बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

ग्रीस का आधा क़र्ज़ माफ़


  • ग्रीस का आधा क़र्ज़ माफ़
  • ग्रीस का क़र्ज़ 140 अरब डॉलर घटेगा
  • निजी यूरोपीय बैंक घाटा भरेंगे
  • निजी बैंकों की धन-राशि बढ़ाई जाएगी
  • यूरोज़ोन सहायता कोष 1.4 खरब होगा
  • इटली दो साल में क़र्ज़ घटाएगा
  • इटली का कुल क़र्ज 1.7 अरब डॉलर
  • इटली में रिटायरमेंट 67 वर्ष पर
  • इटली सरकारी संपत्ति बेचेगा, लाल-फीताशाही घटाएगा

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011


महाराष्ट्र ने की स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 फ़ीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था
पहले से चार राज्यों में महिलाओं को 50 सीटें।
बिहार, झारखंड, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में  50 फ़ीसदी आरक्षण के लिए विधेयक पारित
छत्तीसगढ़, मणिपुर, राजस्थान, मध्य प्रदेश  और हिमाचल में भी 50 फ़ीसदी आरक्षण
73वें संशोधन से मिला पंचायतों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण
74वें  संशोधन ने नगरपालिका में 33 आरक्षण दिया
महाराष्ट्र में 1993 में मिला सबसे पहले 33 फ़ीसदी आरक्षण
2005 में बिहार में स्थानीय निकायों में 50 फ़ीसदी आरक्षण
2010 में राज्यसभा ने पास किया महिला आरक्षण विधेयक
विधायिका में एक तिहाई आरक्षण के लिए महिला आरक्षण विधेयक
15वीं ल¨कसभा में 60 महिला सांसद (11 फी़सदी)
पहली ल¨कसभा में  22 महिलाएं
14वीं ल¨कसभा में  52 महिला सांसद
कर्नाटक और मेघालय के विधायी निकायों में सिर्फ 2 फ़ीसदी महिलाएं
महाराष्ट्र के विधायी निकायों में चार फ़ीसदी महिलाएं
बिहार  और हरियाणा में 10-10 फ़ीसदी महिला सांसद-विधायक
बंगाल में 13 और राजस्थान में 14 फ़ीसदी महिला सांसद और विधायक
देश के चार राज्यों में महिला मुख्यमंत्री
दिल्ली, तमिलनाडू ,पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश में महिला मुख्यमंत्री
अब तक 14 महिलाओं को केन्द्र में कबीना मंत्री का दर्जा
दक्षिण अफ्रीका  और अर्जेन्टीना में विधायी निकायों में महिलाओं को 30 फ़ीसदी आरक्षण
2011 की गणना के अनुसार देश की आबादी में  48.5 फ़ीसदी महिलाएं
देश में 54 फी़सदी महिलाएं साक्षर
एक हज़ार पुरुषों पर 940 महिलाएं
सुप्रीम कोर्ट के 29 न्यायाधीशों में सिर्फ एक महिला जज
सार्वजनिक क्षेत्र के कामगारों में 17 फी़सदी महिलाए

महिला स्वास्थ्य और भारत


देश की आबादी में 48 फ़ीसदी महिलाएं
मातृ मृत्यु दर में 2004-06 में  प्रति एक लाख पर 254
2001-03  में मातृ मृत्यु दर-  प्रति एक लाख पर 301
मातृ मृत्यु दर यानि प्रसव के समय माओं की मौतें
11वीं योजना में मातृ मृत्यु दर- प्रति एक लाख पर 100
मातृ मृत्यु दर 109 तक घटाने का शताब्दी लक्ष्य
उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ऊंची है मातृ मृत्यु दर
2011 की गणना में स्त्री-पुरुष अनुपात आजादी के बाद सबसे कम,
लान्सेट के मुताबिक भारत में सबसे ज़्यादा मृत प्रसव
ज़्यादातर मृत प्रसव ग्रामीण इलाकों में
लान्सेट के मुताबिक 2009 में हर 1000 जीवित जन्म पर 22 मृत प्रसव यानि  2009 में 6,06,523 बच्चे मरे हुए पैदा हुए
यूनीसेफ के मुताबिक किशोर लड़कियों में आधी से ज्यादा लड़कियों में आधी से ज्यादा खून की कमी की शिकार
11 से 19 साल की 47 फीसदी लड़कियों का वजन कम
बल विवाह एक बड़ी समस्या
50 फ़ीसदी लड़कियों  की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले
70 फ़ीसदी गर्भवती महिलाअएं खून की कमी से ग्रस्त
 74,000 आशा स्वास्थ्यकर्मियों की और जरुरत
स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का एक फ़ीसदी ख़र्च
योजना आयोग के मुताबिक 6 लाख डाक्टरों और 10 लाख नर्सो की कमी।
2005 में शुरु राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का हाल बेहाल

ग्रामीण स्वास्थ्य


ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा कोर्स को योजना आयोग के उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह की सहमति
ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी के नाते शुरु होगा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का कोर्स
साढ़े तीन साल का होगा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा (बीआरएमएस) का कोर्स
2022 तक पांच लाख की आबादी वाले हर जिले में एक बीआरएमएस कालेज का लक्ष्य
योजना आयोग के मुताबिक यह मिनी-एमबीबीएस डिग्री नहीं है।
स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत जरुरतों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण देगी बीआरएमएस योजना
ग्रामीण, जनजातीय और पहाड़ी इलाकों में  स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी
एक सर्वे के मुताबिक में ग्रामीण इलाकों में 72 प्रतिशत आबादी के लिए 26 फ़ीसदी डाक्टर उपलब्ध
ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरों में चार गुना ज्यादा डाक्टर
देश में चिकित्सा क्षेत्र में सिर्फ 10,000 स्नातकोत्तर सीटें
जन स्वास्थ्य पर खर्च को लेकर 175 देशों में  भारत 171वें स्थान पर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 आबादी पर एक डाक्टर आदर्श लक्ष्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10,000 की आबादी पर 6 डाक्टर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 की आबादी पर एक डाक्टर का औसत पाने में भारत को 17 साल लगेंगे।
देश में 38 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कालेज का औसत
बिहार में 117 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कालेज
उत्तर प्रदेश में 75 और मध्य प्रदेश में 73 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कालेज
642 जिलों में से 188 जिलों में 315 मेडिकल कालेज स्थापित हैं।
योजना आयोग के मुताबिक देेश में 6 लाख डाक्टरों की कमी ।


ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा कोर्स को योजना आयोग के उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह की सहमति
ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की कमी के नाते शुरु होगा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का कोर्स
साढ़े तीन साल का होगा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा (बीआरएमएस) का कोर्स
2022 तक पांच लाख की आबादी वाले हर जिले में एक बीआरएमएस कालेज का लक्ष्य
योजना आयोग के मुताबिक यह मिनी-एमबीबीएस डिग्री नहीं है।
स्वास्थ्य संबंधी आधारभूत जरुरतों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षण देगी बीआरएमएस योजना
ग्रामीण, जनजातीय और पहाड़ी इलाकों में  स्वास्थ्य सेवाओं की भारी कमी
एक सर्वे के मुताबिक में ग्रामीण इलाकों में 72 प्रतिशत आबादी के लिए 26 फ़ीसदी डाक्टर उपलब्ध
ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरों में चार गुना ज्यादा डाक्टर
देश में चिकित्सा क्षेत्र में सिर्फ 10,000 स्नातकोत्तर सीटें
जन स्वास्थ्य पर खर्च को लेकर 175 देशों में  भारत 171वें स्थान पर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 आबादी पर एक डाक्टर आदर्श लक्ष्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10,000 की आबादी पर 6 डाक्टर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 1000 की आबादी पर एक डाक्टर का औसत पाने में भारत को 17 साल लगेंगे।
देश में 38 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कालेज का औसत
बिहार में 117 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कालेज
उत्तर प्रदेश में 75 और मध्य प्रदेश में 73 लाख की आबादी पर एक मेडिकल कालेज
642 जिलों में से 188 जिलों में 315 मेडिकल कालेज स्थापित हैं।
योजना आयोग के मुताबिक देेश में 6 लाख डाक्टरों की कमी ।

