मंगलवार, 29 नवंबर 2011

सूचना का अधिकार कानून 2005


सूचना का अधिकार कानून  को लागू हुए 6 साल बीत गए है। यह कानून भारत में 13 अक्टूबर 2005 में लागू हुआ। अपने अस्तित्व में आने के बाद इस कानून ने पारदर्शिता और जवाबदेही की एक नई इबारत लिखी। देष में भ्रष्टाचार को रोकने और समाप्त करने में इस कदम को बहुत प्रभावी कदम के तौर पर देखा जा रहा है। यह कानून आम नागरिकों को सभी सरकारी रिकार्डो और प्रपत्रों में दर्ज जानकारी को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। आम आदमी से सरोकार रखने वाली योजनाओं, नीतियों और कार्यक्रमों में क्या चल रहा है इसकी जानकारी पाने का हकदार आज हर नागरिक है। मगर गंभीरता के अभाव आज कानून की धार को कुंद बना रहा है।
पहला कानून की जानकारी का आम लोगों के बीच अभाव।
2009 में हुए एक सर्वे के मुताबिक गांव में 13 फीसदी आबादी और षहरों में 33 फीसदी आबादी इस कानून के बारे में जानकारी रखती है। महिलाओं के मुकाबले पुरूषों में इस कानून के लेकर जागरूकता ज्यादा है। बहरहाल सरकार अखबार और टीवी चैनलों के माध्यम से जागरूता बढ़ा रही है।
 दूसरा  मांगी गई जानकारी की गुणवत्ता 
 सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी से लोग असंतुष्ट दिखे। सर्वे के मुताबिक इनकी तादाद 75 फीसदी थी।
तीसरा लंबित पड़े मामले
बुनियादी ढांचे और बजट के अभाव में अकेले केन्द्रीय सूचना आयोग में 2009-10 में 19842 और 2010-11  में  24071 शिकायतें लंबित पड़ी हैं।
चैथा व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा 
सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल का भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले कई सामजिक कार्यकाताओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। बहरसाल सरकार इसी सत्र में इनकी सुरक्षा के लिए कानून लाने जा रही है।सूचना का अधिकार कानून एक क्रांतिकारी कदम है जरूरत है का इसका क्रियान्वयन जमीन पर बेहतर तहत से किया जाए।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

कृषि उत्पादन

बढ़ती आबादी की मांग को देखते हुए इस देश को दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है। प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह खुद कई मंचों से इसकी पैरवी कर चुके है। खाद्यान्न के रिकार्ड तोड़ उत्पादन के बावजूद कृषि क्षेत्र में व्यापक बदलाव की जरूरत है। हालांकि भारत सरकार ने 11वी पंचवर्षिय योजना में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय हाल्टीकल्चर मिशन जैसे कार्यक्रमों की शुरूआत हुई। इसका लक्ष्य कृषि क्षेत्र में 4 फीसदी विकास दर हासिल करना था। बहरहाल इसके 3 फीसदी रहने का अनुमान है। खाद्यान्न उत्पादन 241 मिलियन टन है मगर  2020 तक इसे बढ़ाकर 280 मिलियन टन करने की चुनौति है। इसके लिए जरूरी है कि किसान को नई तकनीक और जनकारियों से लैस किया जाए। साथ ही समय से बीज, उवर्रक, सस्ता ऋण और सिंचाई की व्यवस्था की दुरूस्त जैसे करने कदम जरूरी है। हमारे देश में प्रति हेक्टेयर उत्पादकता विकसित देशों के मुकाबले एक तिहाई कम है। आंकड़ों के लिहाज से खाद्यान्न उत्पादन की दर  1997 से 2007 तक महज 1 फीसदी रही। न सिर्फ उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए बल्कि किसान को उसकी उपज का लाभाकारी मूल्य दिया जाए। बजट 2011-12 में सरकार ने कृषि  क्षेत्र के लिए कई नए कार्यक्रम की घोषणाऐं की है। इनमें प्रमुख है पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रांति लाना, 60 हजार दलहन ग्रामों का एकीक्रत विकास, आयल पाम का संवर्धन, सब्जी समूह संबंधी कार्यक्रम, पोशक अनाज कार्यक्रम, राष्ट्रीय प्रोटीन सम्पूरण मिशन, त्वरित चारा विकास कार्यक्रम आदि। देखना होगा की महंगाई की रफतार थामने और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने में यह कदम कितने महत्वपूर्ण साबित होंगे।





रविवार, 27 नवंबर 2011

क्रिकेट में फिक्सिंग


हाल ही में भारत के पूर्व खिलाड़ी विनोद कांबली ने यह कहकर खलबली मचा दी कि 1996 में भारत और श्रीलंका के बीच मैच को शक की निगाहों से देखते है। इसके पीछे उनके तर्क टौस जीतने के बाद श्रीलंका को बैटिंग के लिए आमंत्रित करना और खिलाड़ियों की खराब बल्लेबाजी है। मगर सवाल उठता है की कांबली को इसी 15 साल बाद याद क्यों आई। क्या वह सस्ती लोकप्रियता के भूखे है या अजहर से उनकी कोई पुरानी खुन्नस है। वैसे हाल ही में लंदन की एक अदालत ने स्पाॅट फिक्सिंग के मामले में पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को दोषी करार दिया है। पूर्व कप्तन सलमान बट और तेज गेंदबाज मोहम्मद आसिफ को लार्डस टेस्ट मैच के दौरान स्पाट फिक्सिंग कर पैस लेने का दोषी पाया गया। तीसरे खिलाड़ी मोहम्मद आामिर पहले ही अपना गुनाह स्वीकार कर चुके हैं। क्रिकेट के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब फिक्सिंग के दोषी खिलाड़ियों को सजा मिलेगी। क्रिकेट जगत को शर्मशार करने वाले इस प्रकरण की अभी और कई परतें खुलनी बांकी है। मसलन पााकिस्तानी  विकेट कीपर कामरान अकमल और तेज गेंदबाज रियाज आइसीसी के शक के घेरे में है। आइसीसी की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा अब पाकिस्तान टीम के 2010 के क्रिकेट मैचों की जांच शुरू करने जा रही है। वहीं आइसीसी ने इस फैसलों को लालची खिलाड़ियों के लिए एक चेतावनी बताया है। गौरतलब है कि उक्त आरोपों के चलते आइसीसी ने इन खिलाड़ियों को पांच सात और 10 साल के लिए पहले ही निलंबित कर दिया था। क्रिकेट के प्रति लोगों की सच्ची आस्था है। मगर इस तरह के प्रकरण इस खेल की चमक धमक को फीकी कर रहें है। लिहाज आइसीसी को चाहिए कि वह ऐसे मामलों की पुनर्रावृति न होने दे।


