सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

शिक्षा का बजटनामा 2011-12


शिक्षा के बजट में 24 फीसदी का इज़ाफा
2011-12 में शिक्षा के लिए 52,057 करोड़ का आवंटन


सर्व शिक्षा अभियान के आवंटन में 40 फीसदी का इज़ाफा
सर्व शिक्षा अभियान के लिए 21000 करोड़
मौजूदा साल में 15000 करोड़ का था आवंटन


मिड डे मील के लिए 10380 करोड़
मिड डे मील के लिए 2010-11 में था 9440 करोड़


राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के लिए 2424 करोड़
इसके लिए 2010-11 में था 1700 करोड
माध्यमिक शिक्षा का व्यावसायिकरण नामक नया कार्यक्रम होगा षुरू


तकनीकी शिक्षा के लिए 5660 करोड़
इसके लिए 2010-11 में था 4706 करोड

किसान का बजटनामा 2011-12

किसानों के लिए ऋण प्रवाह को बढ़ाकर 4,75,000 करोड़
समय पर कर्ज अदा करने वाले किसानों को ब्याज में 3फीसदी की छूट
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के लिए 7811 करोड़
राष्ट्रीय बागवानी मिशन के लिए 1700 करोड़
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के लिए 1350 करोड़
मौसम आधारित फसल बीमा के लिए 450 करोड़
आत्महत्या संभावित जिलों में विशेष पैकेज 99 करोड़
पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रांति के लिए 400 करोड़
60000 तिलहन गांवों के लिए 300 करोड़
किसानों के लिए ऋण प्रवाह को बढ़ाकर 4,75,000 करोड़
मौजूदा साल में 3,75,000 करोड़ रूपए का था प्रावधान
समय पर कर्ज अदा करने वाले किसानों को ब्याज में 3फीसदी की छूट
2011-12 में 15 और मेगा फूड पार्कों की स्थापना
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक इसी साल होगा पेश
2011-12 में कुछ नये कार्यक्रमों की शुरूआत      
आॅयल पाम का संवर्धन के लिए 300 करोड़
सब्जी समूह संबंधी कार्यक्रम के लिए 300 करोड़
पोशक अनाज कार्यक्रम के लिए 300 करोड
राष्ट्रीय प्रोटीन सम्पूरण मिशन के लिए 300 करोड
त्वरित चारा विकास कार्यक्रम के लिए 300 करोड
राष्ट्रीय सतत् कृषि उत्पादन मिशन के लिए 300 करोड
नाबार्ड को अपना पूंजी आधार बड़ाने के लिए मिले 3000 करोड़

ग्रामीण भारत का बजटनामा 2011-12

भारत निर्माण कार्यक्रम के लिए 58,000 करोड़
मौजूदा साल से 10,000 करोड़ ज्यादा
ई-पंचायत 40 करोड़
राष्ट्रीय ग्राम स्वराज योजना के लिए 84 करोड़
राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के लिए 6000 करोड़
महात्मा गांधी नरेगा के लिए 40000 करोड़
इंदिरा गांधी आवास योजना के लिए 10000 करोड़
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए 20000 करोड़
पिछले साल के मुकाबले 8000 करोड़ की बढोत्तरी
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए 3950 करोड़
ग्रामीण स्वच्छता के लिए 1650 करोड़
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के लिए 500 करोड़
हथकरघा बुनकरों के लिए 3000 करोड़