भ्रष्ट पीडीएस


खामियों से भरी है सार्वजनिक वितरण प्रणाली
सर्वोच्च न्यायालय की समिति ने उजागार किया भ्रष्टाचार
देश के पीडीएस हालातों की जांच के लिए बनी थी समिति
2006 में गठित हुई वाधवा समिति
वाधवा समिति ने पहले चरण में की दिल्ली में पीडीएस की जांच
अगस्त, 2007 में वाधवा समिति ने सौंपी दिल्ली क्षेत्र की रिपोर्ट
समिति ने किया 6 राज्यों का दौरा
बदहाली के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार ठहराया
पीडीएस प्रणाली की 5 लाख दुकानें
दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा वितरण नेटवर्क
 खाद्य सब्सिडी पर हर साल होता है  28,000 करोड़ का खर्च
पिछले चार साल में खाद्य सब्सिडी हो गई दोगुनी
पिछले साल राशनकार्ड बनाने के लिए डेढ़ करोड़ गरीब परिवारों को देनी पड़ी घूस
67 फ़ीसदी कार्डधारकों को पीडीएस से नहीं मिलता राशन
एनएसएसओ रिपोर्ट के मुताबिक 0.01 हेक्टेअर जोत वाले आधे किसानों को नही मिला राशनकार्ड
2006 से जनवरी 2010 तक 171 लाख बोगस राशन कार्ड निरस्त किए गए
2009 में 24 करोड़ परिवारों के पास था राशनकार्ड
2009 में 13 करोड़ परिवारों को मिला एपीएल राशनकार्ड
योजना आयोग के मुताबिक गरीबों तक एक रुपए की मदद पहुंचाने पर खर्च होते है 3.65 रुपए
57 फ़ीसदी रियायती अनाज नहीं मिला पाता गरीबों को
23 फ़ीसदी सस्ते दर की दुकानों करती है सही काम
सस्ते दर की दुकानों का फायदा बहुत कम
घाटे के कारण रियायती अनाज को बेचा जाता है खुले बाजार में ।

भारत अफगान रिश्ता?

भारत चाहता है स्थिर अफगानिस्तान
1.3 बिलियन डालर की विकास सहायता
ऊर्जा और ढांचागत निर्माण में भारत का योगदान
स्वास्थ्य और शिक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान
3749 भारतीय कर रहे हैं अफगानिस्तान में काम
अप्रैल में  भारत आए थे हामिद करज़ई
2005 में अफगानिस्तान गए थे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
1976 के बाद पहली बार 2005 में भारतीय प्रधानमंत्री काबुल गए
2001 से अफगानिस्तान में मौजूद हैं अमेरिकी और नाटो फौजें
नौ साल की लड़ाई के बाद भी शांति कायम नहीं
अफगानिस्तान में जूझ रहें हैं 130,000 विदेशी सैनिक
एक लाख अमेरिकी और 10 हजार ब्रितानी फौजी
उत्तरी अफगगानिस्तान में अगस्त में शुरु होगा बड़ा सौनिक अभियान
2009 में दूसरी बार राष्ट्रपपति चुने गए हामिद करजई
करज़ई को तालिगान गुट से शांति वार्ता के लिए अफगानिस्तान संसद का समर्थन
अफगानिस्तानी संसद ज़िरगा के 1600 सदस्य शांति वार्ता के लिए सहमत
ज़िरगा की बैठक में 16 सूत्रीय  संकल्प पारित
प्रमुख आतंकियों के नाम संयुक्त राष्ट्र की काली सूची से हटाने की मांग
26 तालिबान कैदियों को रिहा किया गया ।
  अवसंरचना में निवेश
जरांज- डेलाराम राजमार्ग में 750 करोड़
जरांज डेलाराम राजमार्ग 215 किलोमीटर लंबा
पुल-ए-खूमरी से काबूल तक ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण
सलमा डैम प्रावर प्रोजेक्ट को कुल 800 करोड़
 भारतीयों पर हमला
2007 से अब तक 6 बड़े हमले
सड़क सीमा संगठन से जुड़े लोग निशाने पर
2008 में हुए चार हमले
7 जुलाई 2008 को काबुल स्थित भारत के दूतावास पर हमला
हमले में  चार लोगों की हुई मौत
भारतीयों की सुरक्षा के लिए सेना और आईटीबीपी के जवान तैनात

इंडिया बनाम भारत


2010-11 के बजट में ग्रामीण विकास के लिए 66,100 करोड़ का आंवटन
 भारत निर्माण के छह पहलूओं में से एक है गरीबों के लिए गृह निर्माण
2001 की गणना के अनुसार 148 लाख घरों की कमी
भारत निर्माण के पहले चरण में था 60 लाख घर बनाने के लक्ष्य
पहले चरण में बने 71 लाख घर
दूसरे चरण के तहत अगले पांच साल में बनाऐंगे 120 लाख घर
इंदिरा आवास योजना के लिए 2010-11 में  दस हजार करोड़ रुपए का प्रावधान
इंदिरा आवास योजना के तहत मिलने वाली मदद बड़ी सामान्य क्षेत्र में 45,000 रुपए की मदद, पहाड़ी इलाकों  में  48,500 रुपए की मदद
1985 में शुरू हुई इंदिरा आवास योजना
इंदिरा आवास योजना के तहत अब तक बने 227 लाख आवास
अब तक इंदिरा आवास योजना पर 55663 कर¨ड़ रुपए खर्च
2005 में शुरु हुई राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना।
योजना के तहत गरीब परिवारों को दिए गए 2.34 करोड़ बिजली कनेक्शन
इस साल फरवरी तक 75 हजार गावों तक पहुंची बिजली।
11वीं योजना में 28,000 करोड़ ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए।
बजट में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए 5500 करोड़।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना 2000 में हुई शुरु, पूरी बजट केन्द्र के जिम्मे।
500 की आबादी वाले गांवों में सड़क निर्माण के लिए बनी है योजना।
पहाड़़ी और जनजातीय इलाकों में 250 की आबादी वाले गांवों तक बनाएंगे सड़क।
2010-11 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को 12,000 करोड़ मिले।
मनरेगा के लिए 2010-11 में आवंटित 40,100 करोड़ रुपए
2006 में  देश के 200 जिलों में रोजगार योजना लागू।
मनरेगा अब सभी 621 जिलों में लागू।
मनरेगा का फायदा 10 करोड़ से ज्यादा गरीब परिवारों को।
मनरेगा के तहत कई गड़बड़यों की शिकायतें
संपूर्ण स्वच्छता अभियान के लिए बजट में 1580 करोड़ का प्रावधान
अभियान के तहत 1999 से अब तक 6 करोड़ ग्रामीण घरों में बने श©चालय
2001 की गणना के अनुसार  सिर्फ 21 फ़ीसदी ग्रामीण घरों में थे शौचालय
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए बजट में 9000 करोड़
2005 में लागू हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
2012 तक स्वास्थ्य पर खर्च होगा जीडीपी का 2-3 फ़ीसदी
कैग के मुताबिक सालाना एक लाख करोड़ नही हो पाता खर्च।
लचर प्रबंधन और ढ़ीली निगरानी के कारण आवंटित राशि का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता।

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

सब्सिडी से सबक?


