सोमवार, 15 अप्रैल 2013

आतंकवाद


अमेरिका ने दुनिया को दिखा दिया की इच्छाषक्ति हो तो मुष्कििल कुछ भी नही। 9-11 के बाद होमलैंड सिक्यूरिटी का नया विभाग षरू किया गया। जाच और सुरक्षा से जुडे कई विभाग इसके तहत लाये गये है।
आतंकवाद की आर्थिक सा्रेतों पर प्रहार करना होगा।
कई देषों के साथ मिलकर आतंकवाद के मुकाबले के लिए संयक्त कार्यदल बनाया गया है।

हूजी हरकत उल जिहाद ए इस्लामी
सिमी स्अूडेंटस आफ इस्लामिक मूवमेंन्ट आफ इण्डिया

इंडियन मुजाहिदीन नामक संगठन को खडे करने के पीछे का मकसद क्या हो सकता है।
गुरू अल हिन्दी के नाम से अहमदाबाद के ब्लास्ट से पहले मेल आया था।

इसे क्या कहें
जाच ऐजेंन्सियों को गुमराह करने की कोषिष
आज हूजी जैसे आतंकी संगठन पर दबाव पड रहा है
कही यहा से ध्यान हटाने की साजिष तो नही। बंग्लादेष और पाकिस्तान को अंताराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम होने से बचाना।
ऐसा संदेष जाए जिससे कोई भारतीय संगठन ही इसे अंजाम दे रहा हो।

क्या करना चाहिए
दोषियों की गिरफतारी एक टेढी खीर
घरेलू र्मोचे पर चैकसी निगरानी और इंटेलीजेंस नेटवर्क को बेहतरीन बनाना चाहिए।
आर्थिक स्रोतो को नष्ट किया जाए
हवालेां के जरिये आने वाले धन पर रोक लगानी होगी।

अमेरिका में हमले के बाद
यूएस पैट्रोएट एक्ट
2004 इंटेलिजेंस रिफार्म एण्ड टेरेरिज्म प्रिवेन्षन एक्ट
2007 पा्रटेस्ट अमेरिका एक्ट
आतंकवाद से बचा जा सकता है अमेरिका ने इसे साबित कर दिया है। 12 साल के बाद भी वहाॅ कोई घटना नही घटी।

तकनीक बदल गई है औजार बदल गये है अपराधी ज्यादा ष्षातिर हो गये है।
भारत में 11840 पुलिस स्टेषन है जिसमें करीब 1012000 पुलिस के जवान तैनात है।
मानव संसाधन की कमी
 आईबी में 20 हजार लोग अधिकृत रूप से काम करते है।
अमेरिकी विदेष मंत्रालय की आतंकवाद पर जारी रिपोर्ट।
भारत सर्वाधिक आतंकवाद प्रभावित देष
1 साल में 2300 लोग मारे गए। पुराने और बोझिल कानून बड़ी बाॅधा।
कुल मिलागर जब हर एक षख्स निगहबान बनकर आतंकवादियों पर नजर रखेगा तभी अमन चैन कायम होगा।
आतंक के खिलाफ जीरेा टौलरेंस।

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

विस्थापन का दर्द


डा वाल्टर फर्नांडिस का अध्यन क्या कहता है।
1947 से 2004 की अवधी में करीब 6 करोड़ के विस्थापन का अनुमान। जमीन तकरीबन 25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र और इसमें 7 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र और 6 मिलियन हेक्टेयर अन्य सामान्य संपदा संसाधन शामिल है।
देश में जनजातिय लोगों की संख्या कुल आबादी का 8.08 फीसदी है मगर विस्थापन या प्रभावित लोगों में इनकी संख्या कुल 40 फीसदी है। विस्थापितों में 20 फीसदी संख्या दलितों की है और 20 फीसदी ओबीसी की। केवल एक तिहाई व्यक्तियों का पुर्नवास।क्या निजि कंपनियों के लिए सरकार को भूमी अर्जन करना चाहिए
भूमि सरकार का विषय है जबकि अधिग्रहण समवर्ती सूची के तहत आता है।

अल्पसंख्यकों के लिए योजनाऐं


प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम
मल्टी सेक्टोरल डेवलेपमेंट प्रोग्राम 90 जिलों में लागू
मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को सहायता
नेशनल माइनोरीटी डेवलेपमेंट एण्ड फाइनेंस कारपोरेशन
फ्री कोचिंग एण्ड एलाइड स्कीम
मेरीट कम मीन्स
प्री मैट्रिक
पोस्ट मैट्रक स्कालरशिप स्कीम
अल्पसंख्यक महिलओं में नेतृव्त क्षमता विकसित करने के लिए योजना
राज्यों के वक्फ बोर्ड के रिकार्ड का कम्पयूटराइजेशन
नेशनल फैलोशिप प्रोग्राम
सच्चर समिति की सिफारिश के मुताबिक समान अवसर आयोग के गठन का क्या हुआ नही पता।
इसके अलावा मुसलमानों के आरक्षण को लेकर रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि
मुस्लिम को 10 फीसदी आरक्षण और दूसरे अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी आरक्षण दिया जाए। साथ ही दलित मुस्लिम और इसाइयों को अनुसूचित
जाति मानने की सलाह दी गई है।

