शनिवार, 31 दिसंबर 2011

शेयर बाज़ार



शेयर बाज़ार सक्यूरिटीज कानट्रैक्ट (रेगुलेशन) एक्ट के तहत बना स्टाक एक्सचेंज

भारत में 23 स्टाक एक्सचेंज, इनमें दो राष्ट्रीय एक्सचेंज

बीएसई और एनएसई हैं राष्ट्रीय स्तर के एक्सचेंज

सेबी की देखरेख में चलता है शेयर बाज़ार

निवेशकों के फायदे के लिए 1992 में बना सेबी

सेबी ने पब्लिक इश्यू की ग्रेडिंग 2007 से अनिवार्य बनाया

2010 में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 221 अरब डालर का निवेश किया

5 नवंबर क¨ सबसे ऊंचे स्तर 21,005 अंक पर बंद हुआ बीएसई

सबसे ऊंचे स्तर को छूने के बाद अब तक 3000 अंक गिरा है सूचकांक

करीब 25 ब्रोक्रेज फर्मों, म्युचूअल फंड और एफआईआई सेबी की जांच के घेरे में

तीन बियर कार्टेल के सक्रिय होने का अंदेशा

़बियर कार्टेलःऐसी कंपनियां जो एक कंपनी विशेष के शेयरों के भाव गिराने के लिए साथ काम करे

मुश्किल में नौकरी


अर्थव्यवस्था की सबसे तेज़ विकास दर वाले देशों में शामिल है भारत

विकास दर में बड़े युवा वर्ग का महत्तवपूर्ण योगदान

बड़ी संख्या में शिक्षित युवक रोजगार की अपेक्षाओं को¨ पूरा करने में असमर्थ

एक तरफ बेरोजगारी, दूसरी तरफ कुशल कामगारों की भारी कमीः एसोचैम

सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 24 फ़ीसदी गिरावट

आईटी, अकादमिक और बायोटेक्नोलाजी के क्षेत्र में कुशल कामगारों की भारी मांग

90 फ़ीसदी रोजगार विशेषज्ञता और कौशल पर आधारित, ऐसी नौकरियों के लिए प्रशिक्षण जरुरी

सिर्फ़ 6 फ़ीसदी को प्रशिक्षण की सुविधा

अगले वर्ष तक एक से डेढ़ करोड़ नई नौकरियां

देश के जीडीपी में सेवा क्षेत्र का आधे से ज़्यादा हिस्सा

54 फीसदी ग्रजवेट मासिक कमाते हैं महज 600 रूपया

सरकार का लक्ष्य 2022 तक 50 करोड़ आबादी को कौशल प्रदान करना

इसके लिए सरकार ने शुरू किया है कौशल विकास कार्यक्रम

रियल एस्टेट पर निगरानी जरूरी


ट्रांसफर आफ प्रापर्टी एक्ट 1882 के तहत होती है भूसंपत्ति की खरीद-फरोख्त

ज़मीन के मालिकाना हक का अधिकार स्पष्ट नहीं होने पर मुश्किलें

रिकार्ड रखने की अपर्याप्त व्यवस्था से स्थिति खराब

संपत्ति की खरीद-बिक्री और लीज़ का रजिस्ट्रेशन होता है इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के तहत

जमीन के हस्तांतरण की ऊंची स्टाम्प ड्यूटी समस्या की एक वजह

रियल एस्टेट मार्केट में लगता है सबसे ज्यादा काला धन

रियल एस्टेट (रेगुलेशन आफ डेवेलपमेंट) कानून बनाने की तैयारी

खरीदारों के हित का ध्यान रखा गया है प्रस्तावित कानून में

कानून में बिल्डरों के लिए ज़मीन के मालिकाना हक की जानकारी देना किया गया अनिवार्य

बढ़ते बलात्कार


तेजी से बढ़ी हैं बलात्कार और छेड़छाड़ की वारदातें

2007-09 तक देश में 63,600 घटनाएं दर्ज

अधिकतर मामलों की रिपोर्ट नहीं लिखाई जाती

बलात्कार के मामलों के लिए आईपीसी की धारा 375 में निर्देश

जबरन यौन संबंध कायम करने पर बनता है बलात्कार का मामला

धारा 376 में जबरन यौन संबंध के लिए सजा का प्रावधान

कम से कम सात साल की जेल का प्रावधान

आजीवन कारावास का भी प्रावधान

बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवजे की योजना

पीड़िता को दो लाख रुपए तक के मुआवजे का प्रावधान

विकलांग पीड़ितों के लिए तीन लाख रुपए तक का मुआवजा

अदालत का नया फैसलाः शरीर के किसी भी अंग से छेड़छाड़ का मामला बलात्कार माना जाए

साक्षी बनाम भारत सरकार और अन्य मामले में दिया अदालत ने फैसला

बलात्कार के मामलों से कड़ाई से निपटने के लिए कानून में संशोधन जरुरी
 

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

लोकपाल की लड़ाई


गुरूवार को राज्यसभा में वही हुआ जिसका अंदेशा पहले से ही लगाया जा रहा था। लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 मैराथन चर्चा के बाद पारित नही हो सका था। आंकड़े जुटाने में नकाम रही सरकार को वोटिंग पर  फैसला टालना पड़ा। सरकार के मुताबिक इस चर्चा में जो 187 संशोधन आऐं है उसके अध्ययन के बाद वह बजट सत्र में दोबारा इस विधेयक को लाएगी। झटका उनके लिए था जो इन दिन तीनों में टकटकी लगाए संसद की ओर निहार रहे थे। हर आमोखास में चर्चा का यही मुददा था। क्या यह संसद एक मजबूत और सशक्त लोकपाल बनाने का इतिहास रचेगी? क्या 43 साल का इंतजार खत्म होगा? क्या अब तक का किया हुआ यह 10 वा प्रयास सफल रंग लाएगा? क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ इस देष में एक लोकपाल आ पाएगा? मगर आधी रात तक संसद पर नजरें गढ़ाये बैठी नता को मिली तो सिर्फ और सिर्फ मायूसी। इससे पहले लोकसभा में यह विधेयक पारित तो हो गया मगर लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिलाने में सरकार नाकामयाब रही। दरअसल संविधान संशोधन के लिए जरूरी आंकड़े सरकार नही जुटा पाई। बहरहाल अब राजनेता इसके लिए एक दूसरे को कोस रहें है।अब सबकी नजरें एक बार फिर अन्ना हजारे की तरफ है।

जापानी बुखार का कहर


जपानी बुखार देश के बड़े हिस्से में एक बड़ी समस्या बन चुका है। देश के आधे से ज्यादा राज्यों में इसका कहर देखने को मिल रहा है। असम, बिहार, गोवा, हरियाणा, तमिलनाडू और उत्तर प्रदेश में जापानी बुखार के सैकड़ों मामले साल दर साल सामने आते रहे हैं। लेकिन इसमे सबसे ज्यादा हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। जापानी बुखार के 70 से 75 फीसदी मामले उत्तर प्रदेश में हैं। आकंड़ों पर नजर डाले तो -

2007 में 3024 मामलें सामने आए जिनमें 645 बच्चों की मौत हुई। 2008 में 3012 मामलों में 537 बच्चों को जान गंवानी पड़ी। 2009 नवबंर तक 2936 मामलों में 520 बच्चों की मौत हो चुकी थी। 2010 में 5149 मामले सामने आए जिनमें 677 मौत हुई। इस साल 6297 मामले सामने आ चुके हैं और 500 से ज्यादा मौत हो चुकी हैं।