2010-11 में 1.16 लाख करोड़ रुपए की कुल सब्सिडी
2010-11 में 1.16 लाख करोड़ खर्च हुआ सब्सिडी पर
खाद्यान्न खाद और पेट्रोलियम पर 2009 में 1.08 लाख करोड़ की सब्सिडी दी गई।
बजट के मुताबिक 2011-12  में सब्सिडी पर होन वाले खर्च में होगी कमी।
2011-12 के बजट के मुताबिक जीडीपी का 1.5 फ़ीसदी खर्च सब्सिडी के लिए होगा।
2012-13 में इस रकम जीडीपी का 1.3 फ़ीसदी करने का लक्ष्य
90 फ़ीसदी सब्सिडी, पीडीएस, खाद और पेट्रोलियम पर
यूरिया पर जारी है मूल्य नियंत्रण
सरकार के मुताबिक पोषण आधारित सब्सिडी नीति के दूसरे चरण में यूरिया की कीमतों पर से हटेगा नियंत्रण
पोषण आधारित सब्सिडी लागू। इससे घटेगा केन्द्र पर सब्सिडी का बोझ
2009-10 में खाने के सामान पर मिली 0.9 फ़ीसदी सब्सिडी
2010-11 में खाद्यान्न पर मिलने वाली सब्सिडी जीडीपी का 1.1 फ़ीसदी
खाद्य सुरक्षा विधेयक आयेगा शीतकालीन सत्र में ।
पेट्रोल के दाम बाजार के हवाले। तब से 50 फीसदी तेल के दाम बढ़े।
डीजल किरोसिन और एलपीजी की कीमतें अब भी सरकार के नियंत्रण में।
रंगराजन समिति ने 2006 में पेट्रो उत्पादों से नियंत्रण हटाने की दी थी सलाह
2010 में किरीट पारिख समिति ने पेट्रो उत्पादों के लिए बाजार आधारित मूल्य नीति अपनाने की दी राय
 जुलाई 2010 में पेट्रोल की कीमतों को किया गया नियंत्रण मुक्त
भारत 80 फीसदी कच्चे तेल का आयात करता है
सरकार की तेल कंपनियों को रोजाना होता है 290 करोड़ का घाटा।
एक सर्वे के मुताबिक पीडीएस का 40 फ़ीसदी किरोसिन तेल काले बाज़ार में बिक जाता है।

12वी पंचवर्षिय योजना

12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज को राष्ट्रीय विकास परिषद ने हरी झंडी दिखा दी। 2012 से 2017 तक विकास की तस्वीर और देष की तकदीर किस दिशा में चलेगी इसकी लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक बदलावों की तरफ इशारा किया गया है। 12 पंचवर्षीय योजना का असली मकसद विकास को तेज, टिकाऊ और ज्यादा समग्र बनाना है। आने वाले सालों में 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 11वीं  पंचवर्षिय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान है। खासकर तब जब वैश्विक स्तर में सुस्त विकास के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। अर्थव्यवस्था के पहले 6 माह के आंकड़ों को देखकर इस वित्तिय वर्ष में रखे गए विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल लग रहा है। आर्थिक संपादकों के सम्मेलन में प्रणब मुखर्जी यह स्वीकार भी कर चुकें हैं कि मौजूदा वित्तिय वर्ष में निधार्रित किए गए विकास लक्ष्य तक पहुंचना कठिन काम होगा। साथ ही राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक लाने का काम भी आसान नही होगा। यह दस्तावेज ऐसे समय में सामने आया है जब सरकार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी है। महंगाई बेलगाम है। अर्थव्यवस्था की रफतार सुस्त है। कच्चे तेल के दाम आसपमान छू रहे हैं। भ्रष्टाचार के चलते सरकार की साख गिरी है। हमारे लिए चुनौति वैश्विक आर्थिक बदलाव के झंझावातों को भी सहते हुए समग्र विकास की राह में आगे चलना है। 12वी पंचवर्षिय योजना में चार क्षेत्रों को प्रमुखता दी गई है। स्वास्थ्य के स्थर को सुधारना, शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव के साथ उसका कुशल क्रियान्वयन करना। साथ ही कौशल विकास कार्यक्रम को तेजी से लागू करना। पर्यायवरण संबंधी रूकावटों केा दूर कर विकास मे तेजी लाना और आधारभूत ढांचे में बड़े निवेष लाने के लिए नीतिगत सुधारों को अमलीजामा पहनाना।

