गुरुवार, 8 अगस्त 2013

भारत में अल्पसंख्यक

2001 की जनगणना के मुताबिक
कुल अल्पसंख्यक  18.4 फीसदी
मुस्लिम    13.4 फीसदी
ईसाई     2.3 फीसदी
सिख     1.9 फीसदी
बोैद्ध      0.8 फीसदी
फारसी   .007 फीसदी

अल्पसंख्यकों की तालीम और तरक्की की बातें कोई नई नहीं हैं। सरकार देना चाहती है रहने के लिए आशियाना, पीने के पानी, तालीम के
लिए स्कूल, सेहत के लिए बेहतर इंतजाम मगर क्या नतीजे कुछ और कहानी बयंा करते हैं।
क्वाटरनी पीएमओ मानीटर करता है।
90 अल्पसंख्यक जिलों के कायाकल्प ही बात कितनी सही

                                   लक्ष्य       पूर्ति                अब तक 30.12.2011
इंदिरा आवास योजना               2,97,162       175008
हैंडपंप                           14000         1500
स्वास्थ्य उप केन्द्र प्राथमिक प्रसव
उपचार केन््रद खुलने थे             2498          खुले 1623
आंगनबाड़ी                       18970          20 खुले
स्कूल भवन                       689            334 खुले

बजट 2012-12

केन््रदीय योजनाओं का क्या है हाल
प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम
समान अवसर आयोग जोओएम इसमें फैसला नही ले पाया।

सवाल जो महत्वपूर्ण हैं।
मुसलमानों की शैक्षिक सामाजिक और आार्थक स्थिति के बारे में आप क्या कहेंगे।
अल्पसंख्यकों को ओबीसी में शामिल कर मिले आरक्षण
केरल कर्नाटक और तमिलनाडू में यह व्यवस्था 15 साल से लागू है।
तमिलनाडू का ओबीसी कोटा 50 फीसदी
केरल का 40 फीसदी
कर्नाटक 32 फीसदी
पश्चिम बंगाल का 7 फीसदी दलित ओबीसी आदिवासी को 35 फीसदी आरक्षण
     
अल्पसंख्यकों क विकास जरूरी
क्या ओबीसी कोटे में से 4.5 फीसदी आरक्षण मुसमानेां को मिलना चहिए।
अल्पसंख्यक मंत्रालय 29 जनवरी 2009 को अस्तित्व में आया।
5 धर्म के लोग आते हैं। मुस्लिम इसाई सिख बौद्ध और फारसी
राष्टीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 के तहत नोटीफाइट किया गया है।
मंत्रालय का काम इस वर्ग को शिक्षा रोजगार और उनके रहन सहन को अच्छा करना है।

मार्च 2008 में मल्टी सेक्टोरल डेवलेपमेंट प्रोग्राम माइनोरिटी कान्सटरेशन जिलों में शुरू किया गया। फिलहाल इसमें 90 जिले शामिल हैं।
2001 की जनगणना के अनुसार जो जिले सामाजिक आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं वह राष्टीय औसत से भी नीचे हैं।

नेशनल माइनोरिटी डेवलेपमेंट एण्ड फाइनेंस कारपोरेशन
सवाल क्यों मुसलमानों को सिर्फ एक वोट बैंक के तौर पर देखा जाता है।
स्टेट माइनोरीटी कमीशन क्या कर रहे है। इन्हे इस वर्ग के विकास के लिए कए विस्तृत योजना तैयार करनी चाहिए।
कई राज्येां में माइनोरीटी कमीशन का गठन नही हुआ है। जहां हुआ है वहंा लौजिस्टिक सपोर्ट नही मिला पाता। क्यों इनका रोल बहुत अहम है।
संवधिान के अनुच्छेद 25 में शामिल

अल्पसंख्यकों के लिए योजनाऐं
प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम
मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन को सहायता
नेशनल माइनोरीटी डेवलेपमेंट एण्ड फाइनेंस कारपोरेशन
फ्री कोचिंग एण्ड एलाइड स्कीम
मेरीट कम मीन्स
प्री मैटिक
पोस्ट मैटक स्कालरशिप स्कीम
मल्ट सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम 90 जिलों में लागू
अल्पसंख्यक महिलओं में नेतृव्त क्षमता विकसित करने के लिए योजना
राज्यों के वक्फ बोर्ड के रिकार्ड का कम्पयूटराइजेशन
नेशनल फैलोशिप
यह सारे कार्यक्रम अल्पसंख्यकों कि विकास के लिए चलाए जाते है।