दरअसल में इस बुखार की चपेट में 15 साल के बच्चे ज्यादा आते हैं। इनमें 25 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है जबकि 30 से 40फीसदी बच्चे दिमागी या शारिरिक समस्या के शिकार बन जाते हैं। बिडंबना ये है कि अब तक इस बीमारी से निपटने के लिए कोई सटीक दवाईं खोजी नहीं जा सकी हैं। हांलाकि बचने के लिए वैक्सीन तो है लेकिन उसके लिए भी चीनी कंपनी पर निर्भर रहना पड़ा है। बहरहाल कागजी दावों की कोई कमी नहीं है। केन्द्र ने इस मुददे पर एक और जीओएम बना दिया है। संबधित मंत्री प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। पीने के साफ पानी और साफ सफाई की बात की जा रही है। लेकिन अफसोस कि इस जानलेवा बीमारी पर भी काम कम और राजनीति ज्यादा हो रही है। केन्द्र सरकार की मानें तो राज्यों को इसके लिए पर्याप्त फंड मुहैया कराया जा रहा है। इसके उपचार के लिए बनाई गई दवा जीव के जल्द बाजार में आने की उम्मीद है।

रविवार, 25 दिसंबर 2011

कानूनी समझौता और करारनामा


हर तरह के राज़ीनामे को अनुबंध का दर्जा नहीं

अनुबंध या करार ऐसा समझौता है जिसे कानूनी तौर पर लागू कराया जा सकता है

करार में प्रस्ताव और स्वीकृति का साफ़-साफ़ ज़िक्र जरुरी

सभी पक्षों की स्वतंत्र सहमति के बाद ही अनुबंध को वैध माना जाएगा

समझौताः दो पक्षों का एक दूसरे से किया गया वादा

प्रस्तावकः प्रस्ताव करने वाला पक्ष

स्वीकृतिकर्ताः प्रस्ताव मानने वाला पक्ष

समझौतां के प्रकार: आम सहमति, संधि, समझौता ज्ञापन, कानूनी तौर पर लागू होने वाला अनुबंध

अनुबंध करने वाले पक्षों क¨ कानूनी रुप से सक्षम होना जरुरी

वैध अनुबंध के लिए सभी पक्षों का वयस्क ह¨ना जरुरी

वैध अनुबंध में धन और माल के लेनदेन या सेवाओं के आदान-प्रदान का ज़िक्र जरुरी

अनुबंध की वैधता के लिए प्रस्ताव के निरस्त या स्वीकृत होने की सूचना का लेनदेन महत्वपूर्ण

अनुबंध वैध तभी होगा जब सभी पक्षों को प्रस्ताव के निरस्त या स्वीकृत होने की सूचना हो  

समझौतो की शर्तों को तोड़ने पर मुआवज़े का किया जा सकता है दावा

एक पक्ष अनुबंध तोड़े तो दूसरे पक्ष को अदालती कार्रवाई का अधिकार



 

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

बढ़ते सड़क हादसे


भारत में होते हैं सबसे ज्यादा सड़क हादसे

हर साल यहां होते हैं पांच लाख सड़क हादसे

2009 के दौरान सड़क हादसों  में 1.26 लाख लोग मरे

2008 में सड़क दुर्घटना से 1.18 लाख की मौत

सड़क दुर्घटना में पीड़ित व्यक्ति क¨ मिलता है मुआवजा

दुर्घटना के लिए जिम्मेदार व्यक्ति से मुआवजा दिलवाने का है प्रावधान

धारा 140-144 में नो फाल्ट बेसिस क्लेम का प्रावधान

दुर्घटना की जिम्मेदार वाहन की पहचान न ह¨ने पर नो फाल्ट बेसिस क्लेम के तहत पीड़ित क¨ राहत

हिट एंड रन केस के पीड़ित कर सकते हैं मुआवजे का दावा

मामला साबित ह¨ने पर जनरल इंश्योरेंस कारपोरेशन देती है मुआवजा

धारा 145-164 में थर्ड पार्टी इंश्योरेंस अनिवार्य

मोटर वाहन कानून 1988 में बदलाव के लिए 2010 में बनी समिति

समिति ने दिए हैं तीन मुख्य सुझाव

थर्ड पार्टी क्लेम की सीमा 10-15 लाख रुपए तक सीमित करने का सुझाव

मुआवजे के लिए दावा करने की अवधि तीन साल करने की सिफारिश

दुर्घटना क्षेत्र में ही मुआवजे का दावा दायर करने की अनुमति का सुझाव

फिलहाल देश में कहीं से भी दायर किया जा सकता है दावा

पेंशन और ग्रैच्यूटी


10 साल की सेवा के बाद पेंशन और 5 साल की सेवा पर ग्रैच्यूटी का प्रावधान

अपनी पेंशन का हिस्सा बेचा भी जा सकता है

सेवानिवृति के बाद एक मुश्त मिलने वाली राशि है ग्रैच्यूटी

सेवानिवृति के बाद हर माह मिलने वाला भत्ता है पेंशन

10 साल से कम सरकारी सेवा होन पर मिलती है ग्रैच्यूटी

सेवा ग्रैच्यूटीः हर छमाही के लिए आधा मासिक वेतन

किसी बकाया राशि का भुगतान करना जरुरी

सभी सरकारी कर्मचारी प्रोविडेंड फंड में कर सकते हैं अंशदान

निलंबन की अवधि को छोड़ कर हर माह करना होता है अंशदान

पीएफ में अंशदान की दर वेतन का 6 फ़ीसदी से कम नहीं

पेंशन के गैर-हकदार कर्मचारियों  के लिए कंट्रीब्यूटरी पीएफ का प्रावधान

कंट्रीब्यूटरी पीएफ में कम से कम वेतन का 10 फ़ीसदी अंशदान

बची हुई छुट्टियों को  भी भुनाया जा सकता है

300 दिन तक की छुट्टियां भुनाई जा सकती है

संपत्ति में महिलाओं का अधिकार


विरासत में मिली संपत्ति पर महिलाओं का हक

उत्तराधिकार कानून, 1925 हिन्दू जैन, मुस्लिम, बौद्ध अ©र सिखों पर लागू नहीं

हिन्दू उत्तराधिकार कानून बना 1956 में

1956 से पहले हिन्दू परिवारों में रीति-रिवाजों के आधार पर होता था संपत्ति का बंटवारा

हिन्दू उत्तराधिकार कानून हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध समुदायों पर लागू

हिन्दू उत्तराधिकार कानून, 1956 में महिलाओं को संपत्ति में पुरुषों के समान हक़

2005 में हुआ हिन्दू उत्तराधिकार कानून में संशोधन

संपत्ति पर बेटे-बेटियों के अलावा मृतक की विधवा क¨ भी संपत्ति का हिस्सा

हिन्दू उत्तराधिकार कानूनः अविवाहित, विधवा, परित्यक्ता, पति से अलग रह रही बेटी क¨ संपत्ति का हक

विवाहित बेटियों को संपत्ति में अधिकार नहीं

मुसलमानों में उत्तराधिकार के मामलों के लिए लागू होता है मुस्लिम पर्सनल ला

अंतरधार्मिक विवाह होने पर विशेष विवाह कानून, 1954 से हल होते हैं उत्तराधिकार के विवाद


महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा

2010ः महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा और उत्पीड़न की सवा लाख वारदातें दर्ज

