रविवार, 26 मार्च 2017

क्या बदलेगा उत्तराखंड!

देवभूमि ने इस बार बीजेपी को  प्रचंड बहुमत दिया है । 46.5 फीसदी वोट के साथ 70 में से 57 सीटें बीजेपी की छोली में डाल दी। जब जनता इतना बड़ा जनादेश देती है तो कल्पना करिए उसकी अपेक्षाओं का ज्वार कितना बड़ा होगा। राज्य की तस्वीर और तकदीर बदलने की उसकी जिद का पूरा दरोमदार बीजेपी के ऊपर है।  दिसंबर 2000 में बना यह राज्य 16 वें साल में प्रवेश कर चुका है मगर राजनीतिक अस्थिरता , व्यक्तिगत महत्वकांक्षा और बढ़ते भ्रष्टाचार ने राज्य की विकास गति को न सिर्फ धीमा किया बल्कि विकास की यात्रा में बहुत पीछे कर दिया।  चुनाव के वक्त मुझे राज्य में भ्रमण करने का मौका मिला। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं की यह जनादेश न बीजेपी के लिए है न स्थानीय नेताओं के लिए। यह जनादेश सिर्फ और सिर्फ मोदी के नाम पर मिला है। लोग मानते हैं की मोदी इस राज्य को एक नई गति दे सकते हैं। बहरहाल नई सरकार के सामने चुनौतियां पुरानी है। मगर उसे इसका हल नई सोच के साथ निकालना होगा। 16 साल के इस राज्य के सामने 16 चुनौतियां हैं।
1----पलायन - एक रिपोर्ट के मुताबिक गांव में  2 लाख 80 हजार घर खाली हैं। 32 लाख आबादी आजिविका की तलाश में पलायन कर चुकी है। ऐसे में नेता बात तो रिवर्स पलायन की करते हैं अगर वर्तमान दर को भी थाम लें को बड़ी बात होगी।  गांव से पलायन लगातार जारी, हर साल आने वाली आपदा के बाद पलायन की दर बढ़ी, सुरक्षा की दृष्टि से अहम मुद्दा, सैकेंड डिफेंस लाइन मानी जाती है सीमावर्ती गांव की आबादी । ऐसे में इस मुददे का समाधान निकालना जरूरी है।
2----रोज़गार - बहुगुणा सरकार ने बेरोज़गारों के लिए भत्ता देने की योजना चलाई थी....लेकिन रावत सरकार ने बेरोज़गारी भत्ता देना बंद किया....हर साल 1 लाख नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन रोजगार पंजीकरण कार्यालय में रजिस्ट्रेशन करने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती गई। जरूरत के मुताबिक रोजगार नही मिला।
3----उद्योग - एनडी तिवारी सरकार में जिन सिडकुल की स्थापना हुई थी, रावत सरकार सिडकुल की संख्या बढ़ाने में नाकाम रही, पहाड़ में स्वरोज़गार के माध्यम बढ़ाने का दावा भी हवाई निकला, कोल्ड स्टोरेज नहीं होने से पहाड़ों में फलों के रखरखाव की व्यवस्था नहीं, पेड़ों में फल सड़ जाते हैं।
4----आपदा - आपदा को लेकर सरकार हर मोर्चे पर नाकाम, उत्तराखंड में लगातार बढ़ रही है दैवीय आपदा की घटनाएं, पीड़ितों को नहीं मिल पा रहा है मुआवजा, भारी बारिश की सूचना देने वाले डॉपलर रडार अभी तक नहीं लगाए गए, 2013 की आपदा के बाद केंद्र से मिले थे 2 डॉपलर रडार, नैनीताल और मसूरी में लगने थे, लेकिन जगह चिन्हित नहीं होने से ये रडार हिमाचल और जम्मू कश्मीर में लगाए गए।
5---विस्थापन - दैवीय आपदा और भूकंप की दृष्टि से चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी ज़िले के 350 से ज़्यादा गांव का होना है विस्थापन, एनडी तिवारी सरकार में इन गांव का हुआ था चिन्हीकरण, लेकिन अब तक एक भी गांव का नहीं हुआ पुनर्वास, बल्कि अब विस्थापित होने वाले गांव की संख्या 50 और बढ़ गई है ।
6----शराब नीति - आबकारी नीति को लेकर हर सरकार विपक्ष के निशाने पर होती है, पारदर्शी नीति नहीं बनाने का आरोप, उत्तराखंड में बिकने वाली डेनिस शराब को लेकर सीएम रावत पर गंभीर आरोप, विपक्ष डेनिस ब्रांड की शराब को सीएम के बेटे की फैक्ट्री मेड बताता है। जरूरत है शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की।
7----खनन नीति - 16 साल बाद भी खनन नीति पर सरकार एक राय नहीं बना पाई है, खनन नीति को लेकर सरकार पर सवाल खड़े होते आए हैं, हर साल सरकार को अवैध खनन के चलते हज़ारों करोड़ के राजस्व का लगता है चूना, हरीश रावत ने हाल ही में नव प्रभात की अध्यक्षता में मंत्रियों की एक कमिटी बनाई है, जो खनन नहीं, बल्कि चुगान नीति बनाएगी।
8-----ऊर्जा नीति - उत्तराखंड में ऊर्जा की अपार संभावना होने के बावजूद ऊर्जा उत्पादन के मामले में उत्तराखंड बहुत पीछे है, जो बांध बनाए भी गए हैं, उन पर सवाल उठते आए हैं, पर्यावरण विद् इन बांध को लगातार आ रही आपदा के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हैं, सरकार इस पर भी स्पष्ट नीति नहीं बना पाई है।