हाल ही में भारत के पूर्व खिलाड़ी विनोद कांबली ने यह कहकर खलबली मचा दी कि 1996 में भारत और श्रीलंका के बीच मैच को शक की निगाहों से देखते है। इसके पीछे उनके तर्क टौस जीतने के बाद श्रीलंका को बैटिंग के लिए आमंत्रित करना और खिलाड़ियों की खराब बल्लेबाजी है। मगर सवाल उठता है की कांबली को इसी 15 साल बाद याद क्यों आई। क्या वह सस्ती लोकप्रियता के भूखे है या अजहर से उनकी कोई पुरानी खुन्नस है। वैसे हाल ही में लंदन की एक अदालत ने स्पाॅट फिक्सिंग के मामले में पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को दोषी करार दिया है। पूर्व कप्तन सलमान बट और तेज गेंदबाज मोहम्मद आसिफ को लार्डस टेस्ट मैच के दौरान स्पाट फिक्सिंग कर पैस लेने का दोषी पाया गया। तीसरे खिलाड़ी मोहम्मद आामिर पहले ही अपना गुनाह स्वीकार कर चुके हैं। क्रिकेट के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब फिक्सिंग के दोषी खिलाड़ियों को सजा मिलेगी। क्रिकेट जगत को शर्मशार करने वाले इस प्रकरण की अभी और कई परतें खुलनी बांकी है। मसलन पााकिस्तानी  विकेट कीपर कामरान अकमल और तेज गेंदबाज रियाज आइसीसी के शक के घेरे में है। आइसीसी की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा अब पाकिस्तान टीम के 2010 के क्रिकेट मैचों की जांच शुरू करने जा रही है। वहीं आइसीसी ने इस फैसलों को लालची खिलाड़ियों के लिए एक चेतावनी बताया है। गौरतलब है कि उक्त आरोपों के चलते आइसीसी ने इन खिलाड़ियों को पांच सात और 10 साल के लिए पहले ही निलंबित कर दिया था। क्रिकेट के प्रति लोगों की सच्ची आस्था है। मगर इस तरह के प्रकरण इस खेल की चमक धमक को फीकी कर रहें है। लिहाज आइसीसी को चाहिए कि वह ऐसे मामलों की पुनर्रावृति न होने दे।

मुश्किल में अर्थव्यवस्था


औद्योगिक उत्पादन में लगातार आ रही गिरावट ने सरकार की मुश्किलें बड़ा दी है। यही वजह है की बजट अुनमान में 8 फीसदी से ज्यादा की विकास दर का अनुमान अब बौना लगने लगा है। विशेषज्ञों की मानें तो मौजूदा वित्तिय वर्ष में यह 7 फीसदी से भी नीचे रह सकता है। गिरते औद्योेगिक उत्पादन के पीछ कई वजहें गिनाई जा रही है। महंगाई के बढ़ते कदम को थामने के लिए रिजर्व बैंक अपने नीतिगत दनों में मार्च 2010 से 13 बार परिवर्तन कर चुका है। अंतराष्ट्रीय हालात प्र्रतिकूल है। इसके अलावा आपूर्ति संबंधी दबाव पर्यायवरण के चलते हो रही देरी और आए दिन आए नीति नए घोटले इसके लिए जिम्मेदार है। मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली छमाही के आंकड़ो पर अगर नजर डाली जाए तो बिजली उत्पादन को छोड़कर खनन और विनिर्माण क्षेत्र में भारी गिरावट देखने को मिली है। अकेले सितंबर महिने में विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के चलते औद्योगिक उत्पादन की दर घटकर 1.9 फीसदी में आ गई। गौरतलब है कि विनिर्माण क्षेत्र का औद्योगिक उत्पादन संचकांक में 75 फीसदी का योगदान है। सितंबर में खनन उत्पादन में 5.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जो बीते साल इसी महिने में इसमें 4.3 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी। मशीनरी उत्पादन में 6.8 फीसदी की गिरा जबकि सितंबर 2010 में इसमें 7.2 फीसदी की वृद्धि देखने को मिली। ने को मिली है। सबसे ज्यादा निराशाजनक खबर खनन क्षेत्र से है। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र जिसका औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 75 फीसदी का योगदान है उसमें भी गिरावट देखी गई है। बहराहल घरेलू और अंतराष्ट्रीय माहौल दोनों को देखकर लगता नही की हालात में जल्द बदलाव आएगा।  आइये एक नजर डालते है 2011-12 के छमाही आंकड़ों पर


                                2011                                     2010
खनन                          1                                          7.2
बिजली उत्पादन          9.4                                       3.8 
विनिर्माण                   5.4                                        8.8 
                                 सभी आंकड़े प्रतिशत में