जमीन अधिग्रहण


सरकार वही है मशीनरी वही है क्या विधेयक कानून का शक्त में आने से सब कुछ ठीक ठाक हो जाएगा।
भारत ने अब तक 1 फीसदी जमीन रिडस्टब्यूट की है।
मंत्रियों के समूह ने जमीन अधिग्रहण बिल को दी हरी झंडी। माना जा रहा है की शीतकालिन सत्र में इसे
संसद में पेश किया जाएगा।
कब से होगा लागू
कितने लोगों की सहमति चाहिए। पहले 80 फीसदी अब 66 फीसदी। आदिवासी क्षेत्र में जमीन लेने
के लिए पंचायत की सहमति जरूरी।
पुर्नवास और पुर्नस्थापन में जमिन मालिक और जो उसमें निर्भर है दोनो का ख्याल।
बहुुफसली जमीन का अधिग्रहण न हो।
क्या सरकार को निजि उघोगो के लिए किसान से जमीन अधिग्रहित करनी चाहिए। सरकार में ही मतभेद।

इंडस्ट्री निजि व्यक्ति अगर जमीन खरीदता है तो आआर का प्रावधान वहां लागू न हो।
अगर सरकार जमीन अधिग्रहण में भूमिका निभाए तभी हो आर एण्ड आर लागू हो।
आरएण्ड आर का पैसा कम करा जाए इसे उघोगपतियों पर भारी बोझ पड़ेगा।

शहरी क्षेत्र में मुआवजा बाजार दर के हिसाब से।
मुआवजा राज्य सरकार के उपर ।
सिंचाई परियोजना के लिए अगर जमीन अधिग्रहित की जाती है
दूसरी परियोजानाअेां के पसेसन से पहले पुर्नवास जरूरी।

एक अनुमान के मुताबिक पिछले 2 दशक में 7 लाख 50 हजार एकड़ जमीन माइनिंग के लिए अधिग्रहित
की गई है। और 2 लाख 50 हजार एकड़ जमीन उघोगों के लिए ली गई है।

प्रत्येक भूमिहीन और आश्रयहीन परिवारों को 10 डिसमिल मतलब 4035 स्कावर फिट मतबल 1 डिसमिल
का मतबल 435.61 स्कवायर फिट।  भूमि की गारंटी दे सरकार।

मकसद जमीन अधिग्रहण की नीति पारदर्शी हो और लोगों को उनकी जमीन का सही दाम मिले।
बिल का नाम राइट टू कंपनसेशन, रिसैटैलमेंट रिहैबीलीटेशन एण्ड ट्रांसपेरेसी इन लैंड एक्वीजीशन एक्ट।

पहले गांव में जमीन का दाम- बाजार भाव से चार गुना
पहले शहर में जमीन का दाम- बाजार भाव से दो गुना
अब
शहर से 10 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाली जमीन बाजार भाव से दो गुना
40 से 50 किलोमीटर दायरे में 4 गुना

कुछ बुनियादी बातें
1-सार्वजनिक उददेश्य को स्पष्ट किया गया है। उससे आप संतुष्ट हैं।
2-अर्जेसी क्लाज कहां लगेगा यह स्पष्ट किया जाएगा।
नेशनल डिफेंस एण्ड सिक्योरीटी पर्पस
आरएण्ड आर प्राकृतिक आपदा के समय
3-अधिग्रहण और पुर्नवास साथ साथ
4- खाघ सुरक्षा
बहुफसली जमीन का अधिग्रहण नहीं।
अगर होगा तो जिले में 5 फीसदी
5- पुर्नवास के क्षेत्र में 25 बुनियादी सेवाऐं।
स्कूल स्वास्थ्य सड़क दुकाने

निजि क्षेत्र के लिए जमीन अधिग्रहण में पुर्नवास का प्रावधान
100 एकड़ ग्रामीण
50 एकड़ शहरी क्षेत्र में
प्राइवेट निगोशियेशन, जिला अधिकारी के यहां एप्लीकेशन देनी होगी।
पुनर्वास से संबंधित अधिकारी कमीशनर उस प्लान को अप्रूवल देगा।

विधेयक में कहा गया है की राज्य अपना कानून बना सकते है चूंकि जमीन की खरीद फरोख्त राज्यों का विषय है।
राज्य मुआवजे में बढ़ोत्तरी भी कर सकते हैं।
मुआवजा देने की समय सीमा- तीन महिने
पुनर्वास  के लिए समय सीमा - 6 महिने

