मंगलवार, 25 मई 2010

झारखण्ड का झंझट

झारखण्ड में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की सरकार अल्पमत में आ गई है। बीजेपी के समर्थन लेने के बाद गुरूजी को 31 मई तक विधानसभा में अपना बहुमत साबित करना है। 81 सदस्यों इस विधानसभा में बहुमत का आंकडा 41 का है। बहरहाल जो तस्वीर सामने निकलकर आ रही है उसमें जेएमएम के पास 18 विधायक है। आजसू के 5, जेडीयू के 2, आरजेडी के 5 और 8 निर्दलीय है। इनमें से आजसू जेडीयू और 2 निर्दलियों का समर्थन फिलहाल गुरूजी के पास है। मगर इनकी भी श्रद्धा कब डोल जाए इसका भी कोई अता पता नही। यानि इन आंकडों के हिसाब से गुरूजी को 16 विधायकों का इन्तजाम और करना है। इधर कांग्रेस और मराण्डी के पास 25 विधायकों की फौज है। मगर शिबू मराण्डी अध्याय का लेखा जोखा किसी से छिपा नही है। यही कारण है कि सरकार बनाने की पहल करने से पहले कांग्रेस को इस कहानी को सुलझाने में पसीना बहाना पड सकता है। बाबूलाल मराण्डी ने फिलहाल जो  संकेत दिये है उससे साफ है कि मुख्यमन्त्री से कम पर वो नही मानने वाले। वैसे भी शिबू सोरेन का मुख्यमन्त्री बनने का रास्ता अब समाप्त हो गया है क्योंकि उप चुनाव की मियाद जून में समाप्त हो रही है और इतनी जल्दी चुनाव करना नामुमकिन है। लालू भी कांग्रेस के नए एपीसोड में कहीं फिट होते नही दिखाई दे रहे है क्योंकि इसकी फीस वो बिहार में मागेंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस के पास ऐसा कोई दावेदार नही जो झारखण्ड में उसकी नैया पार लगा दे। सुबोधकान्त सहाय को रांची के बाहर कितने लोग जानते है इसमें संशय है। मगर सुनने में आ रहा है कि वो शिबू के साथ अदलाबदली करने को तैयार है। यानि शिबू को उनका मन्त्रालय और सहाय सहाब मुख्यमन्त्री। मगर इस फार्मूले में भी कई अगर मगर है। बहरहाल झारखण्ड घटनाक्रम से अगर कोई फायदे में है या जनता जिसे चाह रही हो वह केवल और केवल बाबूलाल मराण्डी है। अगर यह मुमकिन नही हो पाता तो एक मात्र रास्ता राष्ट्रªपति शासन है। झारखण्ड राज्य 15 नवंबर  2000 को अस्तित्व में आया। अपने 10 साल के सफरनामें में यह  राज्य 7 मुख्यमन्त्री देख चुका है। बाबूलाल मराण्डी से लेकर अर्जुन मुण्डा और शिबू सारेन से लेकर मधु कोडा तक ने यहां राज किया। मधु कोड़ा ने तो निर्दलीय के तौर पर मुख्यमन्त्री बनकर इतिहास रच दिया। नक्सलवाद से बुरी तरह प्रभावित यह राज्य देश में 41 फीसदी खनिज संपदा से भरा है। 52 फीसदी जनता गरीबी से नीचे जीवन यापन कर रही है। बेरोजगारी दिन पर दिन यहां पैर पसारते जा रही है। भ्रष्टाचार के यहां अनगिनत अध्याय लिखे जा चुके है। इन सब के बीच  आम झारखण्डी के खाते में अगर कुछ अगर कुछ बचा है  तो वह है निराशा घोर निराशा। नये राज्य बनने को लेकर जो संपने उसने संजोये थे वह राजनीति के दलदल में कही खो से गए है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आम झारखण्डी के खाते में अगर कुछ अगर कुछ बचा है तो वह है निराशा घोर निराशा। नये राज्य बनने को लेकर जो संपने उसने संजोये थे वह राजनीति के दलदल में कही खो से गए है।

