बुधवार, 7 जुलाई 2010

गरीब का अर्थशास्त्र

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत ने गरीबी कम करने की दिशा में अच्छा काम किया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2014 तक गरीबी 24 फीसदी आ जायेगी। इसी गरीबी पर हमारे वित्तमन्त्री प्रणव मुखर्जी ने फरवरी 2009 में कहा था कि 2014 तक हम गरीबी को वर्तमान 27.5 करोड़ से घटाकर आधा कर देंगे। बहरहाल गरीबी के आंकडों को लेकर पसोपेश जारी है। कहा यह भी जा रहा है कि सरकार तेन्दुलकर समिति के 37.2 फीसदी पर मान गई है। यानि वर्तमान के एनएसएस के 27.5 करोड़ से 10 फीसदी ज्यादा है। इसका मापदण्ड यह है कि गांव में 2400 कैलोरी और शहर में 2100 कैलोरी भोजन पाने लायक खर्च जो परिवार ना कर पाये वह गरीबी रेखा के नीचे है। एक नज़र इन आंकडों पर।
गरीबी रेखा
2004- 05
शहरी      25.7 फीसदी
ग्रामीण   28.03 फीसदी
गरीबी रेखा के नए आंकड़े
शहरी 25.7 फीसदी
ग्रामीण 41.8 फीसदी
देश में गरीबी उन्मूलन के लेकर कई कार्यक्रम बनाये गए। जनसंख्या बड़ने के साथ साथ यह मर्ज बड़ता गया। उपर से भ्रष्टचार ने बची खुची कसर पूरी कर दी। ज्यादातर लोग राजीव गांधी के कालाहाण्डी में दिये गए बयान को अपनी चर्चा में लाना गौरव महसूस करते है।मगर आज भी यह सच न सिर्फ ज़िन्दा है बल्कि पहले से हालात और खराब हो गए है।
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम 
1970 एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम
1986 इिन्दरा आवास योजना
1989 जवाहर रोजगार योजना
1997 लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली
1999 जवाहर ग्राम समृद्धि योजना
1999 स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
2001 सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना
2006 महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून
2006 राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
यह कार्यक्रम तो बस उदाहरण है। इसके अलावा भी कई कार्यक्रम शुरू किये गए मगर अंजाम में किसी के ज्यादा फर्क नही है। ऐसे दौर में जब खाद्य सुरक्षा कानून पर देश भर में बहस चल रही है तो सरकार को हरसम्भव प्रयास करना चाहिए कि गरीबो को इस अधिकार के मुताबिक उनका हक मिलना चाहिए।

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