रविवार, 16 जून 2013

राहुल के चुनावी खेवनहार

कांग्रेस ने संगठन में फेरबदल किया है। कई नए चहरों का महासचिव बनाया है। कईयों को बाहर का रास्ता दिखाया गया है। सबसे दिलचस्प रहा मधुसूधन मिस्त्री को उत्तरप्रदेश का प्रभार देना। मधुसूदन मिस्त्री गुजरात से आते है। नरेन्द्र मोदी पर हमलावर रहते हैं। पिछड़े वर्ग से आते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। और हाल ही में देशभर का दौरा कर एक रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंपी है लोकसभा के सीटों के आंकलन पर। यानि राहुल के विश्वासपात्रों में से एक है मुधूसूदन मिस्त्री। अब  राहुल ने उन्हें उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी सौंप कर साफ कर दिया है की वह नरेन्द्र मोदी से मुकाबले का  नेतृत्व खुद करेंगे। यानि मोदी के अमित शाह के सामने राहुल के मधुसूदन मिस्त्री। चुनाव नजदीक आते  आते बयानों के तीखे तीर चलने की अब आगाज़ हो जाएगा। वहीं मुश्किल में फंसे आंध्र में कांग्रेस के खेवनहार रहेंगे दिग्गी राजा। कांग्रेस का दक्षिण का सबसे मजबूत गढ़ है आंध्र प्रदेश। अब देखना यह होगा की  उत्तप्रदेश में हार के बाद दिग्विजय सिंह कांग्रेस के इस गढ़ को बचा पाऐंगे? खासकर तेलांगाना के मुददे पर क्या कांग्रेस कोई फैसला ले पाएगी? तीसरा अजय माकन को मजबूती मिली है मगर क्या यह शीला को  कमजोर करने की कवायत है या उनकी रास्ते से मुश्किलों को कम करने की कोशिश। क्योंकि दोनों का  झगड़ा जगजाहिर है। तीसरा सीपी जोशी को महासचिव बनाना भी एक तरह से अशोक गहलोत का  सिरदर्द कम करना है। राजस्थान में इसी साल चुनाव होने हैं ऐसे में वहां गुरूदास कामत को भेजा गया है। यह वही महाशय है जो कैबीनेट बर्थ न मिलने से कोपभवन में चले गए थे। कल बनते ही इन्होनें सोनिया चालीसा शुरू कर दी। सीपी जोशी भी राजस्थान के मुख्यमंत्री पद को पाने के लिए ललायित रहते हैं वही  हाल दिल्ली में अजय माकन का है। तीसरा बड़ा नाम है अंबिका सोनी का। सब कह रहे थे की सूचना और  प्रसारण मंत्रालय से इस्तीफा देकर वह संगठन में आऐंगी। मगर अब उनकी ताजपोशी से साफ हो गया की  वह सोनिया की विश्वास पात्रों में से एक हैं। शकील अहमद को महासचिव बनाकर धार्मिक समीकरणों को साधा  गया है। मोहन प्रकाश को भी मध्यप्रदेश और महाराष्ट की जिम्मेदारी सौंपी गई। इनमें ज्यादातरों में एक खास बात है। वह यह की यह एक अदद चुनाव नही जीत सकते। मगर कुछ सवाल। गुलाम नबी आजाद क्या  कमजोर हुए है? लगता है आलाकमान आंध्र में उनके कार्य से खुश नही हैं। रही बात मुकुल वासनिक की  तो बिहार में पहले ही वह कांग्रेस की लुटिया डूबों चुके है। इस टीम का दम खम आने वाले विधानसभा चुनाव में दिल्ली छत्तीसढ़ राजस्थान मध्यप्रदेश और मिजोरम में दिख जाएगा। मिशन 2014 तो बाद की बात है।

गठबंधन टूट गया

17 साल पुराना गठबंधन टूट गया। नीतीश बीजेपी से अलग क्या हुए बीजेपी ने बिहार में 18 जून को विश्वासघात दिवस मनाने का फैसला किया। इस दिन बिहार बंद बुलाया हैं दोनो एक दूसरे को छलने का आरोप लगा रहे है। किसने किसको धोख दिया। किसने किसके साथ विश्वासघात किया। इसपर दिमाग लगाने की जरूरत नही। खबर सीधी और सपाट है। दोनों ने अपने नफे नुकसान के चलते तलाक ले लिया। बीजेपी की आखिरी आस नरेन्द्र मोदी हैं वही नीतीश कुमार का मोदी के साथ बने रहना बिहारमें मुस्लिमों की नाराजगी लेना है। मगर सच यह भी है की नीतीश बीजेपी से पल्ला छुड़ाने के लिए के लिए लंबे समय से बेताब थे। उनकी इस शर्त को कौन भूल सकता है कि जो बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगा वह उसका समर्थन करेंगे बहरहाल 19 जून को नीतीश विश्वास मत हासिल करेंगे। वह साबित भी कर देंगे मगर सरकार का इकबाल का क्या होगा? बिहार में दोनों ने मिलकर न सिर्फ अपने वोट प्रतिशत में इजाफा किया बल्कि दोनों को सीटों के लिहाज से भी भारी फायदा पहुंचा। 1996 में दोनो दल साथ आए थे। बिहार में 1989 तक कांग्रेस मुसलमानों केवोटों की चैपिंयन रही। इसके बाद 2005 तक लालू के एमवाई समीकरण का खूब जादू चला। मगर मुसलमानों का भला किसी ने नही किया। लालू तो मुसलमानों को डराते रहे। 2005 के बाद नीतीश ने इस वोट बैंक में छलांग लगाई। नतीजा बीजेपी 2004 में 5 सांसद के मुकाबले 11 तक पहुंच गई। जेडीयू  के सांसद 20 तक पहुंच गए। विधानसभा चुनाव में भी दोनों दलों का आंकड़ा खासकर बीजेपी का 55 से 91 तक पहुंच गया और जेडीयू 118 तक पहुंच गई। अब सबसे अहम सवाल यह है कि दोनो दलों का चुनाव पूर्ण गठबंधन था, ऐसे में अलग होना जनता के  मैनडेट का निरादर है। इसका समधान है कि अलग होने पर इन दलों को नया जनादेश लेना चाहिए। इससे छोटे दलों की ब्लैकमेलिंग पर रोक लगे। विरप्पा मोईली के नेतृत्व में बनी दूसरे प्रशासनिक आयोग ने यह सिफारिश की थी। बहरहाल बीजेपी का जो भी हो इस फैसले से नीतीश को झटका जरूर लगेगा।

