रविवार, 28 अगस्त 2016

उत्तराखंड। 16 साल, 16 सवाल

उत्तराखंड को राज्य बने 16 साल हो गए हैं। अलग राज्या बनाने के लिए लोगों ने संघर्ष किया। कईयों ने जान की बाजी लगा दी। मगर क्या अलग राज्य बनने से हर उत्तराखंडी का सपना पूरा हुआ। क्या नए राज्य की यही कल्पना लोगों ने की थी। आज कुछ जरूरी सवाल उत्तराखंड से जुड़े मुददों पर। शिक्षा और स्वास्थ जैसे ज्वलंत सवात तो हैं ही इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण पहलू हैं।

1----पलायन - गांवों  से पलायन लगातार जारी है, हर साल आने वाली आपदा के बाद पलायन की दर बढ़ी है।, सुरक्षा की दृष्टि से भी यह अहम मुद्दा है चूंकि उत्तराखंड की सीमा नेपाल और चीन , सैकेंड डिफेंस लाइन मानी जाती है सीमावर्ती गांव की आबादी ।

2----रोज़गार - बहुगुणा सरकार ने बेरोज़गारों के लिए भत्ता देने की योजना चलाई थी....लेकिन रावत सरकार ने बेरोज़गारी भत्ता देना बंद कर किया....हर साल 1 लाख नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन रोजगार पंजीकरण कार्यालय में रजिस्ट्रेशन करने वाले युवाओं की संख्या तो बढ़ गई मगर रोजगार का वादा भी हवा हवाई निकला। 

3----उद्योग - एनडी तिवारी सरकार में जिस सिडकुल की स्थापना हुई थी, रावत सरकार सिडकुल की संख्या बढ़ाने में नाकाम रही, पहाड़ में स्वरोज़गार के माध्यम बढ़ाने का दावा भी हवाई निकला, कोल्ड स्टोरेज के आभाव में पहाड़ों में फल सड़ रहे हैं। जिन फलों को अंतराष्ट्रीय बाजार की शोभी होना चाहिए था वो पेड़ों में सड़ रहे हैं।

4----आपदा - आपदा को लेकर सरकार हर मोर्चे पर नाकाम रही। उत्तराखंड में  दैवीय आपदाऐं बढ़ती जा रही हैं। 2013 में केदारनाथ की भयंकर त्रासदी को भला कौन भूल सकता है।
आपदा की मार से परेशान लोग आज भी मुआवजे को इंतजार में है। खबर तो यहां तक आई की इसकी आड़ में धर्मपरिवर्तन जैसे गैराकानूनी कामों को अंजाम दिया जा रहा है। भारी बारिश की सूचना देने वाले डॉपलर रडार लगाए जाने थे जो आज  तक नहीं लगाए गए।  2013 की आपदा के बाद केंद्र ने 2 डॉपलर रडार दिए थे जिने नैनीताल और मसूरी में लगाया जाना था। लेकिन जगह चिन्हित नहीं होने से ये रडार हिमाचल और जम्मू कश्मीर में लगाए गए। 

5---विस्थापन - दैवीय आपदा और भूकंप की दृष्टि से चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी ज़िले के 350 से ज़्यादा गांव का विस्थापन किया जाना है। यहां कभी भी कोई बड़ी आपदा कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। एनडी तिवारी सरकार में इन गांव चिन्हीकरण हुआ था , लेकिन अब तक एक भी गांव का पुनर्वास नहीं हुआ, बल्कि अब विस्थापित होने वाले गांव की संख्या 50 और बढ़ गई है। इससे ज्यादा खतरनाक स्थिति यह है कि एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि उत्तराखंड में नेपाल से ज्यादा खतरनाक भूकंप आने की संभावना है। 

