शुक्रवार, 12 मार्च 2010
किसानवाणी
भारत दुनिया का सबसे बडा लोकतन्त्र है। किसान इस देश की अर्थव्यवस्था का एक मजबूत आधार है। मगर किसान की दुर्दशा आज किसी से छिपी नही है। 1991-2001 तक 84 लाख किसान खेती छोड चुके है। एनएसएसओ के सर्वे के 41 फीसदी किसान विकल्प मिलने पर खेती को छोड़ना चाहते है। 81 फीसदी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के अर्थशास्त्र को नही समझते। वो नही जानते की सरकारी खरीद केन्द्र में अगर वो जाते है तो उन्हें अपने उत्पाद का कितना मूल्य मिल पायेगा। उपर से महज 24 उत्पाद न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे के तहत आते है। कुछ और उत्पाद को इसके दायरे में लाने की कई सिफारिशें सरकारी फाइलों में धूल फांक नही है। यानि सीधी बात इनकी सुध लेने वाला कोई नही है। सरकार का जोर कृिश ऋण का लक्ष्य हर साल बडाने पर रहता है। मगर अहम सवाल इस देश में 82 फीसदी किसान 1 हेक्टेयर से कम जमीन के मालिक है। सरकार फसल लोन 3 लाख तक का 7 फीसदी के ब्याज़ दर पर दे रही है, मगर कृिश सम्बन्धि स्थायी समिति की अपनी एक सिफारिश में इस राशि को बड़ाकर 5 लाख करने की बात कही गई है। साथ ही ब्याज़ दर को घटाकर 4 फीसदी पर लाया जाए जिसकी सिफारिश राश्ट्रीय किसान आयोग ने की थी। देश में उत्पादन के लिहाज से भी हम दूसरे देशों के मुकाबले पीछे है। स्वामीनाथन साहब कहते है की मौजूदा संसाधनो का उचित इस्तेमाल किया जाए तो उत्पादन 50 फीसदी तक बडाया जा सकता है। इस देश में किसान बडे पैमाने पर आत्महत्या कर रहा है। लाखों किसान हालातों के सामने मजबूर होकर अपनी जिन्दगी स्वाहा कर चुके है। सरकार ने 71 हजार की कर्ज माफी की घोशणा कर इस दाग को धोने की कोशिश की। मगर राधाकृश्णा समिति ने इसकी भी पोल खोल दी। यह सच है है कि तकरीबन 4 करोड़ किसानों को इसका लाभ पहुंचा। मगर उनका क्या, जिन्होने साहूकारों से 30 फीसदी पर कर्ज उठा रखा है। इसका एक उदाहरण यहां पर जरूरी है। सरकार ने विदर्भ क्षेत्र के लिए एक स्पेशल पैकेज की घोशणा की। इसमें 6 जिलों को ‘ाामिल किया गया। यवतमाल, अमरावती, अकोला, वाशिम, बुल्धाना और वर्धा जिले को यह राशि ध्यान में रखकर दी गई। मगर वसन्त राव नायक ‘ोठी स्वालंभन मिशन के मुताबिक उन 6 जिलों में 17 लाख 64 हजार किसानों में से महज 4 लाख 48 हजार किसानों ने बैकों से कर्ज ले रखा था। यानि 75 फीसदी किसानों ने साहूकारों और व्यापारियों से कर्ज ले रखा था। तो उनको कैसी कर्ज माफी की राहत। इसके अलावा जुलाई 2006 में चार राज्यों के जिन 31 जिलों को ध्यान में रखकर पैकेज दिया गया उसका भी कोई बडा फायदा किसानों तक नही पहुंचा। हालांकि सरकार ने पूरे देश में साहूकारों के कर्ज के बोझ तले दबे किसानो की हालात का आंकलन के लिए एक टस्क फोर्स गठित किया है। फिलहाल इस रिपोर्ट का सबको इन्तजार है।
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सोचने पर मजबुर कर दिया आपने , बहुत अच्छा लिखते हैं आप ।
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