वर्तमान में सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में 1 फीसदी के आसपास खर्च करती है जबकि 2004 में उसके न्यूनतम साझा कार्यक्रम में 11 वें प्लान के अंत तक जीडीपी का 2 से 3 फीसदी खर्च की बात कही गई थी। अब सरकार आने वाले सालों में जनस्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ज्यादा खर्च करेगी। चूंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए राज्य सरकारों को अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी। ताकि उपकेन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को बेहतर सुविधाऐं मिल पाए। इस क्षेत्र में मानव संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके। दूसरा सवाल शिक्षा के अधिकार को लागू करने से जुड़ा है। इसके लिए सरकार आने वाले सालों में भारी भरकम खर्च करेगी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जहां 10वीं पंचवर्षिय योजना में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में 17 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया था वहीं 11 वें प्लान में यह 71 हजार करोड़ था। अब शिक्षा 1 से 14 वर्ष के बच्चों का संवैधानिक अधिकार है इसलिए सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने के लिए बाध्य है। भारत सरकार 2020 तक 50 करोड़ युवा आबादी को कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ना चाहती है ताकि उन्हें आजीविका के लिए बेहतर रोजगार मिल सके।
 तीसरा पर्यायवरण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। खासकर 33 फीसदी वनीकरण के लक्ष्य को पाना जो वर्तमान में 23 फीसदी के आसपास है। पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन आज बड़ी चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर पूरे विश्व में चिंतन मनन चल रहा है। भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए दिर्घकालिक रणनीति के तहत आठ मिशनों का गठन किया है जो पर्यायवरण संरक्षण के भावना से ओतप्रोत हैं। इसके अलावा परियोजनाओं में होन वाली देरी का सबसे बड़ा कारण समय से पर्यावरण की मंजूरी न मिलन है। इसके चलते न सिर्फ परियोजनाऐं लंबित है बल्कि उसकी लागत में भी भारी इजाफा हो रहा है। नतीजतन इसका सीधा असर विकास की गति पर पड़ता है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के गंभीर उपाय हमें करने होंगे। गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान और राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर खास ध्यान देना होगा। चैथा बुनियादी ढांचा। सही मायने में यह विकास का इंजन है। इसकी कमी के चलते विकास की रफतार को बरकरार रखना मुमकिन नही है। बुनियादी ढांचे मसलन सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पादन, दूरसंचार तेल एवं गैस पाइपलाइन और सिंचाई व्यवस्था में व्यापक सुधार आज देश की सबसे बड़ी जरूरत है। 12वें प्लान में 9 फीसदी विकास दर को पाने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की बात कही है। 10 वे प्लान में बुनियादी ढांचे में खर्च  जीडीपी के 5 फीसदी था जो बढ़कर 11वें प्लान में 8.9 फीसदी था। अब 12 प्लान में जीडीपी का 11 फीसदी तकरीबन 41 लाख करोड़ रूपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किए जाऐंगे। गौर करने की बात यह है कि इसका 50 फीसदी हिस्सा निजि क्षेत्र से लाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे देखा जाए तो 11 वे प्लान के पहले चार साल में दूरसंचार और तेल व गैस पाइपलाइन में अच्छा निवेश हुआ। मगर बिजली उत्पादन, रेलवे, सड़क और बंदरगाह में निवेश जरूरत में मुताबिक नही हो पाया। खासकर बिजली उत्पादन के तहत रखे गए 78700 मेगावाट के लक्ष्य को हम प्राप्त नही कर पाए। कहा जा रहा है कि केवल 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य पूरा हो पाएगा। योजना आयोग के मुताबिक 11 वे प्लान में 500 बिलियन डालर के निवेश के लक्ष्य 15 फीसदी से पीछे रह जाएगा। 11 वे प्लान में कुल निवेश का 30 फीसदी निजि क्षेत्र से आया। इसलिए 50 फीसदी निजि निवेश को पाने के लिए हमें हर स्तर पर मौजूद कार्यषैली में बदलाव लाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत में 1017 सार्वजनिक निजी भागीदारी के कुल 486603 करोड़ लागत की परियोजना अमल में लाई गई हैं। भारत में योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हमेशा एक चुनौति रहा है। केन्द्र सरकार की ज्यादातर केन्द्रीय प्रयोजित योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नही मिल पाता। यहां तक की राज्य सरकारें संसाधनो के अभाव में पूरी राशि खर्च नही कर पा रही  हैं। व्यापक निगरानी व्यवस्था का कमी के चलते योजनाऐं अपने मकसद से भटक रहीं है। आज देश में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसे कानून मौजूद हैं। भोजन के अधिकार का सबको इंतजार है। सवाल उठता है की आजादी के 64 साल बीत जाने के बाद भ्रष्टाचार, बरोजगारी, अशिक्षा और भूखमरी जैसी समस्याऐं क्यों व्याप्त हैं। आज इन ज्वलंत सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है ? 11 विकासोन्मुखी पंचवर्षिया योजनाओं ने इस देश को क्या दिया? इन योजनाअेां के क्रियान्वयन को लेकर हमारा अनुभव क्या रहा ? क्या यह दस्तावेज पुरानी योजनाओं के अनुभव से सीख लेकर तैयार किया गया है? है या यह एक महज रस्मअदायगी है।












12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज


12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज को राष्ट्रीय विकास परिषद ने हरी झंडी दिखा दी। 2012 से 2017 तक विकास की तस्वीर और देष की तकदीर किस दिशा में चलेगी इसकी लिए विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक बदलावों की तरफ इशारा किया गया है। 12 पंचवर्षीय योजना का असली मकसद विकास को तेज, टिकाऊ और ज्यादा समग्र बनाना है। आने वाले सालों में 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 11वीं  पंचवर्षिय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान है। खासकर तब जब वैश्विक स्तर में सुस्त विकास के चलते हमारी अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ा है। अर्थव्यवस्था के पहले 6 माह के आंकड़ों को देखकर इस वित्तिय वर्ष में रखे गए विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल लग रहा है। आर्थिक संपादकों के सम्मेलन में प्रणब मुखर्जी यह स्वीकार भी कर चुकें हैं कि मौजूदा वित्तिय वर्ष में निधार्रित किए गए विकास लक्ष्य तक पहुंचना कठिन काम होगा। साथ ही राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक लाने का काम भी आसान नही होगा। यह दस्तावेज ऐसे समय में सामने आया है जब सरकार के सामने कई चुनौतियां मुंह बाएं खड़ी है। महंगाई बेलगाम है। अर्थव्यवस्था की रफतार सुस्त है। कच्चे तेल के दाम आसपमान छू रहे हैं। भ्रष्टाचार के चलते सरकार की साख गिरी है। हमारे लिए चुनौति वैश्विक आर्थिक बदलाव के झंझावातों को भी सहते हुए समग्र विकास की राह में आगे चलना है। 12वी पंचवर्षिय योजना में चार क्षेत्रों को प्रमुखता दी गई है। स्वास्थ्य के स्थर को सुधारना, शिक्षा प्रणाली में व्यापक बदलाव के साथ उसका कुशल क्रियान्वयन करना। साथ ही कौशल विकास कार्यक्रम को तेजी से लागू करना। पर्यायवरण संबंधी रूकावटों केा दूर कर विकास मे तेजी लाना और आधारभूत ढांचे में बड़े निवेष लाने के लिए नीतिगत सुधारों को अमलीजामा पहनाना।

