शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

आजादी के 63 साल





जलाओं दिये पर रहे ध्यान इतना,
अन्धेरा घना कही रह नही जाए।

गर्व हो रहा है। मै खुशी से फूला नही समा रहा हूं। आज 15 अगस्त की पावन बेला पर देशवासियों को शुभकामनाऐं देना चाहता हूं। मगर कुछ सवाल मन में बिजली की तरह कौंध रहे है। जिसका जवाब कही मिलता नजर नही आ रहा है। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश को सम्बोधित करते सुना। देशवासियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देखकर अच्छा लगा। उन्होने कुछ सपने दिखाये। आने वाले पॉच सालों में जनता के वोट का हिसाब किताब जो करना है। बस एक सवाल नीति निर्माताओं से । आजादी के 63 सालों में क्यों आबादी का एक बडा हिस्सा आज भी गरीब है। भूखा है, मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, सडक और आवास से क्यों वंचित है। जवाब है उनके पास। फिर कैसा आजादी का जश्न। ये क्या उन महान देशभक्त सेनानियों का अपमान नही। क्या इसी दिन के लिए उन्होने कुबाZनी दी थी। आजाद भारत की परिकल्पना थी उनकी। जहां 30 करोड जनता आज भी गरीब है । 40 करोड लोग असंगठित क्षेत्र से आते है। 77 फीसदी आबादी की औकात एक दिन में 20 रूपये से अधिक खर्च करने की नही है। 40 फीसदी किसान विकल्प मिलने पर किसानी छोडना चाहते है। लाखों की तादाद में किसान हालात से हार मानकर आत्महत्या कर चुके है। महिलाऐं और बच्चे कुपोश्ण का शिकार है। 1 करोड 12 लाख बाल मजदूर है। बेरोजगारी चरम पर है। आधी से ज्याद आबादी खुले में शौच जाती है। आबादी के बडे हिस्से के पास पीने का साफ पानी नही है। भ्रश्टाचार ने पूरे देश को अपनी गिरफत में ले रखा है। महंगाई आम आदमी के हाथ वे निवाला झीन रहे है। आतंकवाद, नक्सलवाद और उग्रवाद ने हमें डरा के रखा है।फिर भी जश्ने आजादी। झूठे आश्वासन। देश की तकदीर और तस्वीर बदलने का सब्जबाग। विकास का फायदा हर व्यक्ति तक पहुचाने की झूठा वायदा। मगर हालत खशियां मनाने वाले नही। सोचने को विवश करने वाले है। सोचिए आप भी । क्यों आप नही चाहते।
खुद जियें सबको जीना सिखाऐं
अपनी खुशियां चलों बांट आये।