नई क्रय नीति में राजनीति का काकटेल

केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने हाल ही में नई खरीद नीति को हरी झंडी दे दी। इस साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने लालकिले की प्राचीर से भ्रष्टाचार से लड़ने के उपायों की घोषणा करते हुए इस नीति का भी जिक्र किया था। भ्रष्टाचार के मामले में चैतरफा आरोपों से घिरी सरकार के लिए यह राहत की बात है। हमेषा सार्वजनिक खरीद को लेकर विवाद रहते थे। मंत्रियों से लेकर नौकरशाहों तक अपने चहेतों के हितों को साधने के लिए अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग के आरोप लगते रहते थे। सीधे कहें तो सार्वजनिक खरीद में कई सालों से यह तपका अपनी जेब गरम करते आ रहा था। माना जा रहा है अब इसपर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकेगी।  इस क्रय नीति में पहली बार लघु छोटे और मझोले उद्योगों की सेहत को भी ध्यान में रखा गया है। सरकार की इस नीति के मुताबिक सरकारी संस्थानों और सरकारी उपक्रमों को अपनी कुल खरीद का 20 फीसदी हिस्सा लघु छोटे और मझोले उद्योगों से खरीदना पड़ेगा। इस 20 फीसदी में से भी 4 फीसदी उन एमएसएमई से जिनका स्वामित्व अनुसूचित जाति और जनजाति लोगों से है। बस इस प्रावधान को लेकर कुछ संगठनों ने दबी जुबान से आपत्ति जताई है। कुछ का कहना है कि यह उत्तर प्रदेष चुनावों से पहले की सियासी बिसात है जिसको साधकर कांग्रेस माया के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने का असफल प्रयास कर रही है। बहरहाल यह प्रयास कितना सफल होता है यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा। मगर आवाम के लिए अच्छी खबर यह है की देर से ही सही एक सार्वजनिक क्रय नीति तो इस देश में आई। इस नीति का लम्बे समय से इंतजार किया जा रहा था। दुनिया में लगभग 50 देशों के पास अपनी क्रय नीति है। हमारे देश में सावर्जनिक क्रय नीति के तहत सालाना 12 से 15 लाख करोड़ की खरीद की जाती है। यह जीडीपी के 15 से 20 फीसदी है। एक अनुमान के मुताबिक स्पष्ट नीति के अभाव में सालाना 20 से 30 फीसदी का नुकसान इस क्रय के चलते होता था। माना जा रहा है इस नीति के लागू होने के बाद इसमें रोक लगेगी। मगर सरकार के लिए मुष्किल कुछ और है। आने वाले दिनों में सरकार को यह मसला गले ही हड़डी साबित हो सकता है। वैसे भी इन दिनों कांग्रेस का कोई भी तीर निशाने में लगने के बजाय उसके जी का जंजाल बन रहें हैं। देश में मौजूद लघु, छोटे और मझोले उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे सकल घरेलू उत्पाद यानि की जीडीपी में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 8 फीसदी के आसपास है। इसके अलावा विनिमार्ण क्षेत्र का 40 फीसदी उत्पादन इस क्षेत्र से आता है। 6 करोड़ लोगों को यह सेक्टर रोजगार देता है। साथ ही निर्यात में इसकी भागीदारी 40 फीसदी के आसपास है। कुल मिलाकार यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ है। इस लिहाज से नई खरीद नीति में इस क्षेत्र को प्राथमिकता देना एक अच्छी पहल है। मगर किसी खास जाति के लिए निष्चित प्रावधान करना किसी भी लिहाज से उचित नही है। क्योंकि इससे आने वाले समय में अनावश्यक विवाद पैदा होंगे। मसलन कल मुलायम सिंह इस खरीद नीति में मुस्लिमों के लिए विशेष प्रावधान करने का मुददा उठाये तो क्या होगा। अगर प्रकाश सिंह बादल सिंख समुदाय के लिए प्रावधान करने की बात कहें तो सरकार क्या करेगी। इसी तरह अन्य पिछड़ा वर्ग अपना हिस्सा मांगेगा तो क्या सरकार दे पाएगी। इसके अलावा कल कुछ महिला संगठन महिलाओं के लिए इसमें प्रावधान खासकर जिन उद्योगों का मालिकाना हक महिलाओ के पास है उनसे भी एक निश्चित खरीद की जाए क्या सरकार ऐसा कर पाएगी। आज नही तो कल इन सवालों से सरकारों को दो चार होना ही पड़ेगा। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुके है की अल्पसंख्यकों का इस देष के संसाधनों में पहला अधिकार है। सच्चर समिति की रिपोर्ट इस बात को साफ कर चुकी है कि देष में आर्थिक शैक्षिक सामाजिक और राजनीतिक तौर पर मुस्लिम बहुत पिछड़ा हुआ है। सवाल उठता है कि क्या इस नई खरीद नीति में उनका हिस्सा नही होना चाहिए। क्या उत्तरप्रदेश में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से यह सवाल नही पूछेगा। इसका जवाब सियासतदानों के पास क्या है। अगर हम लघु छोटे और मझोले उद्योगों पर एक नजर डालें तो आंकड़ों से जाहिर होता है कि किस समुदाय का कितना मालिकाना हक है। इसमें अनुसूचित जाति 7.73 फीसदी, अनुसूचित जनजाति 3.03 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग 38.70 फीसदी है। लगभग 55.55 प्रतिषत कायर्रत इकाइंया सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गो की हैं। इसी तरह अल्पसंख्यक समुदायों की बात की जाए तो लघु छोटे और मझोले उद्योगों में मुस्लिम का मालिकाना हक 10.24 फीसदी, सिख समुदाय का 2.43 फीसदी और ईसाई समुदाय 4.16 फीसदी है। मगर इनके लिए इस नीति में कुछ नही है। लिहाजा सरकार से पूछा जाना चाहिए की इस खरीद में अल्पसंख्यकों का हिस्सा कहां है। खासकर तब जब 2009 के लोकसभा चुनावों में मुस्लिम मतदाता ने बड़े पैमाने में कांग्रेस को वोट दिया।। हो सकता है कि मुलायम सिंह और लालू यादव मुस्लिम मोह में मौके की नजाकत को भांपते हुए इस क्रय नीति में मुस्लिमों को भी आरक्षण देने की मांग कर सकते हैं। इसमें गलत भी क्या है। देश में जाति और धर्म की राजनीति उफान में है जिसका फायदा हर राजनीतिक दल उठाने की फिराक में रहता है। बहरहाल इस क्रय नीति में कुछ अच्छी बातें छिपी हैं जिसका अच्छा असर हमारे लघु छोटे और मझोले उद्योगों की सेहत पर जरूर पड़ेगा। फिलहाल कुल खरीद का 4 से 5 फीसदी ही अभी एमएसएमई क्षेत्र से खरीदा जाता है। अगर यह हिस्सा बढ़ता है तो यह एमएसमई सेक्टर के विकास में अहम भूमिका निभाएगा। मगर यह क्षेत्र आज भी कई आमूलचूल परिवर्तन की बाट जोह रहा है। आज इस सेक्टर को बदलते परिवेश में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिहाज से अपने आप को तैयार करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने इसी के मददेनजर 2009 में एक टास्क फोर्स का गठन किया था। 2010 में इस रिपोर्ट में इस क्षेत्र के लिए कई जरूरी सिफारिशें की गई। यह सिफारिशें कौशल विकास से लेकर नई तकनीक के विकसित करने, ढांचागत विकास और ऋण की आसान सुविधा जैसे मसलों से जुड़ी है। नई क्रय नीति में एमसएसमई के लिए किया गया प्रावधान इस सिफारिश का एक हिस्सा है। भारत के विकास में एमएसएमई क्षेत्र का महत्वता को बनाए रखने के लिए जरूरी है की टास्क फोर्स की सिफारिशों में तेजी से काम किया जाए ताकि नई पौंध इस क्षेत्र की तरफ आकर्षित हो।

सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की समीक्षा जरूरी


सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को लेकर जम्मू  कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस आमने समाने आ गए हैं। राज्य में कांग्रेस के वरिेष्ठ नेता और प्रदेश अध्यक्ष सैफुद्दीन सोज ने उमर अब्दुल्ला पर आरोप लगाया है कि सहयोगी दल होने के बावजूद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मामले पर उनकी राय तक जाननी जरूरी नही समझी। उनकी अनदेखी की है। गौरतलब है की राज्य में कांग्रेस और नेशनल कांग्रेस का गठबंधन है। हाल ही में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्य के कुछ हिस्सों से अशांत क्षेत्र अधिनियम और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने की बात कही थी। वैसे यह पहला मौका नही जब उमर इस कानूून को हटाने की पैरवी कर रहें हों। इससे पहले भी वह कई बार इस कानून को राज्य से हटाने की बात कह चुके हैं। मगर हर बार आमसहमति न बनने के कारण इस मामले पर फैसला नही हो पाता था। खासकर रक्षा मंत्रालय के ऐतराज के चलते गृहमंत्रालय इस मुददे पर फैसला लेने में असमर्थ रहा। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून 1958 में अस्तित्व में आया। इस कानून में सुरक्षा बलों को आतंकवादियों से निपटने के लिए विशेष अधिकार दिए गए हैं। मसलन वह बिना वारंट के सर्च कर सकतें है। किसी भी गिरफतारी की जा सकती है। पूछताछ की जा सकती है यहां तक की संदेह की स्थिति में गोली तक  मारने का प्रावधान है। मगर उनके उपर मुकदमा या कारवाई बिना केन्द्र सरकार की अनुमति से नही हो सकती। इसी के चलते इस कानून का जम्मू कश्मीर सहित पूर्वोत्तर राज्यों खासकर मणिपुर में लम्बें समय से प्रबल विरोध हो रहा है। मगर इस कानून के रहने या न रहने पर राय बंटी हुई है। सेना जहां इसके पक्ष मे है वहीं मानवाधिकार संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता इसे काले कानून की संज्ञा देते हुए इसे तत्काल हटाने के लिए संघर्षरत है। उनके मुताबिक यह लोगों को मारने के एक तरह से वैध लाइसेंस है जबकि सेना का कहना है इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के लिए उसे इस तरह के अभेद्य कवच की आवश्यकता है। इन सब के बीच कुछ ज्वलंत सवालों का जवाब तलाशना जरूरी है। क्या एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे कानून जो सुरक्षा बलों को असीमित अधिकार देंते हों, ऐसे कानून को जायज ठहराया जा सकता है? क्या वाकई एएफएसपीए के बिना मणिपुर और दूसरे राज्यों में उग्रवाद का सामना नही किया जा सकता? कानून की समीक्षा के लिए बनाई गई जस्टिस जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशों का क्या हुआ? इस कानून की समीक्षा कर इसे और मानवीय नही बनाया जा सकता जैसा की 2006 के असम दौरे में प्रधानमंत्री ने यह बात कही थी अपने दौरे में प्रधानमंत्री ने नवंबर दौरे में कही। सवाल उठता है कि कानून लागू होने की आधी सदी के बाद भी पूर्वोत्तर में आतंकवादी समस्याओं का समाधान क्येां नही हेा पा रहा है?
क्या मणिपुर की तकलीफ, रेड्डी समिति की सिफारिश और इरोम शर्मिला के अनषन की अनदेखी की जा सकती है? इरोम चानू शर्मिला नवंबर 2000 से भूख हड़ताल में हैं। उनके इस भूख हड़ताल को 11 साल बीत चुके हैं। 2004 के उस मंजर को कौन भूल सकता है जब इस कानून के विरोध में मणिपुर के कांगला किले में महिलाओं ने नग्न प्रदर्शन किया था जिसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई। खासकर मणिपुर में जहां इस कानून का भारी विरोध होता रहा है। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को लागू करने से पहले राज्यपाल उस क्षेत्र को अशांत घोषित करना होता है। उसके बाद वहां अर्धसैनिक बलों की तैनाती की जाती है। यह पूरा मामला 2004 में तब सूर्खियों में आया जब असम राइफल्स के जवानों के उपर मनोरमा देवी के बलात्कार और हत्या का आरोप लगा। इसी के बाद जस्टीस जीवन रेड्डी समिति का गठन किया जिसके रिपोर्ट गृह मंत्रालय के पास मौजूद है। मगर इस बार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री  उमर अब्दुल्ला के बयान के समय को लेकर कई बाते कही जा रही है। मौजूदा समय में उमर अब्दुल्ला मुश्किल दौर में चल रहे है। उनपर कई गंभीर आरोप लगे। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी पीडीपी ने तो उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। साथ ही कांग्रेस और उनके बीच के रिश्ते भी अच्छे नही चल रहें है। इसकी बानगी हाल में राज्य में राहुल गांधी के दो दिन के दौरे पर भी देखने को मिली। मुख्यमंत्री के खिलाफ पार्टी कार्यकर्ताओं की नाराजगी के चलते राहुल गांधी उमर अब्दुल्ला के रात्रि भोज में तक में षामिल नही हुए। कहा यह भी गया की कांग्रेस में मौजूद एक बड़ा तबका चाहता है कि राज्य में तीन साल मुख्यमंत्री नेशनल कांफ्रेस का हो और तीन साल कांग्रेस का बने। मतबल  पिछले कार्यकाल में कार्यकाल की ही तरह इस बार भी तीन तीन साल में मुख्यमंत्री रोटेट हो गौरतलब है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उमर अब्दुल्ला को पूरे 6 साल तक काम करने की हरी झंडी दी थी। मगर उमर अब्दुल्ला की कार्यषैली और आए दिन उनके विवादों में फंसने के चलते  अब हाईकमान उनके काम की समीक्षा का मन बना रहा है। उमर अब्दुल्ला अगले साल जनवरी में अपने 3 साल पूरे करने जा रहे हैं। ऐसे में यह मांग जोर पकड़ने लगी है कि बाकी बचे तीन साल के लिए कांग्रेस अपनी मुख्यमंत्री बनाए। इसलिए कुछ लोगों का कहना है कि इन हालातों से ध्यान बंाटने  के लिए उमर अब्दुल्ला ने यह पासा फेंका है। वैसे जम्मू कश्मीर में इस साल हालात बाकी सालों के मुकाबले बेहतर रहे हैं। सैलानियों के आवागमन और कानून व्यवस्था की स्थिति सामान्य रही है। मगर सवाल उठता है कि क्या राज्य पुलिस इन हालातों को बनाए रखने में सक्षम है। क्या सीमा पार आतंकवाद रूक गया है। खासकर कश्मीर की भूगौलिक परिस्थिति को देखते हुए यह लगता नही की पुलिस वहां की कानून व्यवस्था को संभालने में सक्षम है। मगर एक प्रयोग के चलते राज्य के कुछ क्षेत्रों में इस कानून को हटाने पर गंभरता से विचार किया जा सकता है। यह जनता के बीच विश्वास बहाली को लेकर भी अहम कदम साबित होगा। मगर इसके लिए जरूरी है कि इससे जुड़े सभी पक्षों खासकर सेना की सहमति होना जरूरी है। क्योंकि आज जम्मू  कश्मीर में हालात सामान्य हुए है तो उसके लिए सेना की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। जहां तक बात मानवाधिकार हनन का है तो सेना की ओर से यह कहा जाता है कि बीते तीन दशक मे उनके पास तकरीबन तो जो 1500 षिकायतें आई उनमें से 97 फीसदी झूठी थी और बाकी मामलों में उन्होन कारवाइयां की हैं। अगर गृहमंत्रालय इस पर गंभीरता से विचार करता है तो उसे मणिपुर में भी इस कानून की समीक्षा पर विचार करना चाहिए। चंूकि जम्मू कश्मीर में अगर यह प्रयोग किया जाता है मणिपुर में इसे हटाने की आवाज और बुलंद होगी।