2009 में महिला उत्पीड़न के दो लाख से ज्यादा मामले दर्जः एनसीआरबी

भारत में महिलाओं की तस्करी, भ्रूण हत्या जैसी वारदातें बड़े पैमाने पर

कन्या भ्रूण हत्या के चलन के कारण बच्चों में महिला-पुरुष अनुपात बिगड़ा

रोजाना  1600 कन्या भ्रूण हत्या के मामलेः रिपोर्ट

1971 में एमटीपी एक्ट के तहत गर्भपात क¨ मिली कानूनी मान्यता

एमटीपी एक्ट की आड़ में कन्या भ्रूण हत्या

असम में 2000-09 के दौरान महिलाओं की तस्करी के 236 मामले

सभी राज्यों को मानव-तस्करी रोकने की इकाईयां गठित करने के लिए बजट में प्रावधान

महिलाओं के खिलाफ़ घरेलू हिंसा लगातार बढ़ीः एनसीआरबी

2009 में आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा 2700 मामले दर्ज

21 साल में 69,000 दहेज उत्पीड़न के मामले दर्ज

सिर्फ़ 34,000 में मुकदमे की कार्रवाई पूरी

2009 में बलात्कार के 21,000 मामले दर्ज

छेड़छाड़ और बलात्कार के मुकदमों में सिर्फ़ 27 फ़ीसदी मामलों में आरोप तय

राज्यों में जिला स्तर पर क्राइम एगेन्स्ट विमेन सेल गठित करने की बात




मुआवज़े का हक़

किसी वारदात या हादसे से प्रभावित लोगों को मुआवज़े का अधिकार

हादसों में होन वाली जानमाल की क्षति की पूर्ति के लिए मुआवज़ा

आतंकी वारदातों में घायलों और मृतकों के आश्रितों को मुआवज़े का अधिकार

रेल-सड़क हादसों, हवाई दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवज़े का प्रावधान

मुआवज़े के दावे के लिए कई कानूनी और  प्रशासनिक प्रक्रियाएं

पीड़ितों के लिए अपराध संहिता की धारा 357 में मुआवज़े का प्रावधान

अपराध संहिता की धारा 357-ए में सरकार को मुआवज़ा राशि के लिए कोष बनाने के निर्देश

13 जुलाई को मुंबई में बम धमाकों में 21 की मौत, 113 घायल

महाराष्ट्र सरकार मृतकों आश्रितों को देगी पांच लाख का मुआवज़ा

बम धमाके के घायलों के इलाज का खर्च भी उठाएगी महाराष्ट्र सरकार

बलात्कार की शिकार महिलाओं को मुआवज़े की योजना 1 अगस्त से शुरु

बलात्कार की शिकार महिला को दो लाख रुपए के मुआवज़े का अधिकार

किराया नियंत्रण कानून


किराएदारों के अधिकारों की रक्षा के लिए बना किराया नियंत्रण कानून

1992 में केन्द्र ने बनाया किराया नियंत्रण के लिए माडल एक्ट

माडल एक्ट में उत्तराधिकार संबंधी मौजूदा प्रावधान से में बदलाव की बात

गिनेचुने राज्यों ने ही लागू किया किराएदारी का माडल एक्ट

महाराष्ट्र के नए कानून में विवादों से निपटने के पर्याप्त प्रावधान

दिल्ली, तमिलनाडु और कर्नाटक के किराया नियंत्रण कानून में भी विवादों के हल का प्रावधान

राज्य किराया कानूनों में किराए की मानक दरें लागू करने का प्रावधान

मकान के मालिकाना हक और उत्तराधिकार तय करने के प्रावधान भी है राज्य किराया कानूनों में

कोई सम्पत्ति किराए या पट्टे पर देने के लिए तय फार्म भरना जरुरी

फार्म पर किराएदार और मकान मालिक के हस्ताक्षर अनिवार्य

करार होन पर रजिस्ट्री कराना अनिवार्य

दोनों पक्षों के पास होनी चाहिए करार की प्रति

करार में पट्टे की अवधि, मासिक किराए और जमानत की राशि का उल्लेख अनिवार्य

मकान वापस मालिक को सही हालत मिले, कोई टूट-फूट या बड़ा बदलाव न किया गया हो

कोई बदलाव मकान मालिक को मंजूर नहीं तो उसे पहले की स्थिति में लाने का जिम्मा किराएदार का

मकान खाली करते समय किराएदार अपने बिजली और टेलीफोन बिल चुका ले

1959 में लागू हुआ दिल्ली किराया नियंत्रण कानून

3500 रुपए तक के मासिक किराए वाले सम्पत्ति पर लागू होता है यह कानून

50-150 रुपए मासिक किराए वाली कई सम्पत्तियां दिल्ली के पाश इलाकों में

दिल्ली किराया नियंत्रण कानून में हर तीन साल पर 10 फ़ीसदी वृद्धि का प्रावधान 1988 में शामिल

1995 में लाया गया नया दिल्ली किराया कानून विरोध के कारण लागू नहीं

अप्रैल 2010 में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले से मकान मालिकों को राहत

निजी ज़रुरत होने पर मकान खाली करने का नोटिस दे सकते हैं मालिक

शेयर बाज़ार

सक्यूरिटीज़ कानट्रैक्ट (रेगुलेशन) एक्ट के तहत बना स्टाक एक्सचेंज

 भारत में 23 स्टाक एक्सचेंज, इनमें दो राष्ट्रीय एक्सचेंज

बीएसई और एनएसई हैं राष्ट्रीय स्तर के एक्सचेंज

सेबी की देखरेख में चलता है शेयर बाज़ार

निवेशकों के फायदे के लिए 1992 में बना सेबी

सेबी ने पब्लिक इश्यू की ग्रेडिंग 2007 से अनिवार्य बनाया

2010 में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 221 अरब डालर का निवेश किया

5 नवंबर को सबसे ऊंचे स्तर 21,005 अंक पर बंद हुआ बीएसई

सबसे ऊंचे स्तर को छूने के बाद अब तक 3000 अंक गिरा है सूचकांक

करीब 25 ब्रोक्रेज फर्मों, म्युचूअल फंड और एफआईआई सेबी की जांच के घेरे में

तीन बियर कार्टेल के सक्रिय होने का अंदेशा

बियर कार्टेलःऐसी कंपनियां जो एक कंपनी विशेष के शेयरों के भाव गिराने के लिए साथ काम करें

यौन शोषण के मामले


शारीरिक शोषण, अशिष्ट बातचीत या अश्लील चित्र दिखाना सभी यौन शोषण के दायरे में

60 फ़ीसदी कामकाजी महिलाएं होती हैं यौन शोषण की शिकारः सर्वे

पिछले पांच साल में महिलाओं पर अत्याचार के मामले बढ़ेः एनसीआरबी

सामाजिक दबाव से शिकायत दर्ज कराने से बचती हैं अधिकतर पीड़ित महिलाएं

विकसित देशों में संगीन अपराध है कार्यस्थल पर यौन शोषण

सुरक्षित वातावरण में काम करने के अधिकार का उल्लंघन है यौन शोषण

कार्यस्थल पर यौन शोषण मानवाधिकार उल्लंघनः सर्वोच्च न्यायालय, 1997

कार्यस्थल पर यौन शोषण की रोकथाम के लिए 2010 में लाया गया विधेयक

सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कार्यस्थल पर लागू होंगे विधेयक के प्रावधान

घरेलू कामगारों को विधेयक के दायरे में लाना मुश्किल



नौकरी से जुड़े मामले


अर्थव्यवस्था की सबसे तेज़ विकास दर वाले देशों में शामिल है भारत

विकास दर में बड़े युवा वर्ग का महत्वपूर्ण योगदान

बड़ी संख्या में शिक्षित युवक रोजगार की अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ

एक तरफ बेरोजगारी, दूसरी तरफ कुशल कामगारों की भारी कमीः एसोचैम

सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 24 फ़ीसदी गिरावट

आईटी, अकादमिक और बायोटेक्नोलाजी के क्षेत्र में कुशल कामगारों की भारी मांग

90 फ़ीसदी रोजगार विशेषज्ञता और कौशल पर आधारित, ऐसी नौकरियों के लिए प्रशिक्षण जरुरी

