां दीदी ने दादा के समर्थन को लेकरकुछ भी साफ नही किया है, वहीं एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक दल जेडीयू और शिवसेना राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे। इस चुनाव ने गठबंधन में बनते बिगड़ते समीकरणों को हवा देनी शुरू कर दी है।  जेडीयू भाजपा से नाराज है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार  के तौर पर उसे बर्दाश्त नही हैं। प्रधानमंत्री सुधारों को लेकर विश्व बिरादरी को भरोसा दे चुके है। आर्थिक सुधारों पर फैसला ने लेने के टीस मिटाना चाहते हैं। मगर तृणमूल सुप्रीमों के रहते क्या सरकार इन सुधारों को अंजाम दे पाएगी। 16वीं लोकसभा का नजारा गठबंधन के लिहाज से  कैसा होगा। क्या सरकार को ममता का विसरकार के पास ममता का विकल्प कौन मुलायम मायावती या फिर नीतिश कुमार।
ममता के रहते हुए सुधारों की राह में चलना नामुमकिन।
तीस्ता वाटर ट्रीटी। बीमा पेंशन रिटेल में एफडीआई लोकपाल और तेल के दाम बढ़ाने को लेकर रूकावट।
बंगाल को पैकेज देने का दबाव। एनसीटीसी के खिलाफ ा
अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में। कड़े फैसले लेना मजबूरी।
मुलायम का कांग्रेस को समर्थन का राज। कुछ ही घंटो में क्यों बदले।
ममता की आगे की रणनीति का क्या। राज्य में कांग्रेस में ममता से खुश नही।
वामदलों का प्रणव को समर्थन के पीछे आधार व्यक्तित्व, बंगाली अस्मिता या ममता और कांग्रेस की दूरियों से वामदल खुश हैं।
ममता और वामदलों में अंतर खासकर सुधारों को लेकर।
वामदलों के बीच में प्रणब को समर्थन को लेकर एक।

जेडीयू का प्रणब मुखजी को समर्थन देना व्यक्तिगत या पार्टी की सोझी समझी रणनीति।
मोदी को लेकर इतना हमलावर क्यों
क्या मुस्लिम वोट बैंक इसके पीछे है या कहानी में कुछ और
ज्यादातर लोगों का कहना है इसे केवल मुस्लिम वोटेां केा कन्सौलिडेटेेड करने से न जोड़ा जाए।
2010 के विधानसभा चुनावों में उन्हें अच्छा वोट मिला। जहां तक मुस्लिम वोटों का बिहार में सवाल है 1977 और 1989 में कांग्रेस के खिलाफ पड़ा।
 मतलब इसके 1989 तक कांग्रेस इनके वोटों की चैंपियन रही। 1989 के बाद 2005 तक लालू प्रसाद यादव को यह वोट पड़ा। इसके बाद नीतिश
कुमार को।

एनडीए का संगमा को समर्थन रणनीति का हिस्सा।
जयललिता और नवीन पटनायक को नजदीक लाने की रणनीति

जेडीयू और शिवसेना ने किया प्रणब मुखर्जी का समर्थन
जेडीयू और शिवसेना एनडीए के घटक दल

बीजेपी और बीजेडी
11 साल पुराना गठबंधन 2009 में टूटा
1998 में साथ आए
1998,1999 और 2004 में चुनाव साथ मिलकर लड़ा।
2000 और 2004 में ज्यादातर सीटें जीती।

बीजेपी और एआइएडीएमके तमिलनाडू में
बीजेपी और जयललिता
1998 में साथ आए
39 लोकसभा सीट में से
एआडीएमके 18 सीटें
एमडीएमके 3 सीट
राजीव इंदिरा कांग्रेस 1 सीट
बीजेपी 3 दक्षिण खासकर तमिलनाडू में खाता खुला।
मगर वह 13 महिने बीजेपी केा याद आतें होगें। और आखिर में किस तरह जयललिता ने गच्चा दिया। फिर आपके साथ डीएमके के आया।
 2004 में उसने आपसे नाता तोड़ा और यूपीए में शमिल हो गया।
कहा यह भी जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों के चुनावों के नतीजे
और माहौल को देखकर फैसला करेंगे।