विशेष आर्थिक क्षेत्र कानून पर भी लागू होगा पुर्नवास के प्रावधान
पेंडिग प्रोजेक्ट पर भी पुर्नवास के प्रावधान लागू होंगे।
अगर मुआवजा तय समय से नही दिया जाता तो 12 फीसदी कंपनसेशन नोटीफीकेशन की तारीक के दिये जाएगी।

सोशल इंपेक्ट एसेसेमेंट
नेशनल लेवर में समिति
राज्यों की समिति एलएएण्डआरआर
मुख्य सचिव राज्यों के पुर्नवास अधिकारी
जिलाधिकारी

जमीन का इस्तेमाल पांच साल तक नही होता तो उसे वापस करने का प्रावधान
पहले यह समयसीमा 10 साल की थी।
सार्वजनिक निजि भागीदारी से जुड़ी परियोजनाओं के सरकार की भूमिका नही होनी चाहिए। मंत्रालय ने इसे
मानने से इंकार कर दिया है।

जमीन अधिग्रहण बनाम विकास
यह बहस दशकों पुरानी है। मगर अब यह सरकार के लिए मुश्किले पैदा कर रही है। जमीन अधिग्रहण सरकार के लिए चुनौति बना गया है।
समय से अधिग्रहण ने होने के चलते कई परियोजनाऐं अधर में लटकी है। कई परियोजनाअेंाकी लागत आसमान छू रहीं है। इतना नही नही अब
 विदेशी निवेशक भी जमीन अधिग्रहरण में होती
देरी के चलते दूसरें देशों का रूख कर रहें है।
आखिर क्यों बन ऐसे हालात
118 साल पुराने जमीन अधिग्रहरण कानून समय रहते कानून में बदलाव क्यों नही किया गया
जमीन अधिग्रहण और पुर्नवास विधेयक 2011, 7 सितंबर 2011 को लोकसभा में पेश किया
जा चुका है हम बताऐंगे आपको इसमें क्या है खास
यह कानून 1894 के कानून की जगह लेगा
जमीन अधिग्रहरण का ंक्यों करते है किसान विरोध
किसी तरह जमीन अधिग्रहरण लगा रहा है विकास में रोड़े
देश में बड़ी योजनाऐं कैसे लटकी है अधिग्रहण समय से हो पाने के चलते
आज इनसाइट पर इसी पर चर्चा।

118 साल पुराने कानून के सहारे हम

जमीन अधिग्रहण
देरी से चल रही परियोजनाऐं
कुल 566 परियोजनाऐं इनमें 234 देरी से चल रही हैं
सड़क   95
बिजली  45
पेट्रोलियम 30
कोयल  17
रेलवे   26
पोर्ट और बंदरगाह 12
जमीन अधिग्रहण की देरी का सबसे ज्यादा असर सड़क परियोजनाओं पर पड़ रहा है।

केन्द्र सरकार ने विशेष जमीन अधिग्रहण यूनिट राज्यों में स्थापित की हैं।
जमीन अधिग्रहण में तेजी लाने के लिए सरकार हाई पावर समिति बनाने जा रही है।
चुनौति क्या रहेगी।

छत्तीसगढ सरकार का कहना
विधेयक का अध्याय की तीन धारा 10 एक के मुताबिक किसी भी सिंचित बहु फसली भूमि का अर्जन नही किया जाएगा।यह विचार आपत्तिजनक
है और अव्यवहारिक है  इस संर्पूण अध्याय को हटा देना चाहिए। जिले में जो पांच प्रतिशत आपने कहा उसे राज्य में पांच प्रतिशत कर देना चाहिए।

धारा 10 तीन कहता है बहुफसली सिंचित जमीन को अगर अर्जन किया जाता है तो समतुल्य क्षेत्र बंजर भूमि का विकास किया जाए।
इस उपबंध को अनिवार्य नही बनाना चाहिए क्योंकि जो फ्री होल्ड बंजर भूमि है उसे पाना कठिन है।
मान लिजिए भूमि अर्जन समवर्ती सूची में आता है तो राज्य सरकार अपने हिसाब से संशोधन कर सकते हैं।
बहुफसली क्षेत्र को परिभाषित किए जाने की जरूरत है।
शहरी विकास मंत्रालय कहता है कि महानगरों में इस पर छूट दी जाए। वहां सिंचित भूमि है भी नही।

कृषि मंत्रालय कहता है कि अधिग्रहण करने वाला उतनी जमीन सिंचित बनाएगा।

सहमति को लेकर
80 फीसदी पर भी सवाल
महाराष्ट सरकार 51 फीसदी
विद्युत मंत्रालय 50 फीसदी
निजि लोगों के लिए 80 फीसदी स्वाकार्यता हासिल करना कठिन ही नही नामुमकिन है।
ग्राम सभा का अपना रोल हो।
12वीं योजना में आप 50 लाख करोड़ रूपया अपने बुनियादी ढांचे में खर्च करने की बात
 कर रहें हैं। 50 फीसदी आप निजि क्षेत्र से लाना चाहतें है। मगर इससे पहले आपको इन प्रक्रियाओं केा
तो दुरूस्त करना पड़ेगा।