सिर्फ़ 6 फ़ीसदी को प्रशिक्षण की सुविधा

अगले वर्ष तक एक से डेढ़ करोड़ नई नौकरियां

देश के जीडीपी में सेवा क्षेत्र का आधे से ज़्यादा हिस्सा


सूचना का अधिकार कानून 2005


2005 में लागू सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून

आरटीआई पर अमल करने के लिए 2005 में गठित हुआ केन्द्रीय सूचना आयोग

संविधान की धारा 19(1)ः जनता को सरकार के कामकाज की जानकारी का अधिकार

80 से ज्यादा देशों में है सूचना के अधिकार का प्रावधान

13 फ़ीसदी ग्रामीण जनता को है आरटीआई की जानकारी

शहरों में 33 फ़ीसदी लोग जानते हैं आरटीआई के प्रावधान

14000 मामले अब भी सूचना आयोग में लंबित

आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले की घटनाएं बढ़ीं, कई ने जान गंवाई

सूचना आयोग में अपील दायर करने पर सूचना मिलने के 27 फ़ीसदी आसार

शिक्षा का अधिकार कानून

1 अप्रैल 2010 में लागू हुआ शिक्षा का अधिकार कानून

शिक्षा 6-14 वर्ष तक के बच्चों का बुनियादी हक

आठवीं कक्षा तक मुफ़्त और ज़रुरी शिक्षा का प्रावधान

जून 2011ः दसवीं की कक्षा तक मुफ़्त शिक्षा देने पर विचार

कानून से स्कूल नहीं जाने वाले 81 लाख बच्चों को सीधा फायदा

सबको शिक्षा सुलभ कराने के लिए सर्व शिक्षा अभियान

निजी स्कूलों को 25 फ़ीसदी सीटें ग़रीबों को देनी होंगी

2011-12 के लिए आरटीई लागू करने के लिए 21,000 करोड़ रुपए की जरूरत

वित्त की कमी, शिक्षकों की कमी और बुनियादी ढांचे का संकट है सामने

50 बच्चों पर एक शिक्षक मौजूद, 30 बच्चों में एक शिक्षक का लक्ष्य

12 लाख प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी

प्राथमिक स्कूलों में फिलहाल सात लाख शिक्षक

प्राथमिक शिक्षकों में से तीन लाख को मिला थोड़ा बहुत प्रशिक्षण

शिक्षा के बुनियादी तंत्र में निजी निवेश की कमी

75,000 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे

6000 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं

12 लाख मान्यता प्राप्त प्राथमिक स्कूल



रियल एस्टेट के मामले


ट्रांसफर आफ प्रापर्टी एक्ट 1882 के तहत होती है की खरीद-फरोख्त

ज़मीन के मालिकाना हक का अधिकार स्पष्ट नहीं होन पर  मुश्किलें

रिकार्ड रखने की अपर्याप्त व्यवस्था से स्थिति खराब

संपत्ति की खरीद-बिक्री और लीज़ का रजिस्ट्रेशन होता है इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के तहत