जेडीयू भाजपा गंठबंधन
इस गठबंधन की उम्र 15 साल हो गई है। नीतिश कुमार ने बिहार पर दोबार कब्जा जमाया।
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मंजूर नही। क्या मसला यह है या गठबंधन से बाहर निकलने
की तैयारी।
नरेन्द्र मोदी को बिहार में कैंपेन करने से रोका, साथ ही गुजरात द्धारा दी गई बाढ़ राहत राशि लौटाई।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी और टीआरएस पर होगी बीजेपी की नजर।
तेलांगाना के समर्थन में बीजेपी

पूर्वोत्तर राज्यों में की जगह बनाने की जुगत में। संगमा का समर्थन इसी को ध्यान में रखकर किया।
असम में एजीपी के साथ भी गठबंधन में रह चुकी है बीजेपी मगर अगप को हुआ चुनाव में भारी नुकसान।

यपूीए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
कांग्रेस टीएमसी डीएमके एनसीपी आरएलडी एनसी मुस्लिम लीग केरल स्टेट कमिटि, एआइएमआइएम, एसडीएफ
पीआरपी और वीसीके।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
बीजेपी जेडीयू शिवसेना एसएडी जनता पार्टी

वामदल
सीपीआइएम सीपीआइ आरएसपी और आल इंडिया फारवर्ड ब्लाॅक

गठबंधन का इतिहास
1989 यानि 9 वीं लोकसभा में पहली बार गठबंधन की सरकार केन्द्र में आई।
वीपी सिंह ने बीजेपी वामदलों और कुछ क्षेत्रीय दलों के सहयोग से सरकार बनाई।
1990 में बीजेपी ने रामजन्म भूमि आंदोलन के चलते सरकार से समर्थन वापस लिया।
चंद्रशेखर ने नवंबर 10, 1990 में कांग्रेस के समर्थन के चलते प्रधानमंत्री बने।
मार्च 9 1991 को कांग्रेस के दबाव के चलते इस्तीफा दिया।
राष्ट्रपति ने लोकसभा को डिसाल्व किया चंद्रशेखर केयरटेकर प्रधानमंत्री बने रहे।
10 लोकसभा में कांग्रेस 224 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी।
पीवी नरसिम्माराव प्रधानमंत्री बने।

राज्यों में क्या हुआ
1953-67 आंध्र प्रदेश ओडीशा और केरल में गठबंधन की सरकार बनी।
केरल में वाम दल के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार बनी।
मई 1959 कांग्रेस और गणतंत्र परिषद ने ओडीशा में सरकार बनाई।
1967 में 8 राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त विधायक दल जीता।


12 बडे़ क्षेत्रीय क्षत्रप
उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह, मायावती।
पश्चिम बंगाल में  वामदल, ममता बनर्जी,
उडीशा में नवीन पटनायक,
तमिलनाडू में जयललिता, करूणानीधि,
आंध्र प्रदेश में चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू
बिहार में नीतिश कुमार आरजेडी और एलजेपी
हरियाणा में आइएनएलडी और हरियाणा जनहित कांग्रेस
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल
असम में असम गण परिषद

मुलायम सिंह, समाजवादी पार्टी 22 सांसद
संाप्रदायिक ताकतों को बाहर रखने के लिए यूपीए का समर्थन जरूरी
गुरूवार को देशव्यापी बंद का किया समर्थन
टीडीपी और वामदलों के साथ दिखे एक मंच में
तीसरे मोर्चे की आहट को दिया जन्म
उत्तरप्रदेश में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद
कहते है 2014 के बाद अस्तित्व में आयेगा तीसरा मोर्चा सितंबर 13 2012
कांग्रेस और बीजेपी दोनो को बताते है फेल इसलिए एसपी ही दे सकती है विकल्प
2014 में अकेले चुनाव लड़ने का आहवान
पाला बदलने में उन्हें माहिर माना जाता है। राष्टपति चुनाव में भी यही किया।
राहुल गांधी पर कहा की उनमें नेत्त्व की क्षमता नही। सितंबर 13 2012
पीएम की दौड़ में नही लेकिन मै साधु संत नही। सितंबर 13 2012
यह सारी बातें कोलकात्ता में राज्य की राष्टीय अधिवेशन में कही।