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

मिशन विश्वकप


भारत के पास 1983 के बाद इतिहास रचने का यह महत्वपूर्ण मौका है। ज्यादातर जानकार भारत को इस विश्वकप का प्रबल दावेदार मान रहे हैं। खासकर तब जब टीम में दुनिया के सबसे बेहतरीन बल्लेबाज हों। साथ ही घर में खेलने का फायदा। यह सबकुछ टीम के पक्ष में जान पड़ता दिखाई देता है। मगर इसके लिए जरूरी होगा भारतीयों को एक टीम के रूप में प्रदर्शन करना। मेरे ख्याल से विराट कोहली और गंभीर पर सबसे बड़ा दारोमदार होगा। इन दो खिलाड़ियों में वह संयम है कि यह बड़ी पारी खेल सकते हैं। बाकी का काम युसूफ पठान के जिम्मे रहेगा। भारत की सबसे बड़ी चिंता तेज गेंदबाजी है। गेंदबाजों में वह धार नही दिखाई दे रही है जो विपक्षी टीमों को परेशान कर सके। हालांकि स्पिनर खासकर भज्जी से उम्मीद बंधी है। बहरहाल श्रीलंका और पाकिस्तान भारतीय स्पिनरों को खेल सकते हैं। इसलिए इन टीमों के साथा तीन सीमर लेकर उतरना ठीक होगा। मगर इंग्लैंड, आस्टेªलिया और साउथ अफ्रिका जैसी टीमों को निपटाने का क्षमता फिरकी में ही है। यह पहले साबित भी हो चुका है। भारत पहला मैच बंग्लादेश से 87 रन से जीत चुका है। मगर इस बात का ध्यान रखना होगा की 370 रनों का पीछा करता हुआ बंग्लोदश 283 तक के स्कोर तक पहुंच गया। इसके अलावा सचिन जिस अंदाज में रन आउट हुए वह गैरजरूरी था। बड़ी टीमों के खिलाफ यह गल्ती महंगी पड़ सकती है। दूसरी बात  रूबेल ने भारतीय खिलाड़ियों के अपनी शार्टपिच गेंदों से लगातार परेशान किया। खासकर सेहवाग को इस तरह की गेंद खेलने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। उनकी 140 गेंदों में 175 रन की पारी लाजवाब थी। साथ ही विराट का शतक भारत के लिए अच्छी खबर है। भारत का क्वाटर फाइनल तक पहुंचना तय है। मगर असली परीक्षा यहीं से शरू होगी। धोनी को टास जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला लेना चाहिए। देखा गया है कि हमारे खिलाड़ी रनों का पीछा करते समय दबाव में आ जाते हैं। इसलिए पहले बल्लेबाजी करने का फैसला टीम के हित में होगा। वैसे इस तरह के फैसले उस दिन के मैदानी हालात पर होगा। बहरहाल आगाज बेहतरीन रहा है। बस अंजाम भी इसी तरह का होना चाहिए।

कैसे चले संसद

बजट सत्र कल से शुरू है। हर हिन्दुस्तानी की अपेक्षा है की सदन चले, खासकर प्रश्नकाल। संसद में इन दिनों प्रष्नकाल तमाशा बनकर रह गया है। सरकार  शीतकालीन सत्र का पहला दिन अगर छोड़ दिया जाए तो पूरे सत्र में सिर्फ हंगामा हुआ। सत्तापक्ष और विपक्ष जेपीसी गठन की मांग को लेकड़ भिड़े रहे। हालांकि सरकार जेपीसी के गठन के लिए अब तैयार हो चुकी है जो दो महिने पहले कह रही थी कि इसकी कोई जरूरत नही है। सवाल यह है कि इन दो महिनों में क्या बदला। देश चाहता है कि चाहे मुददा भष्टाचार का हो या महंगाई से जुड़ा हुआ। संसद को इस पर सार्थक बहस कर सर्वमान्य हल तलाश्ना होगा। देश की जनता जानती है कि राजनीति में दूध का धुला कोई नही है। सब मौके की तलाश में रहते हैं। आखिर क्यों नेता करोड़ों रूपया बहाकर चुनाव जीतकर आते है। इसलिए की देश की सेवा करनी है या इसलिए की मेवा कमाने का आज इससे अच्छा जरिया कोई नही है। ऐसे लोगों की संसदीय कार्यवाही में कोई रूची नही होती। क्या निजि सरोकार आम आदमी के सरोकार से ज्यादा भारी होता है। कमसे से कम आज के हालात में तो ऐसा बिलकुल नही दिखायी देता। संसदीय कार्यवाही की अपनी एक गरीमा है। जनप्रतिनिधि जब मुददों पर बहस करते है तो सुनने में अच्छा लगता है। सरकार को कठघरे में खड़ा करते है। सरकार को उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं। मसलन प्रश्नकाल को ही ले लीजिए। संसद की कार्यवाही में प्रष्नकाल का बड़ा महत्व है। यह सांसदों के पास मौजूद ऐसा हथियार है जिसके सहारे सांसद किसी भी मंत्रालय की पोल पट्टी खोल सकते हैं।  आए दिन सदन में हगामा आम बात हो गई है। लोकसभा अध्यक्ष की बात को इस कान से सुनों, उस कान से निकालों आम बात हो गई है। ऐसा लगता है की सदन को चलाने में किसी को कोई दिलचस्पी नही है। साल में सदन को 100 दिन चलाने का प्रवचन हर कोई करता है। मगर इससे आधे दिन भी ईमानदारी से राजनीतिक दल अगर काम करे तो देश को एक नई दिशा मिलेगी। इस समय जनता घोटालों से त्रस्त है। हर दिन एक नया घोटला सामने आ रहा है। इससे देश का माहौल सुधरने के बजाय बिगड़ रहा है। राजनीतिक दलों खासकर सरकार को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि हालातों को कैसे ठीक किया जाए। इसके लिए संसद से बड़ा और कोई मंच नही है। हम आशा करतें है वर्तमान माहौल में भरी इस निरसता के भंवर से निकलने का रास्ता यह संसद जरूर निकालेगी। बहरहाल सबकी नजर आने वाले आम बजट पर है। देखना दिलचस्प होगा की क्या बजठ सर्वसमावेशी विकास के सिद्धान्त पर खरा उतरेगा।