6----शराब नीति - आबकारी नीति को लेकर हर सरकार विपक्ष के निशाने पर होती है, पारदर्शी नीति नहीं बनाने का आरोप सरकारों पर हमेश लगते आएें है। उत्तराखंड में बिकने वाली डेनिस शराब को लेकर सीएम रावत पर गंभीर आरोप लगे हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि हर बोतल में हिस्सा फिक्स है। विपक्ष डेनिस ब्रांड की शराब को सीएम के बेटे की फैक्ट्री मेड बताता है। यहां यह बात गौर करने की है कि पहाड़ को शराब ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।

7----खनन नीति - 16 साल बाद भी खनन नीति पर सरकार एक राय नहीं बना पाई है, खनन नीति को लेकर सरकार पर सवाल खड़े होते आए हैं, हर साल सरकार को अवैध खनन के चलते हज़ारों करोड़ के राजस्व का लगता है चूना, हरीश रावत ने हाल ही में नव प्रभात की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक कमिटी बनाई है, जो खनन नहीं, बल्कि चुगान नीति बनाएगी।

8-----ऊर्जा नीति - उत्तराखंड में ऊर्जा की अपार संभावना होने के बावजूद ऊर्जा उत्पादन के मामले में उत्तराखंड बहुत पीछे है, जो बांध बनाए भी गए हैं, उन पर सवाल उठते आए हैं, पर्यावरण विद् इन बांध को लगातार आ रही आपदा के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं, सरकार इस पर भी स्पष्ट नीति नहीं बना पाई है।

9---पर्यटन नीति - उत्तराखंड में ऊर्जा के बाद पर्यटन ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जो उत्तराखंड की आर्थिकी का मुख्य आधार है, पर्यटन व्यवसाय से सूबे के लाखों लोग परोक्ष और अपरोक्ष रुप से जुड़े हुए हैं, लेकिन सरकार अभी तक तीर्थाटन और पर्यटन में अंतर नहीं कर पाई है, जो पुराने पर्यटक केंद्र हैं, वहां रखरखाव का अभाव है, जबकि तीर्थाटन को ही सरकार पर्यटन के रुप में बढ़ावा देने में जुटी है,  मॉनसून के दौरान सड़कें बंद होने के चलते यात्रा चौपट हो जाती है ।

10---चारधाम यात्रा - रावत सरकार ने 12 महीने चारधाम यात्रा चलाने का ऐलान तो किया, लेकिन चारधाम यात्रा ही सुचारु रुप से चलाना सरकार के लिए टेढी खीर है, उत्तराखंड में तीर्थाटन की दृष्टि से कई धार्मिक स्थल है, जिनका सरकार प्रचार प्रसार तक नहीं कर पाई है, इसके अलावा हिमालय दर्शन और कुमाऊं दर्शन की योजना भी टांय-टांय फिस्स हो गई ।

11---स्वास्थ्य सुविधा - उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी से उतरी हुई हैं, डॉक्टर पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं हैं, तो मैदान के हॉस्पिटल में भी डॉक्टरों का टोटा है, दवाइयां और दूसरी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं, कुमाऊं के सबसे बड़े हॉस्पिटल सुशीला तिवारी में आए दिन लापरवाही के चलते मरीज़ों की मौत हो रही है, जिसको लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब भी मांगा है। 

12---ट्रांसफर नीति - उत्तराखंड में तबादला नीति हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही है, खंड़ूडी सरकार में बनाई गई ट्रांसफर नीति को अब तक सबसे अच्छा बताया गया है, लेकिन कांग्रेस सरकार ने ट्रांसफर नीति को बदल दिया, ट्रांसफर नीति का सबसे बड़ा असर शिक्षा महकमे में होता है ।

13----ज़मीन नीति - उत्तराखंड बनने के बाद से भूमाफिया लगातार बढ़ते जा रहे हैं, मैदानी इलाकों में लैंड से जुड़े हुए आपराधिक मुकदमों का ग्राफ़ बढ़ता जा रहा है, बेनामी संपतियों के खुर्दबुर्द होने का सिलसिला जारी है, खंडूडी ने बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीद नीति बनाई थी, जिसके बाद भूमाफिया पर काफी हद तक लगाम लगी थी, लेकिन कांग्रेस सरकार में उस नीति को बदल दिया गया ।