देश में 6 राज्य ऐसे है जहां मुस्लिमों की आबादी मुस्लिमों के राष्टीय औसत से ज्यादा है।
असम    30.9 फीसदी
पश्चिम बंगाल   25.2 फीसदी
केरल   24.6 फीसदी
झारखंड 13.8 फीसदी
यूपी में 3 करोड़ 70 लाख, पश्चिम बंगाल में 2 करोड़ 20 लाख बिहार 1 करोड़ 37 लाख।

ईसाई समुदाय की राज्यों में स्थिति
नागालेण्ड में 90 फीसदी
मीजोरम में 87 फीसदी
मेगालय  70.3 फीसदी

बौद्ध समुदाय की राज्यों में स्थिति
लददाक सिक्कम पूर्वोत्तर राज्यों में इन्हें संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।

पिछले पांच सालों में अल्पसंख्यकों के सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री 15 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत मानव
संसाधन विकास मंत्रालय, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय आवास एंव गरीबी उपशमन, महिला एवं बाल विकास, ग्रामीण विकास मंत्रालयों ने अपनी
योजनाओं में अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़ी येाजना के लिए अलग से आवंटन किया है।

संविधान अनुसूचित जाति आदेश 1950 के पैरा चार में अनूसूचित जाति को हिन्दुओं तक सीमित रखा गया था। बाद में उसे सिखों और बौद्ध के
लिए खोल दिया गया। मुस्लिम जैन फारसी इसाई उससे अलग है। इस आदेश को खारिज करने की मांग लंबे समय से चल रही है।
1950 के प्रसिडेंशियल आदेश में संशोधन किया जाए।

मल्टी सेक्टोरल डेवलेपमेंट प्रोग्राम
25 फीसदी मुस्लिम आबादी की सीमा को घटाया जाए। अकेल 90 में से 21 जिले यूपी में हैं।
क्या मापदंड अपनाए गए
शैक्षिक दर
महिला शैक्षिक दर
वर्क पार्टीशिपेशन रेट
फीमेल वर्क पार्टीशिपेशन रेट
बुनियादी सुविधओं
कितने प्रतिशत घरों की पक्की दिवारें हैं।
कितने प्रतिशन घरों में पीने का साफ पानी है।
कितने प्रतिशत घरों में बिजली है।
कितने प्रतिशत घरों में शौचालय है।
एमएसडीपी के तहम डिस्टीक्ट प्लान एप्रूव कराना पड़ता है। तीन साल के बाद 28 जिले इसे अप्रूव नही करा पाऐं हैं। अगर कराया है तो पारश्यैली।
स्टेट लेवल मानीटरींग समिति
2 एमपी लोकसभा के
1 एमपी राज्य सभा का
2 एमएलऐ  राज्यों से
हर तीसरे महिने में मीटिंग होनी चाहिए। साल में भी नही हुई यहां तक की मिजोरम और मघ्यप्रदेश में पिछले 4 साल में एक भी नही हुई।
जहां हुई वहां एमपी साहब नही पहुंचे।

अल्पसंख्यक आयोग को कानूनी दर्जा मिले यह महज सिफारिशी संस्थान बनकर न रहे जाऐं।
फातमी समिति रिपोर्ट
देश का संविधान धर्म आधारित आरक्षण की इजाज़त नही देता।
सच्चर समिति की रिपोट सदन में पेश नही हुई क्योकिं इसे इसका गठन कमीशन आफ इंक्वारी एक्ट के तहत नही हुआ था। इन्हें देश की
सैन्य शक्ति में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की इज़ाजत नही मिली।

सच्चर समिति
समान अवसर आयोग बने
पश्चिम बंगाल     जनसंख्या 25 फीसदी          सरकारी नौकरी में हिस्सेदारी        1.2 फीसदी
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है की 33 साल में कामरेडों का राज इन हालातों को क्यों नही सुधार पाया।
केरल
गुजरात   की आबादी में हिस्सा  9.1 फीसदी       सरकारी नौकरी में 5.4 फीसदी