शुक्रवार, 14 जून 2013

धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायकिता

हमारे देश मे धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायकिता की गजब राजनीति होती है। बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी राजनीति दलों ने खुद अपने आप को धर्मनिरपेक्षता का सर्टिफिकेट दिया है। बीजेपी इन दलों के लिए सांप्रदायिक है। कांग्रेसी इस कार्ड को खेलना खूब जानते हैं। इस कार्ड को वह 2014 के आमचुनाव में भी इस्तेमाल करेंगे। नीतिश कुमार के लिए आडवाणी धर्मनिरपेक्ष ओर मोदी सांप्रदायिक है। 2002 में गुजरात में हुए दंगों के बाद भी मंत्री पद पर वह बने रहे। आज उनकी पार्टी 18 साल गठबंधन तोड़ने के लिए तैयार है। मगर कोई इन राजनीतिक दलों को बताए की इस देश में कौन क्या है, धर्मनिरपेक्ष है या सांप्रदायिक। यह जनता को तय करने दे। अगर यह सही में लोकतंत्र है तो जनता सही व्यक्ति को चुनेगी। सच्चाई यह है कि मोदी का विरोध महज़ एक छलावा है। राजनीतिक दलों को मोदी की खिलाफत में मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण नजर आता है। लालू ने बिहार में यही किया। मुलायम भी यही करते रहें है। ममता भी यही करेंगी। लेकिन आजादी के 64 सालों के बाद भी मुसलमानों की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक हालात कैसे है, सच्चर के सच ने यह देश को बता दिया। यह उन धर्मनिरपेक्षता का स्वांग रचने वाले राजनीतिक दलों के मुंह पर तमाचा है। हम सबको धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के नाम पर बांटा जाता है। सच्चाई यह है की भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश था, है, और रहेगा। 

गुरुवार, 13 जून 2013

फ्रंट का फंडा

आजकल गैर कांग्रेसी गैर बीजेपी फ्रंट का के्रज राजनीतिक दलों के सिर चढ़कर बोल रहा है। हैरान होने की बात नही। यह क्रेज अभी और बढ़ेगा और लोकसभा चुनाव आते आते ठंडा पड़ जाएगा। क्योंकि यह हर चुनाव से पहले का अध्याय है जिसका दुखद अंत होना अवश्यसंभावी है कमसे कम भारत की राजनीति का यह धु्रव सत्य है। हमारे देश में ऐसे फ्रंटों को लेकर सपने पहले भी बुने गए थे अब भी बुने जा रहे है आगे भी बुने जाते रहेंगे मगर इनका हश्र क्या होता है आप जनता जनार्दन से बेहतर और कौन जान सकता है। जरा सोचिए ममता माया और जयललिता तीनों एक फ्रंट में आऐंगी तो देश का क्या होगा। एक कदम आगे बढ़िये। लालू- नीतीश, मुलायम- माया, ममता- वामदल, जयललिता- करूणानिधि। हम सभी जानते है कि यह एक फ्रंट के तहत काम नही कर सकते। फिर हर चुनाव से पहले इस तरह की नौटंकी से जनता त्रस्त हो चुकी है। यह देश कुशासन की मार से पहले ही त्रस्त है। राजनीतिक भ्रष्टाचार राज्य से लेकर पूरे देश को जकड़े हुए है। कहीं से 
कोई आशा की किरण नही दिखाई देती। मैं कभी सोचता हूं कि जिस भारत को आज़ाद कराने के लिए लाखों लोगों ने हंसते हुए मौत को गले लगा लिया उनके सपने को नेता तिल- तिल मार रहे है। आम आदमी की सुनवाई कही नहीं है। फिर चाहे राहुल आए या मोदी या फिर कोई फ्रंट इस देश को व्यापक बदलाव की जरूरत है। मैं मानता हूं कि  वह बदलाव केवल और केवल जनता ला सकती है। बस इन पंक्तियों के साथ आप सभी मित्रों को शुभ प्रभातः। आपका दिन मंगलमय हो।
होकर निराश मत तजो आस, परिहास तो परिजन करते हैं।
कितने कोमल है ये गुलाब, जो सदा शूल में पलते हैं।

बुधवार, 12 जून 2013

गठबंधन का भविष्य

गठबंधन न बनाना आसान है न चलाना बावजूद इसके की यह भारतीय राजनीति की सच्चाई है। जेडीयू और बीजेपी का 17 साल पुराना गठबंधन टूटने के कगार पर है। कहा जा रहा है की ममता नवीन पटनायक और नीतीश कुमार मिलकर एक नये फ्रंट की घोषणा कर सकते है। बाद में कुछ और दलों के इसमें मिलने की संभावना है। मगर भारत में ऐसे फ्रंट का ना तो पहले कोई भविष्य था नही है भविष्य में दिखाई देता है।
भारत में बिना कांग्रेस या बीजेपी के सरकार नही बन सकती। यह बात सही है कि आने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दल मजबूत होंगे। मगर सरकार बनाना इन दलों के लिए दूर की कौड़ी है। हमेशा लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही इस तरह के मोर्चे की कवायद शुरू हो जाती है। इसलिए राजनीतिक पंडितों ने ऐसे मोर्चे को भाव देना बंद कर दिया है। मोदी को बीजेपी की प्रचार अभिायान समिति का प्रमुख बनान जेडीयू को इतना  खराब लगा कि उसने एनडीए से हटने का मन बना लिया है। अब तो बीजेपी भी आर पर के मूड में दिखाई देरही है। आने वाले दिनों में कुछ राजनीतिक दल एक फ्रंट के साथ आऐंगें इसकी पूरी संभावना है। मगर नेशनल पार्टी का कमजोर होना केन्द्र में न सिर्फ खतरनाक है बल्कि देश के हित में नही है। ऐसे में यूपीए और एनडीए दोनों की राजनीति आने वाले वक्त में क्या रहेगी देखना दिलचस्प होगा।

आइये नजर डालते है पिछले घटनाक्रमों में क्या कुछ घटा।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए और यूपीए दोनों मे फूट पड़ गई है। जहां दीदी ने दादा के समर्थन को लेकरकुछ भी साफ नही किया है, वहीं एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक दल जेडीयू और शिवसेना राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे। इस चुनाव ने गठबंधन में बनते बिगड़ते समीकरणों को हवा देनी शुरू कर दी है।  जेडीयू भाजपा से नाराज है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार  के तौर पर उसे बर्दाश्त नही हैं। प्रधानमंत्री सुधारों को लेकर विश्व बिरादरी को भरोसा दे चुके है। आर्थिक सुधारों पर फैसला ने लेने के टीस मिटाना चाहते हैं। मगर तृणमूल सुप्रीमों के रहते क्या सरकार इन सुधारों को अंजाम दे पाएगी। 16वीं लोकसभा का नजारा गठबंधन के लिहाज से  कैसा होगा। क्या सरकार को ममता का विसरकार के पास ममता का विकल्प कौन मुलायम मायावती या फिर नीतिश कुमार।
ममता के रहते हुए सुधारों की राह में चलना नामुमकिन।
तीस्ता वाटर ट्रीटी। बीमा पेंशन रिटेल में एफडीआई लोकपाल और तेल के दाम बढ़ाने को लेकर रूकावट।
बंगाल को पैकेज देने का दबाव। एनसीटीसी के खिलाफ ा
अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में। कड़े फैसले लेना मजबूरी।
मुलायम का कांग्रेस को समर्थन का राज। कुछ ही घंटो में क्यों बदले।
ममता की आगे की रणनीति का क्या। राज्य में कांग्रेस में ममता से खुश नही।
वामदलों का प्रणव को समर्थन के पीछे आधार व्यक्तित्व, बंगाली अस्मिता या ममता और कांग्रेस की दूरियों से वामदल खुश हैं।
ममता और वामदलों में अंतर खासकर सुधारों को लेकर।
वामदलों के बीच में प्रणब को समर्थन को लेकर एक।