मायावती बीएसपी 21 सांसद
यूपीए का कर रही है बाहर से समर्थन
गुरूवार को बुलाए गए देशव्यापी बंद का नही किया समर्थन
यूपीए 2 पर फैसला 10 अक्टूबर को
यूपीए 2 करेगी अपना कार्यकाल पूरा
यूपी में अखिलेश सरकार के खिलाफ माहौल बनना देखना चाहती हैं।
इससे पहले यूपीए 1 में भी थी 2008 में वापस लिया समर्थन
1993 में एसपी के साथ गठबंधन, जो 1995 में टूट गया। तब से दोनों एक दूसरे के प्रतिद्धंदी।
बीजेपी के साथ 1995, 1997 और 2002 में किया समर्थन
तीसरे मोर्चे के लिए 2009 में चुनाव से पहले की पहल मगर नतीजा सीफर
सरकार गिराने के पक्ष में नही। जल्द चुनाव नही चाहती।
राहुल गांधी पर वह कहती है की मेरे पै गुस्सा दिखाने से ज्यादा उनपर दिखाओं जो खान पान की चीजों के दाम नियंत्रित नही कर पाए।
सितंबर 7 2012 को आपका बयान की कांग्रेस दलितों के खिलाफ है।
प्रधानमंत्री पर। जब एक दलित सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती है तो देश की प्रधानमंत्री क्यों नही। अगस्त 10 2008।

वामदल  23 सांसद
पश्चिम बंगाल और केरल में सत्ता से बाहर
आर्थिक सुधारों पर विरोध में उनकी जगह ममता बनर्जी ने ली।
तेल के दाम बढ़ाने और और रिटेल में एफडीआई के खिलाफ
यूपीए 1 को बाहर से समर्थन। कामन मिनिमम प्रोग्राम और अमेरिकी न्यूक डील के चलते 2008 में समर्थन वापस।
2009 में तीसरे मोर्चे के साथ। 2014 से पहले इस तरह के प्रयोग की होगी और कोशिश

नितीश कुमार जेडीयू 20
एनडीए के प्रमुख सहयोगी, मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर नामंजूर।
जो पार्टी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देगी उसका करेंगे सहयोग। सितंबर 19 2012
राहुल गांधी भी कर चुके है सार्वजनिक जगहों पर उनकी तारीफ।
बीजेपी को कराते है अपनी ताकत का अहसास।
यूपी में चुनाव अकेले लड़े और गुजरात में अकेले लड़ेगें।
2014 में निभा सकते हैं बड़ी भूमिका।
2009 के चुनाव में 40 में से 32 सीटें बीजेपी जेडीयू गठबंधन को मिले।
नीतिश इस प्रर्दशन को दोहराना चाहते हैं।
चुनाव जल्द होने के आसार नही। राहुल गांधी पीएम बनने से पहले किसी राज्य के मुख्यमंत्री बने ताकि सुशासन का पाठ पढ़ सके।

ममता बनर्जी । तृणमूल कांग्रेस। 19 सांसद
यूपीए और एनडीए दोनों में रह चुकी है दोनों को खून के आंसू रूला चुकीं है आखिरकार दोनो को अलविदा कह चुकीं हैं।
2009 से पहले यूपीए 2 के साथ आई।
मुलायम के पाला बदलने से है वाकिफ।

नवीन पटनायक। बीजेडी। 14 सांसद
2009 के चुनाव से पहले बीजेपी के साथ था गठबंधन। 2009 में अपने दम पर बनाई सरकार। लोकसभा में जीतकर आए 14 सांसद।
तीसरे मोर्चे के पक्ष में। यूपीए को समर्थन का सवाल ही नही। जयललिता के नजदीकी। राष्टपति चुनाव के लिए पीए संगमा का किया समर्थन।

जयललिता। एआईएडीएमके 9 सांसद
1999 से पहले कांग्रेस के साथ
1999 में आई कांग्रेस के साथ
2004 में एनडीए के दुबारा साथ आई। हार के बाद एनडीए का साथ छोड़ा।
2009 से पहले तीसरे मोर्चे के 10 दलो के साथ।
नवीन पटनायक के नजदीक। पीए संगमा का किया समर्थन। जयललिता मोल तोल में माहिर। भरोसा नही किया जा सकता।
गुरूवार के बंद का समर्थन।