14----स्मार्ट सिटी - देहरादून को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने में सरकार नाकाम रही, सरकार अभी तक ये भी तय नहीं कर पा रही है कि स्मार्ट सिटी के लिए कितने एकड़ ज़मीन की ज़रुरत पड़ेगी, पहले सरकार ने देहरादून विकासनगर के चाय बागान में स्मार्ट सिटी बनाने का फैसला लियख, और हज़ारों एकड़ भूमि में स्मार्ट सिटी बनाने का प्रपोजल रखा, लेकिन लोगों के विरोध के बाद सरकार ने उस फैसले को वापस ले लिया और बाद में स्मार्ट सिटी को 300 एकड़ भूमि पर ही बनाने की बात कही गई।

15----स्थायी राजधानी - 16 साल बाद भी कोई सरकार स्थायी राजधानी को लेकर अपना रुख साफ नहीं कर पाई है, गैरसैंण को लेकर पहाड़ के लोगों को गुमराह किया जा रहा है, जबकि देहरादून के रायपुर में केंद्र से मिले 100 करोड़ रुपये की मदद से नए विधानसभा भवन का निर्माण कराया जा रहा है।

16----परिसंपत्ति बंटवारा - 16 साल बाद भी उत्तराखंड और यूपी के बीच परिसंपत्तियों का बटवारा नहीं हो पाया है, आज भी उत्तराखंड की कई अहम संपत्तियों पर यूपी का कब्जा है, टिहरी डैम से उत्पादित होने वाली बिजली पर राज्य सरकार 25 फीसदी हिस्सेदारी चाहती है, लेकिन यूपी का स्टेग होने के चलते उत्तराखंड के हिस्से महज 12 फीसदी बिजली ही आ पाती है।

 सबसे बड़ सवाल है परिसीमन से बढ़ती परेशानी - जनसंख्या के आधार पर होने वाले परिसीमन से मैदानी इलाकों में विधानसभा सीटों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे मैदान और पहाड़ में खाई लगातार बढ़ती जा रही है, पहाड़ पहले से ही विकास से कोसो दूर हैं, अब मैदान में सीटों की संख्या बढ़ने के बाद सभी सियासी दलों का रुझान मैदानी सीटों को लेकर ही होता है, यही स्थिति रही तो 2050 तक मैदान में 70 में से 50 सीटे होंगी, जबकि पहाड़ में महज 20 सीटें रह जाएंगी, ऐसे में एक और आंदोलन होने की ज़मीन तैयार हो रही है।

