शनिवार, 5 नवंबर 2016

समाजवाद पर हावी परिवारवाद

हाथ मिलते ही दिल भी मिल जाते तो बात ही क्या थी...लेकिन ना ऐसा होता है और ना ऐसा हुआ...समाजवादी एकता का नारा बुलंद करने के लिए शिवपाल ने मजमा तो लगा लिया...लेकिन भीड़ का शोर अखिलेश-अखिलेश करने लगा तो मुलायम भी हैरान रह गए और शिवपाल भी। मंच से अखिलेश की शान में कसीदे पढ़ना अखिलेश समर्थक जावेद आब्दी को थोड़ा महंगा पड़ा। उन्हें धक्के देकर हटाया गया। कहा जा रहा है कि आब्दी बिना इजाजत मंच पर बोलने चले आए थे...लेकिन यही तो अखिलेश बढ़ते कद का दर्द है जो रह-रह कर शिवपाल की जुबां पर आ जाता है। कभी नसीहत की शक्ल में और कभी शिकवों के तौर पर टीस इतनी ही भर नहीं है। दर्द कहीं गहरा है। ये जंग तो वर्चस्व की है, जिसे शिवपाल हर हाल में बचाए रखना चाहते हैं...लेकिन अखिलेश के युवा साथी इस वर्तमान को भविष्य बनाने पर तुले हैं इसलिए शिवपाल खफा हैं, और ये बार-बार नजर भी आता है शिवपाल अखिलेश के लिए खून भी देंगे...लेकिन मांगने पर...शिवपाल अखिलेश के लिए कुर्सी भी छोड़ देंगे लेकिन कहने पर...बस यही कहने और मांगने का वो खेल है जिसके टकराव के चलते समाजवादी कुनबा बिखर रहा है..नहीं तो नेताजी की पार्टी में उनके सामने ही शिवपाल इशारों में ही सही लेकिन अखिलेश को विरासत और किस्मत का ताना तो ना मारते। मुलायम माने या ना मानें...कहे या ना कहें लेकिन घर का घमासान थामे नहीं थम रहा...युवा जोश...अखिलेश के होश की वजह है...तो शिवपाल के लिए चुभता तीर...लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या धरतीपुत्र चाचा-भतीजे के इस पावर गेम में सीज़फायर करा पाएंगे

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