बुधवार, 18 मई 2011

बाघ की कथा-व्यथा। सफर का पहला दिन


यह कहानी है देश के राष्ट्रीय पशु बाघ की। यह कहानी है बाघ की उस दहाड़ की, जो पर्यावरण संतुलन के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन यह दहाड़ अब रोमांचित ही नहीं करती, बल्कि खौफ भी पैदा करती है। यह कहानी है उस खूबसूरत वन्य जीव की, जो अब इंसान का जानी-दुश्मन बनता जा रहा है। हालांकि उसके आदमखोर बनने की वजह भी खुद आदमी ही है। बाघों की गणना के तरीके क्या हैं? बाघ आदमखोर क्यों बनते जा रहे हैं? और काॅर्वेट नेशनल पार्क ने बाघों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए हैं? इन्हीं चंद सवालों के जवाब तलाशने हम पहुंचे कार्बेट नेशनल पार्क। बाघों की तलाश का यह सफर बेहद रोमांचित करने वाला था। हमें गेट पर ही बता दिया गया था कि गाड़ी से नीचे उतरने की सख्त मनाही है। यह हिदायत इस बात को समझने के लिए काफी थी कि आदमी और बाघ के रिश्तों में अब कितनी कड़वाहट आ चुकी है। पहले दिन हम निकल पड़े ढिकाला के लिए। सुनसान रास्तों पर हम चैकन्नी निगाहों से आगे बढ़ रहे थे। कुछ दूर चलने पर हमारी नजर पड़ी फारेस्ट गार्ड पर। हमने उससे बाघ के बारे में जानने की कोशिश की। रास्ते भर किस्म-किस्म के वन्य जीव दिख रहे थे। मगर हमारी मंजिल का कोई अता-पता नहीं था। इन वन्य जीवों का इस तरह बेखौफ विचरना इस बात का संकेत था कि आसपास कोई बाघ नहीं है। आखिरकार पूरे चार घण्टे का सफर तय करके हम पहुंचे ढिकाला। अब तक शाम के सात बज चुके थे। जंगल में घूमने का समय खत्म हो चुका था। लिहाजा हम अगले दिन की रणनीति बनाने में जुट गए।


1 टिप्पणी:

  1. baaagh aur insaan ke sambandh to pahale bhi dostana nhi the ab bhi nhi hain.fark ye hain ki tab uske paas aur bhi kai chaare the ab insaan uske lie ultimate aur one and only option banane par tula hai.

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