जेडीयू का प्रणब मुखजी को समर्थन देना व्यक्तिगत या पार्टी की सोझी समझी रणनीति।
मोदी को लेकर इतना हमलावर क्यों
क्या मुस्लिम वोट बैंक इसके पीछे है या कहानी में कुछ और
ज्यादातर लोगों का कहना है इसे केवल मुस्लिम वोटेां केा कन्सौलिडेटेेड करने से न जोड़ा जाए।
2010 के विधानसभा चुनावों में उन्हें अच्छा वोट मिला। जहां तक मुस्लिम वोटों का बिहार में सवाल है 1977 और 1989 में कांग्रेस के खिलाफ पड़ा।
 मतलब इसके 1989 तक कांग्रेस इनके वोटों की चैंपियन रही। 1989 के बाद 2005 तक लालू प्रसाद यादव को यह वोट पड़ा। इसके बाद नीतिश
कुमार को।

एनडीए का संगमा को समर्थन रणनीति का हिस्सा।
जयललिता और नवीन पटनायक को नजदीक लाने की रणनीति

जेडीयू और शिवसेना ने किया प्रणब मुखर्जी का समर्थन
जेडीयू और शिवसेना एनडीए के घटक दल

बीजेपी और बीजेडी
11 साल पुराना गठबंधन 2009 में टूटा
1998 में साथ आए
1998,1999 और 2004 में चुनाव साथ मिलकर लड़ा।
2000 और 2004 में ज्यादातर सीटें जीती।

बीजेपी और एआइएडीएमके तमिलनाडू में
बीजेपी और जयललिता
1998 में साथ आए
39 लोकसभा सीट में से
एआडीएमके 18 सीटें
एमडीएमके 3 सीट
राजीव इंदिरा कांग्रेस 1 सीट
बीजेपी 3 दक्षिण खासकर तमिलनाडू में खाता खुला।
मगर वह 13 महिने बीजेपी केा याद आतें होगें। और आखिर में किस तरह जयललिता ने गच्चा दिया। फिर आपके साथ डीएमके के आया।
 2004 में उसने आपसे नाता तोड़ा और यूपीए में शमिल हो गया।
कहा यह भी जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों के चुनावों के नतीजे
और माहौल को देखकर फैसला करेंगे।

जेडीयू भाजपा गंठबंधन
इस गठबंधन की उम्र 15 साल हो गई है। नीतिश कुमार ने बिहार पर दोबार कब्जा जमाया।
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मंजूर नही। क्या मसला यह है या गठबंधन से बाहर निकलने
की तैयारी।
नरेन्द्र मोदी को बिहार में कैंपेन करने से रोका, साथ ही गुजरात द्धारा दी गई बाढ़ राहत राशि लौटाई।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी और टीआरएस पर होगी बीजेपी की नजर।
तेलांगाना के समर्थन में बीजेपी

पूर्वोत्तर राज्यों में की जगह बनाने की जुगत में। संगमा का समर्थन इसी को ध्यान में रखकर किया।
असम में एजीपी के साथ भी गठबंधन में रह चुकी है बीजेपी मगर अगप को हुआ चुनाव में भारी नुकसान।

यपूीए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
कांग्रेस टीएमसी डीएमके एनसीपी आरएलडी एनसी मुस्लिम लीग केरल स्टेट कमिटि, एआइएमआइएम, एसडीएफ
पीआरपी और वीसीके।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
बीजेपी जेडीयू शिवसेना एसएडी जनता पार्टी

वामदल
सीपीआइएम सीपीआइ आरएसपी और आल इंडिया फारवर्ड ब्लाॅक

गठबंधन का इतिहास
1989 यानि 9 वीं लोकसभा में पहली बार गठबंधन की सरकार केन्द्र में आई।
वीपी सिंह ने बीजेपी वामदलों और कुछ क्षेत्रीय दलों के सहयोग से सरकार बनाई।
1990 में बीजेपी ने रामजन्म भूमि आंदोलन के चलते सरकार से समर्थन वापस लिया।
चंद्रशेखर ने नवंबर 10, 1990 में कांग्रेस के समर्थन के चलते प्रधानमंत्री बने।
मार्च 9 1991 को कांग्रेस के दबाव के चलते इस्तीफा दिया।
राष्ट्रपति ने लोकसभा को डिसाल्व किया चंद्रशेखर केयरटेकर प्रधानमंत्री बने रहे।
10 लोकसभा में कांग्रेस 224 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी।
पीवी नरसिम्माराव प्रधानमंत्री बने।

राज्यों में क्या हुआ
1953-67 आंध्र प्रदेश ओडीशा और केरल में गठबंधन की सरकार बनी।
केरल में वाम दल के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार बनी।
मई 1959 कांग्रेस और गणतंत्र परिषद ने ओडीशा में सरकार बनाई।
1967 में 8 राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त विधायक दल जीता।


12 बडे़ क्षेत्रीय क्षत्रप
उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह, मायावती।
पश्चिम बंगाल में  वामदल, ममता बनर्जी,
उडीशा में नवीन पटनायक,
तमिलनाडू में जयललिता, करूणानीधि,
आंध्र प्रदेश में चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू
बिहार में नीतिश कुमार आरजेडी और एलजेपी
हरियाणा में आइएनएलडी और हरियाणा जनहित कांग्रेस
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल
असम में असम गण परिषद

मुलायम सिंह, समाजवादी पार्टी 22 सांसद
संाप्रदायिक ताकतों को बाहर रखने के लिए यूपीए का समर्थन जरूरी
गुरूवार को देशव्यापी बंद का किया समर्थन
टीडीपी और वामदलों के साथ दिखे एक मंच में
तीसरे मोर्चे की आहट को दिया जन्म
उत्तरप्रदेश में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद
कहते है 2014 के बाद अस्तित्व में आयेगा तीसरा मोर्चा सितंबर 13 2012
कांग्रेस और बीजेपी दोनो को बताते है फेल इसलिए एसपी ही दे सकती है विकल्प
2014 में अकेले चुनाव लड़ने का आहवान
पाला बदलने में उन्हें माहिर माना जाता है। राष्टपति चुनाव में भी यही किया।
राहुल गांधी पर कहा की उनमें नेत्त्व की क्षमता नही। सितंबर 13 2012
पीएम की दौड़ में नही लेकिन मै साधु संत नही। सितंबर 13 2012
यह सारी बातें कोलकात्ता में राज्य की राष्टीय अधिवेशन में कही।