24 फीसदी मुसलमानों के बैंक खाते
प्रोओरिटी सेक्टर लेंडिंग
डाप आउट रेट ज्यादा
निजि उद्यम शुरू करने के लिए बैंक से कर्ज नही मिल पाता।
रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट
मुस्लिम  10 फीसदी
दूसरे अल्पसंख्यकों को 5 फीसदी आरक्षण
दलित मुस्लिम और इसाइयों को अनुसूचित जाति मानने की सलाह

1980 में डाॅ गोपल सिंह की अध्यक्षता में 1 हाई लेवल समिति बनाई गई।
इसी समिति के सिफारिशों के आधार पर प्रधानमंत्री 15 सूत्रीय कार्यक्रमों की शुरूआत की गई।

केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं के वित्तिय और फीजिकल अचिवमेंट कोई गुलाबी तस्वीर पेश नही करती।
इफैक्टिव इंस्टीटयूसेंनिल्जम मैकेरिज्म
स्टाफ की कमी।
योजनओं को लेकर जागरूकता
पंचायतों का कोई निश्चित रोल नही है।
धर्मातरित दलितों के मुस्लिम आरक्षण का दर्जा दिया जाए।

मेरिट कम मिन्स स्कालर्शिप येाजना
बजट 140 करोड बीई स्टेज में
खर्च 115.71 करोड़
टारगेट छात्रृवृत्ति का 55000 मिले 41621।

सोमवार, 5 अगस्त 2013

किसकी संसद

संसद सत्र का दूसरा दिन। रक्षा मंत्री उत्तराखंड में आई महाप्रलय और उसके बाद भारत सरकार के बचाव और पुनर्वास से जुड़े कार्यो से जुड़ा एक वकतव्य सदन में देंगे। भोजन के अधिकार विधेयक पर चर्चा की संभावना है। देखिए कितना दिलचस्प है कि 70 के दशक से हमने गरीबी हटाओं योजना का सिंहनाथ किया। आज 4 दशक बात भी हम दो तिहाई आबादी को खाद्य सुरक्षा सस्ता चावल, गेंहू और मोटा अनाज क्रमशः 3, 2 और 1 रूपये में दे रहे हैं। गरीबी का जब गांव में 27.20 पैसे और शहर में 32.30 पैसे के आधार पर आंकलन किया जा रहा है तब यह हाल है। वाधवा समिति की सिफारिश यानि की 100 रूपये प्रतिदिन को अगर मान लिया जाए तो क्या होगा? इससे भी ज्यादा जरूरी भारत सरकार बिना तैयारी के यह आर्डिनेंस लाई है। मौजूदा सावर्जनिक वितरण प्रणाली के सहारे इसे लागू करना जनता की गाड़ी कमाई को बर्बाद करना होगा। क्या सरकार के पास इन पांचसवालों का कोई जवाब है? पहला कौन गरीब और कितने गरीब? दूसरा अनाज उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जा रहा हैं? तीसरा अनाज के रखरखाव की तैयारियां क्या है? चैथा भ्रष्ट वितरण प्रणाली में क्या आमूलचूल परिवर्तन क्या कर लिया गया है? पांचवा और आखिरी अर्थव्यवस्था एक ऐसे मुहाने में खड़ी है की बीते 10 सालों में सबसे कम विकास दर 5 फीसदी के आसपास हम हासिल कर पाऐंगे? ऐसे स्थिति में 1 लाख करोड़ से सालाना ज्यादा का प्रावधान कहां से होगा? अब आप तय करिये, यह फूड सिक्यूरीटी बिल है या वोट सिक्यूरीटी बिल?