संसदवाणी

संसद सत्र को के कामकाज का दिन समय सब कुछ तय रहता है। इसकी रूपरेखा पहले ही कार्यमंत्रणा समिति में तय कर दी जाती है। यानि किस मुददों को किस दिन और कितना समय दिया जायेगा यह पहले से ही तय होता है। इसका आधार राजनीतिक दलों द्धारा दिए गए नोटिस होते हैं। सभी संसदों के प्रातःकाल संसद में होने वाली गतिविधियों की जानकारी उपलब्ध करायी जाती है। संसद सत्र का पहले घंटे में यानि 11 से 12 बजे के बीच सांसद विभिन्न मंत्रालयों से सवाल करते हैं। इसके लिए कम से कम 20 दिन पहले मंत्रालयों को सवाल भेजे जाते है ताकि मंत्रालयों के इस सवाल के जवाब बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। इसके लिए बकायदा मंत्रालयों को दिनों में बांटा गया है। मसलन सोमवार को कृशि, उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण, संस्कृति, उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, गृह, आवास और शहरी गरीबी उपशमन, सूचना और प्रसारण, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन, शहरी विकास, युवक कार्यकम और खेल मंत्रालय को जवाब देने होते हैं। ऐसे ही विभिन्न मंत्रालयों के जवाब देने के दिन निश्चित हैं। इसके बाद के समय यानि की 12 से 1 बजे सदन के पटल पर जरूरी कागजात रखे जाते हैं। इनमें विभिन्न मंत्रालयों से जुड़ी स्थाई समिति की रिपोर्ट भी शामिल होती हैं। कागजात रखने के बाद सांसद नियम 377 के तहत जनहित के मुददों पर सरकार का ध्यान खींचते हैं। इसके लिए सुबह लौटरी की जाती है। मतलब संसद के पास कई सासंदों के प्रस्ताव होते हैं। चूंकि सबके लिए समय देना मुमकिन नही होता इसलिए लौटरी का सहारा लिया जाता है। इसका फायदा ज्यादातर सांसद अपने संसदीय क्षेत्र के मुददों को उठाने के लिए करते हैं। अगर जरूरी हुआ तो इसी घंटे में ध्यानाकर्शण प्रस्ताव पर भी चर्चा होती है। 1 से दो 2 बजे का समय भोजन अवकाश के लिए तय है। मगर सदन की मंजूरी हो तो इसमें भी काम किया जा सकता है। भोजन अवकाश के बाद का समय ज्यादातर विधेयकों को कानून का रूप देने के लिए होता है। विधेयक के अलावा नियम 193 के तहत भी चर्चा करायी जा सकती है। अगर कोई जरूरी विषय का नोटिस लोकसभा अध्यक्ष को दिया जाता है तो वह उनके विवेक पर निर्भर करता है कि वह उसके लिए अनुमति देती हंै या नही। यहां यह बात का ध्यान रखा जाता है कि सरकार इस सवाल का जवाब देने के लिए कितना समय चाहती है।  शक्रवार का दिन निजि विधेयकों के लिए जाना जाता है। इस दिन सांसद जरूरी विषयों पर सदन में निजि विधेयक प्रस्तुत करतें हैं। सदन का नियमित समय 11 से 6 बजे तक है। मगर काम ज्यादा होने की स्थिति में  सदन के अनुमति के चलते इसे बड़ाया जा सकता है।