चंद्रशेखर राव। टीआरएस। 6 सांसद
तेलांगाना मुददे पर सबसे ज्यादा जोर।
2004 में यूपीए के साथ। कामन मिनिमम प्रोग्राम में तेलांगान के गठन का जिक्र।
2007 में यूपीए का साथ छोड़ा। 2009 मे एनडीए के साथ आए।
अलग तेलांगान जो बनाएगा उसके साथ।

जगन रेड्डी। वाइएस आर कांग्रेस। 2 सांसद
उपचुनाव में 18 में से 15 सीटों पर भारी जीत।
कांग्रेस को किया कमजोर। तेलांगना क्षेत्र में कमजोर।
आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए जरूरी। 2009 में 33 सांसद यहां से चुनकर आए।
कांग्रेस क्रूा जगन को अपने पक्ष में ला पाएगी। क्या उनके खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति के मामलों के वापस लेगी?

चंद्रबाबू नायडू। टीडीपी। 2 सांसद।
2014 में वापसी को बेचैन।
10 साल से सत्ता से बाहर।
एनडीए का किया था बाहर से समर्थन।
गुरूवार के बंद का समर्थन।
लेफट और मुलायम के साथ।
तेलांगाना पर बदली सोच किया समर्थन। गठबंधन न बनाना आसान है न चलाना बावजूद इसके की यह भारतीय राजनीति की सच्चाई है। जेडीयू और बीजेपी का 17 साल पुराना गठबंधन टूटने के कगार पर है। कहा जा रहा है की ममता नवीन पटनायक और नीतीश कुमार मिलकर एक नये फ्रंट की घोषणा कर सकते है। बाद में कुछ और दलों के इसमें मिलने की संभावना है। मगर भारत में ऐसे फ्रंट का ना तो पहले कोई भविष्य था नही है भविष्य में दिखाई देता है। भारत में बिना कांग्रेस या बीजेपी के सरकार नही बन सकती। यह बात सही है कि आने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दल मजबूत होंगे। मगर सरकार बनाना इन दलों के लिए दूर की कौड़ी है। हमेशा लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही इस तरह के मोर्चे की कवायद शुरू हो जाती है। इसलिए राजनीतिक पंडितों ने ऐसे मोर्चे को भाव देना बंद कर दिया है। मोदी को बीजेपी की प्रचार अभिायान समिति का प्रमुख बनान जेडीयू को इतना खराब लगा कि उसने एनडीए से हटने का मन बना लिया है। अब तो बीजेपी भी आर पर के मूड में दिखाई दे रही है। आने वाले दिनों में कुछ राजनीतिक दल एक फ्रंट के साथ आऐंगें इसकी पूरी संभावना है। मगर नेशनल पार्टी का कमजोर होना केन्द्र में न सिर्फ खतरनाक है बल्कि देश के हित में नही है। ऐसे में यूपीए और एनडीए दोनों की राजनीति आने वाले वक्त में क्या रहेगी देखना दिलचस्प होगा।
आइये नजर डालते है पिछले घटनाक्रमों में क्या कुछ घटा।

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए और यूपीए दोनों मे फूट पड़ गई है। जहां दीदी ने दादा के समर्थन को लेकर कुछ भी साफ नही किया है,
वहीं एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक दल जेडीयू और शिवसेना राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे। इस
चुनाव ने गठबंधन में बनते बिगड़ते समीकरणों को हवा देनी शुरू कर दी है।  जेडीयू भाजपा से नाराज है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
के तौर पर उसे बर्दाश्त नही हैं। प्रधानमंत्री सुधारों को लेकर विश्व बिरादरी को भरोसा दे चुके है। आर्थिक सुधारों पर फैसला ने लेने के टीस
मिटाना चाहते हैं। मगर तृणमूल सुप्रीमों के रहते क्या सरकार इन सुधारों को अंजाम दे पाएगी। 16वीं लोकसभा का नजारा गठबंधन के लिहाज से
कैसा होगा।
क्या सरकार को ममता का विसरकार के पास ममता का विकल्प कौन मुलायम मायावती या फिर नीतिश कुमार।
ममता के रहते हुए सुधारों की राह में चलना नामुमकिन।
तीस्ता वाटर ट्रीटी। बीमा पेंशन रिटेल में एफडीआई लोकपाल और तेल के दाम बढ़ाने को लेकर रूकावट।
बंगाल को पैकेज देने का दबाव। एनसीटीसी के खिलाफ ा
अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में। कड़े फैसले लेना मजबूरी।
मुलायम का कांग्रेस को समर्थन का राज। कुछ ही घंटो में क्यों बदले।
ममता की आगे की रणनीति का क्या। राज्य में कांग्रेस में ममता से खुश नही।
वामदलों का प्रणव को समर्थन के पीछे आधार व्यक्तित्व, बंगाली अस्मिता या ममता और कांग्रेस की दूरियों से वामदल खुश हैं।
ममता और वामदलों में अंतर खासकर सुधारों को लेकर।
वामदलों के बीच में प्रणब को समर्थन को लेकर एक।