जमीन के हस्तांतरण की ऊंची स्टाम्प ड्यूटी समस्या की एक वजह

रियल एस्टेट मार्केट में लगता है सबसे ज्यादा काला धन

रियल एस्टेट (रेगुलेशन आफ डेवेलपमेंट) कानून बनाने की तैयारी

खरीदारों के हित का ध्यान रखा गया है प्रस्तावित कानून में

कानून में बिल्डरों के लिए ज़मीन के मालिकाना हक की जानकारी देना किया गया अनिवार्य


यौन शोषण और कानून


तेजी से बढ़ी हैं बलात्कार और छेड़छाड़ की वारदातें

2007-09 तक देश में 63,600 घटनाएं दर्ज

अधिकतर मामलों की रिपोर्ट नहीं लिखाई जाती

बलात्कार के मामलों के लिए आईपीसी की धारा 375 में निर्देश

जबरन यौन संबंध कायम करने पर बनता है बलात्कार का मामला

धारा 376 में में जबरन यौन संबंध के लिए सजा का प्रावधान

कम से कम सात साल की जेल का प्रावधान

आजीवन कारावास का भी प्रावधान

बलात्कार पीड़ितों के लिए मुआवजे की योजना

पीड़िता को दो लाख रुपए तक के मुआवजे का प्रावधान

विकलांग पीड़ितों  के लिए तीन लाख रुपए तक का मुआवजा

अदालत का नया फैसलाः शरीर के किसी भी अंग से छेड़़छाड़ का मामला बलात्कार माना जाए

साक्षी बनाम भारत सरकार और अन्य मामले में  दिया अदालत ने फैसला

बलात्कार के मामलों से कड़ाई से निपटने के लिए कानून में में संशोधन जरुरी
 

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

अन्ना अनशन और लोकपाल


आखिरकार इंतजार खत्म हुआ और सरकार ने बहुप्रतिक्षित लोकपाल विधेयक को संसद के पटल पर पेश कर दिया। यह 10 वां मौका होगा जब लोकपाल से जुड़ा विधेयक संसद में पेश किया गया। आखिरकार भारी दबाव के चलते सरकार ने इस पर बहस के लिए 27 से लेकर 29 दिसंबर का तारीख मुकर्रर की है। इसके लिए संसद का सत्र तीन दिन के लिए आगे बढ़ाया गया है। मगर संसद के मूड को देखकर लगता नही की लोकपाल की डगर इतनी आसान होगी। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पाटी समेत सभी राजनीतिक दलों ने सरकार के बिल के मसौदे पर कमियां निकालना शुरू कर दिया है। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने तो इसे असंवैधानिक तक करार दे दिया। बीजेपी को सबसे ज्यादा नाराजगी अल्पसंख्यकों के आरक्षण को लेकर थी। दरअसल इस विधेयक में कहा गया है कि लोकपाल का एक 9 सदस्यीय पैनल होगा जिसमें आठ सदस्य और एक अध्यक्ष मतलब लोकपाल होगा। इस पैनल में 50 फीसदी लोग अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति, महिलाओं और अल्पसंख्यकों से होंगे। पहले बिल में अल्पसंख्यक शब्द नही था मगर लालू, मुलायम और बीएसपी के विरोध में सरकार ने इसमें अल्पसंख्यक शब्द बाद में जोड़ा। दूसरी सबसे बड़ी अड़चन धारा 253 थी। बीजेपी ने इस धारा की पुरजोर खिलाफत की। इस धारा के तहत ही लोकपाल कानून बनाना प्रस्तावित है। मतलब केन्द्र की ही तर्ज पर राज्य भी लाकायुक्त बनाने के लिए बाघ्य होंगे। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। बीजेपी के लिए मुश्किल यह भी है की हाल ही में उत्तराखंड और बिहार ने लोकायुक्त कानून पारति किया है। मतलब यह कानून इस रूप में पारित होाग तो इन राज्यों को नए सिरे से लोकायुक्त का गठन करना होगा। इसलिए ज्यादातर राजनीतिक दलों का यह कहना है कि यह कानून एक माडल एक्ट की तरह हो जिसे मानने या ना मानने के लिए राज्य सरकारें बाध्य न हो। विधेयक के मसौदे पर कुछ राजनीतिक दलों ने सरकार को सीधे कठघरे में खड़ा कर दिया। मसलन सरकार पर यह आरोप लगा की अन्ना के अनशन से डरकर सरकार जल्दबाजी में ऐसा विधेयक लेकर आई है जिसमें कई गंभीर खामियां हैं। वैसे देखा जाए तो सरकार की मुसीबत कम होने का नाम नही ले रही है। अन्ना हजारे ने लोकपल विधेयक को जनता के साथ धोखा करार दिया है। उनका मानना है कि यह विधेयक 27 अगस्त के उस प्रस्ताव के विपरीत है जिसे संसद ने सर्वसम्मित से स्थाई समिति को भेजा था। गौरतलब है इसमें सीटीजन चार्टर, लोअर ब्यूरोके्रसी और एक ही कानून से लेकापाल और लोकायुक्त बनाने पर सहमति थी। मगर सरकार ने एक को छोड़कर बाकी मांगे नही मानीं। अब अन्ना ने एक बार फिर सरकार के खिलाफ ताल ठोक दी है। 27 को जब सदन लोकपाल पर चर्चा कर रहा होगा अन्ना मुंबई में सरकार को अपनी ताकत का अहसास कराऐंगे। उन्होने अपने कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। तीन दिन के अनशन के बाद वह तीन दिन जेल भरो आंदोलन करेंगे। साथ ही अन्ना हजारे पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में प्रचार करेंगे। कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल यह चुनाव ही है। क्योंकि पांच राज्यों में से पंजाब और उत्तराखंड की सत्ता में काबिज होने की उसे पूरी उम्मीद है। राहत की बात यह है कि सोनिया गांधी ने सरकार द्धारा पेष विधेयक का ख्ुालकार समर्थन किया है। बहरहाल अगर संसद की बात करें तो गुरूवार का माहौल देखकर लगता नही कि राजनीतिक दलों में इस कानून को पारित कराने की कोई खास दिलचस्पी दिखाई देती है।। बीजेपी राजनीतिक फायदे का आंकलन करते हुए अन्ना की ज्यादातर मांगों में सुर से सुर  मिला रही है। कांग्रेस पशोपेश में है बस उसकी नजर राजनीतिक दलों के रूख पर टिकी है। गुरूवार को लोकसभा का नजारा बिलकुल अलग था। लालू प्रसाद, अनंत गीते और गुरूदास दास गुप्ता को अपने भाषणों में सबसे ज्यादा तालीयों सरकार की तरफ से मिली। यानि कांग्रेस अन्ना के खिलाफ खुद खड़ा नही दिखना चाहती मगर अन्ना पर हल्ला बोलने वालों पर उसकी नजरे निगेहबान है। राजनीति का खेल देखिए समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव जंतर मंतर पर अन्ना के समर्थन में पहुंचे मगर लोकसभा में मुलायम सिंह को लोकपाल के रूप में ऐसा दरोगा दिखाई दे रहा है जो नेताओं का जीना मुश्किल कर देगा। जंतरमंतर पर सीपीआई के नेता एबी बर्धन अन्ना के समर्थन पर पहुंचे मगर लोकसभा में उनकी पार्टी के सांसद गुरूदास दास गुप्ता यह कहते दिखे की सड़कों के प्रदर्षन संसद को अपने मनमाफिक कानून बनाने के लिए बाध्य नही कर सकते। गुरूवार को अगर देखा जाए तो लोकसभा का नजारा बिलकुल जुदा था। लोकपाल की चर्चा गायब थी हर ओर एक ही षोर था इसमें अल्पसंख्यकों के लिए जगह कहां हैं। मतलब साफ था राजनीतिक दलों के पास मौका था वोट बैंक के लिए बैटिंग करने का लिहाजा लालू ,मुलायम सब सरकार पर आग बबूला हो गए। बुनियादी सवाल यह है कि अन्ना हजारे की मांगों को क्या यह संसद नजरअंदाज कर देगी। क्या वकाई जनप्रतिनिधि एक मजबूत और सषक्त लोकपाल देश को देना चाहते हैं। जहां टीम अन्ना सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने के लिए सरकार पर लगातार दबाव बनाये हुए है मगर सरकार ने सीबीआई के निदेशक के चयन के अलावा सबकुछ पहले जैसा ही रखा। सीटीजन चार्टर के तौर पर एक अलग विधेयक पेश किया है। न्यायपालिका में मौजूद भ्रष्टाचार सरकार न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक से करेगी। इसके अलावा व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा और काले धन पर रोक जैसे कानूनों के सहारे सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात कर रही है। इससे पहले सरकार सरकारी खरीद में होने वाले भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नई खरीद नीति को अमलीजामा पहना चुकी है। सबसे दिलचस्प यह देखना होगा कि संसद में होने वाली चर्चा के दौरान राजनीतिक दलों का क्या रूख रहता है। इतना जरूर है की देश को एक जबरदस्त बहस देखने के लिए अपने आपको तैयार रखना चाहिए। इसमें कोई दो राय नही की कानून बनाना संसद का काम है। और संसद की संप्रभुता सबसे उपर है मगर बुनियादी सवाल यह है की अगर अन्ना का अनशन नही होता तो क्या सरकार लोकपाल को लेकर इतनी गंभीर मुद्रा में कभी आती। आज सदन में सरकार के सामने आमसहमति के अभाव जरूर है। लिहाजा कानून को पारित कराने की चुनौति कांग्रेसी रणनीतिकारों के सामने बरकारार है। संसद को यह नही भूलना चाहिए कि लोकपाल विधेयक आज हर जनमानस की आवाज में रच बस चुका है। पिछले चार दशकों से जनता इस विधेयक की बाट जोह रही है। 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने केन्द्र के स्तर पर लोकपाल और राज्य के स्तर पर लोकायुक्त को नियुक्त करने की अनुशंसा की थी। चैथी लोकसभा में 1969 में इस विधेयक हो हरी झंडी मिल गई। मगर यह राज्यसभा में पारित नही हो सका। इसके बाद 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998 और 2001 इसे पारित कराने के प्रयास हुए मगर सफलता नही मिल पाई। बहरहाल अब जनता एक मजबूत और सशक्त लोकपाल के लिए और ज्यादा इंतजार करने की स्थिति में नही है।

गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

खाद्य सुरक्षा कानून 2011


सरकार ने खाद्य सुरक्षा विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया है। विधेयक के मुताबिक केन्द्र सरकार 63.5 फीसदी आबादी को सस्ते दरों में राशन मुहैया कराएगी। मसलन ग्रामीण भारत की 75 फीसदी आबादी जिसमें से 46 फीसदी को प्राथमिकता में रखा गया है। इसी तरह शहरों में 50 फीसदी आबादी जिसमें से 28 फीसदी आबादी को प्राथमिकता में रखा गया है। इन सबको सरकार सस्ता अनाज इस कानून के माध्यम से उपलब्ध कराएगी। मसलन प्रथमिकता के मापदंड में खरे उतरने वाले व्यक्ति को चावल, गेहूं और ज्वार दिया जाएगा। इसकी कीमत 3, 2 और 1 रूपये होगी। इससे सरकार को 61 मिलियन टन खाद्यान्न की आवष्यकता होगी जबकि इसका वित्तिय भार 1 लाख करोड़ से ज्यादा होगा। इसके साथ लम्बे समय से इंतजार हो रहे इस कानून के जल्द पारित होने की उम्मीद है। यह कानून इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण होगा की पहली बार उन परिवारों को भोजन का अधिकार दिया जा रहा है जो बमुश्किल दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाते हैं। कानून के लागू होने के बाद भोजन पाना अब इनका कानूनी अधिकार बन जाएगा। जरा सोचिए जिस देश का वैश्विक सूचकांक में 88 देशों में 66वां स्थान हो वहां इस कानून के लागू होने का क्या मतलब है, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। मगर सरकार के सामने कई चुनौतियां एक साथ मुंह बायें खड़ी है। उदाहरण के तौर पर कौन गरीब है। गरीबी मांपने का आदर्श पैमाना क्या होना चाहिए। गरीब कौन है वो जिसे सुरेश तेंदुलकर का अर्थशास्त्र गरीब मानता है या वो जिसे एनसी सक्सेना साहब का मनोविज्ञान गरीब मानता है या फिर वो जिसके बारे में अर्जुन सेना गुप्ता की रिपोर्ट कहती है कि 77 फीसदी की हैसियत प्रतिदिन 20 रूपये से ज्यादा खर्च करने की नही है। या वो जिसके लिए योजना आयोग गांव में 26 रूपये और षहरों में 32 रूपये का मानदंड रखता है। खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने की पहली चुनौति है गरीबों का सही और सटीक आंकलन। इस कानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है। आज देश के 6.52 करोड़ परिवार बीपीएल श्रेणी के तहत आते हैं। इसमें 2.44 करोड़ अति गरीब परिवार भी शामिल हैं। इन परिवारों का पीडीएस के माध्यम से सस्ता राशन मुहैया कराया जाता है। हालांकि राज्य सरकारों ने 10.59 करोड़ परिवारों को बीपीएल कार्ड जारी किए हैं। यही कारण है कि अकसर राज्य सरकारें केन्द्र सरकार पर आरोप लगाती है कि केन्द्र उनके गरीबों को गरीब नही मानता। मसलन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक उनके राज्य में बीपीएल परिवारों की संख्या 1.50 करोड़ है जबकि केन्द्र के मापदंड के मुताबिक 65 लाख परिवार ही बीपीएल श्रेणी में आते है। मुष्किल फर्जी राशन कार्ड भी है जो करोड़ों की तादाद में इस सिस्टम का हिस्सा है। इसमें से करीब 1.80 करोड़ राषन कार्डो को राज्य सरकारें निरस्त भी कर चुकीं है। मगर अब भी इनकी तादाद बहुत ज्यादा है। एक तरफ जरूरत मेंदों के पास बीपीएल राशन कार्ड नही दूसरी तरफ मजबूत आर्थिक लोगों के पास बीपीएल कार्ड उनलब्ध है। लिहाजा यह बहुत जरूरी है की इन कमियों को दूर किया जाए। दूसरी चुनौति है की कानून की जरूरत के मुताबिक उत्पादन कैसे बढ़ाया जाए। एक आंकड़े के मुताबिक वर्तमान में हमारा उत्पादन 245 मिलियन टन के आसपास है जबकि 2020 तक 281 मिलियन टन की दरकार इस देश को होगी। इसके लिए जरूरी है की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाई जाए। हमारे देश में चावल की उत्पादकता में सुधार जरूर हुआ है मगर यह नाकाफी है। उदाहरण के तौर पर हमारे देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 3000 किलो ग्राम के आसपास है जबकि चीन में यही उत्पादन 6074 जापान 5850 और अमेरिका में 7448 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आसपास है। इससे जाहिर होता होता है कि अभी खाद्यान्न सुरक्षा के लिहाज से हमें एक लंबी मंज़िल तय करनी है। इसका उपाय भी भारत के मेहनती किसान के पास है। बस जरूरत है उन्हें उपज का बेहतर मूल्य देन की। तीसरा खाद्यान्न के रखरखाव के लिए भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था की जाए। भंडारण के अभाव में हजारों करोड़ का राशन हर साल खराब हो जाता है। बहरहाल सरकार ने निजि क्षेत्र को लाकर इसका समाधन ढूंढने की कोषिष की है मगर यहा नकाफी है। आज जरूरत है सरकार इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खर्च कर रखरखाव के संसाधन को मजबूत करे। चैथा वितरण प्रणाली को दुरूस्त करना। वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। इसी कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली में कई झोल दिखाई दे रहें हैं। सरकार की आर्थिक समीक्षा के मुताबिक 51 फीसदी पीडीएस का खाद्यान्न काले बाजार में बिक जाता है। इसका मतलब राज्य सरकारें कालाबाजारी रोकने में नाकामयाब रही हैं। कितनी शर्म की बात है कि 51 फीसदी अनाज खुले बाजार में बिक जाता है। मगर सरकारों के पास शिकायतें महज मुठठी भर दर्ज होती है। क्योंकि सारा खेल नेताओं और अफसरशाही की आड़ में होता है। इसलिए कोई भी मामला दर्ज नही हो पाता। सरकारों के नुमाइंदे चाहे वह खाद्य मंत्री हो या खाद्य सचिव दिल्ली के विज्ञान भवन में आकर वितरण प्रणाली में सुधार पर माथापच्ची करते हैं। जबकि इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी या कहें कमाऊपूत यही लोग हैं। खेल का सबसे बड़ा हिस्सा इन्ही की झोली में जाता है। कहने का मतलब है चोरों से चोरी कैसे रोकी जायी इस पर चर्चा की जाती है। कालाबाजारी से जुड़ी शिकायतों पर अगर गौर किया जाए तो 2007 में 99, 2008 में 94, 2009 में 169 और सितंबर 2010 तक 142 शिकायतें पूरे देश में दर्ज हुई। जरा सोचिए जिस देश का 51 फीसदी आनाज कालेबाजार में बिक जाता है वहां मुठ्ठी भर शिकायतें भी दर्ज नही होती। क्या इस निकम्मेपन के सहारे हम वितरण व्यवस्था को सुधारने का दंभ भर रहे है। क्या इस वितरण प्रणाली के सहारे हम खाद्य सुरक्षा कानून को जमीन पर उतार पाऐंगे। जब मामले ही दर्ज नही होगें तो कार्यवाही कहां से होगी। इसमें कोई दो राय नही की खाद्य सुरक्षा कानून एक ऐतिहासिक कानून साबित होगा। मगर इसे लागू करने के लिए केन्द्र और राज्यों दोनों को कमर कसनी होगी। ताकि इस कानून के तहत जो प्रावधान किए जा रहे है वह हर कीमत पर जरूरतमंदों तक पहुंचे।





बुधवार, 14 दिसंबर 2011

पीडीएस और खाद्य सुरक्षा


केन्द्र सरकार खाघान्न की खरीद भंडारण और राज्यों और संध के नामित डिपुओं तक इनकी ढुलाई तथा आकस्मिक लागतों पर होने वाले खर्च को वहन करती है। जबकि डीलरों के कमीशन नामित डिपुओं से आवंटित खाद्यान्नों की ढुलाई और राज्यों के अंदर इनके वितरण पर होने वाला खर्च राज्यों संघ राज्य क्षेत्रों द्धारा वहन किया जाता है। डीलरों का कमीशन और ढुलाई प्रभारों आदि को ध्यान में रखकर राज्यों को अंतिम खुदरा मूल्य निर्धारित करने की छूट दी गयी है।  एक अनुमान के मुताबिक  प्रस्तावित राष्ट्रीय खाघ सुरक्षा कानून के अधिन प्राथमिकता वाले परिवारों के लिए 41.1 मिलियन टन खाद्यान्नों की आवश्यकता होगी जबकि गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए मौजूदा आवंटन 27.7 मिलियन टन है। इसलिए इस कानून के तहत गरीबों के लिए अतिरिक्त 13.4 मिलियन टन अतिरिक्त खाघान्न की जरूरत होगी।
जून माह में 20 राज्यों में 15 किलोग्राम प्रति परिवार को दिया जा रहा है जबकि उत्तराखंड और हिमांचल प्रदेश में 35 किलोग्राम प्रति परिवार प्रति कार्ड  दिया जा रहा है।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

संसदवाणी


संसदवाणी के स्वर से मैं मूक बधिर कहलाता हूं।            
लोकतंत्र की हर घटना को जनमानस में लाता हूं

खोद रहा हूं बुनियादें!  मै!  पत्थर को पाने को
उस दीपक को हाथ  लिये, मैं! ढूंढ रहा तहखाने को
 मैं वो अजगर देख रहा जो माल शौक से खाते है।
 देश के टुकडे-टुकडे करने में भी नही लजाते है!
हर चैनल में गुत्थम-गुत्था , कीचड़ मुंह में फेंक रहे है!
 महंगाई की आग लगाकर रोटी अपनी सेक रहे हैं।

चैनल भी मजबूर हुए है इनकी शक्ल दिखाने को
तैयार खड़ा है राष्ट्रदोह भी राष्ट्रगीत को गाने को
हम तो इनकी भाव-भंगिमा जनता को दिखलाते  हैं।
लोकसभा भी  बोल रही ,क्या नेताओं की बातें हैं।

राजनीति  के  कटुसत्य  को  संसदवाणी बोल रही
भ्रष्टाचारी की  पोल-कपोल  को संसदवाणी खोल रही।
ये संसद की  वाणी  है  जो  राष्ट्र-वाद पर जीती है          
संसद की वाणी  की खबरों में सच्चायी परिणीति है!!