शनिवार, 26 नवंबर 2011

खुदरा क्षेत्र में एफडीआई पर राजनीति


मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को कैबीनेट की हरी झंडी मिलने के बाद इसका राजनीतिक विरोध शुरू हो चुका है। वामदल और भाजपा ने सरकार को सड़क से लेकर संसद तक इस मामले में पेपर्दा करने की चेतावनी दी है। इसका अंदाजा संसद में विपक्षी तेवर को देखकर लगाया जा सकता है। सरकार के लिए मुश्किल विपक्षी दल ही नही बल्कि  सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस भी है जिसको सरकार का यह कदम नागवार गुजरा है। लिहाजा आगामी चुनावों के मददेनजर सरकार का इस मुददे पर  घिरना तय है। मगर सवाल यह उठता है कि यह महज एक राजनीतिक विरोध है या वाकई इस कदम से इस देश के किसान, खुदरा कारोबारी और रेहड़ पट्टी वालों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। चूंकि इसके विरोध में सबसे बड़ा तर्क यह दिया जा रहा है कि खुदरा क्षेत्र से जुड़े 4 करोड़ कारोबारी सरकार के इस कदम से तबाह हो जाऐंगे। लघु उद्योग प्रतियोगी माहौल में दम तोड़ देंगे। यह बड़ी कंपनियां आकर हमारे देश में मनमानी करेंगी। मगर किसी भी निर्णय में पहुंचने से पहले यह समझना जरूरी है कि भारत में खुदरा बाजार की क्या स्थिति है? इसका हमारी अर्थव्यवस्था में क्या योगदान है? रोजगार के क्षेत्र में यह क्या भूमिका निभाता है? क्या महंगाई को कम करने में यह कदम रामबाण साबित होगा। क्या साला होने वाली फल और सब्जियों की बर्बादी में कमी आएगी? यह ऐसे सवाल है जो हर किसी के ज़ेहन में उठ रहे होंगे। दरअसल भारत में खुदरा कारोबार वर्तमान मंे 28 बिलियन डालर का है जिसके 2020 तक 260 बिलियन डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। मतलब इस क्षेत्र में वर्तमान से 9 गुना ज्यादा बढ़ोत्तरी होगी। साथ ही जीडीपी में इसका योगदान बढ़ेगा और  रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। आज हमारे खुदरा क्षेत्र में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि खुदरा क्षेत्र में 95 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र से हैं। महज 5 फीसदी लोग संगठित क्षेत्र से हैं। खुदरा क्षेत्र का 70 फीसदी कारोबार खाद्य से जुड़ा है। बस इसी को सामने रखकर विरोध में कहा जा रहा है की हमारी खाद्य सुरक्षा पर इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अधिपत्य हो जाएगा। मगर इसके पक्ष में भी बेशुमार तर्क है। उदाहरण के तौर पर, इससे उपभोक्ताओं को 5 से 10 फीसदी की बचत होगी। किसान को अपने उत्पाद के 20 से 30 फीसदी ज्यादा दाम मिलेंगे। 30 से 40 लाख नए रोजगार उपलब्ध होंगे। इसके अलावा अप्रत्यक्ष तौर में 40 से 60 लाख रोजगार का सृजन होगा। सरकार को इससे जुड़े ढंाचागत विकास मसलन प्रोसेसिंग, मैनूफैक्चरिंग, वितरण, डिजाइन, गुणवत्ता, कोल्ड चेन, वेयरहाउस और पैकेजिंग जैसे कामो में तेजी आएगी। इन सब वजहों की कमी के चलते सालाना 50 हजार करोड़ का नुकसान हमें उठाना पड़ता है। मसलन 16500 करोड़ का अनाज जो उत्पादन का 10 फीसदी है, बर्बाद हो जाता है। इसी तरह 15 फीसदी दालें, 30 फीसदी फल और सब्जियां और 40 फीसदी फलोरीकल्चर से जुड़े उत्पाद रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो जाते हैं।। अगर निवेश का 50 फीसदी हिस्सा इस बुनियादी क्षेत्र को विकसित करने में लगता है जैसे की कहा गया है तो हालात में तेजी से सुधार आएगा। सरकार के मुताबिक  बैक एंड इन्फ्रास्ट्रकचर में कुल निवेष का 50 फीसदी खर्च करना अनिवार्य होगा। बहरहाल सरकार के इस फैसले से वालमार्ट, कैरीफोर, टेस्को और मेटो जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में कारोबार करने का रास्ता खुल गया है। सरकार ने 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में इन रिटेल स्टोरों को खोलने की अनुमति दी है। साथ ही कुछ ठोस प्रावधान भी किए हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक देष में 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों की संख्या 53 है। इससे पहले औद्योगिक और संर्वधन विभाग द्धारा जारी चर्चा पत्र में मल्टी ब्रांड रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की बात कही गई है। रिटेल भारत में कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है। 8 से 9 प्रतिशत की सालाना दर से यह क्षेत्र आगे बढ़ रहा है। इससे पहले एकल रिटेल ब्रांड में 2006 में 51 फीसदी एफडीआई को अनुमति दी थी। जिसे अब 100 फीसदी कर दिया गया है। साथ ही होलसेल में 100 फीसदी विदेशी निवेश लागू है। एक अनुमान के मुताबिक 2006 से मई 2010 तक 901 करोड़ का निवेश इस क्षेत्र में आया है। इसमें से ज्यातातर निवेश खेल से जुडे परिधानों मसलन लग्जरी समान जेवरात और हैंडबैग में आया है। आज सरकार को यह स्थिति भी स्पष्ट करनी चाहिए कि छोटे कारोबारियों और रेहडी पटटी वालों पर इसका क्या प्रभाव  होगा? क्या वालमार्टऔर कैरीफोर जैसी दिग्गज कंपनियां जो भारत के बाजार में प्रवेश के लिए ललायित हंै,उतने लोगों को रोजगार दे पायेंगी जितने लोग असंगठित खुदरा कारोबार से जुडे़ हैं? इस बात में कितना दम है कि किसान और ग्राहकों का इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा? क्या सरकार के इस कदम थोक और फुटकर दामों में अन्तर  पाटने में हमें कितनी मदद मिलेगी? क्या महंगाई की रफतार को थामने में यह कदम कितना मदद करेगा? और आखिर में सबसे अहम भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर पडे़गा? सच्चाई यह है कि सिंगल ब्रांड में इन नियमों का पालन नही हो रहा है। भारत में रिटेल में जीडीपी की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आसपास है जबकि चीन में यह 8 फीसदी, ब्राजील में 6 फीसदी और अमेरिका में 10 फीसदी है। भारत में तकरीब 1.5 करोड़ रिटेल स्टोर है जिनमें प्रमुख है पैन्टलून, सौपर्स स्टाॅप ,स्पैंसर, हाइपर सीटी, लाइफस्टाइल, सुभिक्षा और रिलायंस।  वाणिज्य मंत्रालय से जुड़ी स्थाई समिति ने मल्टी ब्रांड में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर असहमति जताई थी। इस समिति ने सरकार से इस कार्य को करवाने के लिए देश के निजि क्षेत्र को षामिल करने का सुझाव दिया था। मगर सरकार ने इस सुझाव को नकार दिया था। खुदरा व्यापार राज्य का विषय है। लिहाज इस मामले में हरी राज्यों की भी रही झंरी जरूरी है। इसलिए देखना दिलचस्प होगा की बीजेपी ़द्धारा शासित राज्य में इन दिग्गज कंपनियों का प्रवेश होता है या नही। इसमें कोई दो राय नही भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार है ऐसे में यह कंपनियां यहां आने के लिए लम्बे समय से प्रयासरत थी। मगर आशंकाओं के सहारे भविष्य की आवश्यताओं को नकारना बुद्धिमानी नही। आज इस क्षेत्र में निवेश की जरूरत है। खुदरा क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरूरत है। महंगाई से आम आदमी को राहत देने की जरूरत है। हमारे देश खाद्य सुरक्षा की अहमियत से परिचित हैं। कोई भी सरकार चाहे फिर वह किसी भी दल की हो, अपने नागरिकों का अहित नही चाहेगी। वैसे भी यह मामला 16 साल से अटका पड़ा था। 5 राज्यों में चुनाव से पहले सरकार का यह कदम महत्वपूर्ण है। बहरहाल धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था के लिए यह कदम एक अच्छी खबर है।

