सोमवार, 4 मई 2015

प्राकृतिक आपदओं से निपटने की तैयारी नाकाफी?

नेपाल में 25 अप्रेल को 7.9 तीव्रता वाले भूकंप ने तबाह कर दिया। पूरा काठमांडू जमीनदोज हो गया। कई ऐतिहासिक धरोहरों का अता पात नही।  हजारों लोग मारे गए। कई अब भी मलबे के नीचे दबे हैं। दुनिया के हाथ नेपाल की मदद में लगे है। भारत के आपरेशन मैत्री ने नेपाल को इस विपदा से निपटने में मदद की है। नेपाल में इस अपदा ने कितना जानमाल का नुकसान किया है इसका आंकलन तो बाद में होगा। मगर नेपाल को इस आपदा से बाहर निकलने में सालों लग जाऐंगे। जिस पर्यटन और इतिहास के दम पर उसकी अर्थव्यवस्था चलती थी उसको भी भारी नुकसान पहुंचा है। मगर नेपाल के हालात से भारत के लिए सिखने के लिए बहुत कुछ है। अकेले भारत में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकासन पर नजर डाली जाए तो यह सालाना 9.8 बिलियन डालर बैठता है। अकेले बाढ़ से सालाना 7.8 बिलियन डालर का नुकसान होता है। हाल ही यूएन ़द्धारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में 2010 की आपदाओं के देखते हुए प्राकृतिक आपदाओं के मद्देजर भारत को विश्व में दूसरे स्थान पर रखा है। भारत का भोगौलिक क्षेत्र का 59 फीसदी  भूभाग भूकंप के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है। 8.5 फीसदी भूभाग चक्रवात के लिहाज से संवेदनशील है। 38 भारतीय शहर मसलन दिल्ली, कोलकाता, मुबंई, चिन्नेई, पुणे और अहमदाबाद जैसे शहर साधारण से लेकर उच्च तीव्रता वाले भूंकप क्षेत्र में आते हंै। 344 नगर भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदशील क्षेत्र में आते है। एक आंकड़े के मुताबिक 1990 से लेकर 2006 तक 23000 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। इसमें लातूर 1993, जबलपुर 1997, चमोली 1999,  भुज 2001, सुमात्रा 2004, जिसके बाद सुनामी आई और 2005 में आया जम्मू कष्मीर में आया भूकंप शामिल हैं। इसमें अकेले गुजरात के भुज में आए भुकंप में 13800 लोगों की मौत हो गई थी। आज पूरे विश्व में कहीं कोई ऐसी प्रणाली नही है जो भूकंप से जुड़ी भविष्यवाणी कर सके लिहाजा  सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है। प्राकृतिक आपदा और मानवजनित आपदा से निपटने के लिए केवल बचाव ही एक मात्र रास्ता है। इसी बचाव कार्य को ठोस स्वरूप प्रदान करने के लिए 2005 मे एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून 2005 अस्तित्व में आया। 2006 में इस कानून के तहत राष्ट्रीय आपदा  प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया। प्रधानमंत्री को इस प्राधिकरण का केन्द्र के स्तर पर अध्यक्ष बनाया गया है, राज्यों के स्तर पर मुख्यमंत्री और जिले के स्तर पर जिलाधिकारी को बनाया गया है। आज हर साल बाढ़, सूखे, भूकंप और  जमीन का खिसकना जैसी आपदाऐं आम हैं। जाहिर तौर पर इन्हें रोका नही जा सकता मगर हमारी तैयारियां इसमें होने वाले जानमाल को कम कर सकती है। अभी तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण मानवजनित आपदा और दैवीय आपदा को लेकर 26 दिशानिर्देश जारी कर चुका है। इसके अलावा राज्य सरकारों को इन स्थितियों ने निपटने के लिए सुझाव भी दिए गए हैं, मगर राज्य इसपर गंभीर नही दिखाई देते। देष में 2009 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति सामने आई जिसमें आपदाओं से निपटने की खाका तैयार किया गया। साथ ही केन्द्र के स्तर पर 10 बटालियन का गठन राष्ट्रीय आपदा रिस्पोंस फोर्स के तौर पर किया गया है। इसी तरह राज्यों और जिलास्तर में भी रिस्पोंस गठन का प्रस्ताव है मगर इसे अमलीजामा पहनाना राज्यों के हाथ में है। भारत को भूकंप के लिहाज से चार क्षेत्रों में बांटा गया है। यह जोन 2 से लेकर जोन 5 तक है। जहाॅं जोन 5 को भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदनशील माना जाता है वहीं जोन  2 को निम्न संवेदनषील के तौर पर देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर पूर्वोतर के राज्यों के साथ जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश, और पश्चिमी बिहार के कुछ क्षेत्र जोन पांच में आते हैं। जोन चार में जम्मू कश्मीर, हिमांचल और उत्तराखंड के बाकी बचे क्षेत्र के साथ दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ भाग आते हैं। इतिहास गवाह है कि पिछले 100 सालों में इस देष को चार महाभयंकर भूकंप से दो चार होना पड़ा। इसमें कांगड़ा 1905,