जेडीयू का प्रणब मुखजी को समर्थन देना व्यक्तिगत या पार्टी की सोझी समझी रणनीति।
मोदी को लेकर इतना हमलावर क्यों
क्या मुस्लिम वोट बैंक इसके पीछे है या कहानी में कुछ और
ज्यादातर लोगों का कहना है इसे केवल मुस्लिम वोटेां केा कन्सौलिडेटेेड करने से न जोड़ा जाए।
2010 के विधानसभा चुनावों में उन्हें अच्छा वोट मिला। जहां तक मुस्लिम वोटों का बिहार में सवाल है 1977 और 1989 में कांग्रेस के खिलाफ पड़ा।
 मतलब इसके 1989 तक कांग्रेस इनके वोटों की चैंपियन रही। 1989 के बाद 2005 तक लालू प्रसाद यादव को यह वोट पड़ा। इसके बाद नीतिश
कुमार को।

एनडीए का संगमा को समर्थन रणनीति का हिस्सा।
जयललिता और नवीन पटनायक को नजदीक लाने की रणनीति

जेडीयू और शिवसेना ने किया प्रणब मुखर्जी का समर्थन
जेडीयू और शिवसेना एनडीए के घटक दल

बीजेपी और बीजेडी
11 साल पुराना गठबंधन 2009 में टूटा
1998 में साथ आए
1998,1999 और 2004 में चुनाव साथ मिलकर लड़ा।
2000 और 2004 में ज्यादातर सीटें जीती।

बीजेपी और एआइएडीएमके तमिलनाडू में
बीजेपी और जयललिता
1998 में साथ आए
39 लोकसभा सीट में से
एआडीएमके 18 सीटें
एमडीएमके 3 सीट
राजीव इंदिरा कांग्रेस 1 सीट
बीजेपी 3 दक्षिण खासकर तमिलनाडू में खाता खुला।
मगर वह 13 महिने बीजेपी केा याद आतें होगें। और आखिर में किस तरह जयललिता ने गच्चा दिया। फिर आपके साथ डीएमके के आया।
 2004 में उसने आपसे नाता तोड़ा और यूपीए में शमिल हो गया।
कहा यह भी जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों के चुनावों के नतीजे
और माहौल को देखकर फैसला करेंगे।

जेडीयू भाजपा गंठबंधन
इस गठबंधन की उम्र 15 साल हो गई है। नीतिश कुमार ने बिहार पर दोबार कब्जा जमाया।
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मंजूर नही। क्या मसला यह है या गठबंधन से बाहर निकलने
की तैयारी।
नरेन्द्र मोदी को बिहार में कैंपेन करने से रोका, साथ ही गुजरात द्धारा दी गई बाढ़ राहत राशि लौटाई।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी और टीआरएस पर होगी बीजेपी की नजर।
तेलांगाना के समर्थन में बीजेपी

पूर्वोत्तर राज्यों में की जगह बनाने की जुगत में। संगमा का समर्थन इसी को ध्यान में रखकर किया।
असम में एजीपी के साथ भी गठबंधन में रह चुकी है बीजेपी मगर अगप को हुआ चुनाव में भारी नुकसान।

यपूीए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
कांग्रेस टीएमसी डीएमके एनसीपी आरएलडी एनसी मुस्लिम लीग केरल स्टेट कमिटि, एआइएमआइएम, एसडीएफ
पीआरपी और वीसीके।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
बीजेपी जेडीयू शिवसेना एसएडी जनता पार्टी