शहरीकरण की चुनौतियां


जनसंख्या के ग्रामीण और शहरी इलाकों में वितरण के आंकड़े जारी
देश की 70 फ़ीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में
121 करोड़ लोगों में 83 करोड़ लोग रहते हैं गांवों में
शहरों में रहते हैं 37 करोड़ लोग
आज़ादी के बाद पहली बार आबादी की वृद्धि दर में गिरावट
पहली बार शहरी क्षेत्र में आबादी में देखी गई तेज़ बढ़ोतरी
शहरीकरण का स्तर 27 फ़ीसदी से बढ़कर 31 फ़ीसदी हुआ
ग्रामीण क्षेत्रों में विकास दर धीमी होन से आबादी में आई कमी
देश में गांवों की संख्या 6.4 लाख
सिक्किम में शहरी आबादी 153 फ़ीसदी बढ़ी
केरल और त्रिपुरा में शहरी आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि
दक्षिणी राज्यों में शहरीकरण उत्तर के मुकाबले ज्यादा तेज़
11वीं योजना  के द©रान शहरों में ढ़ाई करोड आवास की कमी
शहरी बुनियादी सुविधाओं पर प्रति व्यक्ति भारत का खर्च-17 डालर , चीन का 116 डालर
सबसे बड़ी ग्रामीण आबादी उत्तर  प्रदेश में
उत्तर  प्रदेश में 15 करोड़ लोग रहते हैं ग्रामीण इलाकों में
पांच करोड़ की आबादी वाला मुंबई सबसे बड़ा शहर
देश की ग्रामीण आबादी का 18 फीस़दी उत्तर  प्रदेश में
देश की आबादी का 13 फ़ीसदी महाराष्ट्र में
ग्रामीण इलाकों में लिंग अनुपात में खास बदलाव नहीं
एक दशक में 1000 पुरुषों पर 946 के बजाय अब 947 महिलाएं
शहरी इलाकों में 1000 पुरुषों पर 926 महिलाएं
पिछली गिनती में शहरी इलाकों में 1000 पुरुषों पर 900 महिलाओं का अनुपात था

न्यायिक जवाबदेही विधेयक


न्यायिक जवाबदेही विधेयक पास करने की तैयारी पूरी
विधेयक का लक्ष्य न्यायालयों में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म करना
विधेयक पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट दी
रिपोर्ट पटल पर रखने के बाद ही विधेयक पर सदन में चर्चा और मतदान
2010, दिसम्बर में पेश हुआ लोकसभा में विधेयक
न्यायिक व्यवस्था में जवाबदेही तय होगी
पारित होन पर 1968 के न्यायिक (पूछताछ) कानून की जगह लेगा प्रस्तावित विधेयक
विधेयक में न्यायाधीशों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान
न्यायाधीशों क¨ संवैधानिक संस्थाओं पर नुक्ताचीनी से दूर रहने की सलाह
भ्रष्टाचार के आरोप की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति बनेगी
जांच की समिति में दोनों सदनों के एक-एक सदस्य होंगे
पांच सदस्यीय जांच समिति के अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश होंगे
विधेयक के मसौदे में झूठे आरोप लगाने पर पांच साल कैद की सजा़ का प्रावधान
समिति ने पांच साल कैद की अवधि एक साल करने की सिफारिश की
न्यायाधीशों की नियुक्ति में सुधार लाने का सुझाव
न्यायाधीशों का एक कालेजियम करता है जजों की नियुक्ति
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश करते हैं कालेजियम की अगुवाई
कालेजियम के मार्फत नियुक्ति करने का तरीका निकला सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के आधार पर
सर्वोच्च न्यायालय के सन् 93 और 98 के फैसल¨ं के आधार पर शुरु हुई जजों की कालेजियम से नियुक्ति
पहले उच्च स्तरों पर जजों  की नियुक्ति में कार्यपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका
संविधान में जजों की नियुक्ति में कालेजियम की भूमिका का कोई उल्लेख नहीं
न्यायधीशों पर बढ़ते भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद न्यायिक जवाबदेही विधेयक पर सबकी नज़र
कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सौमित्र सेन के खि़लाफ़ राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव पारित
लोकसभा में प्रस्ताव पर चर्चा से पहले ही सौमित्र का इस्तीफ़ा
जस्टिस दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी
सवर्¨च्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीश सबरवाल पर भी गंभीर अरोप
2006 दिल्ली में अवैध भवन गिराने के अभियान के दौरान लगे थे सबरवाल पर अरोप
अभियान के दौरान अपने परिवार को लाभ पहुंचाने का आरोप सबरवाल पर
2008 में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश निर्मल यादव पर भी आरोप
कैश-एट-डोर मामले में उजागर हुआ जस्टिस यादव का नाम

भारत अफगान रिश्ता?


भारत चाहता है स्थिर अफगानिस्तान
1.3 बिलियन डालर की विकास सहायता
ऊर्जा और ढांचागत निर्माण में भारत का योगदान
स्वास्थ्य और शिक्षा में भी महत्वपूर्ण य¨गदान
3749 भारतीय कर रहे हैं अफगानिस्तान में काम
अप्रैल में  भारत आए थे हामिद करज़ई
2005 में अफगानिस्तान गए थे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
1976 के बाद पहली बार 2005 में भारतीय प्रधानमंत्री काबुल गए
2001 से अफगानिस्तान में मौजूद हैं अमेरिकी और नाटो फौजें
नौ साल की लड़ाई के बाद भी शांति कायम नहीं
अफगानिस्तान में जूझ रहें हैं 130,000 विदेशी सैनिक
एक लाख अमेरिकी और 10 हजार ब्रितानी फौजी
उत्तरी अफगगानिस्तान में अगस्त में शुरु होगा बड़ा सौनिक अभियान
2009 में दूसरी बार राष्ट्रपपति चुने गए हामिद करजई
करज़ई को तालिगान गुट से शांति वार्ता के लिए अफगानिस्तान संसद का समर्थन
अफगानिस्तानी संसद ज़िरगा के 1600 सदस्य शांति वार्ता के लिए सहमत
ज़िरगा की बैठक में 16 सूत्रीय  संकल्प पारित
प्रमुख आतंकियों के नाम संयुक्त राष्ट्र की काली सूची से हटाने की मांग
26 तालिबान कैदियों को रिहा किया गया ।
  अवसंरचना में निवेश
जरांज- डेलाराम राजमार्ग में 750 करोड़
जरांज डेलाराम राजमार्ग 215 किलोमीटर लंबा
पुल-ए-खूमरी से काबूल तक ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण
सलमा डैम प्रावर प्रोजेक्ट को कुल 800 करोड़
 भारतीयों पर हमला
2007 से अब तक 6 बड़े हमले
सड़क सीमा संगठन से जुड़े लोग निशाने पर
2008 में हुए चार हमले
7 जुलाई 2008 को काबुल स्थित भारत के दूतावास पर हमला
हमले में  चार लोगों की हुई मौत
भारतीयों की सुरक्षा के लिए सेना और आईटीबीपी के जवान तैनात