कालाधन और माफी योजना


आजादी के बाद देश में कालेधन लाने को लेकर अनेक माफी योजनाओं का ऐलान किया गया। मगर ज्यादातर योजनाओं से सफलता नही मिल पाई। देश की संसाधनों को लूटकर विदेशों का पैसा जमा होता रहा और सरकारें माफी योजनाऐं बनाकर अपने कर्मो की इतिश्री करती रहीं। आज यह एक राष्टीय मुद्दा है। और यूपीए सरकार विपक्ष से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के जबरदस्त दबाव में है। सरकार अब एक ओर माफी योजना लाने की तैयारी कर रही है।आइये एक नजर डालते है अब तक तक सरकारों द्धारा लाई गई माफी योजनाओं पर
वालंटरी डिस्क्लोजर स्कीम 1951                                        70 करोड़
वालंटरी डिस्क्लोजर स्कीम 1965                                        52.11 करोड
दूसरी वालंटरी डिस्क्लोजर स्कीम 1965                              145 करोड़
नेशनल डिफेंस गोल्ड बांड्स 1965                                       18 करोड़ रूपये
नेशनल डिफेंस रिमिटेंस स्कीम 1965                                  70 करोड़ रूपये
वालंटरी डिस्क्लोजर स्कीम 1975                                        1528 करोड़ रूपये
स्पेशल बियरर बांड्स 1981                                                  964 करोड़ रूपये
एमनेस्टी सर्कुलर 1985                                                        700 करोड़ रूपये
नेशनल हाउसिंग बैंक डिपाजिट स्कीम 1991                          964 करोड़ रूपये
एमनेस्टी सर्कुलर 1985                                                         700 करोड़ रूपये
नेशलन हाउसिंग बैंक डिपाजिट स्कीम 1991                          60 करोड़ रूपये
फारेन एक्सचेंज रिमिटेंस स्कीम 1991                                   2200 करोड़ रूपये
इंडिया डेवलपमेंट बांड्स 1991                                                4500 करोड़ रूपये
वालंटरी डिस्क्लोजर स्कीम 9197                                           33697 करोड़ रूपये

रविवार, 20 नवंबर 2011

शीतकालीन सत्र के विधेयक


लोकपाल बिल 2011
लोकसेवकों के लिए भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए लोकपाल संस्था का गठन करना।
पब्लिक इंटरेस्ट डिस्क्लोजर एंड प्रोटेक्शन टू पर्सन मेकिंग डिस्क्लोजर्स बिल 2010
लोकसेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार जानबूझकर अधिकारों के दुरूपयोग की शिकायत प्राप्त करने के लिए एक तंत्र विकसित करना। साथ ही इस तरह की शिकायत करने वालों को सुरक्षा प्रदान करना।
जुडिशियल स्टैंडर्ड एंड अकाउंटबिलिटी बिल 2010
सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के किसी जज के खिलाफ दुव्र्यवहार या अक्षमता की शिकायतों के निपटारे के लिए तंत्र विकसित करना। इसके साथ ही जजों की संपत्ति और देनदारियों के लिए घोषित करने के लिए प्रावधान सुनिश्चित करना।
संविधान 114वां संशोधन बिल 2010
इसमें हाइकोर्ट के जज एडिशनल जज या एक्टिंग जज की सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 साल करना।
पेटोलियम एंड मिनरल पाइपलाइन संशोधन बिल
अकेडमी आफ साइंटिफिक एंड इन्नोवेटिव रिसर्च बिल 2011
इसके तहत वैज्ञानिक और नवीन शोध के लिए राटीय महत्व के एक संस्थान की स्थापना। यह संस्थान डिग्री भी प्रदान करेगा।
सीड्स बिल 2004 आयात और निर्यात उत्पादन बिक्री और आपूर्ति के लिए उन्नत किस्त के बीच का नियमन
संविधान 111वां संशोधन बिल
कोआपरेटिव सोसाइटी पर सरकारी अंकुश को कम करते हुए उसे और लोकतांत्रिक बनाना एवं स्वायत्ता प्रदान करना। इसके अलावा कोआपरेटिव सोसइटी में निर्धारित समय पर चुनाव, जनरल बाडी मीटिंग और आडिट कराना। साथ ही इन संस्थाओं के प्रबंधन को पेशेवर बनाना।
पेस्टीसाइड मैनेजमेंट बिल 2008
कीटनाशकों की बिक्री, आयात निर्यात वितरण और उपयोग का प्रभावशाली प्रबंध और नियंत्रण के लिए कानून।
दामोदर वैली कारपोरेशन संशोधन बिल 2011
दामोदर घाटी कारपोरेशन का पुनर्गठन करते हुए इसमें चार पूर्णकालिक सदस्य और छह अंशकालिक सदस्यों को शामिल करना।
चार्टर्ड एंड वर्क एकाउंट सशोधन बिल 2011 तीन संस्थाओं के सदस्यों को समिति देयता भागीदारी एलएलपी। फर्म के गठन के लिए सक्षम बनाना।
कास्ट एंड वर्क अकाउंटेंट संशोधन बिल 2010
तीन सस्थाओं के सदस्यों को समिति देयता की भागीदारी एलएलपी
कंपनी सेक्रेटी संशोधन बिल 2010
व्यवसायिक निकाय के लिए एलएलपी विकसित करना
पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलेपमेंट बिल 2011
ऐसे प्राधिकरण की स्थापना जिसके द्धारा पेंशन फंड की स्थपना विकास और नियमन किया जाएगा ताकि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके।
लाइफ इंष्योरेंस कारपोरेशन संशोधन बिल 2009
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन एक्ट 1956 में संशोधन पूंजी 5 करोड़ से बढ़ाकर 100 करोड़ करना, धारा 28 में संशोधन
नई दिल्ली म्यूनिसिपल कारपोरेशन संशोधन बिल 2010
नई दिल्ली म्सूनिसिपल काउंसिल एक्ट 1994 की कुछ धाराओं में संशोधन
सेंटल एजुकेशनल इंस्टीटयूशंस एडमिशन में आरक्षण संशोधन बिल 2010
इसके तहत 2005 के एक्ट में संशोधन किया जाएगा।
एजुकेशनल टिब्यूनल बिल 2010 लोकसभा में पारित,
शैक्षणिक प्राधिकरण की स्थापना जिसके द्धारा शिक्षकों के मामलों का निपटारा किया जाएगा तथा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गलत काम में लगे लोगों को दंडित किया जाएगा।
इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी संशोधन बिल 2011 लोकसभा में पारित,
इस कानून के तहत 8 नए आइआइटी का अस्तित्व
नेशनल इंस्टीटयूट आफ टेक्नोलोजी संशोधन बिल 2011 लोकसभा में पारित इसके तहत एक्ट के प्रावधानों को सुदृढ़ करना बीओजी में शीर्श केन्द्रीय संस्थानों को प्रतिनिधीत्व देना डिप्टी डायरेक्टर की नियुक्ति की प्रक्रिया में संशोधन, एनआइटी एक्ट 2007 में इंडियान इंस्टीटयूट में साइंस एजुकेश न एंड रिसर्च को शामिल करना
आर्किटेक्ट संशोधन बिल 2010 एक्ट की धाराओं में स्पष्टता लाने और वैधानिक निकायों के बीच संघर्ष दूर करना।
कापीराइट संशोधन बिल 2010 डिजिटल युग में कापीराइट धारकों की रक्षा करना। संगीत और फिल्म उद्योग की चिंताओं को दूर करने के उपाय करना।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस बेंगलूर बिल 2010
इस संस्थान को राष्टीय महत्व घोषित करना
प्रसार भारती संशोधन बिल 2010
कर्मचारियों के स्थानांतरण के मामले में मंत्री समूह की सिफारिशों को प्रभावी बनाना
संविधान 108वां संशोधन बिल 2010 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण
मैरिज ला संशोधन बिल 2010 हिन्दु विवाह एक्ट 1955 और विषेष विवाह एक्ट 1954 में संशोधन
कमर्शियल डिवीजन आफ हाईकोर्ट बिल 2009 लोकसभा से पारित
कमर्शियल मामलों को निपटाने के लिए हाईकोर्ट में कमर्शियल डिवीजन की स्थापना
संविधान 110वां संशोधन बिल 2009
 पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के आरक्षण को बढ़ाना
प्रोटेक्षन आफ चिल्डन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेज बिल 2011 बच्चों की यौन शोषण से सुरक्षा संबंधी विधेयक
धरोहर स्थलों के लिए राष्टीय आयोग बिल 2009
धरोहरों की सुरक्षा एवं संरक्षा के लिए संस्थागत प्रणाली विकसित करना।
बच्चों को मुफत एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार संशोधन बिल 2010
परिभाषा में विकलांग बच्चों का विशेष प्रावधान शामिल करना। सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूलों के संबंध में स्कूल प्रबंधन कमेटियों के प्रावधान में संशोधन करना  