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

सड़क, हादसे और संवेदनहीनता

भारत में सड़क हादसे एक गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं।  कल दिल्ली में बेदर्द दिल्ली की जो तस्वीर सामने आई वो मानवता को शर्मसार करने वाली थी। सड़क पर घायल पड़े व्यक्ति को किसी ने अस्पताल नही पहुंचाया। टक्कर मारने वाले से लेकर वहां से गुजरते राहगीरों ने तक जहमत नही उठाई। एक रिक्शे वाला रूका मगर मोबाइल चुराकर चलता बना। यह सबकुछ एक सीसीटीवी में कैद हो गया। यह भी तब जब सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार तक सड़क पर पड़े घायलों की मदद के लिए निर्देश दे चुकी है। एक पर के लिए किसी ने नही सोचा का घायल पड़ व्यक्ति किसी का बेटा पति या पिता होगा। आखिरकार ज्यादा खून बहने से उसकी मौत हो गई। इन तस्वीरों ने पूरे भारत को हिला दिया। हाल ही में सरकार ने मोटर वेहिकल एक्ट में संशोधन कर हिट एन रन केस में मुआवजा 25 हजार से बढ़ाकर 2 लाख कर दिया है और सड़क हादसों में जान गंवाने वालों को 10 लाख का मुआवजा देने की बात कही है। भारत में हर साल 5 लाख सड़क हादसों में 1.5 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं।  भारत में हर 1 मिनट में सड़क हादसा होता है। हर 1 घंटे में 18 मौत हो जाती है।   इस लिहाज़ से दुनिया में सड़क हादसों में सबसे ज्यादा लोग भारत में मारे जाते हैं। जबकि भारत में दुनिया के सिर्फ 1 फीसदी वाहन हैं। 10 फीसदी सड़क हादसे होते है और 6 प्रतिशत मौंते हो जाती हैं। इनमें 78.7 प्रतिशत हादसे ड्राइवर की गलती से होते हैं। भारत में 2011 में 136834 मौतें जबकि 2012 में 139091 मौतें हुई। 2015 में यह आंकड़ा बढ़कर 1.5 लाख तक पहुंच गया। यानि तमाम उपायों के बावजूद भारत में सड़क में होने वाली मौतें कम होने के बजाय बढ़ रही हैं...मसलन जिस दिन सड़क हादसे की वजह से केन्द्रीय  मंत्री गोपीनाथ मुंडे की मौत हुई थी उस दिन सड़क हादसों में कुल 400 लोग मारे गए थे। बीते 10 साल में या तो 55 लाख लोग गंभीर रूप से घायल हो गए या विकलांग हो गए। हादसो पर अगर गौर करें तो सबसे ज्यादा 23.2 प्रतिशत हादसे दुपहिया वाहन से होते हैं।  19.2 प्रतिशत हादसे ट्रकों से होते हैं।  नेशनल हाइवे में  30.1 प्रतिशत हादसे होते हैं जिसमें  37.1 लोगों की मौत हो जाती है।  स्टेट हाइवे   24.6 प्रतिशत हादसे  में 27.4 प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है। हादसो में 51.9  पीड़ित 25 से 65 साल के होते हैं जबकि 30.3 प्रतिशत हादसों में पीड़ित 15 से 29 साल के बीच के होते हैं। 15 प्रतिशत हादसों में पीड़ित महिलाऐं होती हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि भारत में 5 से 20 प्रतिशत हादसे की वजह शराब पीकर वाहन चलाना है। सड़क दुर्घटना  से केवल जनहानि का नुकसान नही बल्कि सालाना 3 लाख करोड़ का नुकसान या 3 प्रतिशत जीडीपी का सालाना नुकसान होता है। हमारे देश में सड़क हादसों को लेकर आमतौर पर जितनी संवेदनशीलता दिखनी चाहिए उतनी दिखती नहीं..एक अनुमान के मुताबिक सड़क हादसों में 50% लोगों की मौत सिर्फ इसलिए हो जाती है क्योंकि उन्हें वक्त पर अस्पताल नहीं पहुंचाया गया । सेव लाइफ फांउडेशन के 2013 में हुए सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ कि 74 फीसदी भारतीय  रोड एक्सीडेंट विक्टिम की मदद करने के लिये आगे नहीं आते। इनमें से 88% राहगीर पुलिस की पूछताछ और कोर्ट कचहरी के  चक्कर से बचने के  लिए घायलों को  अस्पताल नहीं ले जाते हैं...सर्वे के मुताबिक दिल्ली में एक्सीडेंट की सूरत में 96% लोग मदद करने आगे नहीं आते...जबकि मुंबई में करीब 90% लोग रोड एक्सीडेंट की मदद करने को तैयार नहीं होते...हैदराबाद में करीब 68% जबकि कोलकाता में करीब 59 फीसदी लोगों के मदद ना करने की बात सामने आई थी...बहरहाल सरकार सड़क हादसों में अगले 5 साल में 50 फीसदी की कमी लाना चाहती है। मगर देखना होगा क्या उसकी सोच जमीन पर उतर पाती है।



शनिवार, 6 अगस्त 2016

जीएसटी में आगे क्या!