वामदल
सीपीआइएम सीपीआइ आरएसपी और आल इंडिया फारवर्ड ब्लाॅक

गठबंधन का इतिहास
1989 यानि 9 वीं लोकसभा में पहली बार गठबंधन की सरकार केन्द्र में आई।
वीपी सिंह ने बीजेपी वामदलों और कुछ क्षेत्रीय दलों के सहयोग से सरकार बनाई।
1990 में बीजेपी ने रामजन्म भूमि आंदोलन के चलते सरकार से समर्थन वापस लिया।
चंद्रशेखर ने नवंबर 10, 1990 में कांग्रेस के समर्थन के चलते प्रधानमंत्री बने।
मार्च 9 1991 को कांग्रेस के दबाव के चलते इस्तीफा दिया।
राष्ट्रपति ने लोकसभा को डिसाल्व किया चंद्रशेखर केयरटेकर प्रधानमंत्री बने रहे।
10 लोकसभा में कांग्रेस 224 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी।
पीवी नरसिम्माराव प्रधानमंत्री बने।

राज्यों में क्या हुआ
1953-67 आंध्र प्रदेश ओडीशा और केरल में गठबंधन की सरकार बनी।
केरल में वाम दल के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार बनी।
मई 1959 कांग्रेस और गणतंत्र परिषद ने ओडीशा में सरकार बनाई।
1967 में 8 राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त विधायक दल जीता।


12 बडे़ क्षेत्रीय क्षत्रप
उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह, मायावती।
पश्चिम बंगाल में  वामदल, ममता बनर्जी,
उडीशा में नवीन पटनायक,
तमिलनाडू में जयललिता, करूणानीधि,
आंध्र प्रदेश में चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू
बिहार में नीतिश कुमार आरजेडी और एलजेपी
हरियाणा में आइएनएलडी और हरियाणा जनहित कांग्रेस
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल
असम में असम गण परिषद

मुलायम सिंह, समाजवादी पार्टी 22 सांसद
संाप्रदायिक ताकतों को बाहर रखने के लिए यूपीए का समर्थन जरूरी
गुरूवार को देशव्यापी बंद का किया समर्थन
टीडीपी और वामदलों के साथ दिखे एक मंच में
तीसरे मोर्चे की आहट को दिया जन्म
उत्तरप्रदेश में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद
कहते है 2014 के बाद अस्तित्व में आयेगा तीसरा मोर्चा सितंबर 13 2012
कांग्रेस और बीजेपी दोनो को बताते है फेल इसलिए एसपी ही दे सकती है विकल्प
2014 में अकेले चुनाव लड़ने का आहवान
पाला बदलने में उन्हें माहिर माना जाता है। राष्टपति चुनाव में भी यही किया।
राहुल गांधी पर कहा की उनमें नेत्त्व की क्षमता नही। सितंबर 13 2012
पीएम की दौड़ में नही लेकिन मै साधु संत नही। सितंबर 13 2012
यह सारी बातें कोलकात्ता में राज्य की राष्टीय अधिवेशन में कही।

मायावती बीएसपी 21 सांसद
यूपीए का कर रही है बाहर से समर्थन
गुरूवार को बुलाए गए देशव्यापी बंद का नही किया समर्थन
यूपीए 2 पर फैसला 10 अक्टूबर को
यूपीए 2 करेगी अपना कार्यकाल पूरा
यूपी में अखिलेश सरकार के खिलाफ माहौल बनना देखना चाहती हैं।
इससे पहले यूपीए 1 में भी थी 2008 में वापस लिया समर्थन
1993 में एसपी के साथ गठबंधन, जो 1995 में टूट गया। तब से दोनों एक दूसरे के प्रतिद्धंदी।
बीजेपी के साथ 1995, 1997 और 2002 में किया समर्थन
तीसरे मोर्चे के लिए 2009 में चुनाव से पहले की पहल मगर नतीजा सीफर
सरकार गिराने के पक्ष में नही। जल्द चुनाव नही चाहती।
राहुल गांधी पर वह कहती है की मेरे पै गुस्सा दिखाने से ज्यादा उनपर दिखाओं जो खान पान की चीजों के दाम नियंत्रित नही कर पाए।
सितंबर 7 2012 को आपका बयान की कांग्रेस दलितों के खिलाफ है।
प्रधानमंत्री पर। जब एक दलित सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती है तो देश की प्रधानमंत्री क्यों नही। अगस्त 10 2008।