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

आप्रेशन तापमान


तरक्की के नाम पर हमने जिस तरह पर्यायवरण केा अंधाधुंध तरीके से कुचला है उसके नतीजे आने शुरू हो गये है। हवा में कार्बन डाई आकसाइड बढी है जिससे कई जीव जंतुओं की जिंदगी खतरे में पड़ गई है। कई बीमारियाॅ इंसानों को भी अपनी  चपेट में लेने लगी है। गलेषियर पिघल रहे है और विस्थापन का डर सताने लगा है। पूरे विष्व में आज गलोबल वार्मिंग की धमक है। एक जिम्मेदार देष होने के नाते भारत ने इस समस्या से निपटने की कोशिशें तेज कर दी है। प्रधानमंत्री मनमेाहन सिंह ने जलवायु परिवर्तन से प्रभाव से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना पेष की है। जिसमें सुर्य उर्जा के प्रयोग केा बढावा, जीवों के लिए अनुकूल पर्यायवरण का निर्माण, गलेषियर को पिघलने से रोकने, कृषि को मौसमी आधार पर लचीला बनाने और जल संसाधनों के बेहतर प्रबंधन पर जोर दिया गया है।। भारत चाहता है कि प्राकृतिक स्रोतो का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर पर्यायवरण केा प्रदूषण मुक्त बनाया जाए। क्योंकि प्रदूषण का तापमान को बड़ाने में बड़ा हाथ है। हालांकि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कम करने का कोई प्रस्ताव नही है। पूरे विष्व के लिए जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौति है जिससे निपटने की ज्यादा जिम्मेदारी उन विकसित देशों की है जो की इस समस्या के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। मसलन अमेरिका जैसा प्रदूषित मुल्क इससे लड़ने के लिए आगे आए न की विकासशील मुल्कों को कानून पेंच में फंसाने की कोशिश करे। प्रकृति का इशारा साफ है। समय रहते चेत जाओ वर्ना महाविनाष के लिए तैयार रहो। एक जिम्मेदार देष हेाने के नाते भारत ने अपनी नीति स्पष्ट कर दी है। अब जिम्मेदारी उनकी हैं,जो इसके के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार हंै। साथ ही जिम्मेदारी हमारी भी। क्योंकि जनसहभागिता और जागरूकता के सहारे छोटी छोटी बातों का ध्यान रख हम इससे लड़ने में अपना योगदान भी दे सकते हैं