सब जानना चाहते हैं कि जीएसटी में अब क्या होगा। 122 संविधान संशोधन विधेयक राज्य सभा से पारित हो गया। अब संशोधनों को लोकसभा से पारित करना होगा। इसके बाद 16 राज्यों को इसे रैटीफाई करना होगा। इसके बाद जीएसटी काउंसिल का गठन होगा जिसमें केन्द्र और राज्यों के प्रतिनिधि होंगे। इसमें फैसले के लिए दो तिहाई वोट राज्यों के पास होंगे तो  एक तिहाई वोट केन्द्र के पास। जीएसटी काउंसिल तीन मसौदों पर चर्चा करेगी।  ये हैं सीजीएसटी, एसजीएटी और आईजीएसटी। सेंटर जीएसटी स्टेट जीएसटी और इंटर स्टेट जीएसटी। पहला और तीसरा केन्द्र से जुड़ा और दूसरा राज्यों से  जुड़ा मसौदा है।  इसके बाद दो विधेयकों यानि सीजीएसटी और आईजीएसटी  को केन्द्र से मंजूरी और एसजीएचटी को राज्यों की मंजूरी चाहिए। सबसे बड़ी चुनौति है क्या 1 अप्रैल 2017 से सरकार इसे लागू कर पाएगी। क्योंकि इसके लिए आईटी इनफ्रास्ट्रक्चर के साथ बाकी तैयारी भी दुरूस्त करनीं होंगी।

समझिए जीएसटी का तर्कशास्त्र!

जीएसटी लाने के पीछे क्या तर्क है!

टैक्स पर टैक्स से राहत!
जीएसटी टैक्स के ऊपर टैक्स से राहत देगा। अभी हम अलग अलग 17 तरह के टैक्स देते हैं। इस कानून के बाद एक बार में सिर्फ डेस्टिनेशन कर देना होगा।

देश एक बाजार बन जाएगा !
आज हर राज्य की अपने टैक्स रेट हैं। मसलन दिल्ली, हरियाणा यूपी और उत्तराखंड में टैक्स की रेट अलग अलग है। इससे वस्तु और सेवा के दरों में भारी अंतर है।

महंगाई कम होगी!
 आज 80 फीसदी गुड्स में 27 फीसदी के आसपास टैक्स लगता है। इसमें केन्द्र एक्साइज के तौर पर 12.5 फीसदी और राज्य वैट के तौर पर 14.5 फीसदी लगाते हैं। अगर वैट का स्टैंर्ड रेट 18 फीसदी तय होगा तो सामान की कीमत कम हो जाएगी।

व्यापार करना आसान होगा!
आज नया काम शुरू करने से व्यापारी अलग अलग टैक्सों के बारे में सोचकर ही खबरा जाता है।  इसके बारे में हिसाब किताब रखना भी उसके लिए मुश्किल और खर्चिला होता है । यूनिफार्म रेट होने से उसे आसानी होगी।

विकास दर में 1.5 फीसदी का इज़ाफा होगा!
विशेषज्ञों के मुताबिक जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स कॉम्पलाइंस बढ़ेगा जिससे राजस्व बढेगा। लोग टैक्स की चोरी नही कर पाएेंगे।

मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में बदलाव आएगा!
भारत की विकास और रोजगार यात्रा में ये क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत में एस क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 15 फीसदी के आसपास है जबकि चीन में दुगना। ऐसे में जीएसटी लागू होने के बाद
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर बढ़ेगा तो अर्थव्यवस्था बढ़ेगी अर्थव्यवस्था बढ़ेगी तो

टैक्स  चोरी रूकेगी!
टैक्स चोर सावधान हो जाऐं। जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स छुपाना आसान नही होगा। किसी न किसी चरण में कर चोरी पकड़ी जाएगी। दूसरा टैक्स की दर कम होने से कोई कर चोरी नही करेगा।

टाउनहाल में प्रधानमंत्री से 9 सवाल!