कांग्रेस का फील बैड फैक्टर


लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का अंकाड़ा जब 200 को पार कर गया तो पार्टी में हर कोई फूले नही समा रहा था। कोई इसे सोनिया, राहुल का करिश्मा बताते नही थक रहा था तो कोई इसका सेहरा मिस्टर क्लीन के सिर बांध रहा था। तो कोई कह रहा था कि कांग्रेसियों की नैया नरेगा और किसान की कर्ज माफी जैसी योजनाओं ने लगा दी। वैसे देख जाए तो 15वें लोकसभा चुनाव ने सबकों चैंकाया भी। खासकर आंध्रप्रदेश में मिली 33 लोकसभा सीटें। इसके अलावा दिल्ली और उत्तराखंड में मिली एकतरफा जीत। ऊपर से यूपी के फैसले ने तो मानों मन की मुराद पूरी कर दी। यह कांग्रेस का फीलगुड फैक्टर का दौर था। प्रधानमंत्री ने मंत्रीमंडल के सहयोगियों को कह दिया की पहले 100 दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करें और फिर रिपोर्ट कार्ड पेश करें। सारे मंत्री इसी पर लग गए। कोई शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की बात कर रहा था तो कोई एक दिन में 20 किलोमीटर सड़के बनाने की। किसी ने गो और नो गो एरिया का ऐसा पेंच फंसाया के दूसरे सहयोगियों की जान में आफत बन आई। माहौल ऐसा बना गया कि मानों कांगे्रसी दशकों से चली आ रही तकलीफों को 100 दिन में दूर कर देंगे। बहरहाल जनता यह सब देख रही थी। यही वह दौर था जब खाद्य आधारित महंगाई अपने चरम पर थी। आवश्यक चीजों के दाम आसमान छू रहे थे। सरकार आने वाले समय में दाम कम होने की भविष्यवाणी में मषगूल थी। इसके बाद अचानक एक अखबार ने खबर प्रकाशित की कि केन्द्र सरकार के दो मंत्री होटल में रूकते हैं और बिल करोड़ो में पहुंच गया है। ध्यान रहे यह 100 दिन के पहले की उपलब्धि है। इसके पास कांग्रेसियों के बचत का नाटक शुरू हुआ। बिजनेस क्लास की जगह इकोनामी क्लास में सफर कर उदाहरण पेश किए जाने लगे। ऐसा लग रहा था की हिन्दुस्तान की सारी फिजूलखर्ची रूक गई है। मगर एक साहब को यह सब पसन्द नही आया। भला वो भी कब तक नाटक करते, कह दिया इकोनामी क्लास कैटल क्लास है। फिर नाम आ गया आइपीएल में। आगे क्या हुआ आप जानते है। साहब को कुर्सी गंवानी पड़ी। सनद रहे की महंगाई से जनता को कहीं कोई राहत मिलती नही दिखाई दे रही थी। इस मोर्चे पर जनता के पास विश्वास करने लायक केवल भविष्यवाणियां थी। किसी तरह 100 दिन खत्म हुए। लम्बे चैड़े वादों का कुछ नही हो पाया। खैर इसमें किसी को हैरानी नही हुई। पब्लिक जानती थी कि यह कांग्रसियों का अतिआत्मविश्वास है। कांग्रेस के लिए सबसे दुखी समाचार आंध्रप्रदेश से आया। आंध्र प्रदेष में करिष्माई नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी की मौत हो चुकी थी। इसके बाद यहां लगभग मृत हो चुके तेलांगाना मुददे ने जो जोर पकड़ा उसने सरकार की चूलें हिला दी। सरकार के तमाम कोशिशें बेकार गई। मामला दबाने के लिए श्रीकृष्णा समिति का गठन किया गया। इस समिति ने भी 6 सुझाव सुझाकर अपने कर्मों की इतिश्री कर ली। कहा जाता है कि समिति ने साथ ही एक गोपनीय रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी जिसमें इस हालत से निपटने के लिए जरूरी बातें की गई थी। बहरहाल यह रिपोर्ट सार्वजनिक नही हो पाई। इस बीच मीडिया राष्टमंडल खेलों की तैयारी के पीछे हाथ धोकर  पड़ गया। भ्रष्टाचार के कई सीन सामने आए। नतीजतन इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी कलामाड़ी साहब तिहाड़ की रोटी तोड़ रहे हैं। उनका साथ दे रहें है उनके सखा ललित भनोट। मामल विचाराधीन है। मगर इस प्रकरण ने सरकार की जमकर फजीहत जरूर कर दी। वो तो भला हो खिलाड़ियों का जिन्होने अच्छा प्रदर्शन कर लाज बचा दी। इधर एक के बाद एक रेल हादसों की संख्या में तेजी से बढोत्तरी हुई। तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी रेल भवन के बजाया पश्चिम बंगाल के चुनाव के लेकर मस्त थी। सरकार को अपनी नक्सल नीति के चलते भी विरोध का सामना घर और बाहर दोनों ओर से करना पड़ा। खासकर कुछ बड़े हादसों के चलते। बिहार में एकला चलो का नारा फ्लाप शो साबित हुआ। कांगे्रसियों की अतिआत्मविश्वास की चुनावी नतीजे आने के बाद हवा निकल गई। बस राहत के लिए असम के नतीजे थे। तमिलनाडू में भी अम्मा के सामने कांग्रेस डीएमके गठजोड़ पानी मांगते नजर आया। 2जी प्रकरण में सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद तो  मानो पहाड़ ही टूट गया। राजा के खेल में सरकार ऐसी फंसी की आगे कुआ पीछे खाई की नौबत आ गई। इस खेल ने मिस्टर क्लिन को भी मुश्किल में डाल दिया। कई दिग्गज जेल की सलाखों के पीछे अपने कर्मो का हिसाब दे रहे है। जमानत देने को लेकर अदालत सख्त है। बची खुची कसर सुप्रीम कार्ट की सख्त टिप्पणीयों ने पूरी कर दी। चाहे वह सड़ते राशन मुफ्त में बांटने को लेकर हो या मुख्य सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति पर। या फिर काले धन के मामले को लेकर हो। इधर भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना सरकार के खिलाफ धरने में बैठ गई। जनता के अपार समर्थन ने सरकार को असमंजस में डाल दिया। रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के अनशन ने सरकार की नींद चैन सब कुछ छीन लिया। देष में पूरा माहौल अन्नामय हो गया। इस प्रकरण ने कांग्रेस पार्टी की जबरदस्त किरकिरी हुई। बची खुची कसर खुद के पार्टी के नेताओं ने पूरी कर दी। इसका असर यह हुआ की संसद को अन्ना की तीन शर्तो पर बहस कराकर प्रस्ताव पारित करना पड़ा। बहरहाल सरकार के लिए शाीतकालीन सत्र किसी अग्निपरीक्षा से कम नही है। साल खत्म होने को है मगर कांगे्रस की मुश्किल कम होने काम नाम नही ले रही है। मंत्रियों की अंर्तकलह खुल कर सामने आ गई है। प्रणब चिदंबरम प्रकरण इसका जीता जागता उदाहरण है। डीएमके डरा रहा है, ममता धमका रही है। सुप्रीम कोर्ट रूला रहा है और विपक्ष चिड़ा रहा है। ग्रोथ की फंडा का धीमा पड़ते जा रहा है। आंध्रप्रदेश का हाल क्या होगा। नही मालूम। पार्टी टूटने के कगार में है। आगे 2012 में मिषन उत्तरप्रदेष मे अच्छा प्रदर्शन पार्टी के लिए बेहद जरूरी है। यहां चुनाव की कमान खुद कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के हाथों में है। मगर उनके तरकष में तीर कुछ नही। बस लेदेकर युवराज बहनजी को खरी खोटी सुनाने में जरा भी कंजूसी नही कर रहें है। केन्द्रीय योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के मुददे को जोरषोर  से उठा रहें हैं। अपने मंत्रियों से बहनजी को पत्र लिखवा रहे है। बहनजी भी नहले में दहला साबित हो रही हैं। उत्तरपदेश को चार हिस्सों में बांटने का मास्टर स्टोक लगा दिया है। इसके अलावा 2012 उत्तराखंड, पंजाब हिमांचल गुजरात गोवा और मणीपुर के चुनाव भी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है। कांग्रेसियों के लिए हालात सामान्य नही। हम तो यही दुआ करेंगे की 2012 का सूरज इस पार्टी के लिए नया सवेरा लेकर आए।