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

गांव का बजटनामा

भारत गांवों में बसता है। 60 फीसदी आबादी अब भी गांवों में ही रहती है। इसीलिए गांव का विकास किए बिना विकसित भारत का सपना देखना बेमानी सा लगता है। ग्रामीण भारत को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ने के लिए यूपीए सरकार ने कुछ अहम कदम उठाये हैं। 2010-11 के बजट अनुमान के मुताबिक इस मंत्रालय को कुल 66138 करोड़ का आवंटन किया गया। ग्रामीण विकास मंत्रालय को तीन भागों में बांटा गया है।
ग्रामीण विकास विभाग
भूमि संसाधन विभाग
ग्रामीण पेयजल और स्वच्छता विभाग
बजट के लिहाज से सबसे बड़ा हिस्सा ग्रामीण विकास विभाग के हिस्से आता है। यह विभाग महात्मा गांधी नरेगा एसजीआरवाई, पीएमजीएसवाई और इंदिरा आवास योजना जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को लागू करता है। इस साल इंदिरा आवास योजना में प्रति इकाई की कीमत प्लेन एरिया में 35000 से बड़ाकर 45000 और पर्वतीय इलाकों में 38500 से बड़ाकर 48500 करोड़ कर दिया गया है।
योजना                          अनुमानित बजट आवंटन 2010-11
महात्मा गांधी नरेगा               40100 करोड़      
पीएमजीएसवाई                    12000 करोड़
इंदिरा आवास योजना            10000 करोड़
एसजीएसवाई                         2984 करोड़
इसके अलाव पिछड़ क्षेत्र अनुदान कोष की राशि को भी पिछले साल के 5800 करोड़ के मुकाबले 7300 करोड़ कर दिया गया है।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बजट का सबसे बड़ा भाग इस विभाग को जाता है। बहरहाल आने वाले बजट में इंदिरा आवास योजना और पीएमजीएसवाई के आवंटन में बढोत्तरी होने की पूरी उम्मीद है। यही दो योजनाऐं भारत निमार्ण के 6 अंगों में से दो महत्वपूर्ण अंग है। बाकी अंगों में 2012 तक हर घर तक बिजली पहुंचान, रूरल टेलीफोनी, सिंचाई और स्वच्छ जल जैसी महत्वकांक्षी योजनाऐं हैं। आज जरूरत है इसे तेजी से लागू करने की और हर स्तर पर जवाबदेही तय करने की। ग्रामीण भारत की सबसे बड़ी योजना महात्मा गंाधी नरेगा और भारत निर्माण है। महात्मा गंाधी नरेगा के तहत मांगने वाले को साल में 100 दिन का रोजगार देने का प्रावधान है। 2017 तक सरकार हर घर गरीब को छत मुहैया कराना चाहती है और 2015 तक हर गांवों को बारामासी सड़कों से जोड़ना चाहती है।



सेहत का बजटनामा

यूपीए सरकार ने अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में इस बात पर सहमति जताई कि स्वास्थ्य क्षेत्र में जीडीपी का 3 फीसदी तक खर्च किया जाएगा। ऐसा इसलिए की भारत विष्व के उन चन्द देषों में एक है जहां 80 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाऐं निजि हाथों में है। सरकार के तहत महज 20 फीसदी है। फिलहाल सरकार ने कुल बजट का स्वास्थ्य क्षेत्र में 2010-11 में 2.3 फीसदी आवंटित किया। आज स्वास्थ्य में केन्द्र और राज्यों का मिलाकर खर्च जीडीपी का 1.06 फीसदी के आसपास है। 2008-09 में यह आंकड़ा 1.02 फीसदी था। ग्रामीण स्वास्थ्य की सेहत सुधारने के मकसद से 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत हुई। 11 वीं पंचवर्षीय योजना में एनएचआरएम योजना में 89478 करोड़ खर्च करने की बात कही गई। लेकिन अब तक इस योजना को केवल 48452.6 यानि 54.2 फीसदी ही मिल पाया। इसी तरह जिला अस्पताल जिसे अपग्रेड करने की बात कही जा रही है उसे 2780 करोड़ के मुकाबले पहले चार सालों में महज 284 करोड़ यानि 10.2 फीसदी ही आवंटन हुआ है। मानव संसाधन की कमी को पूरा करने के लिए तय बजट का 9.9 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में रह रहे लोगों के स्वास्थ्य बीमा के लिए 40.01 फीसदी का ही आवंटन किया गया है। इन दोनों मदों में 2007-2012 तक 4000 करोड़ और 4495 करोड़ खर्च किए जाना था। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के आने के बावजूद गांवों में डाक्टरों नर्सो और पैरामेडिकल स्टाफ का भारी टोटा है। बहरहाल मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया ने कुछ बदलाव किए है। मसलन शिक्षक छात्र अनुपात संख्या 1ः1 की जगह 1ः2 कर दी है। अस्पताल बनाने के लिए जमीन की उपलब्धता की सीमा को घटाकर आसान कर दिया है। लिहाजा ज्यादा बजट आवंटन के साथ गांवों की सेहत को सुधारने के लिए सरकार को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

