गुरुवार, 1 जुलाई 2010

मिशन बिहार 2010

बिहार विधानसभा की चुनाव की घड़ी ज्यों ज्यों नजदीक आ रही है त्यों त्यों राजनीतिक गलियारों में शोरगुल बड़ता जा रहा है। हाल के दिनों में बीजेपी जेडीयू गठबंधन का झगडा सडक पर आ गया। बीजेपी ने स्वाभिमान रैली कर अपना दमखम दिखाने की कोशिश की तो नीतिश ने बीजेपी को आइना दिखाने में जरा भी देर नही की। बिहार के हिन्दी और उर्दू अखबारों में नीतिश और मोदी के हाथ मिलाते विज्ञापनों ने नीतिश कुमार को झटक कर रख दिया। विज्ञापन में छपी तस्वीर नीतिश के राजनीतिक समीकरणों पर एक तरह का कुठाराघात था। सवाल यह उठता है कि बिना नरेन्द्र मोदी के संज्ञान में लाए उनकी तारीफों के पुल बांधने वाले विज्ञापन कैसे अखबारों मे छप सकते है। खबरें तो यह भी छन छन कर आ रही है कि गुजरात में बीजेपी के सांसद के तत्वाधान में यह पूरा विज्ञापन तैयार हुआ। बकायदा इसके लिए 28 लाख रूपये खर्च किये गए। इसके लिए सीधे तौर पर बीजेपी जिम्मेदार है। बिहार के राजनीतिक हालात किसे से छिपे नही है। मुस्लिम वोट जो बिहार में 17 फीसदी के आसपास हैं, बिहार की राजनीति में क्या मायने रखते है यह किसी से छिपा नही है। एम वाई समीकरण के ही चलते लालू ने बिहार में 15 साल तक राज किया। नीतिश कुमार ने भी अपने साढे चार साल में अिक्लयतों के लुभाने का हर सम्भव प्रयास कर रहें है। ऐसे में अगर कोई उनके करे कराये में पानी फेरता है तो 14 साल पुराने गठबंधन से हाथ झटकने में जरा भी देर नही करेंगे। बहरहाल नीतिश कुमार और सुशील मोदी दोनों ही विश्वास यात्रा कर रहे है। इधर कांग्रेस अपने आप को संगठित करने की दिश में काम कर रही है। पार्टी की भी नज़र मुस्लिम समुदाय पर है। इसी को ध्यान में रखकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान मस्लिम व्यक्ति को सौंपी है। कांग्रेस उत्तरप्रदेश के बाद इस राज्य में मुस्लिमों को अपने पाले में लाना चाहती है। मगर बिहार में क्रांग्रेस की स्थिति किसी से छिपी नही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे 2 सीट पर सन्तोश करना पड़ा। वही जेडीयू का जनाधार पिछले 5 वशोZ में बड़ा है। नतीश ने बिहार में लोगों के दिलों में विकास की एक झलक दिखाई है जो पिछले पंन्द्रह सालों में कही गुम सी थी। बहरहाल बीजेपी और जेडीयू के बीच सीट बंटवारे पर भी सहमति लगभग बन चुकी है। कुल मिलाकर बिहार में हर राजीनीतक दल का रणनीति जाति के आसपास घूमती है।

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