नया जमीन अधिग्रहण और पुर्नवास विधेयक 2011 में क्या है खास
इसमें किसानों के अधिकारों

आप शेयर प्रदान करेंगे। नाराजगी इस बात की है कि किसान बाजार का विशेषज्ञ नही है।
मसलन जनजातिय इलाकों में भूमि की खरीद फरोक्त बहुत कम होती है लिहाजा वहां रेट कैसे तय किया जाए।

विधेयक का खंड 38 राष्टीय सुरक्षा प्राकृतिक आपदाओं से उपजी अपात स्थिति में अधिग्रहण के लिए विशेष शक्तियां। 48 घंटे का नोटिस
मुआवजा बाजार मूल्य से 75 फीसदी अतिरिक्त।
इमरजेंसी क्लाज का इस्तेमाल रेयरेस्ट आफ द रेयर स्थिति में
फिक्की का यह कहना है की आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि लोग अपनी जमीन
बेचकर किसानी से पिंड छुड़ाना चाहते है। मगर सरकार उन्हें ऐसा करने नही दे रही है
कंपनियों को भारी भरकम पैसा आर एण्ड आर में खर्च करना पड़ेगा
क्योंकि कोई अपर लिमिट नही रखी गई है।
प्राइवेट कंपनी को बाजार भाव में सीधे जमीन किसान से खरीदने का हक मिलना चाहिए? फिक्की
जमीन अधिग्रहण कानून 1894 में क्या थी खामियां
निजि क्षेत्र के लिए जमीन अधिग्रहण करना
पब्लिक परपस को सही तरीके से परिभाषित नही किया गया
अरजेंसी क्लाज का गलत इस्तेमाल
उपजाउ जमीन का अधिग्रहण
सही मुआवजा नही मिलना
अधिग्रहरण का पुर्नवास और आजिविका से संबंध नही होना
भ्रष्टाचार और पारिदर्शिता का अभाव लोगों की नाराजगी। एक अनुमान के मुताबिक 1950 के बाद
4 से 6 करोड़ लोग विस्थामित हुए हैं । इसमें से 50 फीसदी आदिवासी हैं। केवल 20 फीसदी लोगों के
पनर्वास की व्यवस्था हो पाई है।
नए कानून में क्या है खास
निजि क्षेत्र के लिए होने वाले अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी लोगों की मंजूरी
जमीन अधिग्रहण और पुनर्वास साथ साथ
बहुफसली जमीन का अधिग्रहण किसी भी कीमत पर नही केवल खास परिस्थितियों में
सोशल इंपैक्ट ऐसैसमेंट जरूरी
अरजेंसी क्लास का इस्तेमल रक्षा, सुरक्षा और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में
न्यूनतम मुआवजा ग्रामीण क्षेत्र में रजिस्टर्ड वैल्यू के चार गुना और शहरी क्षेत्र में दो गुना
इसके अलावा 20 फीसदी अपरिसियेटेड जमीन मालिक को देनी होगी
25 फीसदी कंपनी के शेयर मुआवजे के तौर पर
पुर्नसार में क्या है खास
प्रति महिने प्रति परिवार 3000 रूपये का मुआवजा 12 महिने तक
एक नौकरी, या 5 लाख या 20 साल तक 2 हजार प्रति माह
घर जाता है तो इंदिरा आवास योजना के तहत घर दिया जाएगा

विस्थापन का दर्द
डाॅ वाल्टर फर्नांडिस का अध्यन क्या कहता है।
1947 से 2004 की अवधी में करीब 6 करोड़ के विस्थापन का अनुमान। जमीन तकरीबन 25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र और इसमें 7 मिलियन हेक्टेयर
वन क्षेत्र और 6 मिलियन हेक्टेयर अन्य सामान्य संपदा संसाधन शामिल है।
देश में जनजातिय लोगों की संख्या कुल आबादी का 8.08 फीसदी है मगर विस्थापन या प्रभावित लोगों में इनकी संख्या कुल 40 फीसदी है।
विस्थापितों में 20 फीसदी संख्या दलितों की है और 20 फीसदी ओबीसी की। केवल एक तिहाई व्यक्तियों का पुर्नवास।

क्या निजि कंपनियों के लिए सरकार को भूमी अर्जन करना चाहिए
भूमि सरकार का विषय है जबकि अधिग्रहण समवर्ती सूची के तहत आता है।









शनिवार, 6 अप्रैल 2013

पुलिस सुधार होंगे?