शिक्षा का बजटनामा

शिक्षा का अधिकार कानून 1 अप्रैल 2010 से लागू हो चुका है। इसके तहत शिक्षा 6 से 14 साल के उम्र के बच्चे का कानूनी हक बना गया है। बहरहाल इंतजार इसी बात का है कि वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी इसके लिए कितना धन मुहैया कराते हैं। यूपीए सरकार जब 2004 में सत्ता में आई तो उसने 1966 में आई कोठारी कमीशन की सिफारिशोंको लागू करने की बात कही थी। मगर 45 सालों के बाद भी हम इन सिफारिशों से दूर है। बहरहाल वर्तमान में सरकार जीडीपी का 3.23 फीसदी पैसा शिक्षा में खर्च कर रही है। जबकि कोठारी कमीशन ने इसके लिए जीडीपी का 6 फीसदी खर्च करने की सिफारिश की थी। अगर बजट के कुल खर्च में शिक्षा का हिस्सा देखा जाए तो यह 2009-10 में 3.88 फीसदी से बड़कर 2010-11 में 4.5 फीसदी पहुंच गया। साथ ही प्राथमिक शिक्षा के लिए 13वें वित्त आयोग की सिफारिश के चलते राज्यों को 3675 करोड़ रूपये का अतिरिक्त अनुदान मिल सकेगा। इस कानून को लागू करने के लिए 10 लाख शिक्षकों का जरूरत है। साथ ही इसका अनुमानित बजट पहले पांच सालों में 34000 करोड़ प्रतिवर्ष के आसपास होना चाहिए। हालांकि 2010-11 में इसके खाते में 15000 करोड़ रूपये आए। इस कानून का अर्थिक भार केन्द्र और राज्यों के बीच 55ः45 के अनुपात में होगा, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90 फीसदी धन का इंतजाम केन्द्र सरकार करेगी। इस कानून को लागू करने में  सबसे बड़ी चुनौति बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना है।
सर्व शिक्षा अभियान- 11वीं पंचवर्षीय योजना में इस योजना में 71 हजार करोड़ रूपये खर्च करने का फैसला किया गया। पहले पांच सालों में इसे 54371 हजार करोड़ रूपये यानि कुल तय राशि का 76.57 फीसदी ही आवंटित किया गया है।
मीड डे मील योजना- 2007 से 2012 तक इस योजना पर 48000 करोड़ रूपये खर्च किए जाने है। फिलहाल अभी तक इसके खाते में 34177 करोड़ रूपये ही आ पाए है। यानि कुल आवंटन का 65.57 फीसदी।
शिक्षकों का प्रशिक्षण- इसे योजना को पांच साल में 4000 करोड़ रूपये मिलने थे । मगर अब तक सरकार का आवंटन महज 1444 करोड़ रूपये ही हो पाया है।
राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान- कुल 22260 करोड़ रूपये में से इसे अभी तक 2762 करोड़ का आवंटन ही हो पाया है। यानि कुल तय राशि का 12.21 फीसदी।
नवोदय विद्यालय- इस मद में सरकार पहले 4 सालों में ही 106.34 फीसदी पैसा दे चुकी है। इसके लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में 4600 करोड़ दिए जाने थे जिसमें अब तक सरकार 4892 करोड़ रूपये दे चुकी है।
यूजीसी- इसके खाते में 11524 करोड़ रूपये आए है। यानि कुल तय हुआ 25012 करोड़ का 46.07 फीसदी।
तकनीकि शिक्षा- सरकार ने 2022 तक 50 करोड़ युवाओं को राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। ताकि बाजार में युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध हो सके। इसमें 23654 करोड़ में से 12380 करोड़ खर्च किए जा चुके है।