मायावती बीएसपी 21 सांसद
यूपीए का कर रही है बाहर से समर्थन
गुरूवार को बुलाए गए देशव्यापी बंद का नही किया समर्थन
यूपीए 2 पर फैसला 10 अक्टूबर को
यूपीए 2 करेगी अपना कार्यकाल पूरा
यूपी में अखिलेश सरकार के खिलाफ माहौल बनना देखना चाहती हैं।
इससे पहले यूपीए 1 में भी थी 2008 में वापस लिया समर्थन
1993 में एसपी के साथ गठबंधन, जो 1995 में टूट गया। तब से दोनों एक दूसरे के प्रतिद्धंदी।
बीजेपी के साथ 1995, 1997 और 2002 में किया समर्थन
तीसरे मोर्चे के लिए 2009 में चुनाव से पहले की पहल मगर नतीजा सीफर
सरकार गिराने के पक्ष में नही। जल्द चुनाव नही चाहती।
राहुल गांधी पर वह कहती है की मेरे पै गुस्सा दिखाने से ज्यादा उनपर दिखाओं जो खान पान की चीजों के दाम नियंत्रित नही कर पाए।
सितंबर 7 2012 को आपका बयान की कांग्रेस दलितों के खिलाफ है।
प्रधानमंत्री पर। जब एक दलित सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती है तो देश की प्रधानमंत्री क्यों नही। अगस्त 10 2008।

वामदल  23 सांसद
पश्चिम बंगाल और केरल में सत्ता से बाहर
आर्थिक सुधारों पर विरोध में उनकी जगह ममता बनर्जी ने ली।
तेल के दाम बढ़ाने और और रिटेल में एफडीआई के खिलाफ
यूपीए 1 को बाहर से समर्थन। कामन मिनिमम प्रोग्राम और अमेरिकी न्यूक डील के चलते 2008 में समर्थन वापस।
2009 में तीसरे मोर्चे के साथ। 2014 से पहले इस तरह के प्रयोग की होगी और कोशिश

नितीश कुमार जेडीयू 20
एनडीए के प्रमुख सहयोगी, मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर नामंजूर।
जो पार्टी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देगी उसका करेंगे सहयोग। सितंबर 19 2012
राहुल गांधी भी कर चुके है सार्वजनिक जगहों पर उनकी तारीफ।
बीजेपी को कराते है अपनी ताकत का अहसास।
यूपी में चुनाव अकेले लड़े और गुजरात में अकेले लड़ेगें।
2014 में निभा सकते हैं बड़ी भूमिका।
2009 के चुनाव में 40 में से 32 सीटें बीजेपी जेडीयू गठबंधन को मिले।
नीतिश इस प्रर्दशन को दोहराना चाहते हैं।
चुनाव जल्द होने के आसार नही। राहुल गांधी पीएम बनने से पहले किसी राज्य के मुख्यमंत्री बने ताकि सुशासन का पाठ पढ़ सके।

ममता बनर्जी । तृणमूल कांग्रेस। 19 सांसद
यूपीए और एनडीए दोनों में रह चुकी है दोनों को खून के आंसू रूला चुकीं है आखिरकार दोनो को अलविदा कह चुकीं हैं।
2009 से पहले यूपीए 2 के साथ आई।
मुलायम के पाला बदलने से है वाकिफ।

नवीन पटनायक। बीजेडी। 14 सांसद
2009 के चुनाव से पहले बीजेपी के साथ था गठबंधन। 2009 में अपने दम पर बनाई सरकार। लोकसभा में जीतकर आए 14 सांसद।
तीसरे मोर्चे के पक्ष में। यूपीए को समर्थन का सवाल ही नही। जयललिता के नजदीकी। राष्टपति चुनाव के लिए पीए संगमा का किया समर्थन।

जयललिता। एआईएडीएमके 9 सांसद
1999 से पहले कांग्रेस के साथ
1999 में आई कांग्रेस के साथ
2004 में एनडीए के दुबारा साथ आई। हार के बाद एनडीए का साथ छोड़ा।
2009 से पहले तीसरे मोर्चे के 10 दलो के साथ।
नवीन पटनायक के नजदीक। पीए संगमा का किया समर्थन। जयललिता मोल तोल में माहिर। भरोसा नही किया जा सकता।
गुरूवार के बंद का समर्थन।

चंद्रशेखर राव। टीआरएस। 6 सांसद
तेलांगाना मुददे पर सबसे ज्यादा जोर।
2004 में यूपीए के साथ। कामन मिनिमम प्रोग्राम में तेलांगान के गठन का जिक्र।
2007 में यूपीए का साथ छोड़ा। 2009 मे एनडीए के साथ आए।
अलग तेलांगान जो बनाएगा उसके साथ।

जगन रेड्डी। वाइएस आर कांग्रेस। 2 सांसद
उपचुनाव में 18 में से 15 सीटों पर भारी जीत।
कांग्रेस को किया कमजोर। तेलांगना क्षेत्र में कमजोर।
आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए जरूरी। 2009 में 33 सांसद यहां से चुनकर आए।
कांग्रेस क्रूा जगन को अपने पक्ष में ला पाएगी। क्या उनके खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति के मामलों के वापस लेगी?

चंद्रबाबू नायडू। टीडीपी। 2 सांसद।
2014 में वापसी को बेचैन।
10 साल से सत्ता से बाहर।
एनडीए का किया था बाहर से समर्थन।
गुरूवार के बंद का समर्थन।
लेफट और मुलायम के साथ।
तेलांगाना पर बदली सोच किया समर्थन। गठबंधन न बनाना आसान है न चलाना बावजूद इसके की यह भारतीय राजनीति की सच्चाई है। जेडीयू और बीजेपी का 17 साल पुराना गठबंधन टूटने के कगार पर है। कहा जा रहा है की ममता नवीन पटनायक और नीतीश कुमार मिलकर एक नये फ्रंट की घोषणा कर सकते है। बाद में कुछ और दलों के इसमें मिलने की संभावना है। मगर भारत में ऐसे फ्रंट का ना तो पहले कोई भविष्य था नही है भविष्य में दिखाई देता है। भारत में बिना कांग्रेस या बीजेपी के सरकार नही बन सकती। यह बात सही है कि आने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दल मजबूत होंगे। मगर सरकार बनाना इन दलों के लिए दूर की कौड़ी है। हमेशा लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही इस तरह के मोर्चे की कवायद शुरू हो जाती है। इसलिए राजनीतिक पंडितों ने ऐसे मोर्चे को भाव देना बंद कर दिया है। मोदी को बीजेपी की प्रचार अभिायान समिति का प्रमुख बनान जेडीयू को इतना खराब लगा कि उसने एनडीए से हटने का मन बना लिया है। अब तो बीजेपी भी आर पर के मूड में दिखाई दे रही है। आने वाले दिनों में कुछ राजनीतिक दल एक फ्रंट के साथ आऐंगें इसकी पूरी संभावना है। मगर नेशनल पार्टी का कमजोर होना केन्द्र में न सिर्फ खतरनाक है बल्कि देश के हित में नही है। ऐसे में यूपीए और एनडीए दोनों की राजनीति आने वाले वक्त में क्या रहेगी देखना दिलचस्प होगा।
आइये नजर डालते है पिछले घटनाक्रमों में क्या कुछ घटा।