गु़ड गवर्नेंस से क्या अभिप्राय है?
बढ़ती विकास दर का फायदा आम जन तक कब पहुंचेगा?
बेहतर स्वास्थ देने के लिए सरकार क्या कर रही है?
किसान का बेटा किसानी क्यों नही करना चाहता?
स्मार्ट शहर चर्चा में है मगर स्मार्ट गांव कब?
खादी को बढ़ावा देने के लिए सरकार क्या कर रही है?
विदेश यात्रा के चलते थकान नही लगती?
पर्यटन के लिए नया क्या  कर रहें हैं?
वालेयन्टर में क्या खूबी होनी चाहिए?
आखिर में प्रधानमंत्री ने कहा 80 फीसदी गौरक्षा दलों ने दुकानें खोल रखी हैं। राज्यों को इन पर नकेल कसनी चाहिए।

आजादी के 70 साल

जलाओं दिये पर, रहे ध्यान इतना।
अंधेरा घना कहीं, रह नही जाए।
गर्व हो रहा है। मै खुशी से फूला नही समा रहा हूं। आजादी की 70वी वर्षगांठ मना रहे हैं। इस पावन बेला पर देशवासियों को शुभकामनाऐं देना चाहता हूं। मगर कुछ सवाल मेरे मन में बिजली की तरह कौंध रहे है। जिसका जवाब न मिलता न कोई देने को तैयार दिखता। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी देश को सम्बोधित करते दिखेंगे। देशवासियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर संदेह नही है। फिर ऩए सपनों की उड़ान होगी। घोषणाओं की बरसात होगी। आखिर हो भी क्यों ना। आने वाले सालों में जनता के वोट का हिसाब किताब जो करना है। आज एक सवाल नीति निर्माताओं से । आजादी के 70 सालों में  क्यों आबादी का एक बडा हिस्सा आज भी गरीब है? भूखा है? मूलभूत सुविधाओं से वंचित है? शिक्षा स्वास्थ पानी बिजली सडक और आवास से क्यों वंचित है? जवाब है उनके पास। फिर कैसा आजादी का जश्न? ये क्या महान देशभक्त सेनानियों का अपमान नही। क्या इसी दिन के लिए उन्होने कुर्बानी दी थी। आजाद भारत की उनकी कल्पना का ये मखौल है। देश में 30 करोड जनता आज भी गरीब है। 40 करोड लोग असंगठित क्षेत्र से आते है। 77 फीसदी आबादी की हैसियत एक दिन में 20 रूपये से अधिक खर्च करने की नही है। 41 फीसदी किसान विकल्प मिलने पर किसानी छोडना चाहते है। 3 लाख ज्यादा किसान  हालात से हार मानकर आत्महत्या कर चुके है। 42 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार तो 69 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। 1 करोड 12 लाख  बाल मजदूर है। बेरोजगारी चरम पर है। आधी आबादी खुले में शौच के लिए जाती है। आबादी के बडे हिस्से के पास पीने का साफ पानी नही है। भ्रष्टाचार ने पूरे देश को अपनी गिरफ़्त में ले रखा है। महंगाई आम आदमी के थाली से निवाला छीन रही है। आतंकवाद, नक्सलवाद और उग्रवाद आज भी आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। फिर भी आजादी का जश्न । कोरी घोषणाऐं। झूठे आश्वासन। देश की तस्वीर   तकदीर बदलने का सब्जबाग। विकास का फायदा हर व्यक्ति तक पहुचाने का झूठा वादा। मगर देश बदलने की जिद का स्वांग भरने में क्या जाता है। अच्छे दिन लाऐंगे ये कहने में क्या जाता है। कभी तो बदलेगी मुल्क की तस्वीर। सनद रहे। ये तभी संभव है जब हम बदलेंगे। अधिकारों के लिए चिल्लाने के बजाय जिम्मेदारी से काम करेंगे। देश के हालत सरकारें नही बदलती? जनता बदलती है। देश स्मार्ट तब बनता है जब जनता स्मार्ट होती है। इसलिए हम सब को देश के विकास के यज्ञ में आहूति देनी होगी। कवि की इन पंक्तियों के साथ लेखनी को विराम।
 गहरा जाता है अंधेरा, हर रात निगल जाती एक सुनहरा सवेरा।
फिर भी मुझे सृजन पर विश्वास है, एक नई सुबह की मुझे तलाश है।
जय हिन्द