वर्तमान में सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में 1 फीसदी के आसपास खर्च करती है जबकि 2004 में उसके न्यूनतम साझा कार्यक्रम में 11 वें प्लान के अंत तक जीडीपी का 2 से 3 फीसदी खर्च की बात कही गई थी। अब सरकार आने वाले सालों में जनस्वास्थ्य की स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर ज्यादा खर्च करेगी। चूंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए राज्य सरकारों को अपने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देनी होगी। ताकि उपकेन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों को बेहतर सुविधाऐं मिल पाए। इस क्षेत्र में मानव संसाधनों की कमी को दूर किया जा सके। दूसरा सवाल शिक्षा के अधिकार को लागू करने से जुड़ा है। इसके लिए सरकार आने वाले सालों में भारी भरकम खर्च करेगी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है जहां 10वीं पंचवर्षिय योजना में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में 17 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया था वहीं 11 वें प्लान में यह 71 हजार करोड़ था। अब शिक्षा 1 से 14 वर्ष के बच्चों का संवैधानिक अधिकार है इसलिए सरकार इस क्षेत्र में पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने के लिए बाध्य है। भारत सरकार 2020 तक 50 करोड़ युवा आबादी को कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ना चाहती है ताकि उन्हें आजीविका के लिए बेहतर रोजगार मिल सके।
 तीसरा पर्यायवरण के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। खासकर 33 फीसदी वनीकरण के लक्ष्य को पाना जो वर्तमान में 23 फीसदी के आसपास है। पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन आज बड़ी चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर पूरे विश्व में चिंतन मनन चल रहा है। भारत सरकार ने इससे निपटने के लिए दिर्घकालिक रणनीति के तहत आठ मिशनों का गठन किया है जो पर्यायवरण संरक्षण के भावना से ओतप्रोत हैं। इसके अलावा परियोजनाओं में होन वाली देरी का सबसे बड़ा कारण समय से पर्यावरण की मंजूरी न मिलन है। इसके चलते न सिर्फ परियोजनाऐं लंबित है बल्कि उसकी लागत में भी भारी इजाफा हो रहा है। नतीजतन इसका सीधा असर विकास की गति पर पड़ता है। नदियों को प्रदूषण से बचाने के गंभीर उपाय हमें करने होंगे। गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान और राष्ट्रीय नदी संरक्षण कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर खास ध्यान देना होगा। चैथा बुनियादी ढांचा। सही मायने में यह विकास का इंजन है। इसकी कमी के चलते विकास की रफतार को बरकरार रखना मुमकिन नही है। बुनियादी ढांचे मसलन सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पादन, दूरसंचार तेल एवं गैस पाइपलाइन और सिंचाई व्यवस्था में व्यापक सुधार आज देश की सबसे बड़ी जरूरत है। 12वें प्लान में 9 फीसदी विकास दर को पाने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की बात कही है। 10 वे प्लान में बुनियादी ढांचे में खर्च  जीडीपी के 5 फीसदी था जो बढ़कर 11वें प्लान में 8.9 फीसदी था। अब 12 प्लान में जीडीपी का 11 फीसदी तकरीबन 41 लाख करोड़ रूपये बुनियादी ढांचे पर खर्च किए जाऐंगे। गौर करने की बात यह है कि इसका 50 फीसदी हिस्सा निजि क्षेत्र से लाने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे देखा जाए तो 11 वे प्लान के पहले चार साल में दूरसंचार और तेल व गैस पाइपलाइन में अच्छा निवेश हुआ। मगर बिजली उत्पादन, रेलवे, सड़क और बंदरगाह में निवेश जरूरत में मुताबिक नही हो पाया। खासकर बिजली उत्पादन के तहत रखे गए 78700 मेगावाट के लक्ष्य को हम प्राप्त नही कर पाए। कहा जा रहा है कि केवल 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली के उत्पादन का लक्ष्य पूरा हो पाएगा। योजना आयोग के मुताबिक 11 वे प्लान में 500 बिलियन डालर के निवेश के लक्ष्य 15 फीसदी से पीछे रह जाएगा। 11 वे प्लान में कुल निवेश का 30 फीसदी निजि क्षेत्र से आया। इसलिए 50 फीसदी निजि निवेश को पाने के लिए हमें हर स्तर पर मौजूद कार्यषैली में बदलाव लाने की जरूरत है। वर्तमान में भारत में 1017 सार्वजनिक निजी भागीदारी के कुल 486603 करोड़ लागत की परियोजना अमल में लाई गई हैं। भारत में योजनाओं का सफल क्रियान्वयन हमेशा एक चुनौति रहा है। केन्द्र सरकार की ज्यादातर केन्द्रीय प्रयोजित योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नही मिल पाता। यहां तक की राज्य सरकारें संसाधनो के अभाव में पूरी राशि खर्च नही कर पा रही  हैं। व्यापक निगरानी व्यवस्था का कमी के चलते योजनाऐं अपने मकसद से भटक रहीं है। आज देश में सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, शिक्षा का अधिकार जैसे कानून मौजूद हैं। भोजन के अधिकार का सबको इंतजार है। सवाल उठता है की आजादी के 64 साल बीत जाने के बाद भ्रष्टाचार, बरोजगारी, अशिक्षा और भूखमरी जैसी समस्याऐं क्यों व्याप्त हैं। आज इन ज्वलंत सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत है ? 11 विकासोन्मुखी पंचवर्षिया योजनाओं ने इस देश को क्या दिया? इन योजनाअेां के क्रियान्वयन को लेकर हमारा अनुभव क्या रहा ? क्या यह दस्तावेज पुरानी योजनाओं के अनुभव से सीख लेकर तैयार किया गया है? है या यह एक महज रस्मअदायगी है।

अल्पसंख्यकों का दर्द


2006 में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का हो
मार्च 2005 में गठित की गई थी सच्चर समिति की रिपोर्ट के बाद की टिप्पणी।
अल्पसंख्यकों के हालात की थाह लेने के लिए बनी सच्चर समिति
रिपोर्ट का मकसद अल्पसंख्यकों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति की जानकारी लेना था।
नवंबर, 2006 में सच्चर समिति ने सरकार को सौंपी 403 पेज की रिपोर्ट।
सच्चर समिति ने रिपोर्ट में दिए 76 सुझाव।
नवंबर 2006 में सदन पटल में रखी गई रिपोर्ट।
सच्चर समिति की रिपोर्ट से संबंध रखते हैं 22 मंत्रालय।
7 मई, 2010 को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक हुआ पारित।
देश भर में वक्फ बोर्ड के कामकाज में सुधार के लिए पारित हुआ विधेयक।
दिसंबर, 2009 को संसद में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग की रिप¨र्ट प्रस्तुत।
आयोग ने अल्पसंख्यकों के लिए 15 फ़ीसदी आरक्षण का दिया सुझाव।
इसमें से 10 फीसदी आरक्षण मुसलमानों को देने का सुझाव।
आय¨ग ने आर्थिक-सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया आरक्षण का सुझाव।
2010-11 में अल्पसंख्यक मंत्रालय को मिले 2600 करोड़।
2009-10 में अल्पसंख्यक कल्याण के लिए ख़र्च हुए 1710 करोड़।
25 मार्च, 2010 में  सर्वोच्च न्यायालय ने पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने का दिया अंतरिम फैसला
आंध्र प्रदेश में पिछड़े मुसलमानों को नौकरी और शिक्षण संस्थानों ममें दिया था 4 फ़ीसदी आरक्षण
8 फरवरी, 2010 को उच्च न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ ने 4 फीसदी आरक्षण नकारा।
बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दिया अंतरिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संवैधानिक पीठ को सौंपा गया मामला।

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

अन्ना की मांग की तामील हो


शीतकालिन सत्र में जनलोकपाल बिल हो पारित।
सांसदों के संसदीय प्रदर्षन सालाना अंकेक्षण हो।
जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने के अधिकार और चुनाव के वक्त इनमें से कोई नही के प्रावधान पर सरकार करे विचार।
ग्राम सभा को ज्यादा शक्ति प्रदान की जाए। खासकर जमीन अधिग्रहण पर ग्राम सभाओं को मिले महत्व।


सरकार ने भ्रष्टाचार में बनाए गए मंत्रियों के समूह की सिफारिश स्वीकार की
17 फास्ट ट्रैक सीबीआई कोर्ट का गठन हो।
अभियोजन चलाते की इज़ाजत तीन महिने के भीतर देना अनिवार्य।
केन्द्रीय सर्तकता अयोग को मजबूत बनाया जाए।
सरकारी खरीद से जड़ी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए।
सेवनिवृति के बाद भी पेंशन में हो सकती है 10 फीसदी की कटौति।
बड़े मामलों में यह 20 फीसदी भी हो सकती है।
भ्रष्टाचार को रोकने सम्बन्धि कानून में होगा संशोधन
भ्रष्टाचार विरोधी अंतराष्ट्रीय संधियों को किया जाए रेटीफाई