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए और यूपीए दोनों मे फूट पड़ गई है। जहां दीदी ने दादा के समर्थन को लेकर कुछ भी साफ नही किया है,
वहीं एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक दल जेडीयू और शिवसेना राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे। इस
चुनाव ने गठबंधन में बनते बिगड़ते समीकरणों को हवा देनी शुरू कर दी है।  जेडीयू भाजपा से नाराज है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार
के तौर पर उसे बर्दाश्त नही हैं। प्रधानमंत्री सुधारों को लेकर विश्व बिरादरी को भरोसा दे चुके है। आर्थिक सुधारों पर फैसला ने लेने के टीस
मिटाना चाहते हैं। मगर तृणमूल सुप्रीमों के रहते क्या सरकार इन सुधारों को अंजाम दे पाएगी। 16वीं लोकसभा का नजारा गठबंधन के लिहाज से
कैसा होगा।
क्या सरकार को ममता का विसरकार के पास ममता का विकल्प कौन मुलायम मायावती या फिर नीतिश कुमार।
ममता के रहते हुए सुधारों की राह में चलना नामुमकिन।
तीस्ता वाटर ट्रीटी। बीमा पेंशन रिटेल में एफडीआई लोकपाल और तेल के दाम बढ़ाने को लेकर रूकावट।
बंगाल को पैकेज देने का दबाव। एनसीटीसी के खिलाफ ा
अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर में। कड़े फैसले लेना मजबूरी।
मुलायम का कांग्रेस को समर्थन का राज। कुछ ही घंटो में क्यों बदले।
ममता की आगे की रणनीति का क्या। राज्य में कांग्रेस में ममता से खुश नही।
वामदलों का प्रणव को समर्थन के पीछे आधार व्यक्तित्व, बंगाली अस्मिता या ममता और कांग्रेस की दूरियों से वामदल खुश हैं।
ममता और वामदलों में अंतर खासकर सुधारों को लेकर।
वामदलों के बीच में प्रणब को समर्थन को लेकर एक।


जेडीयू का प्रणब मुखजी को समर्थन देना व्यक्तिगत या पार्टी की सोझी समझी रणनीति।
मोदी को लेकर इतना हमलावर क्यों
क्या मुस्लिम वोट बैंक इसके पीछे है या कहानी में कुछ और
ज्यादातर लोगों का कहना है इसे केवल मुस्लिम वोटेां केा कन्सौलिडेटेेड करने से न जोड़ा जाए।
2010 के विधानसभा चुनावों में उन्हें अच्छा वोट मिला। जहां तक मुस्लिम वोटों का बिहार में सवाल है 1977 और 1989 में कांग्रेस के खिलाफ पड़ा।
 मतलब इसके 1989 तक कांग्रेस इनके वोटों की चैंपियन रही। 1989 के बाद 2005 तक लालू प्रसाद यादव को यह वोट पड़ा। इसके बाद नीतिश
कुमार को।

एनडीए का संगमा को समर्थन रणनीति का हिस्सा।
जयललिता और नवीन पटनायक को नजदीक लाने की रणनीति

जेडीयू और शिवसेना ने किया प्रणब मुखर्जी का समर्थन
जेडीयू और शिवसेना एनडीए के घटक दल

बीजेपी और बीजेडी
11 साल पुराना गठबंधन 2009 में टूटा
1998 में साथ आए
1998,1999 और 2004 में चुनाव साथ मिलकर लड़ा।
2000 और 2004 में ज्यादातर सीटें जीती।

बीजेपी और एआइएडीएमके तमिलनाडू में
बीजेपी और जयललिता
1998 में साथ आए
39 लोकसभा सीट में से
एआडीएमके 18 सीटें
एमडीएमके 3 सीट
राजीव इंदिरा कांग्रेस 1 सीट
बीजेपी 3 दक्षिण खासकर तमिलनाडू में खाता खुला।
मगर वह 13 महिने बीजेपी केा याद आतें होगें। और आखिर में किस तरह जयललिता ने गच्चा दिया। फिर आपके साथ डीएमके के आया।
 2004 में उसने आपसे नाता तोड़ा और यूपीए में शमिल हो गया।
कहा यह भी जा रहा है कि ज्यादातर राज्यों के चुनावों के नतीजे
और माहौल को देखकर फैसला करेंगे।

जेडीयू भाजपा गंठबंधन
इस गठबंधन की उम्र 15 साल हो गई है। नीतिश कुमार ने बिहार पर दोबार कब्जा जमाया।
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मंजूर नही। क्या मसला यह है या गठबंधन से बाहर निकलने
की तैयारी।
नरेन्द्र मोदी को बिहार में कैंपेन करने से रोका, साथ ही गुजरात द्धारा दी गई बाढ़ राहत राशि लौटाई।

आंध्र प्रदेश में टीडीपी और टीआरएस पर होगी बीजेपी की नजर।
तेलांगाना के समर्थन में बीजेपी

पूर्वोत्तर राज्यों में की जगह बनाने की जुगत में। संगमा का समर्थन इसी को ध्यान में रखकर किया।
असम में एजीपी के साथ भी गठबंधन में रह चुकी है बीजेपी मगर अगप को हुआ चुनाव में भारी नुकसान।

यपूीए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन
कांग्रेस टीएमसी डीएमके एनसीपी आरएलडी एनसी मुस्लिम लीग केरल स्टेट कमिटि, एआइएमआइएम, एसडीएफ
पीआरपी और वीसीके।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
बीजेपी जेडीयू शिवसेना एसएडी जनता पार्टी

वामदल
सीपीआइएम सीपीआइ आरएसपी और आल इंडिया फारवर्ड ब्लाॅक

गठबंधन का इतिहास
1989 यानि 9 वीं लोकसभा में पहली बार गठबंधन की सरकार केन्द्र में आई।
वीपी सिंह ने बीजेपी वामदलों और कुछ क्षेत्रीय दलों के सहयोग से सरकार बनाई।
1990 में बीजेपी ने रामजन्म भूमि आंदोलन के चलते सरकार से समर्थन वापस लिया।
चंद्रशेखर ने नवंबर 10, 1990 में कांग्रेस के समर्थन के चलते प्रधानमंत्री बने।
मार्च 9 1991 को कांग्रेस के दबाव के चलते इस्तीफा दिया।
राष्ट्रपति ने लोकसभा को डिसाल्व किया चंद्रशेखर केयरटेकर प्रधानमंत्री बने रहे।
10 लोकसभा में कांग्रेस 224 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी।
पीवी नरसिम्माराव प्रधानमंत्री बने।