पुलिस में होने चाहिए बड़े बदलाव
पुलिस जनसंख्या अनुपात विकसित देशों के मुकाबले नीचे।
राज्य सरकार को भरने चाहिए रिक्त पद।
पुलिस सुधार को लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों की।
देश का पुलिस कानून 154 साल पुराना है।
पुलिसिया व्यवस्था में सुधार लाने के लिए समय समय पर कई समितियों का गठन हुआ।
1977 में पुलिस सुधार आयोग, 
1998 में रिबेरो समिति 
2000 में पद्यनाभैया समिति 
2002 में मालीमथ समिति। 
20 सितंबर 2005 में विधि विशेषज्ञ सोली सोराबजी की अध्यक्षता में एक कमिटि का गठन 
30 अक्टूबर 2006 को माडल पुलिस एक्ट 2006 का प्रारूप केन्द्र सरकार केा सौंपा। 
सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर 2006 प्रकाश सिंह बनाम केन्द्र सरकार मसले पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
2009 में तत्कालिन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा की राज्य सरकारों ने पुलिस अधिकारियों का फुटबाल बना दिया है। सत्ता बदलते ही अधिकारी बदल जाते हैं। यहां तक की नेता अब अधिकारियों को उनकी मनपसंद कमाई वाली जगहों पर तैनात करने के लिए पैसे वसूलती हैं। इसलिए जरूरी है की इन अधिकारियों का न सिर्फ एक निश्चित कार्यकाल हो बल्कि पुलिस को राजनीति से मुक्त किया जाए।

आपका पैसा आपके हाथ


इस योजना का दूसरा चरण 1 अप्रैल से लागू हो गया है। पहले चरण में 51 जिलों को शामिल किया गया था। अब 78 जिले इसमें और जोड़े जा रहे है। प्रधानमंत्री ने 5 मार्च 2013 को इसकी समीक्षा में हिस्सा लिया। इसमें उन्होने साफ निर्देश दिया की योजना को लागू करने में  कोई भी कोताही बर्दाश्त नही की जाएगी। इससे पहले नकद भुगतान के लिए जो राष्टीय समिति बनी है उसकी पहली बैठक 26 नवंबर को हुई उसमें प्रधानमंत्री ने कहा था। सरकार का उददेश्य है सरकार द्धारा भेजा गया जरूरमंदों के लिए एक एक रूपया उस तक पहुंचे। जो नही पहुंच रहा था। इस योजना के दो महव्वपूर्ण स्तंभ है। आधार प्लेटफार्म और फाइनेंशियल इनक्लूजन इनमें से एक भी आधार कमजोर पड़ा सरकार का उददेश्य सफल नही हो पाएगा। सरकार सालान तकरीबन 320 हजार करेाड़ की सब्सिडी जारी करती है। वित्त मंत्री के मुताबिक मान लिजिए आधार का पैनीटरेशन 80 फीसदी या उससे ज्यादा होगा तो लाभ लेने वाले व्यक्तियों को पैनीटरेशन 95 फीसदी से ज्यादा होगा। यह कार्यक्रम 29 योजनाओं पर लागू होगा।
1-सामाजिक न्याय और अधिकारित मंत्रालय के तहत चलते वाली 14 छातृवृत्ति योजना
2-मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत चलते वाली 6 छातृवृत्ति योजनऐं
3- अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही छातृवृत्ति योजनाऐं
4- श्रम मंत्रालय
5- महिला और विकास मंत्रालय
6- स्वास्थ्य मंत्रालय की योजनाऐं इसमें शामिल की जाऐगी।

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

कौन राहुल? मोदी कौन


भारतीय राजनीति के आज यह दो ध्रुव है। दोनों नेता महत्वकांक्षी है। दो बड़े राजनीति दलों में इनकी तूती बोलती है। एक गुजराती अस्मिता की बात करता है, आपने विकास माडल का डंका पीटता है, तो दूसरा 100 करोड़ को काबिल बनाने की बात करता है। एक महिलाओं, अल्पसंख्यकों और दलितों को साथ लेकर चलने की मंशा सार्वजनिक करता है। वर्तमान राजनीति के ढांचे की खिल्ली उड़ाता है, उसमें प्रधान की कमजोरी भूमिका पर  पर विधवा अलाप करता है। दूसरा आउटले बनाम आउटकम पर ईमानदार बहस चाहता है। कल्याणकारी योजनाओं का लोगो के जीवन पर क्या असर पड़ा है उसके मूल्यांकन की बात कहता है। राज्यों के बीच विकास दर को लेकर छिडी प्रतियोगिता को बेहतर मानता है। एक शिक्षा प्रणाली को बाजारोन्मुख बनाने की पैरवी करता है उसमें उद्योगों की पहल चाहता है दूसरा पी 2 और जी 2 की बात करता है। यानि प्रो पीपुल और गुड गर्वेनेंस। दोनों धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते हैं। एक की नजर में धर्मनिरपेक्षता बीजेपी को सत्ता से दूर रखने का मंत्र है तो दूसरा कहता है इसका मतलब है इंडिया फस्र्ट। दोनों योद्धाओं के पीछे जय बोलने वालों की लंबी कतार खड़ी है। एक की काबिलियत है की वह गांधी परिवार का चिराग है दूसरा मशहूर है कि वह  एक अच्छा प्रशासक और फैसले लेने वाला व्यक्ति है। एक भारत मां के कर्ज को उतारने की बात करता है तो दूसरा किसी एक के सहारे सबकुछ बदल जाएगा इस थ्योरी को रिजेक्ट कर रहा है। सच्चाई यह है की दोनों का रणक्षेत्र सज रहा है 2014 के लिए। दोनों का घमासान बढ़ेगा। दोनों आने वाले दिनों में कई मंचों से विचारों की तीर चलाते नजर आऐंगे। मगर यह तीर जनता की वोट को भेद पाऐंगे। यही दोनो का साघ्य है।
इतिश्री राहुल मोदी पुराणों प्रथमों अध्याय संपन्नः