वामदल  23 सांसद
पश्चिम बंगाल और केरल में सत्ता से बाहर
आर्थिक सुधारों पर विरोध में उनकी जगह ममता बनर्जी ने ली।
तेल के दाम बढ़ाने और और रिटेल में एफडीआई के खिलाफ
यूपीए 1 को बाहर से समर्थन। कामन मिनिमम प्रोग्राम और अमेरिकी न्यूक डील के चलते 2008 में समर्थन वापस।
2009 में तीसरे मोर्चे के साथ। 2014 से पहले इस तरह के प्रयोग की होगी और कोशिश

नितीश कुमार जेडीयू 20
एनडीए के प्रमुख सहयोगी, मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर नामंजूर।
जो पार्टी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देगी उसका करेंगे सहयोग। सितंबर 19 2012
राहुल गांधी भी कर चुके है सार्वजनिक जगहों पर उनकी तारीफ।
बीजेपी को कराते है अपनी ताकत का अहसास।
यूपी में चुनाव अकेले लड़े और गुजरात में अकेले लड़ेगें।
2014 में निभा सकते हैं बड़ी भूमिका।
2009 के चुनाव में 40 में से 32 सीटें बीजेपी जेडीयू गठबंधन को मिले।
नीतिश इस प्रर्दशन को दोहराना चाहते हैं।
चुनाव जल्द होने के आसार नही। राहुल गांधी पीएम बनने से पहले किसी राज्य के मुख्यमंत्री बने ताकि सुशासन का पाठ पढ़ सके।

ममता बनर्जी । तृणमूल कांग्रेस। 19 सांसद
यूपीए और एनडीए दोनों में रह चुकी है दोनों को खून के आंसू रूला चुकीं है आखिरकार दोनो को अलविदा कह चुकीं हैं।
2009 से पहले यूपीए 2 के साथ आई।
मुलायम के पाला बदलने से है वाकिफ।

नवीन पटनायक। बीजेडी। 14 सांसद
2009 के चुनाव से पहले बीजेपी के साथ था गठबंधन। 2009 में अपने दम पर बनाई सरकार। लोकसभा में जीतकर आए 14 सांसद।
तीसरे मोर्चे के पक्ष में। यूपीए को समर्थन का सवाल ही नही। जयललिता के नजदीकी। राष्टपति चुनाव के लिए पीए संगमा का किया समर्थन।

जयललिता। एआईएडीएमके 9 सांसद
1999 से पहले कांग्रेस के साथ
1999 में आई कांग्रेस के साथ
2004 में एनडीए के दुबारा साथ आई। हार के बाद एनडीए का साथ छोड़ा।
2009 से पहले तीसरे मोर्चे के 10 दलो के साथ।
नवीन पटनायक के नजदीक। पीए संगमा का किया समर्थन। जयललिता मोल तोल में माहिर। भरोसा नही किया जा सकता।
गुरूवार के बंद का समर्थन।

चंद्रशेखर राव। टीआरएस। 6 सांसद
तेलांगाना मुददे पर सबसे ज्यादा जोर।
2004 में यूपीए के साथ। कामन मिनिमम प्रोग्राम में तेलांगान के गठन का जिक्र।
2007 में यूपीए का साथ छोड़ा। 2009 मे एनडीए के साथ आए।
अलग तेलांगान जो बनाएगा उसके साथ।

जगन रेड्डी। वाइएस आर कांग्रेस। 2 सांसद
उपचुनाव में 18 में से 15 सीटों पर भारी जीत।
कांग्रेस को किया कमजोर। तेलांगना क्षेत्र में कमजोर।
आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए जरूरी। 2009 में 33 सांसद यहां से चुनकर आए।
कांग्रेस क्रूा जगन को अपने पक्ष में ला पाएगी। क्या उनके खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति के मामलों के वापस लेगी?

चंद्रबाबू नायडू। टीडीपी। 2 सांसद।
2014 में वापसी को बेचैन।
10 साल से सत्ता से बाहर।
एनडीए का किया था बाहर से समर्थन।
गुरूवार के बंद का समर्थन।
लेफट और मुलायम के साथ।
तेलांगाना पर बदली सोच किया समर्थन। 2009 से पहले 9 राजनीतिक दलों के साथ आए थे साथ।













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