नई दूरसंचार नीति 2011 का दस्तावेज

दूरसंचार से जुड़ी यह तीसरी राष्ट्रीय नीति।
पहली नीति 1994 में आई इस समय निजि क्षेत्र के लिए इस क्षेत्र को खोला गया। इसके बाद दूसरी नीति 1999 में और तीसरी 2011 में आई।
इस क्षेत्र के विस्तार के चलते विशेषज्ञों के मुताबिक हर 5 साल में संशोधित हो दूरसंचार नीति।
मौजूदा समय में 15 निजि कंपनियां दूरसंचार क्षेत्र में। अमेरिका में 7 से 8 और चीन में तीन मसलन चाइना मोबाइल और चाइना टेलीकांम।
2011 दूरसंचार नीति का उदे्श्य नागरिकों को सस्ती, विश्वसनीय और सुरक्षित दूरसंचार और ब्राडबेंड सेवा उपलब्ध कराना।
2020 तकक ग्रामीण टेलीडेनसिटी को वर्तमान में 35 से बढ़ाकर 100 करना ।
2020 तक 60 करोड़ आबादी को ब्राडबेंड से जोड़ना जो ब्राडबेंड लेने के अधिकार की तरफ एक अहम कदम होगा।
2010 तक 2 करोड़ लोगों को ब्राडबेंड मुहैया कराने के लक्ष्य से हम पीछ। अभी तक 1 करोड़ 20 लाख तक ही पहुंच पाई सेवा।
ब्राडबेंड की वर्तमान हाई स्पीड 512 एमपीबीएस जबकि छोटे शहरों में यह 256 एमपीबीएस। 201 तक इस स्पीड को बढ़ाकर 4 गुना करने का लक्ष्य
एक राष्ट्र एक लाइसेंस और देश भर में ग्राहकों को मिलेगी रोमिंग से मुक्ति।
2017 तक 300 मेगाहर्टस और बचा 200 मेगाहर्टस का स्पैक्टरम 2020 तक मुहैया कराने का ऐलान।
2020 तक 80 फीसदी मशीनरी व उपकरण की मांग घरेलू उत्पादन से पूरा करने का लक्ष्य। इसमें  तकरीबन 65 फीसदी की बढोत्तरी की जाएगी।
फिलहाल हमारी निर्भरता चीन पर सबसे ज्यादा। सुरक्षा का खतरा बरकरार। चीन की जेडटीई और हुअवई कंपनियां करती हैं पूर्ति।
जिन कंपनियों ने इस क्षेत्र में कदम रखा है और प्रतिस्पर्धा में वह टिक नही पा रहे है उनकी बाहर निकलने की राह आसान।


12वी पंचवर्षिय योजना का दस्तावेज

12वी पंचवर्षिय योजना के दस्तावेज को राष्ट्रीय विकास परिषद ने दी हरी झंडी।
योजना का असल मकसद विकास को तेज, टिकाउ और ज्यादा समग्र बनाना है।
दस्तावेज में 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य।
11वीं  पंचवर्षिय योजना में 8.2 फीसदी विकास दर रहने का अनुमान।
12वी पंचवर्षिय योजना का दस्तावेज में स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यायवरण और आधारभूत ढांचा पर जोर होगा।
बुनियादी ढांचे मसलन सड़क, रेल, बंदरगाह, हवाई अड्डे, बिजली उत्पाद, दूरसंचार तेल एवं गैस पाइपलाइन और सिंचाई पर जोर रहेगा। 
9 फीसदी विकास दर पाने के लिए बुनियादी ढांचे का मजबूत होना ज्यादा। बुनियादी ढांचे में खर्च 10 वे प्लान में जीडीपी के 5 फीसदी से बढ़कर 11वें प्लान में 8.9 फीसदी।
12 प्लान में जीडीपी का 11 फीसदी मतलब 41 लाख करोड़ रूपये बुनियादी ढांचे पर होंगे खर्च। इसका 50 फीसदी निजि क्षेत्र से लाने का लक्ष्य।
11 वे प्लान में दूरसंचार और तेल व गैस पाइपलाइन में निवेश अच्छा हुआ। जबकि बिजली उत्पादन रेलवे सड़क और बंदरगाह में निवेश जरूरत में मुताबिक नही हुआ।
11 वे प्लान में 500 बिलियन डालर के निवेश के लक्ष्य के 15 फीसदी से पीछे रह जाएगा।
11 वे प्लान में कुल निवेश का 30 फीसदी निजि क्षेत्र से आया।
वर्तमान में भारत में 1017 सार्वजनिक निजी भागीदारी के कुल 486603 करोड़ लागत की परियोजना अमल में।





शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

उर्जा के क्षेत्र में धीमापन विकास की गति को थाम देगा।

उर्जा खपत के हिसाब से भारत दुनिया का पांचवा देश है। दुनिया की कुल खपत का 3.4 फीसदी भारत करता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि  भारत जापान और रूस को पीछे छोड़कर 2030 तक तीसरे स्थान पर काबिज हो जायेगा। मगर बिजली उत्पादन में देश की स्थिति में सुधार कुछ खास नही हुआ। हालात यह है कि घंटों तक बिना बिजली के लोगों को जीना पड़ रहा है। सरकार मांग के मुताबिक उत्पादन नही कर पा रही है। जमीन अधिग्रहण, पर्यायवरण मत्रालय से हरी झंडी, कानून व्यवस्था जैसी मुश्किलें आम हैं। यही कारण है की पिछले कई पंचवर्षिय योजनाओं के तहत निष्चित किए गए लक्ष्य पूरे नही हो पाए। मसलन 10वीं पंचवर्षिय योजना में 41 हजार मेगावाट का लक्ष्य रखा गया था मगर 21 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य पूरा हो पाया। इसी तरह 11वीं पंचवर्षिय योजना में 78700 मेगावाट का लक्ष्य रखा गया था जिसे बाद में  संशोधित कर 62 हजार मेगावाट कर दिया गया। कहा जा रहा है की साल के अन्त तक हम 50 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। इस लक्ष्य की प्राप्ति में केन्द्र और राज्य सरकार के उपक्रमों के अलावा निजि भागीदारी भी शामिल है। बहरहाल 12 वीं पंचवर्षिय योजना में सरकार 1 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखने जा रही है। सवाल उठता है की ऐसे हालात आज क्यों पैदा हुए हैं। दरअसल बिजली उत्पादन के लिए जरूरी प्लांट और मषीनरी बनाने की एकमात्र सरकारी उपक्रम भेल है। जिसकी उत्पादन क्षमता जरूरत के हिसाब से काफी कम है। इसलिए हमें चीन जैसे मुल्क से बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ता है। हालांकि भेल की क्षमता में सुधार आया है। सरकार अब मशीनरी के घरेलू  उत्पादन पर जोर दे रही है ताकि इस क्षेत्र में हम आत्म निर्भर बन सकें। इसके लिए कई संयुक्त उपक्रम खोले जा रहे है। एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए उर्जा एक बड़ी जरूरत है। यही कारण ही कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहाकार परिषद ने देष की तेजी से बढ़ती विकास दर में सबसे बड़ा रोड़ा उर्जा की कमी को बताया था। भारत आने वालें सालों में अपनी विकास दर 10 फीसदी से उपर रखना चाहता है। मगर इसके लिए जरूरी है कि बिजली उत्पादन में तेजी लाई जाए। मौजूदा समय में देश में सबसे ज्यादा बिजली कोयले से पैदा होती है। ताप उर्जा का कुल उत्पादन में हिस्सा 75 फीसदी है। मगर कोयला उत्पादन में हो रही गिरावट ने कई मुश्किलें पैदा कर दी हैं। खासकर की पर्यायवरण मंत्रालय द्धारा गो और नो गो ऐरिया की मसला उठाये जाने के बाद कोयला उत्पादन में गिरावाट आई है। साथ ही हमारे देश में कोयले की गुणवत्ता औसत दर्जे की है। आज जहां उर्जा क्षेत्र की विकास दर 10 प्रतिशत की तेजी से बढ़ रही है  वहीं  कोयले का उत्पादन 5 से 6 फीसदी की दर से बढ़़ रहा है। इस संकट से निजात नही मिली तो हमें आने वाले समय में कोयले के लिए निर्यात पर निर्भर रहना पड़ेगा। इसके लिए जरूरी है की कोयला मंत्रालय उत्पादन बढाने के सभी उपाय के साथ कोयले की चोरी पर रोक लगाए। एक अनुमान के मुताबिक कोयले के चोरी का सालाना कारोबार 1800 करोड़ का है। बिजली उत्पादन में दूसरा सबसे बड़ा योगदान जलविद्युत परियोजना का है। वर्तमान में कुल खपत का 21 फीसदी उर्जा का स्रोत जलविद्युत है। यंू तो भारत में जलविद्युत उर्जा की असीम संभावनाऐं मौजूद हैं मगर कुशल नीति के अभाव में हम इसका समुचित इस्तेमाल नही कर पा रहे हैं। भारत में इसकी कुल क्षमता 1.5 लाख मेगावाट है मगर अभी तक हम इसका 25 फीसदी ही उपयोग कर पायें हैं। अकेले अरूणांचल प्रदेश की क्षमता 80 हजार मेगावाट के आसपास है। तीसरा स्रोत परमाणु उर्जा है। भारत और अमेरिका के बीच परमाणु करार के बाद भविष्य में यह उर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। यह न सिर्फ मांग और आपूर्ति में अन्तर को कम करेगा बल्कि इससे निकलने वाली उर्जा साफ सुथरी है जिससे हम ग्रीन गैसों के उत्सर्जन पर नियंत्रण कर सकेंगे। आने वाले समय में इस क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा बिजली उत्पादन किया जाएगा। वर्तमान में यह 4 फीसदी है जबकि 2020 तक हमने 20 हजार मेगावाट उत्पादन का लक्ष्य रखा है। आगे 2050 तक हमारा लक्ष्य कुल खपत का 25 फीसदी इस क्षेत्र से लाने का है। इसके लिए कई देशों से परमाणु करार किए जा चुके हैं। वर्तमान में देष में 19 परमाणु पावर प्लांट काम कर रहे है जिनकी उत्पादन क्षमता 4560 मेगावाट है। भारत सरकार ने वैकल्पिक उर्जा स्रोतों पर भी ध्यान देना शुरू किया है। इसमें सबसे उपर जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय उर्जा मिशन है। इस मिशन की शुरूआत नवंबर 2009 में  हुई। इसे तीन चरणों में विभाजित किया गया है। मार्च 2013 तक 4337 करोड़ के बजट से 11000 मेगावट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते  हुए 2022 तक 20 हजार मेगावाट का लक्ष्य रखा गया है। पवन उर्जा में भारत का पांचवा स्थान है। देश में इसकी कुल क्षमता 48500 मेगावाट की है जिसमें अप्रेल 2010 तक 11807 मेगावाट इन्सटाल्ड कर ली गई थी। 2022 तक हम इस क्षेत्र से  40 हजार मेगावाट उत्पादन करना चाहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 8 सालों में उर्जा के क्षेत्र में 12.5 लाख करोड़ की आवश्यकता होगी। सरकार इसके लिए सार्वजनिक निजि भागीदारी पर जोर दे रही है। यही बात 12वीं पंचवर्षिया योजना के मसौदे में भी कही गई है। वर्तमान में बिजली का मांग और आपूर्ति के बीच 10 फीसदी का अंतर है जो पीक आवर मसलन 5 बजे से रात 11 बजे 12.7 फीसदी तक रहता है। सुधार की दिशा की ओर कदम बढ़ाते हुए भारत सरकार ने 2003 में बिजली कानून बनाया। कानून में 2012 तक हर गांव में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना की शुरूआत इसे उद्देश्य से की गई है। इसके तहत राज्य सरकारों को डीपीआर बनाकर केन्द्र सरकार को जमा करनी होती है। केन्द्र सरकार उक्त डीपीआर को इस शर्त में षामिल करता है जब राज्य सरकार लगातार 6 से 7 घंटे की बिजली प्रादन करने की हामी भरे। साथ ही योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफत बिजली कनेक्शन दिए जा रहें हंै। मगर 2012 तक हर गांव को रोशन करना कठिन लक्ष्य है। वहीं जिन गांवों में बिजली के कनेक्शन दिए गए हैं वहां लोगों की बिजली न आने की शिकायत आम है। । उर्जा क्षेत्र में सबसे ज्यादा नुकसान बिजली के वितरण से होता है। 2003 में यह आंकड़ा 36 फीसदी था जो आज 29 फीसदी तक आ गया है। अगर इस नुकसान को हम नीचे ले आऐं तो मांग और आपूर्ति के बड़े अंतर को पाटने में मदद मिलेगी।