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

तारीख पर तारीख

लंबित मुकदमें।
सुप्रीम कोर्ट -46 हजार मामले।
हाई कोर्ट -3957016
निचली अदालतें -25504926

10 लाख की आबादी में कितने जज?
भारत    13
यूके      22
ब्राजील   77
अमेरिका  110
चीन     159

अकेले दिल्ली में तकरीबन 9 लाख मामले लम्बित है।
संसाधन की भारी कमी से जूझ रही है न्यायपालिका।
जजों की कमी और कर्मचारियों का टोटा
आधे मामले दिल्ली में चैक बाअंस के जबसे इसे अपराध की श्रेणी में लाया गया।
संसद और विधानसभाऐं कानून बना तो देती है। मगर उससे अदालतों की सेहत पर क्या असर पडेगा इसकी किसी को कोई चिन्ता नही।

सुप्रीम कोर्ट द्धारा गठित टास्क फोर्स की सिफारिश
जूडिशियल इंपेक्ट आफिस खोला जाए। इसके तहत संसद और राज्य विधानसभाओं से पारित होने वाले कानून के अदालत पर पडने वाले वित्तीय प्रभाव का मूल्यांकन किया जाए। विशेषज्ञ मानते है कि न्यायपालिका को आर्थिक संसाधन नही मुहैया कराये गए तो लोगों को सिर्फ तारीख पर तारीख मिलेगी।
सालाना होनी चाहिए जजों की संख्या की समीक्षा। 2 से 3 प्रतिषत जजों की बढोत्तरी की जाए। साथ ही न्यायपालिका पर बजट बढ़ाया जाय।



चीनी पर घमासान

चीनी को सरकार ने किया बाजार के हवाले।
इससे बढ़ेगा सब्सिडी का बिल। यह दुगना बढ़कर 5300 करोड़ हो जाएगी।
अभी तक चीनी के उत्पादन से लेकर वितरण और आयात से लेकर निर्यात तक सरकार का नियंतण था।
अपने उत्पादन का 10 फीसदी 20 रूपये किलो के हिसाब से सरकार को देती है। अब यह नही देना होगा।
चीनी के आयात और निर्यात को एक टैरिफ ढांचे के द्धारा नियंत्रित किया जाएगा।
चीनी के खरीद मूल्य को लेकर किसान कर रहे हैं आंदोलन
किसानों की मांग 3000 रूपये प्रति  की मांग
गन्ना मिल 2300 में सहमत
किसानों के आंदोलन ने पकड़ हिंसक रूप
क्या किसानों की मांग वाजिब
अभी सरकार चीनी के उत्पादन से लेकर वितरण तक में नियंत्रण रखती है। यानि बाजार में कितनी चीनी उतार नी है यह सरकार तय करेगी।
 कितनी चीनी का निर्यात करना है यह सरकार करेगी।

पश्चिम महाराष्ट्र
स्वाभिमानी सेतकारी संगठन की मांग। यह किसानों का संगठन।
कांग्रेस फैसल नही ले पा रही है। एनसीपी इसके विरोध में है। शिवसेना और बीजेपी किसानों के मांग का समर्थन करते है। अन्ना और
अरविंद केजरीवाल किसानों का मांग को जायज़ बता रहें हैं।
किसान मांग कर रहे है 3000 प्रति टन
एफआरपी है 1750 प्रति टन 9.5 प्रतिशत रिकवरी और साथ में 170 रूपये 1 फीसदी अतिरिक्त रिकवरी में।
यह 2150 प्रति टन आता है। सुगल मिल 2300 प्रति टन देने को तैयार।
जुलाई में 17 फीसदी बढ़ाया गया।
कोलापुर सांगली और सतारा जिले । इन्हे सबसे बड़ा रिकवरी जोन माना जाता है।
एक आंकड़ा कहता है कि 2011-12 में चीनी का उत्पादन 26.2 मिलियन टन हुआ। इससे पहले साल में 24.42 मिलियन टन हुआ। हमारी साला
जरूरत है 22 मिलियन टन।

लेवी सुगर 10 फीसदी
नान लेवी सुगर 90 फीसदी
इसमें से 65 फीसदी नान हाउसहोल्ड सेक्टर के लिए।
पहले बेसिक रिकवरी रेट 9.5 फीसदी था। रंगराजन साहब ने इसे 10.3 फीसदी कर दिया है।
0.1 फीसदी के उपर 1.70 पर क्वींटल किसानों को दिया जाए।