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

मैं मीडिया मजदूर हूं मैं इल्म से मजबूर हूं

मैं मीडिया  मजदूर  हूं मैं इल्म   से   मजबूर  हूं
जो  हो गये  है  भष्ट पथ  मैं उन  पथों से दूर हूं
 मै! प्रशासन की प्रसव पीडा  में दृष्टि  डालता हूं
 राजनीतिक  रूग्णता  के  रोग  को  खंगालता  हूं

मैं आइना  हूं आज हिन्दुस्तान  के  हर भाग का
चिन्गारियो!  में भी भरोसा हूं लपट और आग का
विश्वास  है खुद का खुदी  पर  इसलिये  मैं शूर हूं
मैं मीडिया   मजदूर  हूं और  इल्म  से  मजबूर हूं

कल्पना  साकार  करने  की  कला मै!   जानता हूं
हर तन्त्र का प्रहरी  बना, प्रहार  करना  जानता हूं
मैं वतन की  सरहदों से भी  खबर को  खी!चता हूं
मै! विवश होकर वतन के  हर चमन को सी!चता हं
मै!  सियासी   हर  खबर   को  कैमरे  मे!  डालता हूं
संसद  में  हो  रहे  व्यभिचार   को   ख!गालता हूं
खोलने  को  हर  खबर , इस  राज  की ,मजबूर हूं
 मैं  मीडिया   मजदूर  हूं और  इल्म  से  मजबूर हूं

बीथिका , बाजार  में  बे - खो!प हो  कर घूमता हूं
खुद  खबर  बनकर खबर  को हर खबर मे! ढूंढता हूं
 ढूंढता  हूं मैं वतन  के ,तल में दबे  अवशेषों को
धारणा   दिल   में  बसी   है  मैं  संवारू  देश   को
मैं खोजता   हूं  हर   उपायों  को ,धरा  बचती रहे
सहयोग  में  मेरी  कला  भी   कुछ  नया  रचती रहे
इसलिये   हर   भ्रष्टता   का    बन   गया  नासूर  हूं
मै!   मीडिया   मजदूर   हूं और   इल्म  से मजबूर  हूं

दे  रहा   हूं  हर   खबर   जनता   जगाने    के  लिये
संघर्श  है   व्यभिचार   को   जड़ मिटाने  के  लिये
हर  सियासी  अडचनों  में  मुस्करा   कर  खेलता हूं
कुर्बानिया   गम्भीर    होकर   मैं  हमेशा   झेलता हूं
लोग  चाहें  कुछ   कहे!  अपना   हूनर  में जानता हूं
मै!  कैमरे  से   सा!सदो!   की   बाणीयों को छानता हूं
मैं मीडिया   के   इस   हूनर   में  भी  हमेशा  हूर हूं
मैं मीडिया   मजदूर   हूं और   इल्म  से   मजबूर हूं

 आभार राजेन्द्र बहुगुणा