बुधवार, 22 अप्रैल 2015

किसान की मौत का जिम्मेदार कौन?

जंतर मंतर में गजेन्द्र ने अपनी आवाज़ को खामोश कर लिया। मगर सवाल अब भी वही है कि उसकी मौत का जिम्मेदार कौन है? रैली के आयोजनकर्ता अर्थात आम आदमी पार्टी, या वहां मौजूद दिल्ली पुलिस के जवान। हमेशा की तरह जांच बैठा दी जाती है। मैं वहां पर कल तकरीबन 3 घंटे रहा। इस दौरान कई प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत हुई। प्रथम दृष्टया दिल्ली पुलिस बेहद संवेदनहीन है। उसने किसान को बचाने की कोशिश नही की। दूसरा आम आदर्मी पार्टी के नताओं की भाषणबाजी जो इस घटनाक्रम के बाद भी जारी रही। वैसे भी इस हत्या के लिए जिम्मेदारी तो तय की जानी चाहिए। दिल्ली पुलिस की संवेदनहीनता का एक उदाहरण देखिए। उसके आला अधिकारी शाम 7ः20 मिनट पर पहुंचते है। 5 मिनट घटनास्थल को देखते हैं। इस दौरान एक बड़ा अधिकारी संसद मार्ग थाने में फोन कर कहता है। अरे भई एक एसआई की  यहां पर डयूटी लगा दो। पुलिस की मौजूदगी कमसे से कम दिखनी तो चाहिए। इससे बड़ा निक्कमापन क्या हो सकता है? आप नेताओं को  भाषण देने और मंच की प्रथम पंक्ति में बैठने का बड़ा शौक है। हमेशा कार्यकताओं से लैस पार्टी के कार्यकताओं ने गजेन्द्र को बचाने की जहमत क्यों नही उठाई? गजेन्द्र की मौत के बात भी भाषणबाजी का दौर क्यों चलता रहा? तीसरा बड़ा सवाल बीजेपी नेताओं से जो आप को जिम्मेदार  ठहरा रहें थे। गजेन्द्र राजस्थान से था। फसल बर्बाद होने के चलते बेहद हताशा था। तो सवाल बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार से भी पूछना चाहिए? प्रधानमंत्री को इस घटना से दुख पहुंचा। मगर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह यह बताने की हालात में नही होंगे कि आगे किसी और किसान को गजेन्द्र नही बनने देंगे। चुनावी वादे करना आसान है उसे निभाना उतना मुश्किल। मोदी जी के राज में भी हजारों किसान मौत को गले लगा चुके हैं। चैथा सवाल कांग्रेस के युवराज  राहुल गांधी से जो पार्टी किसान हितैषी होन का स्वांग भरती है। अगर ऐसा तो देश में 2004 से 2014 तक लाखों किसानों ने आत्महत्या क्यों ? सबसे ज्यादा आत्महत्याऐं महाराष्ट में विदर्भ के किसानों ने की? यहां राज्य में भी कांग्रेस एनसीपी गठबंधन की सरकार थी। देश के कृषि मंत्री शरद पवार थे। कभी राहुल गांधी ने यह पूछने की जहमत क्यों नही उठाई कि किसान इतने बड़े पैमाने पर आत्महत्या क्यों कर रहे है? सबसे बड़ी बात लोकसभा में हमारे कुल माननीयों में से 32 फीसदी सांसद खेती से ताल्लुख रखतें हैं? यानि उनका पेशा किसानी है। क्या संसद, सरकार और नीति निर्माता गजेन्द्र की मौत के कारणों का समाधान कर पाऐंगे? सोचिए कितना दुर्भाग्य है कि छोटी से छोटी वस्तु का बीमा हो जाता है मगर किसान की  फसल का बीमा नही हो सकता। कुल मिलाकर गजेन्द्र की मौत के लिए हम सब जिम्मेदार है। बंद करिए यह गंदी राजनीति। ऐसी नीतियां बनाइये ताकि कोई और किसान गजेन्द्र न बन पाए?

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