प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दूसरी पारी से उम्मीदें आम जनमानस की ही तरह किसान को भी है। वो किसान जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ की हडडी माना जाता है। वो किसान जो धरती का सीना चीर कर खून पसीना एक कर अनाज तो पैदा करता चाहता है। मगर उसकी खुद की राज आधे पेट गुजरती है। आज किसान क्या चाहता है कि इतनी मेहनत के बावजूद उसका और उसके परिवार का पेट भर जाये। उसे कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या जैसे कायर कदम न उठाने पडे। बस इसी उम्मीद पर उसने वोट दिया है। यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में किसानों की सुध ली। सबसे अच्छी बात की न्यूनतम समर्थन मूल्य में जबरदस्त बढोत्तरी की। गेहंं का समर्थन मूल्य 1080 और साधारण धान का 960 रूपये कर दिया गया है। इसके अलावा ग्यारवीं पंचवशीय योजना 4 फीसदी विकास दर पाने के लिए सरकार कई योजनाऐं चला रही है। मसलन 25000 हजार करोड़ की लागत से राश्टरीय कृशि विकास योजना। 4880 करोड़ की लागत से राश्टीय खाघ सुरक्षा मिशन। जिसके तहत 10 मिलीयन टन गेहंूं , 8 मिलीयन टन चावल और 2 मिलीयन टन दालों के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा राश्टीय हौल्टीकल्चर मिशन जैसे कार्यक्रम भी सामने आये है। मगर फिर भी 40 फीसदी किसान किसानी से तौबा करना चाहते है। बशतेZ उनके पास विकल्प हो। यह सरकार के साथ साथ आइसीएआर और कृशि विज्ञान केन्द्रों के मंंह पर एक तमाचा है। जिनके नाम तो बहुत बडे है मगर जब दशZन की बारी आती है तो वह बौने साबित होतें है। खेती छोड़ने का सबसे बडा कारण है कि किसान को खेती अब फायदे का सौदा नही लगती। यही कारण है कि 1997 से लेकर अब तक पौने दो लाख किसान मौत को गले लगा चुके है। इनमें से ज्यादातर कर्ज के बोझ के तले दबे थे। हालांकि यूपीए सरकार की किसानों की कर्ज माफी से फायदा भी हुआ। मगर कितनों को। और जिन्हें नही उनका क्या होगा। एक बडी किसान आबादी आज भी जमींनदार से कर्ज लेती है। साथ ही बीज उवर्रक और सिंचाई की व्यवस्था करना भी जरूरी है। आज भी 60 फीसदी खेती इंद्रदेवता के भरोसे है। किसानों को ऋण लेने में मुिश्कल आती है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद किसान को 7 फीसदी की दर पर कर्ज नही मिल पा रहा है। जबकि राश्टीय किसान आयोग की सिफारिश है कि किसान को को 4 फीसदी की ब्याज दर से कर्ज मुहैया कराया जाए। सुविधा तो फसल बीमा योजना और किसान क्रेडिट कार्ड की भी है मगर इसका दायरा बहुत सीमित है। आज देश को दूसरे हरित क्रांति की जरूरत है। मगर नीतिनिर्माताओं को पहले हरित क्रांति के आयामों को ध्यान में रखकर नई नीति बनानी होगी। हम अपनी खाघ सुरक्षा को लेकर पूरी तरह किसानों पर निर्भर है। इसलिए उनके लिए समय रहते कदम उठाने होंगे। ‘
रविवार, 31 मई 2009
जरूरी है पुलिस सुधार
शनिवार, 30 मई 2009
जय हो जनता जनार्दन की।
15 वीं लोकसभा का जनादेश सामने है। आत्ममंथन शुरू हो चुका है। राजनीतिक दल अपने हार के कारणों की समीक्षा करने लगे है। हार का ठीकरा एक दूसरे के सर फोड़ने में कोई पीछे नही है। जेडीयू ने इसकी शुरूआत कर दी है। आखिर गुस्सा क्यों नही आए 10 साल तक विपक्ष में बैठकर सरकार को कोसते रहो। बुरा तो लगता है न भाई। दरअसल किसी को ऐसे जनादेश की उम्मीद नही थी। अब हर कोई इस बहस में शामिल है कि इस जनादेश के पीछे का संदेश क्या है। क्या जनता ने काम का इनाम कांग्रेस को दिया है। क्या कांग्रेस का यूपी बिहार में एकला चलों का नारा काम कर गया। या फिर ये बीजेपी की कमजोर नीतियों का परिणाम है। कारण चाहे जो भी हो कांग्रेसियों के पास जीत के कारण बहुत है। नरेगा से लेकर ऋण माफी या फिर भारत निर्माण जैसे कार्यक्रमों को वो जीत का कारण मान रहे है। कुछ का मानना है कि यह राहुल बाबा की मेहनत का नतीजा है। अगर यह सही है तो राहुल का जादू छत्तीसगढ और बिहार में क्यों नही चला। दरअसल कांग्रेसियों को तो चापलूसी के बहाने चाहिए। बस मिल जाए छोड़ने का नाम ही नही लेते। राहुल गॉधी इस बात को जानते है। मगर एक बात उनके पक्ष में जाती है। अकेले चुनाव लडने और युवाओं को लडाने। यहॉं राहुल बाबा की