किसान का बजटनामा


28 फरवरी को वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी आम बजट पेश करेंगे। महंगाई और भ्रष्टाचार से चैतरफा घिरी सरकार के पास मौका होगा आम आदमी के जख्मों पर मरहम लगाने का। महंगाई की मार से हर कोई बेहाल है और इस बजट से खासा उम्मीद हर किसी ने पाल रखी है। बहरहाल एक नजर इसपर कि खेती और किसान को इस बजट से क्या क्या मिल सकता है। वर्ष 2010-11 में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों को कुल बजट का 9.45 फीसदी और जीडीपी का 1.56 प्रतिशत आवंटन किया गया। अगर 2008 के वास्तविक खर्च और 2009 के संशोधित बजट अनुमान के मुकाबले यह बजट कम है। अगर देखा जाए तो 2005-06 से ही आयोजना बजट में गिरावट देखने को मिल रही है। 2004-05 में कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र में हुए कुल खर्च का में राजस्व खाते में भाग 99.5 फीसदी था जो मौजूदा साल में 99.7 प्रतिशत है। बहरहाल देखते है कि सरकार इस बजट में किसान को क्या दे सकती है। इस बजट में किसान को दी जाने वाली ऋण राषि की सीमा 375000 से बड़ाकर चार लाख करोड़ या उससे ज्यादा की जा सकती है। किसानों को दिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज को और नीचे लाया जा सकता है। बहरहाल 3 लाख तक के लोन को किसान 7 फीसदी की ब्याज पर बैंक से ले सकता है। अगर वह यह कर्ज समय से बैंक को देता है तो उसे 2 प्रतिशत की छूट मिलेगी। इस बजट में इसे 4 प्रतिश्त तक नीचे लाया जा सकता है। यानि सीधे सीधे तीन फीसदी की कमी। सवाल यह कि इससे सरकार को क्या फायदे होंगे। किसान आयोग ने किसान को 4 फीसदी पर कर्ज देने की अनुसंशा की थी। इसलिए सरकार इसे अमलीजामा पहनाकर किसान हितैषी होने का संदेष दे सकती है। हालांकि कृषि संबंधित स्थाई समिति ने सरकार को इस कर्ज की सीमा 3 से बढ़ाकर 5 लाख करने की सिफारिश की है। बजट 2010-11 में सरकार ने पहली हरित क्रांति का विस्तार पूर्वी क्षेत्रों मसलन बिहार, छत्तीसगढ़, पूर्वी उत्तरप्रदेष, पश्चिम बंगाल और ओडीसा में करने का ऐलान किया था। बकायदा इसके लिए 400 करोड़ के बजट का प्रावधान किया था। इस बार इस योजना को 1 से 3 हजार करोड़ रूपये तक मिल सकते हैं। इसके अलावा दलहन और तिलहन के उत्पादन को बड़ाने के लिए 60 हजार गांवों को चिन्हित किया गया था। इसमें मुख्यत सूखा क्षेत्र ही है। पिछले साल के 300 करोड के बजाय इस बार इस योजना को भी 1000 करोड़ रूपये का आवंटन किया जा सकता है। प्रथम हरित क्रांति से हुए फायदे को बरकरार रखने के लिए पिछले बजट में 200 करोड़ का प्रावधान किया गया था। इस मद में भी इस बार आवंटन में बढ़ोत्तरी होगी। वर्ष 2011-12 11र्वी पंचवर्षिय योजना का आखिरी साल है। लिहाजा कृषि विकास योजना, खाद्य सुरक्षा मिशन और बागवानी मिशन जैसी येाजनाओं का आंवटन बड़ने की संभावनाऐं है।

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

बजटनामा

बजटनामा एक ऐसा मसौदा जिससे आप और हम हर साल रूबरू होते है। हर आमों खास को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है। दरअसल सरकार हर साल मिलने वाले पैसे और खर्च का ब्यौरा संसद में रखती है। यह हर साल फरवरी महिने के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश होता है। मोटे तौर में इसमें बीते वर्ष में हुई प्राप्तियों और अगामी वर्ष में होने वाले खर्च का अनुमान लगाया जाता है। साल में कितना खर्च होगा और किस मद में होगा। उदाहरण के तौर पर भारत निर्माण और महात्मा गांधी नरेगा को कितना आवंटन किया गया है। जवाहरलाल नेहरू राष्टीय शहरी नवीकरण योजना और राजीव आवास योजना का बजट कितना प्रतिशत बड़ा। बीते वर्ष कितना धन सरकार के खजाने में आया है। आने वाले वित्तीय साल में खर्च को पूरा करने के लिए कितना धन उधार लेना हेागा। यह सब कुछ इस बजटनामें में होता है। किसान को क्या मिला। ग्रामीण विकास की तस्वीर क्या हेागी। शहरों में सुवीधाओं के लिए किस योजना को कितना धन मिला। नौकरीपेशा को कर में कितना छूट मिलेगी। क्या सस्ता हेागा और क्या महंगा। बजार की चाल क्या होगी। अर्थव्यवस्था में किस तरह का सुधार है। महंगाई का साधने के लिए क्या जरूरी उपाय होंगे। यही कारण है कि हर साल हम सबको  बजनामें का इंतजार रहता है।