उर्जा खपत के हिसाब से भारत दुनिया का पांचवा देश है। कुल खपत का 3.4 फीसदी भारत करता है। जानकारों की माने क 2030 तक भारत जापान और रूस को पीछ छोड़कर तीसरे स्थान पर काबिज हो जाएगा। भारत की उभरती अर्थव्यवस्था के लिए उर्जा एक बहुत बड़ी जरूरत है। खुद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहाकार परिषद ने देश की तेजी से बढ़ती विकास दर में सबसे बड़ी बांधा उर्जा की कमी को बताया है। भारत आने वाले सालों में दहाई विकास दर का सपना पाल रहा है । मगर इसके लिए जरूरी होगा बिजली का उत्पादन बढ़ाया जाए। आइये एक नजर डालते है कि भारत में उर्जा की मौजूदा स्थिति क्या है। उर्जा क्षेत्र का बड़ा भाग कोयले से निकलने वाली बिजली पर निर्भर है। यह कुल उत्पादन का 75 फीसदी है। इसके अलावा 21 फीसदी उत्पादन में जलविद्युत क्षेत्र से करते है। और बाकि बची परमाणु क्षेत्र से आती है। इस समय सामान्य अवधि में मांग और आपूर्ति में अन्तर 10 फीसदी है। जबकि पीक आवर में यह 12.7 फीसदी है। आज उर्जा विकास दर 10 प्रतिशत से बड़ रही है जबकि कोयले का उत्पादन 5 से 6 फीसदी के दर से बड़ रहा है। 11वीं पंचवर्षिय योजना में सरकार ने 78700 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा था उसे बाद में 62374 मेगावाट कर दिया गया। इसमें ताप उर्जा का लक्ष्य 59693 मेगावट से घटाकर 50757 मेगावाट जबकि पनबिजली के लक्ष्य 15627 से घटाकर 8237 मेगावाट कर दिया है। बहरहाल 12वीं पंचवर्षिय योजना में बिजली उत्पादन का लक्ष्य 1 लाख मेगावाट रखा गया है। यहां जानना जरूरी है कि उर्जा समवर्ती सूची में आता है और लिहाजा राज्यों को अपने उत्पादन में ध्यान देना होगा। परमाणु बिजली के उत्पादन के लक्ष्य को छोड़कर ताप और पनबिजली से उत्पन्न बिजली के लक्ष्य में बदलाव किया है।जून 2011 तक हम 37971 मेगावाट बिजली उत्पादन कर पाये है। बहरहाल सरकार का लक्ष्य उर्जा कानून 2003 के तहत 2012 तक हर घर में बिजली मुहैया कराना है। मगर यह वादा सरकार 2013 तक भी पूरा नही कर पायी। मगर हां देश में बिजली के दाम को कम करने पर राजनीति खूब हो रही है।
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