तेलांगाना और नए राज्यों की प्रासंगिकता


तेलांगाना का आंदोलन अब निर्णायक दौर में पहुंच चुका है। आज नही तो कल कांगे्रस को अलग तेलांगाना राज्य के गठन का रास्ता साफ करना ही होगा क्योंकि पृथक राज्य बनाने को लेकर तेलांगाना की लड़ाई अब पिछड़ेपन से निकलकर आत्मसम्मान का लड़ाई बन गई है। इस आत्मसम्मान को बनाए रखने के लिए कांग्रेस को बिना देरी किए तेलांगाना राज्य बनाने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। वरना वहां हालात और विस्फोटक होते चले जाऐंगे। वैसे कांग्रेस के लिए भी मुश्किल कम नही है। 9 दिसम्बर 2009 को गृहमंत्री पी चिदंबरम का राज्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने से जुड़ा बयान लोगों के दिल में ऐसा उतरा जिसने एक पृथक राज्य बनने के अलावा सभी विकल्पों को धराशायी कर दिया। इसलिए अब व्यापक विचार विमार्श की बातें करना बेमानी है। वर्तमान राजनीतिक हालात आमसहमति और व्यापक विचार विमर्श से आगे बढ़ चुके हैं। दरअसल 2004 के अपने पहले कार्यकाल में कांग्रेस ने अलग तेलांगाना राज्य का समर्थन किया था। बाद में अलग तेलांगाना मुददे पर टीआरएस सरकार में शामिल हो गई। इधर राज्य में वाइएस राजशेखर रेड्डी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह मुददा विकास की आंधी में गौण हो गया। यह बात सही है की उसके लिए राजशोखर रेड्डी येन केन प्रकारेण हर तरह की कोशिशें की। मगर उनके निधन के बाद राज्य में कांग्रेस के मानो बुरे दिन शुरू हो गए। आज कांग्रेस के लिए हालात मानो आगे कुआ पीछे खाई जैसे हैं। दक्षिण में उसका सबसे बड़ा सामराज्य दरकने के कगार में है। मगर उसके पशोपेश का कोई अन्त नही दिखाई दे रहा है। उसके लिए सबसे बड़ी चुनौति  रायलसीमा और सीमांध्र को बचाने की है क्योंकि यहां के नेता अलग तेलांगाना के पक्ष में नही हैं। ऊपर से हैदराबाद का पेंच अलग फंसा हुआ है। तेलांगना बनाने की मांग पर विचार के लिए बनाई गाई जस्टिस श्रीकृष्ण समिति ने जो 6 सुझाव केन्द्र सरकार को सौंपे उसमें से चार सुझावों को वो खुद अव्यवाहरिक करार दे चुकें है। सिर्फ पांचवा सुझाव जिसमें उसने तेलांगाना और सीमांध्र में राज्यों को बांटने और हैदराबाद को तेलांगाना की राजधानी बनाने की बात कही है और छठा सुझाव एकजुट राज्य में तेलांगाना का सामाजिक आर्थिक विकास करने के लिए तेलांगाना क्षेत्रीय परिषद के गठन का सुझाव दिया है। बहरहाल इन दोनों पर ही आमराय बनना मुष्किल दिखाई देता है। एक सुझाव यह भी आया है की हैदराबाद को चंडीगड़ की तर्ज पर दोनो प्रदेशों की संयुक्त राजधानी बनाया जाए बाद में विशाखापटनम को विकसित कर सीमांध्र की राजधानी बनाया जा सकता है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर वह कौन सी वजह है जिसने कांग्रेस के हाथ पांव बांध रखें हैं। आंध्र प्रदेश के कुल 42 संसदीय क्षेत्रों में से 17 संसदीय क्षेत्र तेलांगाना से आते हैं। विधानसभा की कुल सीटों में 150 विधायक इस क्षेत्र से आते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है की राजनीतिक लिहाज से यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है। फिलहाल यहां से कांग्रेस के 12 सांसद और 50 विधायक जीतकर आऐं हैं। 2004 और 2009 में दिल्ली की सत्ता तक कांग्रेस को पहुंचाने में आंध्र प्रेदश का बहुत बड़ा हाथ रहा। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के 34 सांसद इस राज्य से जीतकर आऐं हैं। वैसे देखा जाए तो आंध्रप्रदेष परंपरागत तौर पर भी कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां तक की 1977 में अपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ फैले माहौल के बावजूद कांग्रेस के 41 सांसद आंध्र प्रदेश से चुनकर आए। बहरहाल अब स्थिति आर पार की दिखाई पड़ती है। मगर सवाल यह उठता है कि आज जनमानस हर मर्ज का इलाज पृथक राज्यों में क्यों देख रहे हैं। आखिर यह आवाज क्यों उठ रही है। यह आर्थिक पिछड़ापन का आक्रोश है या राजनीतिक सामाजिक महत्वकांक्षाओं का उभार। सवाल यह भी है की नए राज्यों की मांगें विकास की वास्तविक मंशा से प्रेरित है या राजनीतिक महत्वकांक्षाओं से। छोटे राज्यों को बनाने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि यहां प्रशासन करना आसान होता है। यह बात सच भी है और नही भी। अगर प्रशासनिक दृष्टि के आधार पर नए राज्यों का निर्माण होने लगे तो नए राज्यों की बाड़ आ जाएगी। वैसे भी पृथक राज्यों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। इनमें तेलांगाना, गोरखालैंड, विदर्भ, बुंदेलखंड, भोजपुर, सौराष्ट, कौशलांचल, मिथिलांचल, पूर्वाचल, हरित प्रदेश ब्रज प्रदेश और अवध प्रदेश की मांगें शामिल हैं। खुद उत्तप्रदेश की मुख्यमंत्री राज्य को बांटने की बात पर अपनी सहमति जता चुकी है। यह बात दीगर है कि उन्होने केन्द्र सरकार को पत्र लिखने के अलावा कुछ नही किया। उनकी गंभीरता इस बात से झलकती अगर वह विधानसभा में पृथक राज्यों का प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र को भेजती। हाल ही में गोरखालैंड मामले में एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ जिससे गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन का मार्ग प्रशस्त हुआ। मगर दूसरे राज्य जरूरी नही इस तरह के फार्मूले पर हामी भर देंगे। समय की नजाकत तो यह कहती है की दूसरे राज्य पर्नगठन आयोग की स्थापना कर इन सब मांगों पर विचार किया जाना चाहिए। साथ ही नए राज्यो के गठन के लिए कुछ निश्चित मापदंड सामने आने चाहिए। वरना आए दिन इस तरह का विरोध प्रदर्शन देखने को मिलेंगे। अब सवाल यह उठता है कि अगर छोटे राज्य विकास की गारंटी हैं तो 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ क्या एक कुषल माॅडल प्रदेश साबित हो पाए हैं। मसलन उत्तराखंड आज 9.3 फीसदी, झारखंड 8.45 फीसदी और छत्तीसगढ़ 7.35 फीसदी के तेजी से विकास कर रहा है। मगर झारखंड के मामले मे तो यह गलत साबित हुआ है। राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार के चलते इस राज्य का विकास कम विनाश ज्यादा हुआ। नेताओं अफसरों और खनन माफियाओं की पौ बारह हुई मगर आम जनमानस को बुनियादी सुविधाओं तक नही मिल पाई। छत्तीसढ़ में रमन सिंह ने जरूर कुछ आस जगाई मगर नक्सलवाद वहां आज भी गंभीर चुनौति बनी हुई हैं। उत्तराखंड बाकी के मुकाबले बेहतर रहा मगर भ्रष्टाचार ने यहां भी तेजी से अपने पैर पसार लिए। लिहाजा दूसरे राज्य पुर्नगठन आयोग की इन बातों पर भी विचार करना होगा। बड़े राज्यों के लिए यह चुनौति है की असमान विकास पृथक राज्य का कारण बनता है इसलिए समान और सर्वसमावेशी विकास की अवधारणा से काम करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। साथ ही जनमानस को उन लोगों से भी सावधान रहने की जरूरत है जो निजि राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए इस तहत के आदोलनों की आग में घी डालने का काम करते हैं। सबसे बड़ी बात जिम्मेदार नेताओं को ऐसे संवेदनशील मामले में सोच समझ कर बयान देने चाहिए। क्योंकि इतिहास गवाह है
बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताये।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

पेट्रोलियम पदार्थ की देश और दुनिया में कीमत


पेट्रोल                   कीमत रूपये प्रति लिटर

दिल्ली         65
पाकिस्तान      26
अफगानिस्तान   36
बंग्लादेश                 22
नेपाल          34  

डीजल                कीमत रूपये प्रति लिटर

दिल्ली      41.29
पाकिस्तान   46.79
श्रीलंका     34.37
बंग्लादेश            27.32
नेपाल      45.38  


 किरोसिन
दिल्ली          14.83
पाकिस्तान       44
श्रीलंका         24
बंग्लादेश         27


एलपीजी सीलेंडर         कीमत प्रति सिलेंडर
दिल्ली      399
पाकिस्तान   757
श्रीलंका     863
बंग्लादेश            469
नेपाल      819  




डीजल की खपत


एक नजर डालते है किं प्रति 100 बैरल में से डीजल किस  क्षेत्र में कितना खर्च होता है।
10 फीसदी  उद्योग
6  फीसदी  रेलवे
12 फीसदी  कृषि
8  फीसदी  बिजली उत्पादन
15 कारों
12 फीसदी  परिवहन गाड़ियों
37 फीसदी  ट्रकों में खर्च होता है।