किसान संगठन क्या कहते है।
कोओपरेटिव सेक्टर बंद हो जाएगा।
जो मिलों को गन्न आपूर्ति हेाती है उसके लिए क्षेत्र निर्धारति होते थे।
दो मिलों के बीच 15 किलोमीटर की दूरी का मापदंड सही नही है।

क्या कहती है रंगराजन समिति।
लेवी चीनी प्रणाली की व्यवस्था खत्म करनी चाहिए।
चीनी मिलों को खुले बाजार में चीनी बेचने की आजादी हो।
गन्ना आरक्षित भूमि खत्म की जाए। किसानों और मिलों के बीच करार की अनुमति। इससे गन्ना की आपूर्ति और प्रतिस्पार्धा बाजार में आएगी।
दो मिलों के बीच कम से कम दूरी को खत्म किया जाए।
यानि अगर यह सिफारिश अमल में आती है तो सरकार को खुले बाजार से चीनी खरीदनी पड़ेगी।
यह रिपोर्ट जैसे ही आयी चीनी मिलों के शेयर 5 फीसदी उपर उठ गए।
इस समिति ने सभी स्टेक होल्डर से बातचीत की है। खास जिन राज्यों में बड़े पैमाने में गन्ना होता है।
तब जाकर एक व्यक्ति उन सिफारिशों के गलत करार देता है तो आप पर विश्वास क्यों करें।

कैसे होगा भुगतान
गन्ने की आपूर्ति के समय एफआरपी। हर 6 माही आधार पर संबधित राज्य चीनी उसके बाइ प्रोडेक्ट का एक्स मिल मूल्य निर्धारति करेंगी। किसान को चीनी और उसके बाइ प्रोडेक्ट का 70 प्रतिशत मूल्य पाने का अधिकार होगा।

इससे पहले तीन और समितियों इस मुददे पर अपने सुझाव दे चुकी है।
1998 में महाजन समिति
2004 में टुटेजा समिति
2009 में थोराट समिति
इसे पहले 9171- 1972 और 1978 -1979 में इस क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करने के प्रयास किए जा चुके है। मगर नतीजा सिफर रहा।
2010 में खुद कृषि मंत्री शरद पवार इसका प्रयास कर चुके है मगर सफलता नही मिली।
सुगर कंट्रोल आर्डर 1966 के मुताबिक सालाना 15 फीसदी का ब्याज़ बकाया राशि पर देना होता है अगर तय समय से आप 14 दिन तक भुगतान
नही कर पाए।

चीनी में हमारी मिलिंग कैपेसिटी 32 मिलियन टन है। जो हमारी मांग से 40 गुना ज्यादा है।
पिछले 2 सालों में गन्ने के दाम 50 गुना बड़े है। उससे भी बड़ा सवाल यह है की बाजार से चीनी खरीदने के लिए हमें कितने दाम चुकाने पड़ रहे
 है। किसान की उत्पादन लागत क्या है। 5 करोड़ किसान इससे जुडे हुए हैं।


समिति कहती है इससे चीनी की कीमत तर्कसंगत और चीनी के व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी।

कुछ किसान संगठनों का कहना है कि इससे दक्षिण भारत के ही किसानों का लाभ होगा। दरअसल दक्षिणी राज्यों में चीनी की रिकवरी खास
तमिलनाडू कर्नाटक महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश में 12 से 14 प्रतिशत है। जबकिउत्तर भारत के राज्यों में यह रिकवरी दर 8 से 9 फीसदी है। जबकि
आपने 70 और 30 के बंटवारे का जो फार्मूला तैयार किया है वह 10.3 फीसदी रिकवरी पर होगा।
हम सभी जानते है की आय छिपाने के चलते चीनी की मिलें रिकवरी कम दिखाती है।

क्या है एफआरपी
केन्द्र हर साल सुगर कंट्रोल आर्डर और सीएसीपी की सिफारिश पर एफआरपी की घोषणा करता है।
उत्तर भारत के राज्या अपने कानून के तहत एसएपी की घोषणा करते है।
एसएपी हमेशा एफआरपी से ज्यादा हेाता है। जिन राज्यों में यह लागू होता है वही उस राज्य का गन्ने का
न्यूनतम मूल्य होता है।

लेवी चीनी क्या है
हर सुगर मिल को अपने उत्पादन का 10 फीसदी सरकार को देना होता है जिसे सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत देती है।
1.3.2002 को 13.50 प्रति किलो
इसे 23 रूपये प्रति किलो करने पर हो रहा है गंभीरता से विचार।
दूसरे सबसे बड़े उत्पादक और सबसे बड़े उपभोक्ता है।

