शनिवार, 30 मई 2009

जय हो जनता जनार्दन की।

15 वीं लोकसभा का जनादेश सामने है। आत्ममंथन शुरू हो चुका है। राजनीतिक दल अपने हार के कारणों की समीक्षा करने लगे है। हार का ठीकरा एक दूसरे के सर फोड़ने में कोई पीछे नही है। जेडीयू ने इसकी शुरूआत कर दी है। आखिर गुस्सा क्यों नही आए 10 साल तक विपक्ष में बैठकर सरकार को कोसते रहो। बुरा तो लगता है न भाई। दरअसल किसी को ऐसे जनादेश की उम्मीद नही थी। अब हर कोई इस बहस में शामिल है कि इस जनादेश के पीछे का संदेश क्या है। क्या जनता ने काम का इनाम कांग्रेस को दिया है। क्या कांग्रेस का यूपी बिहार में एकला चलों का नारा काम कर गया। या फिर ये बीजेपी की कमजोर नीतियों का परिणाम है। कारण चाहे जो भी हो कांग्रेसियों के पास जीत के कारण बहुत है। नरेगा से लेकर ऋण माफी या फिर भारत निर्माण जैसे कार्यक्रमों को वो जीत का कारण मान रहे है। कुछ का मानना है कि यह राहुल बाबा की मेहनत का नतीजा है। अगर यह सही है तो राहुल का जादू छत्तीसगढ और बिहार में क्यों नही चला। दरअसल कांग्रेसियों को तो चापलूसी के बहाने चाहिए। बस मिल जाए छोड़ने का नाम ही नही लेते। राहुल गॉधी इस बात को जानते है। मगर एक बात उनके पक्ष में जाती है। अकेले चुनाव लडने और युवाओं को लडाने। यहॉं राहुल बाबा की रणनीति काम कर गई। कुछ की मानें तो ईमानदार प्रधानमंत्री को कमजोर कहना बीजेपी को भारी पड गया। कांग्रेस के लिए यूपी खशियों की सौगात लेकर आया। यहॉ 2004 में 9 सीटों को जीतने वाली कांग्रेस आज 21 सीटों को जीतकर जय हो कह रही है। मुलायम माया की रणनीति धरी की धरी रह गई। दक्षिण में वाइएसआर कांग्रेस का असली सेनापति साबित हुए। जबकि तमिलनाडू में द्रमुख को न छोडने का फैसला भी सही साबित हुआ। नवीन पटनायक ने भी मिशन उडीसा को अपने नाम कर लिया। सवाल यह भी उठ रहा है कि महंगाई आतंकवाद और आर्थिक मंदी जैसे जोरदार मुददों के बावजूद जनता ने ऐसा जनादेश क्यों दिया। लोकजनशक्ति पार्टी, टीआरएस और पीएमके को जनता ने सबक सिखा दिया है। अब कतार में वो खडे है जो इनसे सबक नही लेगें। जय हो जनता जनार्दन की।

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