कृषि ऋण में सुधार जरूरी

बजट 2011- 12 में सरकार ने  कृषि  ऋण का लक्ष्य 4.75 लाख करोड़ रखा है। यह पिछले साल के मुकाबले 1 लाख करोड़ ज्यादा है। ऋण खेती की एक बुनियादी आवश्यकता है। खासकर भारत जैसें देश में जहां 81 फीसदी किसान 1 हेक्टेयर से कम जोत का मालिक है। लिहाजा बीज की बुआई से लेकर कटाई तक तक उसे धन की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए उसे बैंको से ऋण लेना पड़ता है। आज  सरकार 3 लाख तक का फसल लोन सालाना 7 फीसदी के ब्याज़ दर पर दे रही है। प्रावधान यह किया गया है कि समय से कर्ज भुगतान करने वाले किसानों को 3 प्रतिशत की ब्याज में छूट दी जाएगी।  यहां गौर करने लायक बात यह है कि कृषि मंत्रालय से जुड़ी स्थायी समिति ने फसल लोन की राशि को 3 लाख से बढ़ाकार 5 लाख करने की सिफारिश की थी। इसके पीछे सबसे बड़ तर्क है किसान की खेती में लागत आज कई गुना बढ़ चुकी है। मतलब पहले के मुकाबले आज किसान को उत्पादन में ज्यादा खर्च करना पड़ता है। राष्ट्रीय किसान आयोग पहले ही किसान को 4 फीसदी की ब्याज दर पर कर्ज देने की सिफारिश कर चुका है। यह इसलिए भी जरूरी है की देश की खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने वाला किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। वैसे भी ज्यादातर अनुमानों ने यह साफ किया कि देष में किसानों की बढ़ती आत्महत्या के लिए कर्ज जिम्मेदार है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 1997 से लेकर 2007 तक 2 लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की। इसमें से ज्यादातर किसानों ने इसलिए आत्महत्या की क्योंकि वह कर्ज के बोझ तले दबे थे। खेत में उपजी फसल से आमदनी इतनी भी नही की परिवार का गुजर बसर हो सके। फिर कर्ज का भुगतान कहां से करें। इसी को ध्यान में रखकर 2008 में केन्द्र सरकार कर्ज माफी योजना सामने लेकर आई। कहा जाता है कि इससे तकरीबन 4 करोड़ किसानों को फायदा पहुंचा। वैसे इस पूरे फैसले पर गौर करें तो ऐसा लगता है की सरकार ने एक तीर से तीन निषाने साधे। पहला किसानों का ऋ़ण माफ कर उन्हें राहत पहुंचाई। दूसरा बैंकों का खराब वित्तिय हालात में नई जान फंूकी और तीसरा चुनाव में जाने के लिए एक मजबूत मुददा तैयार किया। इसका फायदा भी मनमोहन सरकार को मिला। 2004 में 145 सीटें जीतेन वाली कांग्रेस 2009 में 206 सीटों में जीती। मगर ज्यादातर लोगों ने सवाल उठाया कि उनका क्या जिन्होने साहूकारों से कर्ज ले रखा है। इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने 3 साल पहले एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था  जिसका जिम्मा था कि पूरे देष में कितने किसानों ने साहूकारों  से कर्ज ले रखा है। पहले यह केवल महराष्ट्र के किसानों के लिए सीमित था बाद में इसे  पूरे देश के लिए व्यापक अध्ययन करने को कहा गया है। उदाहरण के तौर पर सरकार ने विदर्भ क्षेत्र के लिए एक स्पेशल पैकेज की घोषणा की। इसमें 6 जिलों को शामिल किया गया।  यवतमाल, अमरावती, अकोला, वाशिम, बुल्धाना और वर्धा जिले को यह राशि ध्यान में रखकर दी गई। मगर वसंत राव नायक शेठठ्ी स्वालंभन मिशन के मुताबिक उन 6 जिलों में 17 लाख 64 हजार किसानों में से महज 4 लाख 48 हजार किसानों ने बैकों से कर्ज ले रखा था। यानि 75 फीसदी किसानों ने साहूकारों और व्यापारियों से कर्ज ले रखा था। तो उनको कैसी कर्ज माफी की राहत। इसके अलावा जुलाई 2006 में चार राज्यों के जिन 31 जिलों को ध्यान में रखकर पैकेज दिया गया उसका भी कोई बडा फायदा किसानों तक नही पहुंचा। बहरहाल अच्छी खबर यह है कि कृशि ऋण हर साल अपने लक्ष्य को पार कर रही है। अकेले 2010-11 में 375 हजार करोड़ के कृशि ऋण का लक्ष्य था मगर साल पूरा होने तक यह 446778.96 करोड़ तक पहुंच गया। 30 सितंबर 2011 तक 233380.18 करोड़ ऋण बांटा जा चुका है। साल 2009 -10 में छोटे और सीमांत किसानों के कृषि ऋण खातों की संख्या 284.73 फीसदी थी वह वर्ष 2010-11 में बढ़कर 334.67 लाख हो गई है। मौजूदा वर्ष में सितंबर 2011 तक 321 लाख कृषि ऋण खातों को निधियां उपलब्ध कराई गई थी और इन खातों में छोटे तथा सीमांत किसानों के 193.73 लाख खाते भी हैं। इसके अलावा 50 हजार रूपये तक के छोटे ऋण के लिए अदेयता प्रमाण पत्र की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है। गौरतलब है कि व्यास समिति ,सी रंगराजन समिति ,वैघनाथन समिति और राधाकृष्णा समिति की सिफारिशें सरकार के पास मौजूद है। हमारे देश में 37 फीसदी किसान की पहुंच संस्थागत ऋण तक है। 73 फीसदी के भी एक तिहाई किसानों केा अपनी जरूरत के मुताबिक कर्ज नही मिला पाता। उदारहण के तौर पर अगर कोई किसान 5 लाख का कर्ज लेना चाहता है तो उसे वह नही मिला सकता। 63 फीसदी आज भी साहूकारों के भरोसे हैं। सबसे बुरे हालात पूर्वोत्तर राज्यों में है। यहां सबसे ऋण को लेकर सबसे ज्याद मुश्किल हालात का सामना किसान को करना पड़ता है। इस समय औसतन 20 गांवों में एक बैंक है। मान लिजिए अगर एक गांव एक किलोमीटर के दायरे में फैला है तो किसान को 20 किलोमीटर की यात्रा ऋण लेने के लिए करनी होती है। इसके अलावा बैंक में मानव संसाधन का अभाव इस मुश्किल को और बड़ा रहा है। इन बैंकों को नरेगा का धन देना है। किसान को ऋण देना है। वृद्धावस्था पेंषन योजना का निपटान करना है। षिक्षा से जुडी स्कालरषिप बांटनी है। इसके अलावा रोजमर्रा का काम अलग है। लिहाजा ऋ़ण लेना भी मुष्किल भरा काम है। बहरहाल सरकार ने 2 हजार की आबादी पर 2012 तक बैकिंग सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य के पूरे होने के बाद सरकार 1 हजार तक की आबादी तक बैंकिंग सुविधा पहुंचाएगी। इंतजार इस बात का है की सरकार कब किसनों को बिना शार्त 4 फीसदी की ब्याज दर पर ऋण मुहैया कराती है। यहां राज्य सरकारें भी अपनी भूमिका अदा कर सकती है। चूंकि कृषि राज्यों का विषय है लिहाजा राज्य सरकारें अपनी मद से किसानों को ब्याज दर में छूट दे सकती है। वैसे कई राज्य इस तरह की योजना चला भी रहें है मगर देश भर के किसानों को इसका फायदा हो इस पर व्यापक विचार विमर्श करना होगा।