राज्यों में क्या हुआ
1953-67 आंध्र प्रदेश ओडीशा और केरल में गठबंधन की सरकार बनी।
केरल में वाम दल के नेतृत्व में पहली गठबंधन सरकार बनी।
मई 1959 कांग्रेस और गणतंत्र परिषद ने ओडीशा में सरकार बनाई।
1967 में 8 राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त विधायक दल जीता।


12 बडे़ क्षेत्रीय क्षत्रप
उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह, मायावती।
पश्चिम बंगाल में  वामदल, ममता बनर्जी,
उडीशा में नवीन पटनायक,
तमिलनाडू में जयललिता, करूणानीधि,
आंध्र प्रदेश में चंद्रशेखर राव, जगन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू
बिहार में नीतिश कुमार आरजेडी और एलजेपी
हरियाणा में आइएनएलडी और हरियाणा जनहित कांग्रेस
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल
असम में असम गण परिषद

मुलायम सिंह, समाजवादी पार्टी 22 सांसद
संाप्रदायिक ताकतों को बाहर रखने के लिए यूपीए का समर्थन जरूरी
गुरूवार को देशव्यापी बंद का किया समर्थन
टीडीपी और वामदलों के साथ दिखे एक मंच में
तीसरे मोर्चे की आहट को दिया जन्म
उत्तरप्रदेश में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद
कहते है 2014 के बाद अस्तित्व में आयेगा तीसरा मोर्चा सितंबर 13 2012
कांग्रेस और बीजेपी दोनो को बताते है फेल इसलिए एसपी ही दे सकती है विकल्प
2014 में अकेले चुनाव लड़ने का आहवान
पाला बदलने में उन्हें माहिर माना जाता है। राष्टपति चुनाव में भी यही किया।
राहुल गांधी पर कहा की उनमें नेत्त्व की क्षमता नही। सितंबर 13 2012
पीएम की दौड़ में नही लेकिन मै साधु संत नही। सितंबर 13 2012
यह सारी बातें कोलकात्ता में राज्य की राष्टीय अधिवेशन में कही।

मायावती बीएसपी 21 सांसद
यूपीए का कर रही है बाहर से समर्थन
गुरूवार को बुलाए गए देशव्यापी बंद का नही किया समर्थन
यूपीए 2 पर फैसला 10 अक्टूबर को
यूपीए 2 करेगी अपना कार्यकाल पूरा
यूपी में अखिलेश सरकार के खिलाफ माहौल बनना देखना चाहती हैं।
इससे पहले यूपीए 1 में भी थी 2008 में वापस लिया समर्थन
1993 में एसपी के साथ गठबंधन, जो 1995 में टूट गया। तब से दोनों एक दूसरे के प्रतिद्धंदी।
बीजेपी के साथ 1995, 1997 और 2002 में किया समर्थन
तीसरे मोर्चे के लिए 2009 में चुनाव से पहले की पहल मगर नतीजा सीफर
सरकार गिराने के पक्ष में नही। जल्द चुनाव नही चाहती।
राहुल गांधी पर वह कहती है की मेरे पै गुस्सा दिखाने से ज्यादा उनपर दिखाओं जो खान पान की चीजों के दाम नियंत्रित नही कर पाए।
सितंबर 7 2012 को आपका बयान की कांग्रेस दलितों के खिलाफ है।
प्रधानमंत्री पर। जब एक दलित सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती है तो देश की प्रधानमंत्री क्यों नही। अगस्त 10 2008।

वामदल  23 सांसद
पश्चिम बंगाल और केरल में सत्ता से बाहर
आर्थिक सुधारों पर विरोध में उनकी जगह ममता बनर्जी ने ली।
तेल के दाम बढ़ाने और और रिटेल में एफडीआई के खिलाफ
यूपीए 1 को बाहर से समर्थन। कामन मिनिमम प्रोग्राम और अमेरिकी न्यूक डील के चलते 2008 में समर्थन वापस।
2009 में तीसरे मोर्चे के साथ। 2014 से पहले इस तरह के प्रयोग की होगी और कोशिश

नितीश कुमार जेडीयू 20
एनडीए के प्रमुख सहयोगी, मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर नामंजूर।
जो पार्टी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देगी उसका करेंगे सहयोग। सितंबर 19 2012
राहुल गांधी भी कर चुके है सार्वजनिक जगहों पर उनकी तारीफ।
बीजेपी को कराते है अपनी ताकत का अहसास।
यूपी में चुनाव अकेले लड़े और गुजरात में अकेले लड़ेगें।
2014 में निभा सकते हैं बड़ी भूमिका।
2009 के चुनाव में 40 में से 32 सीटें बीजेपी जेडीयू गठबंधन को मिले।
नीतिश इस प्रर्दशन को दोहराना चाहते हैं।
चुनाव जल्द होने के आसार नही। राहुल गांधी पीएम बनने से पहले किसी राज्य के मुख्यमंत्री बने ताकि सुशासन का पाठ पढ़ सके।

ममता बनर्जी । तृणमूल कांग्रेस। 19 सांसद
यूपीए और एनडीए दोनों में रह चुकी है दोनों को खून के आंसू रूला चुकीं है आखिरकार दोनो को अलविदा कह चुकीं हैं।
2009 से पहले यूपीए 2 के साथ आई।
मुलायम के पाला बदलने से है वाकिफ।

नवीन पटनायक। बीजेडी। 14 सांसद
2009 के चुनाव से पहले बीजेपी के साथ था गठबंधन। 2009 में अपने दम पर बनाई सरकार। लोकसभा में जीतकर आए 14 सांसद।
तीसरे मोर्चे के पक्ष में। यूपीए को समर्थन का सवाल ही नही। जयललिता के नजदीकी। राष्टपति चुनाव के लिए पीए संगमा का किया समर्थन।

जयललिता। एआईएडीएमके 9 सांसद
1999 से पहले कांग्रेस के साथ
1999 में आई कांग्रेस के साथ
2004 में एनडीए के दुबारा साथ आई। हार के बाद एनडीए का साथ छोड़ा।
2009 से पहले तीसरे मोर्चे के 10 दलो के साथ।
नवीन पटनायक के नजदीक। पीए संगमा का किया समर्थन। जयललिता मोल तोल में माहिर। भरोसा नही किया जा सकता।
गुरूवार के बंद का समर्थन।

चंद्रशेखर राव। टीआरएस। 6 सांसद
तेलांगाना मुददे पर सबसे ज्यादा जोर।
2004 में यूपीए के साथ। कामन मिनिमम प्रोग्राम में तेलांगान के गठन का जिक्र।
2007 में यूपीए का साथ छोड़ा। 2009 मे एनडीए के साथ आए।
अलग तेलांगान जो बनाएगा उसके साथ।

जगन रेड्डी। वाइएस आर कांग्रेस। 2 सांसद
उपचुनाव में 18 में से 15 सीटों पर भारी जीत।
कांग्रेस को किया कमजोर। तेलांगना क्षेत्र में कमजोर।
आंध्र प्रदेश कांग्रेस के लिए जरूरी। 2009 में 33 सांसद यहां से चुनकर आए।
कांग्रेस क्रूा जगन को अपने पक्ष में ला पाएगी। क्या उनके खिलाफ चल रहे आय से अधिक संपत्ति के मामलों के वापस लेगी?