शर्म करें सांसद

संसद में सांसदों का रवैया अत्यंत शर्मनाक है। चंद सांसद अपने मुददों को लेकर पूरे संसद को हंगामें का मैदान बना देते हैं। किसी को तेलांगाना चाहिए, कोई बोडोलेंड के लिए बेताब है तो कोई गोरखालैंड का दिवाना है। क्या वाकई मुददों को लेकर सांसद गंभीर है या सिर्फ मीडिया में सूर्खिया बटोरने का यह सबसे आसान तरीका है। क्योंकि खबरों के अकाल में मीडिया के लिए यह भी बे्रकिंग न्यूज है। मगर बड़े मुददे हमेशा इस आवाज़ में दब जाते है। कई बार तो हंगामा सरकार प्रायोजित होता है। कभी संबंधित मंत्री के कहने पर सांसद प्रश्नकाल में पहुंचते नही हैं। क्योकिं मंत्रीजी जवाब के साथ तैयार नही हैं। हर साल बैठकों में संसद 100 दिन चलाने के लिए खूब चर्चा होती है। सत्र से पहले आल पार्टी मीटिंग इसी कड़ी का हिस्सा है। संसद चले या न चले माननीयों का वेतन भत्ता उनके खातों में जरूर पहुंच जाता है। फिर कहते है की सुप्रीम कोर्ट संसद की सर्वोच्चता को कमजोर कर रहा है। मेरा सवाल यह है की राजनीतिक दल सूचना के अधिकार दायरे के बाहर रहने पर एकमत हो सकते है। राजनीति में अपराधीकरण रोकने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए तैयार हैं। इन सबसे ज्यादा अपना वेतन और भत्तें बढ़ाने के लिए इनके बीच में मधुर संबंध बन जाते हैं। मगर संसद चलाने को लेकर इनके बीच में आमराय नही बन पाती। इनके हाथ में देश की बागडौर कितनी सुरक्षित है फैसला आप कर लीजिए।

रविवार, 4 अगस्त 2013

मानसून सत्र

संसद का सत्र आज से शुरू हो रहा हैं। 5 आर्डिनेंस को संसद में चर्चा के बाद पारित होना है। जिसमें महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा कानून। साथ ही अर्थव्यवस्था की स्थिति खासकर रूपये का अवमूल्यन, उत्तराखंड में आई त्रासदी, आंतरिक सुरक्षा जैसे मुददे अहम होंगे। प्रश्नकाल चले यह भाषण हर कोई देता है मगर हंगामें की भेंट हमेशा प्रश्नकाल ही चढ़ता है। इससे सबसे ज्यादा खुश वह मंत्री होते हैं जिनको सवालों से जूझना नही पड़ता। निराश वो सांसद जिन्हें सवाल पूछने का मौका नही मिलता। इस बार राजनीतिक दल दो बातों के लेकर एकमत है। सूचना के अधिकार कानून में संशोधन करने ताकि राष्ट्रीय दल आरटीआई के दायरे से बाहर रहें और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951में संशोधन ताकि आपराधियों के लिए संसद और विधानसभा खैरख्वाह बनी रहे। दुर्भाग्य देखिए इसका विरोध करने की हिम्मत आज किसी दल में नही। इन राजनीतिक दलों से हम अपने देश के उज्जवल भविष्य की उम्मीद लगाऐं बैठे हैं। जमीन अधिग्रहण कानून जल्द पारित हो क्योंकि हमारे देश में कानून 1894 का है। इन सबसे ज्यादा जरूरी आज नजर इस बात पर भी होगी की निलंबित ईमानदार आइएस दुर्गा शक्ति नागपाल पर सोनिया गांधी, मीरा कुमार और सुषमा स्वाराज क्या बोलतीहै। अगर स्पीकर चाहें तो इस पर अपनी टिप्पणी जरूर दे सकती है। स्पीकर की टिपप्णी बहुत मायने रखती है। यह बात दीगर है कि वह कुछ कहने का साहस जुटा पाऐंगी ? क्योंकि महिला प्रेम दर्शाने का इससे बड़ा मौका फिर नही मिलने वाला। बाकि की बात करें तो यूपी को लेकर बसपा हल्ला करेगी। सपा हंगामा करंेगी। आंध्र के सांसद अलग ड्रामा करेंगे। जसवंत सिंह भी मजबूरीवश अलग गोरखालैंड की मांग करेंगे? अंततः राजनीतिक दलों के स्वार्थ की भेंट संसद सत्रा का पहला दिन चढ़ जाएगा। आखिर में बस एक सवाल। जब संसद को चलाना नही है तो जनता के गाड़ी कमाई की यह बबादी क्यों। क्योंकि संसद चलाने की कार्यवाही में प्रतिमिनट खर्चा 2.5 लाख रूपये है।