गुरुवार, 13 मई 2010

क्रिकेटवाणी


कभी कभी सोचता हूं कि क्रिकेट के प्रति इतना लगाव क्यों रखता हूं। आखिर क्या वजह है कि कई ना नूकुर के बाद भी घंटों टीवी के सामने बैठकर क्रिकेट मैच देखता हूं। आखिरी बॉल तक आशावाद की दिया जलाए रखना कि शायद कोई चमत्कार हो जाए और हमारी टीम जीत जाए। यह जानते हुए भी ऐसा नामुमकिन है। मगर क्या करे हम भारतीयों ने क्रिकेट और खिलाडियों को ही सब कुछ मान रखा है। क्रिकेट का कोई भी रूप हो, टेस्ट एकदिवसीय या टी 20। हर बार हमने मैदान में जाकर जय बोलने में कोई कंजूसी नही की। मगर टी 20 वल्र्ड कम में भारतीय खिलाडियों के शर्मनाक प्रदशZन ने क्रिकेट प्रमियों को निराश किया। मैच के किसी भी क्षण यह महसूस नही हुआ कि भारतीय खिलाडी लय में है। कागजों के शेर उछाल भरी पिच पर ढेर हो गए। दुनिया की सर्वोत्तम टीम का प्रदशZन इस कदर होगा इसके बारे में किसी ने नही सोचा था। अब धोनी चाहे लाख बहाने बनाए सच्चाई यह है कि टीम में जीत के जज्बे का अभाव था। साउथ अफ्रीका को हराने वाली टीम एकाएक इस कदर बिखर जायेगी इसका अन्दाजा किसी को नही था। बहरहाल भारतीय कप्तान के मुताबिक आपीएल की रात्रीय पार्टीयां इसके जिम्मेदार थी। मगर मेरा मानना है कि धोनी के कुछ गलत फैसले भी हमारी हार के लिए कम जिम्मेदार नही। सबसे बडी गलती सुपर आठ के पहले मैच में ही हो गई। आस्ट्रेलिया से टॉस जीतने के बावजूद पहले फििल्डंग का निर्णय चौंकाने वाला था। जबकि ऐसा पिच में कुछ भी नही था कि शुरूआत के कुछ ओवरों में गेन्दबाजों को फायद मिले। धोनी की सारी रणनीति बल्लेबाजों के इर्द गिर्द थी। मगर मैच के बाद की स्थिति ऐसी थी न खुदा ही मिला, ना विशाले सनम, इधर के रहे, न उधर के हम। इस मैच में हरभजन सिंह के अलावा कोई भारतीय गेन्दबाज अपनी छाप नही छोड़ पाया। वार्नर और वाटसन की ओपनिंग जोडी ने भारतीय गेन्दबाजों की बिख्खयां उधेड कर रख दी। कहते है इंसान अपनी गिल्तयों से सीख लेता है मगर धोनी यहां ही मात खा गए। सुपर आठ के दूसरे मैच में फिर यह गल्ती दोहरायी गई। जवाब, मेजबानों ने मेहमानों की खातिरदारी में कोई कमी नही छोडी। मगर भारतीय दशZकों के सब्र का बंाध अब भी टूटा नही था। क्योंकि चमत्कार का सपना देखने की हमें आदत पड गई है। मगर यह क्या, बची खुची इज्जत लंकाई शेरों ने लूट ली। अब कोच गैरी कस्र्टन खिलाडियों की फिटनेस का रोना रो रहे है। उनके लिए में सिर्फ हतना कहना चाहूंगा । अब पछतावत होत क्या, जब चिडियां चुक गई खेत। दरअसल इसके लिए जिम्मेदार खिलाडियों से ज्यादा हम भी है। इनसे ज्यादा उम्मीद लगाना बेमानी है। क्योंकि खिलाडी हारे या जीते, उनकी मोटी आमदनी में इससे कोई असर नही पड़ता। और ऐसा कोई पहली बार भी नही हो रहा है। मगर सवाल यह कि ऐसा कब तक चलता रहेगा। आज कुछ कदम उठाने की तत्काल जरूरत है। अनफिट खिलाडियों को तुरन्त बाहर का रास्ता दिखाई जाए। केवल और केवल प्रदशZन को चयन का मापदण्ड बनाया जाए। भाई भतीजावाद को समाप्त किया जाए। नए खिलाडियों को मौका दिया जाए। आस्ट्रेलिया और हमारी टीम में बुनियादी फर्क यह है कि वहां खिलाडी कितना ही नामचीन क्यों न हो फिट नही है या लय में नही है टीम में शमिल नही हो सकता। मगर हमारे यहां इसका उल्टा है। जरा सोचिए एक अरब से ज्यादा की आबादी वाला देश, दुनिया का सबसे धनी बोर्ड बीसीसीआई ,दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज बावजूद इसके इस घटिया प्रदशZन का जवाब किसके पास है।

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