चंद्रबाबू नायडू। टीडीपी। 2 सांसद।
2014 में वापसी को बेचैन।
10 साल से सत्ता से बाहर।
एनडीए का किया था बाहर से समर्थन।
गुरूवार के बंद का समर्थन।
लेफट और मुलायम के साथ।
तेलांगाना पर बदली सोच किया समर्थन। 2009 से पहले 9 राजनीतिक दलों के साथ आए थे साथ।













वोट सिक्यूरिटी बिल

खाद्य सुरक्षा कानून पर सरकार आज आर्डिनेंस ला सकती है। सवाल यह है कि पीडीएस में जो
चुनौतियों थी उनसे निपटने के लिए क्या कोई ठोस कदम उठाये गए। गरीबों का सही चयन, अनाज का
उत्पादन, किसानों ही आर्थिक हालात, आनज के रखरखाव की व्यवस्था, भ्रष्टाचार की गिरफत में मौजूद
हमारी वितरण प्रणाली और कानून को अमलीजामा पहनाने के लिए 1 लाख करोड़ से ज्यादा का बजट,
क्या इन सब मुददों पर ध्यान दिया गया है? या यह मान लिया जाए कि चुनाव नजदीक देख सरकार वोट सिक्यूरीटी बिल ला रही है। बाद में जब सीएजी इसका आंकलन करने बैठेगा तो कई घोटाले सामने आऐंगे और केन्द्र सरकार सारा ठीकरा यह कहते हुए कि क्रियान्वयन तो राज्य सरकार की जिम्मेदारी है हमें तो सिर्फ आवंटन करना होता है कहकर अपना पल्ला झाड़ लेगी। मायूस जनता एक बार फिर राजनीति के झलावे में आकर इस जाल में फंस जाएगी। दरअसल इस देश को इस कानून को लागू करने से पहले उन अव्यवस्थाओं
को सुधारना चाहिए था जिसकी वजह से पीडीए प्रणाली में भारी भ्रष्टाचार है। सिर्फ चुनावी माहौल बनाने
और वोट लेने का जरिया ऐसे कानून बनेंगे तो किसी को हो या न हो आम आदमी का भला नही होने वाला।
सरकार ऐसे झूठे सब्जबाग दिखाकर जनता के साथ कब तक झलावा करती रहेगी। मैं तो देश की जनता से इतना ही कहूंगा शिकारी आएगा, जाल बिझाएगा, दाना डालेगा, लोभ में फंसना मत।

मंगलवार, 11 जून 2013

बाल अपराध

बाल अपराधियों द्धारा किए जाने वाले अपराधों में बढ़ोत्तरी हुइ है।
साल              अपराध
2000               198
2011              1149
यानि पांच गुना बढ़ोत्तरी। क्या कम सजा इनका हौसल बढ़ा है।
अपराधी की उम्र के बजाय अपराध की गंभीरता सज़ा का आधार होनी चाहिए।
यह विकृति मुजरिम है इन्हें छोड़ना सही नही। खासकर दिल्ली गैंग रेप में अक्षय की भूमिका
बोन ऐसीसीफिकेशन टेस्ट सही उम्र सामने नही ला पाता।

विशेष राज्य का दर्जा देने की हमारी मांगे पूरी करो!

विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर अब बीजेडी दिल्ली में स्वाभिमान रैली निकाल रही है। इसके पीछे 
तर्क दिया जा रहा वहां की 23 फीसदी आदिवासी आबादी को, गरीबी को और बाकी आर्थिक सामाजिक 
मापदंडों को। मैने पहले भी यह कहा की मापदंडों में किसी भी तरह के बदलाव से कई राज्यों विशेष 
राज्य की श्रेणी में आने के लिए लार टपका रहे है। अब नवीन पटनायक भी इसी रणनीति पर काम कर 
रहे हैं। लेकिन इसके पीछे राजनीतिक समीकरणों को समझना होगा। क्या अभी ममता बनर्जी , नीतीश कुमार
और नवीन पटनायक क्या मिलकर एक फ्रंट की शुरूआत कर सकते हैं। देश में तीसरे मोर्चे को वैसे तो कोई 
भविष्य नही दिखाई देता मगर एक मजबूत फ्रंट अगर अस्तित्व में आता है तो आने वाले समय में बनने वाली
सरकार न तो उसके बिना बन पाएगी और न ही उसकी शर्तो को दरकिनार कर पाएगी। इसलिए इस तरह
के फ्रंट लोकसभा चुनाव से पहले बनना जरूरी दिख रहा है।

बिहार लंबे समय से मागं रहा है विशेष राज्य का दर्जा। अगर इस राज्य की मांग मानी जाती है तो और कई राज्य अपनी आवाज मुखर करेंगे।
11 राज्यों को इस समय विशेष राज्य का दर्जा मिला है। इसमें 7 पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम, उत्राखंड जम्मू और कश्मीर और हिमांचल प्रदेश।
किसी भी राज्य के लिए इस श्रेणी में आना कितना फायदे मंद है।
बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड ओडिशा राजस्थान पिछले दल सालों से विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे है। इसके पीछे इनके अपने तर्क
है। ओडीशा कहता है हमें यहां गरीबी ज्यादा है। राजस्थान का आधार है रेगिस्तान और पूदषित जल, झारखंड और छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित
होने की वजह से इसकी मांग करते हैं।

विशेष राज्य प्राप्त करने की योग्यता
आर्थिक रूप से पिछड़ा हो।
जनजाति बहुल आबादी 
पड़ोसी देश की सीमा से लगे हुए राज्य
पहाड़ी इलाके
राजस्व जुटाने के मजबूत साधन न हो।
कई ऐसे दुर्गम क्षेत्र जहां विकास कार्यो में आने वाली लागत काफी ज्यादा हो।

विशेष राज्यों को क्या मिलता है
उत्पाद शुल्क में छूट
केन्द्रीय प्रायोजित योजनाअेां में 90 फीसदी अनुदान।

क्या विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए नए मापदंड स्थापित हों। नीतिश कुमार
योजना आयोग के अंतर मंत्रालय समूह ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से मना कर दिया। समझ से बाहर है की नीतिश इस मुददे
पर इतनी उर्जा क्येां लगा रहे है।
प्रधानमंत्री से मुलाकत कर चुके है।
सवा करोड़ लोगों का हस्ताक्षकर कराकर वह दबाब बना चुके है।
यहां तक की उन्होने यह तक कह दिया कि जो सरकार विशेष राज्य का दर्जा बिहार को देगी वह उसके साथ खड़े होंगे।