 बिहार-नेपाल 1934, असम 1950, और उत्तरकाषी 1991 शामिल है। इतनी बड़ी आपदाओं को झेलने के बावजूद हमारी कार्यषैली में कोई खास बदलाव नही आत दिखाई देता। हमेष की ही तरह में घटना हो जाने के बाद नींद से जागते है और कुछ दिन बाद भूल जाते हैं। आज सबसे ज्यादा खतरा है उन गगनचुंबी इमारतों को है जिन्हें निश्चित निर्माण मानकों के आधार पर नही बनाया गया है। कुछ विशेषज्ञ तो यहां तक कहते हैं कि घरों के भूकंप झेलने  की क्षमता का खुलासा हो जाए तो लोगों में दहशत फैल जाएगी। अकेले देश की राजधानी में भारी तादाद में ऐसी इमारतें है जो 6 से 6.5 तीव्रता वाले भूकंप के दौरान ताष के पत्तों की तरह जमीन पर बिखर जाऐंगी। ऐसी स्थिति में हमारे नीतिनिर्माताओं के पास क्या जवाब होगा। सिर्फ हर कोई एक दूसरे पर
दोषारोपण होगा। प्राथमिक तौर पर बिल्डिंग निमार्ण काूनन के प्रावधन तय करना और उसे क्रियान्वित करना राज्यों का दायित्व है मगर केन्द्र सरकार ने भी राज्यों के इस विषय में आवश्यक दिशानिर्देष जारी कर रखें हैं। यह बात दिगर है कि यह दिशानिर्देषों पर राज्यों ने आंख मूंद रखी है। यहां तक खुद केन्द्र सरकार की  जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय नवीकरण मिषन, इंदिरा आवास योजना और राजीव आवास योजना में भी इस बात का ख्याल नही रखा गया है। देष में आने वाली प्राकृतिक आपदाऐं न सिर्फ जानमाल का नुकसान करती हैं बल्कि यह अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख देती हैं। पीड़ितों को सालों साल मुआवजे का इंतजार करना पड़ता है। अपना सब कुछ गवां चुके परिवारों की किस्मत में सिर्फ और सिर्फ इंतजार रह जाता है। जो मुआवजा मिलता भी है उसकी रकम भी ना के बराबर होती है। अभी कुल साल पहले जापान में आएं भयंकर भूकंप के बाद आई सुनामी ने वहां भारी तबाही मचाई। यहां तक की जापान के फूकुशिमा परमाणु संयंत्र को भारी नुकसान पहंुचा। कहा यह भी जाता है कि अगर जापान ने अपने यहां हो रहे निर्माण कार्यों में कानून का प्रभावी क्रियान्वयन नही किया होता तो तबाही का मंजर कई गुना ज्यादा होता। लिहाजा हमारी सरकारों के लिए यह जरूरी है कि हम अपने बिल्डिंग बाइलौज के प्रावधानों को प्रभावी तरह से लागू करें। हाल ही में ऐसे कई अध्यन सामने आऐं है जिसमें यह साफ कहा गया है की साधारण तीव्रता वाला भूकंप भी राजधानी दिल्ली में तबाही मचा सकता है। क्योंकि सबसे ज्यादा जनहानी कमजोर इमारतों के ढहने से होती है। साथ ही राज्यों और जिला स्तर में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी की आवश्यकता है। लोगों में ऐसी परिस्थिति से निपटनें के लिए
जागरूता फैलाई जाए। मसलन भूकंप आता है तो हमें क्या करना चाहिए? बाढ़ आती है तो हमें अपने व अपने परिवार की सुरक्षा कैसे करनी होगी? राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इसके लिए कुछ दिशानिर्देष बनाए है मगर एनडीएमए के बेवसाइट से निकलकर आम व्यक्ति तक उनकी पहुंच हो। आज जरूरत है कि हर राज्य अपनी आपदा प्रबंधन योजना को तैयार करें। साथ ही केन्द्र सरकार को चाहिए इस काम में राज्यों की क्षमता बड़ाने के लिए उसे आर्थिक मदद मुहैया करवाए। राज्य खुद भी आपदा प्रबंधन को गंभीरत से लें। खासकर वो राज्य जो सिस्मिक जोन 4 और 5 में आते हैं।नेपाल इस त्रासदी से निपटने के लिए बिलकुल भी तैयार नही था। मगर भारत के हालात भी इससे बेहतर नहीं?