2012-13 के लिए सीएसीपी की सिफारिश
210 रूपये प्रति क्वींटल
2011-12 के सुगर सीजन में
एफआरपी - 170 रूपये प्रति क्विंटल
यपूी में इस दौरान एसएपी था 240 प्रति क्विंटल।
इससे पहले था एसएमपी स्टैटचरी मिनिमम प्राइस

सीएसीपी का कहना है की इसमें मुनाफा उत्पादन लागत रिस्क फैक्र और परिवहन की लागत का ध्यान रखा जाता है।

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

राहुल का भारत कैसा होगा


देश में विकास की रफतार बढ़ाने के लिए सुधारों की गाड़ी को तेज करना होगा। जब तक सभी राजनीतिक दल सुधारों के लेकर एकमत नही होंगे तब तक 12वीं योजना में 8 फीसदी विकास दर का लक्ष्य पाना मुश्किल होगा। बढ़ती युवा आबादीके लिए रोजगार के संसाधन पैदा करने के लिए 9 फीसदी विकास दर की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है निवेश की परियोजनाओं को जल्दी हरी झंडी मिले। जमीन अधिग्रहण और पर्यायवरण मंजूरी एक तय समय के भीतर मिले। आज सीआआई के वार्षिक समारोह में प्रधानमंत्री देश के विकास काकैसे मसौदा रखेंगे देखना होगा। सबसे ज्यादा नजर रहेगी राहुल गांधी पर।  राहुल गांधी आज सीआआई के वार्षिक समारोह में शिरकत करेंगे। दिलचस्प होगा यह जानना की देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने की उनकी दूरदर्शिता क्या है? क्योंकि वह कई बार नेताओं के निशाने में आज चुके है कि देश को आगे ले जाने के लिए उनकी पास कोई योजना नही है। इसलिए उपाध्यक्ष बनने के बाद संगठन में नई जान  फंूकने की बात करने वाले राहुल आज देश के मुददों पर क्या राय रखते है, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे उनका पूरा ध्यान युवाओं के लुभाने पर रहेगा। लेकिन अपने वादे के मुताबिक आजीविका सुरक्षा, उर्जा सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा,पर्यावरण सुरक्षा और आन्तिरक सुरक्षा को लेकर उनके विचार क्या रहेंगे?। वैसे तो राहुल एक रटा रटाया भाषण पढेंगे। मगर उनसेउम्मीद है की वह लीक से हटकर बोलेंगे। भ्रष्टाचार से कैसे निपटेंगे।विकास दर कैसे बढ़ाऐंगे। युवाओं के लिए उनके पास क्या एजेंडा है और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर उनके क्या विचार है। गरीबी कैसे मिटेगी।बुनियादी ढांचे में निवेश कैसे बढ़ेगा। दलित आदिवासी और अल्पसंख्यकों को विकास का कैसे हिस्सेदार बनाया जाए। शहर और गांव के बीच की खाई को कैसे बांटा जाए। उनसे आशा की जाती है की उनकी बातें केवल उद्योग जगत तक ही सीमित न हो बल्कि वह समूचे परिपेक्ष में बात करें। यानि वह इस देश के बताऐं की राहुल का भारत कैसे होगा?

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

क्योंकि सुधार है जरूरी


मित्रों इन क्षेत्रों में बड़े सुधार की जरूरत है। लेकिन यह विषय मेरे जेहन में थे। मैं चाहता हूं की यह फेहरिस्त और लंबी हो। इसलिए आपके
सुझावों का इंतजार रहेगा।
1.चुनाव सुधार
2.पुलिस सुधार
3.प्रशासनिक सुधार
4.न्यायिक सुधार
5.प्राथमिक शिक्षा सुधार
6.उच्च शिक्षा सुधार
7.स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार
8.उर्जा क्षेत्र में सुधार
9.सड़क क्षेत्र में सुधार
10.रेलवे में सुधार
11.वित्तिय क्षेत्र सुधार
12.कृषि क्षेत्र में सुधार
13. बीमा क्षेत्र में सुधार
14. जेलों में सुधार
15. पेंशन क्षेत्र में सुधार
16. बैकिंग क्षेत्र में सुधार
17. रक्षा क्षेत्र में सुधार
18. श्रम सुधार
19. पर्यायवण क्षेत्र में सुधार
20. जल क्षेत्र में सुधार
22. पीडीएस में सुधार
23.  संसद की कार्यवाही में सुधार
24. राज्य विधानसभाओं की कार्यवही में सुधार।
25. सरकार के खर्च में सुधार
26. पेट्रोलियम क्षेत्र में सुधार
27. असंगठित क्षेत्र में सुधार
28. सेवा क्षेत्र में सुधार
29 मनरेगा में सुधार
30. जमीन अधिग्रहन कानून में सुधार
31. रियल स्टेट में सुधार
32. पंचायतों में सुधार
33. नगरपालिका और नगरनिगमों में सुधार
34. बाल कानूनों में सुधार
35. आदिवासी नीति में सुधार
36. एससी एसटी नीति में सुधार