योजना आयोग के तर्क हैं
बिहार में राजस्व के कई स्रोत हैं। परंपरागत रूप से संपन्न राज्य है।
केन्द्रीय प्रायोजित बिहार पैकेज में लगभग राज्य के सभी जिलों को शामिल किया गया है।
बीआरजीएफ में भी राज्य का लगभग हर जिला शामिल है।
अकेले इस योजना में बिहार को मार्च 2012 तक 8495.08 करोड़ जारी किए जा चुके हैं।

विशेष राज्या का दर्जा के लिए राष्टीय विकास परिषद से मंजूरी लेनी पड़ती है।
अपै्रल 1969 में एनडीसी ने गाडगिल फार्मूले को स्वीकृति दी।
1970 -71 में असम जम्मू और कश्मीर और नागालैंड और हिमाचल प्रदेश को मिला विशेष राज्य का दर्जा
मणीपुर मेधालय और त्रिपुरा को मिला1971 -72, सिक्किम को 1975-76 में अरूणांचल प्रदेश और मिजोरम को 1986-87 में और 
उत्तराखंड को 2001-2002 में मिला।

जुलाई 2011 को बिहार के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री को एक मैमारेंडम सौंपा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले।
इसके बाद एक इन्टर मिनिस्टियल ग्रुप बनाया गया जो इस मांग पर गौर करेगा। अब इस समूह ने यह मांग खारिज कर दी है।

बिहार के तर्क
प्राकृतिक आपदा से लगातार प्रभावित
प्रति व्यक्ति आय राष्टीय औसत आय से कम।

नीतिश कुमार सिर्फ और सिर्फ राजनीति कर रहें है।
उनकी विफलताओं से यह ध्यान हटाने का तरीका हैं।
उनको लगता है यह मुददे उनकी राजनीति नैयया पार लगा देगा अगले चुनावों मे।

पूरे प्रदेश में अधिकार यात्रा। 4 नवंबर को अधिकार रैली। दिल्ली के रामलीला मैदान पर भी रैली का आयोजन करने की घोषणा।

उनके विरोधी कहते हैं की जब नीतिश वाजपेयी सरकार में मंत्री थे और विशेष राज्य के दर्जे से संबंधित प्रस्ताव जब सरकार को भेजा 
गया तो उन्होंने क्यों चुप्पी साधे रखी। उस समय बिहार के विशेश सहायता समिति के अध्यक्ष नीतिश कुमार थे। बकायदा केन्द्र में बिहार 
के 4 पांच मंत्री थे।

कुछ यह भी कहते हैं उनके साथी शिवानंद तिवारी और शरद यादव की उनके इस अभियान में कोई खास रूची नही लेते।
बीजेपी इस अभियान में कहीं नही है।

सवाल यह भी है जो विशेष राज्य के दर्जे के बगैर जो काम होने चाहिए क्या उनमें नीतिश ने ध्यान दिया है।
उनको लगता है मिले या दर्जा न मिले उन्हें बिहार की कुर्सी जरूरी मिल जाएगी।

बिहार के विकास पर एक नजर
11 वे प्लान  8.5 फीसदी
अचिवमेंट  12.08 फीसदी

प्रति व्यक्ति आय  11 प्लान में 
भारत  - 38425
बिहार - 15268

राजकोषिय घाटा
2012-13 बीई भारत -5.1 फीसदी
             बिहार - 2.1 फीसदी

12 वे प्लान का टारगेट  13 फीसदी
केवल कृषि से आप  7 फीसदी दर का अनुमान लगा रहें है।
12 प्लान में आपने 20 हजार करोड़ के स्पेशल मांग की है।
20 हजार करोड़ यानि 4000 करोड़ प्रति वर्ष।
प्लान साइल आपको जो मिला वह है 28000 करोड़।

बिहार को आज जरूरत है आजीविका के साधन तलाशने की।
पलायन में कमी आई है।
तेंदुलगर समिति के मापदंडों के आधार पर भी बिहार में गरीबी ज्यादा है।
साक्षरता दर सुधरी जरूर है मगर अभी बहुत पिछे हैं।
जो कंेन्द्रीय प्रायेाजित योजना में फलैक्सिीबिलिटी की वो बात करतें है वह मान लिया गया।

केन्द्र सरकार ने दिए संकेत
जल्द पिछड़पन तय करने वालों मानकों में बदलाव के दिए संकेत।
मसलन एमएमआर आइएमआर और प्रति व्यक्ति आय को शामिल किया जाएगा।
अगर ऐसा होता है तो ओडिशा झारखंड गोवा और छत्तीसढ़ और राजस्थान इसमें शामिल हो सकते हैं।
अगले दो महिनों में सरकार मानकों की घोषणा कर सकती है।
कर्ज में फंसे पश्चिम बंगाल पंजाव और केरल को वित्त आयोग से मिल सकती है राहत।

हमारी मांगे पूरी करो !

विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर अब बीजेडी दिल्ली में स्वाभिमान रैली निकाल रही है। इसके पीछे
तर्क दिया जा रहा वहां की 23 फीसदी आदिवासी आबादी को, गरीबी को और बाकी आर्थिक सामाजिक
मापदंडों को। मैने पहले भी यह कहा की मापदंडों में किसी भी तरह के बदलाव से कई राज्यों विशेष
राज्य की श्रेणी में आने के लिए लार टपका रहे है। अब नवीन पटनायक भी इसी रणनीति पर काम कर
रहे हैं। लेकिन इसके पीछे राजनीतिक समीकरणों को समझना होगा। क्या अभी ममता बनर्जी , नीतीश कुमार
और नवीन पटनायक क्या मिलकर एक फ्रंट की शुरूआत कर सकते हैं। देश में तीसरे मोर्चे को वैसे तो कोई
भविष्य नही दिखाई देता मगर एक मजबूत फ्रंट अगर अस्तित्व में आता है तो आने वाले समय में बनने वाली
सरकार न तो उसके बिना बन पाएगी और न ही उसकी शर्तो को दरकिनार कर पाएगी। इसलिए इस तरह
के फ्रंट लोकसभा चुनाव से पहले बनना जरूरी दिख रहा है।

देख तमाशा बीजेपी का

सवाल बीजेपी के सामने आडवाणी मान गए या नरेन्द्र मोदी के बने रहने का नही है? सवाल है आडवाणी
के खत में उठाये गए मुददों के जवाब का जिसका संघ या राजनाथ सिंह के पास कोई जवाब नही है। चूंकि
इशारा उनकी तरफ ही था। इसलिए जबाव की उम्मीद न के बराबर है। मगर इन दो दिनों में जो कुछ भी
 हुआ उसने बीजेपी की खूब जगहंसाई करवा ली। दरअसल बीजेपी ने गोवा में खीर पकाई और
दिल्ली में आडवाणी ने उसमें नमक डाल दिया। कांग्रेस पर दो सत्ता के केन्द्र का आरोप लगाने वाली
बीजेपी को देश को बताना चाहिए कि उसके यहां सत्ता के कितने केन्द्र हैं। मेरे ख्याल से हर नेता का अपना
केन्द्र है। इस मामले में कांग्रसियों की दाद देनी होगी क्योंकि उनके यहां एक ही केन्द्र है, हाईकमान!