रणनीति काम कर गई। कुछ की मानें तो ईमानदार प्रधानमंत्री को कमजोर कहना बीजेपी को भारी पड गया। कांग्रेस के लिए यूपी खशियों की सौगात लेकर आया। यहॉ 2004 में 9 सीटों को जीतने वाली कांग्रेस आज 21 सीटों को जीतकर जय हो कह रही है। मुलायम माया की रणनीति धरी की धरी रह गई। दक्षिण में वाइएसआर कांग्रेस का असली सेनापति साबित हुए। जबकि तमिलनाडू में द्रमुख को न छोडने का फैसला भी सही साबित हुआ। नवीन पटनायक ने भी मिशन उडीसा को अपने नाम कर लिया। सवाल यह भी उठ रहा है कि महंगाई आतंकवाद और आर्थिक मंदी जैसे जोरदार मुददों के बावजूद जनता ने ऐसा जनादेश क्यों दिया। लोकजनशक्ति पार्टी, टीआरएस और पीएमके को जनता ने सबक सिखा दिया है। अब कतार में वो खडे है जो इनसे सबक नही लेगें। जय हो जनता जनार्दन की।
नेता कहिन जीतो हर कीमत पर
चुनाव चुनाव चुनाव। कितने अच्छे है यह चुनाव। नेताओं को जानो। उनके देश प्रेम्र को मानो। दोस्तों को खिलाफ होते देखो। अपनो को पराये होते देखो। जो कल तक एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते देखे जाते थे, आज एक दूसरे की जय जयकार करते नही अघाते। न किसी को किसी से हमेशा के लिए प्रेम न नाराजगी। जैसी समय की मॉंग वैसा मुखौटा पहन लो। गठबंधन भी सुविधा के हिसाब से। विचारधारा की खाल उधेड दो, मगर हाथ में आई सोने देने वाली मुर्गी न जाने दो। जनता से अनाप सनाप वादे कर दो। पॉच साल के बाद रटा रटा बयान दे दो। जो कहा वही किया। इसके अलावा कुछ नही किया। प्लीज एक बार और वोट दे दो। जनता के भी क्या कहने। किसी से ज्यादा प्रेम नही। प्रसाद सबको मिलेगा की तर्ज पर वोट थोडा थोडा सबको। थोडा बहुत ख्याल जात बिरादरी का भी। नेता कहिन जीतो हर कीमत पर। सत्ता में हर कोई बैठना चाहता है। नही मिली तो सारी करी कराई मेहनत में पानी फिर जायेगा। राजनीति में कमाई भी ठीक ठाक है। पॉच साल में विकास के नाम पर जेब भरो। ये मिडीया भी अजीब जन्तु है। पॉच हजार वाले को कैमरे में कैद करती है। पॉच करोड वाले की इमानदारी पर किसी को शक नही होता। राजीनिति मे सौदेबाजी की भी अपार संभावनाऐं है। क्यों आपको नही मालूम की सरकार के पक्ष में वोट डालने में करोडों मिले थे। दुख तो इस बात का है कि ऐसा मौका बार बार क्यों नही आता। हम तो बहती गंगा में हाथ धो नही पाए। कास मैं भी सांसद होता। कुछ संभावनाऐं तो बनती। खूब बडी बडी बातें करता। वादे करता, घोटाले करता। विकास के नाम पर चिल्ला कर अपनी आवाज खराब कर देता। नतीजों से पहले जीत को लेकर अति उत्साहित होता। नतीजों के बाद कहता शायद झूठ बोलने में कुछ कमी रह गई थी।
बेमेल गठबंधन
उत्तर प्रदेश में माया मुलायम की लडाई। बीजेपी ने अजीत प्रेम में डूबकर जीतरस की रट लगाई। कांग्रेसी पहलवानों के भी क्या कहने। अमेठी रायबरेली के बाहर भी देखने लगे है। अब जरा जानते है कि पॉंच साल में क्या बदला है। पिछले चुनाव में अजीत मुलायम के जय हो के नारे लग रहे थे। जनता ने दोनों कोे मिलकर 38 सीटों का प्रसाद दिया। अकेले 35 मुलायम के पास। बीजेपी और कांग्रेस से भी दुखी नही, कहने को राश्ट्रीय पाट्री। मगर विश्वास संतोशम परम सुखम पर। तभी तो 10 और 9 पर ही ख्ुाश रहे। हाथी कीे धमक का अहसास 19 सीटों में हुआ। फर्क सिर्फ इतना है तब साइकिल का राज था अब हाथी दनदना रहा है। माया को विश्वास अपने सर्वजनों पर। प्रधानमंत्री बनने की चाहत लिए उनका नारा साफ है। सर्वजन शंख बजायेगा, हाथी दिल्ली जायेगा। मुलायम का एजेंड साफ है। यूपी को माया की माया से बचाओ दिल्ली में हमें करीब पाओं। मुलायम खुद इस उहापोह में है कि कल्याण उनका कितना कल्याण करेंगे। डर भी सता रहा है कि कही मस्लिम प्रेम में दरार न आ जाये। सूकून इस बात का है कि अपनों की सीट में जरूर के यानि कल्याण फैक्टर असर डालेगा। कांग्रेसी दिग्गजों का उत्साह भी जबरदस्त है। हांलाकि नतीजों से पहले यह हमेशा देखा गया है मगर उम्मीद का परसेंटेज इस बार ज्यादा है। तीन त्रिदेव का भी मिलन हुआ है। लालू पासवान और मुलायम । इतिहास देखें तो डर लगता है कि कब ये आपस में ही न भीड जाऐं। ख्ौर तीनों की हालत पतली है। अच्छी बात है। दुख के सब साथी।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)