9---पर्यटन नीति - उत्तराखंड में ऊर्जा के बाद पर्यटन ही एक मात्र ऐसा क्षेत्र है, जो उत्तराखंड की आर्थिकी का मुख्य आधार है, पर्यटन व्यवसाय से सूबे के लाखों लोग परोक्ष और अपरोक्ष रुप से जुड़े हुए हैं, लेकिन सरकार अभी तक तीर्थाटन और पर्यटन में अंतर नहीं कर पाई है, जो पुराने पर्यटक केंद्र हैं, वहां रखरखाव का अभाव है, जबकि तीर्थाटन को ही सरकार पर्यटन के रुप में बढ़ावा देने में जुटी है,  मॉनसून के दौरान सड़कें बंद होने के चलते यात्रा चौपट हो जाती है ।
10---चारधाम यात्रा - रावत सरकार ने 12 महीने चारधाम यात्रा चलाने का ऐलान तो किया, लेकिन चारधाम यात्रा ही सुचारु रुप से चलाना सरकार के लिए टेढी खीर है, उत्तराखंड में तीर्थाटन की दृष्टि से कई धार्मिक स्थल है, जिनका सरकार प्रचार प्रसार तक नहीं कर पाई है, इसके अलावा हिमालय दर्शन और कुमाऊं दर्शन की योजना भी टांय-टांय फिस्स हो गई ।
11---स्वास्थ्य सुविधा - उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी से उतरी हुई हैं, डॉक्टर पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं हैं, तो मैदान के हॉस्पिटल में भी डॉक्टरों का टोटा है, दवाइयां और दूसरी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं, कुमाऊं के सबसे बड़े हॉस्पिटल सुशीला तिवारी में आए दिन लापरवाही के चलते मरीज़ों की मौत हो रही है, जिसको लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब भी मांगा है।
12---ट्रांसफर नीति - उत्तराखंड में तबादला नीति हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही है, खंड़ूडी सरकार में बनाई गई ट्रांसफर नीति को अब तक सबसे अच्छा बताया गया है, लेकिन कांग्रेस सरकार ने ट्रांसफर नीति को बदल दिया, ट्रांसफर नीति का सबसे बड़ा असर शिक्षा महकमे में होता है ।
12----ज़मीन नीति - उत्तराखंड बनने के बाद से भूमाफिया लगातार बढ़ते जा रहे हैं, मैदानी इलाकों में लैंड से जुड़े हुए आपराधिक मुकदमों का ग्राफ़ बढ़ता जा रहा है, बेनामी संपतियों के खुर्दबुर्द होने का सिलसिला जारी है, खंडूडी ने बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीद नीति बनाई थी, जिसके बाद भूमाफिया पर काफी हद तक लगाम लगी थी, लेकिन कांग्रेस सरकार में उस नीति को बदल दिया गया ।
13----स्मार्ट सिटी - देहरादून को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने में सरकार नाकाम रही, सरकार अभी तक ये भी तय नहीं कर पा रही है कि स्मार्ट सिटी के लिए कितने एकड़ ज़मीन की ज़रुरत पड़ेगी, पहले सरकार ने देहरादून विकासनगर के चाय बागान में स्मार्ट सिटी बनाने का फैसला लियख, और हज़ारों एकड़ भूमि में स्मार्ट सिटी बनाने का प्रपोजल रखा, लेकिन लोगों के विरोध के बाद सरकार ने उस फैसले को वापस ले लिया और बाद में स्मार्ट सिटी को 300 एकड़ भूमि पर ही बनाने की बात कही गई।
14----स्थायी राजधानी - 16 साल बाद भी कोई सरकार स्थायी राजधानी को लेकर अपना रुख साफ नहीं कर पाई है, गैरसैंण को लेकर पहाड़ के लोगों को गुमराह किया जा रहा है, जबकि देहरादून के रायपुर में केंद्र से मिले 100 करोड़ रुपये की मदद से नए विधानसभा भवन का निर्माण कराया जा रहा है।
15----परिसंपत्ति बंटवारा - 16 साल बाद भी उत्तराखंड और यूपी के बीच परिसंपत्तियों का बटवारा नहीं हो पाया है, आज भी उत्तराखंड की कई अहम संपत्तियों पर यूपी का कब्जा है, टिहरी डैम से उत्पादित होने वाली बिजली पर राज्य सरकार 25 फीसदी हिस्सेदारी चाहती है, लेकिन यूपी का स्टेग होने के चलते उत्तराखंड के हिस्से महज 12 फीसदी बिजली ही आ पाती है।
16---परिसीमन से बढ़ती परेशानी - जनसंख्या के आधार पर होने वाले परिसीमन से मैदानी इलाकों में विधानसभा सीटों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे मैदान और पहाड़ में खाई लगातार बढ़ती जा रही है, पहाड़ पहले से ही विकास से कोसो दूर हैं, अब मैदान में सीटों की संख्या बढ़ने के बाद सभी सियासी दलों का रुझान मैदानी सीटों को लेकर ही होता है, यही स्थिति रही तो 2050 तक मैदान में 70 में से 50 सीटे होंगी, जबकि पहाड़ में महज 20 सीटें रह जाएंगी, ऐसे में एक और आंदोलन होने की ज़मीन तैयार हो रही है।

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