    यही हुआ और आगे भी होगा

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  2. इस कोढ़ में कितनी खाज है!!
    मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
    दोस्तों,जब से झारखण्ड बना....इसे लेकर ना जाने कितने स्वप्न आँखों में जले और देखते ही देखते बुझ भी गए....लेकिन आखों के सपने ऐसे हैं कि कभी ख़त्म ही नहीं होते...और मुश्किल यह है कि कभी पूरे भी नहीं होने को आते....झारखण्ड का हर नागरिक जैसे सलीब पर चढ़ा अपनी आखिरी साँसों के खत्म होने का इंतज़ार कर रहा है...क्यूंकि हालात ऐसे हैं कि किस-किस बात पर आन्दोलन किये जाएँ...प्रशासन और मंत्रालय का कोई भी हिस्सा अपने कार्य को लेकर तनिक भी गंभीर नहीं है...और मज़ा यह कि सब-के-सब "चोट्टे-सूअर-मवाली-हरामखोर-राज्य और देश-द्रोही"लोग मलाई भी मार रहे हैं और मालामाल भी हुए जा रहे हैं...और काम के नाम पर सिर्फ-और-सिर्फ माल खाने का काम हो रहा है....इस राज्य के एक-एक नागरिक का एक-एक दिन एक तरह की वितृष्णा के साथ गुजर रहा है...और मुझे संदेह है कि जाने कब यह सब किसी भी क्षण एक अनियंत्रित हिंसा में बदल जाए....और जब ऐसा होगा...तब शायद किसी दंगे की तरह नेताओं और उनके चमचों-गुर्गों को चुन-चुन कर मार डाला जाए.....ऐसा अभी से दीख पड़ रहा है.....ऐसे ही विचार वर्षों से दिलो-दिमाग में आते रहते हैं....कि अगर अब भी यह सब नहीं रुका तो न जाने कब राज्य का हरेक नागरिक ही नक्सली बन जाएगा....और.........


    ये किन मक्कारों का राज है
    इस कोढ़ में कितनी खाज है!!
    पता नहीं क्या होना है अब
    ये किस भविष्य का आज है !!
    कि नेता हैं या कुत्ते-बिल्लियाँ
    छील रहे हैं कितनी झिल्लियाँ !!
    झारखण्ड को छला है जिन्होंने
    क्या दी जाए इसकी उनको सज़ा ??
    ये कौन से लोग हैं कि जिनको
    मादरे-वतन की कीमत का नहीं पता....
    ये कौन से लोग हैं कि जिनको
    चमन की जीनत का नहीं पता....
    अगर कुछ भी नहीं पता इन्हें तो फिर
    किस तरह हम पर ये कर रहे हैं राज....
    और क्यूँ नहीं हो रही हमें कोई भी खाज ??
    उट्ठो कि ऐसे लोगों को भून दें हम आज
    उट्ठो और कहो कि ऐसे लोगों का ये चमन नहीं !!
    ऐसे लोगों को दोस्तों कह दो हमेशा के लिए.....
    नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं-नहीं......
    और अगर नहीं माने फिर भी ये अगर तो फिर
    ख़त्म कर दो इन्हें अभी यहीं की यहीं....
    बहुत हो गया दोस्तों कि अब तो खड़े हो जाओ
    बच्चों की तरह मत जीओ,अब बड़े भी हो जाओ !!
    जिनके लिए बनाया गया है यह झारखण्ड
    उन्हीं को किये जा रहे हैं सब खंड-खंड
    रण ही अगर लड़ना है तो कमर कस लो सब-के-सब
    ये नहीं मानेंगे साले बातों से कुछ भी नहीं अब
    तुम्हें मेरे दोस्तों दरअसल कुछ करना नहीं है अब
    बस अबके पहचान लो इन सब "कुत्तों"को.....
    बस अबके चुनाव में जमा-जमाकर कसकर....
    कई लात मार देना इन सभी के चूतडों पर....
    कि फिर कभी दिखाई ना दें ये गलती से भी
    झारखंड के किसी भी किस्म के परिदृश्य पर....
    ये किन कमीनों को पहना दिया हमने गलती से ताज है
    अब किस मुहं से कहोगे कि तुम्हें झारखंड पर नाज है !!
    दोस्तों ये कविता नहीं है ये तुम्हारे भड़कने का आगाज है
    अभी सब कुछ मर नहीं गया है...
    अभी तुम्हारे सामने बहुत बड़ी परवाज़ है.... !!

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  3. aap keyon bol rahe hain bhai bhoot ji, aapke bolne se keya hoga, kuchh bhi nahi hoga, aapse bade bade bhoot hain yahan, chhote ko kaun puchhta hai, aap aise hi bolte bolte mar jayenge aapki koi nahi sunega,

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