रविवार, 28 फ़रवरी 2010

बजटवाणी भाग 1









 बजट 2010- 2011 आपके सामने है। साल भर का लेखा जोखे का हिसाब किताब सरकार ने आपके सामने रख दिया है। साथ ही  अगले एक साल का विकास यात्रा की दशा दिशा भी  रेखांकित कर दी है। किसी ने सराहा, किसी ने नकाफी बताया, किसी ने सन्तुलित बजट की संज्ञा दी तो किसी ने कहा बजट असन्तुलित है और दूरदर्शिता का अभाव स्पश्ट दिखाई दे रहा है।  ऐसा नही कह सकते की जितने मुंह उतनी बातें। सबने अपने बयान के पीछे कई तरह के तर्क दिये है जिसपर बहस की गुंजाइश है और बहस होनी चाहिए।
कुल मिलाकार इस बजटनामें को चार पहलू से समझा जा सकता है। पहला यह बजट ऐसे समय पर आया है जब अर्थव्यवस्था वैिश्वक आर्थिक संकट से बाहर निकलकर वापस पटरी पर आने का संकेत दे रही है। आईआईपी के आंकडे यह जतलाने के लिए काफी है। केवल दिसम्बर माह में मैनूफक्कचरिंग क्षेत्र में 18 प्रतिशत तेजी देखी गई। जों पिछले तीन दशकों में सबसे ज्यादा है। यही कारण है कि सीएसओ यानि केन्द्रीय सांिख्यकी संगठन ने जो इस वशZ के लिए विकास दर का अनुमान लगाया है वह 7.2 फीसदी है। जो कि पिछले वशZ 6.7 फीसदी रही। इस पर भी बहस हो सकती है कि यह जीडीपी किस चिड़िया का नाम है। और क्या गांधीजी के दरिद्र नरायाण इस भाशा को समझते है। बहस की गुंजाइश यहां भी है की वाकई इसके बडने से खुशहाली आती है और अगर यह घटती है तो मुिश्कल पैदा होती है। कुछ तो एक कदम आगे बडकर कहते है कि कब तक जीडीपी के आंकडों को छाती से चीपकाकर गरीबों के साथ खिलवाड करते रहोगे। बात में दम तो है। जिस देश में 77 फीसदी आबादी प्रतिदिन 20रूपये कम आमदनी में जीने को मजबूर है वहां ग्रोथ ग्रोथ चिल्लाने से किसका भला होगा। ऐसी ग्रोथ जिसका सबसे बडा दुर्भाग्य यह है कि कृिश विकास दर नाकारात्मक है। 58.1 फीसदी आबादी जिसपर निर्भर करती है और जीडीपी में इसका योगदान 17.1 फीसदी है। यानि ग्रोथ ही हवा यही से निकलने लगी है। अच्छी बात यह है कि देश के वित्त मन्त्री इस बात को कहते है ही ऐसी विकास दर कोई फायदा नही जिसका फायदा हर किसी को नही पहुंचे। सुनने में अच्छा वकतव्य है मगर अमल में आयेगा इस पर संशय है। ऐसा में इसिलिए भी कह रहा हूं कि  62 साल बाद भी आज देश गरीबी के आंकडों में उलझा हुआ है और कमिटि कमिटि का खेल जोरों पर है। दूसरा पहलू यह है कि महंगाई बेलगाम है। गरीब की थाली का भार कितना होगा आप सबको इसका आभास है। सरकार ने अपने तरकश में रखे हर तीर को चलाकर आजमा लिया है मगर महंगाई है कि कम होने का नाम ही नही ले रही है। खैर मरने दो गरीब को जडीपी ग्रोथ तो अच्छी है न। तीसरा राजकोशीय प्रबंधन जिसके चरमराने से अर्थव्यवस्था को कई तरह के रोग लग सकते है उसका इलाज जरूरी था। जैसे ब्याज़ दर का बड़ना आदि। लिहाजा सरकार राजकोशीय प्रबंधन की तरफ लौटने की तैयारी कर चुकी है। इसमें परामशZदाता की भूमिका में है 13 वित्त आयोग जिसने भारत सरकार को यह परामशZ दिया है कि इस बार राजकोशीय प्रबंधन की ओर लौटने का आधार राजस्व की प्राप्तियां नही बल्कि खर्च सुधार पर खास ध्यान दिया जाए। चौथा पहलू यह था कि अर्थव्यवस्था को वैिश्वक संकट से अभारने के लिए सरकार ने तीन राहत पैकेज दिसम्बर जनवरी और फरवरी में दिये थे क्या वो वापस होंगे। ‘ाुरूआती अनुमान के मुताबिक यहां भी हो गई और सरकार ने केन्द्रीय उत्पाद कर 2 फीसदी बडा दिया।  जबकि सेवा कर में कोई बदलाव नही किया गया बस 16 नई सेवाओं को इसके दायरे में ले आया गया। दूसरी बात निर्यात से जुडे हुए जो क्षेत्र अभी भी जूझ रहे है उन्हे राहत जारी रहेगी। 


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