बुधवार, 4 अगस्त 2010

असंगठित क्षेत्र का फलसफा

2001 की जनगणना के मुताबिक देश में श्रमिकों की संख्या अनुमानित तौर पर 40.2 करोड़ हैं। इनमें 31.3 करोड मुख्य श्रमिक है और 8.9 करोड़ सीमान्त श्रमिक है।  राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार देश में संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों में श्रमिकों की संख्या 39.49 करोड़ है जिसमें 36.9 करोड़ अर्थात कुल रोजगार का 93 फीसदी असंगठित क्षेत्र से आता है। असंगठित क्षेत्र से मतलब वे श्रमिक जो अस्थायी कार्य में संलग्न है। खेतिहर मजदूर रिक्शा चालक, निर्माण मजदूर, छोटे किसान, मछुआरे, घरेलू नौकर आदि। महत्वता इसी से समझी जा सकती है देश के सकल घरेलू उत्पादों के लगभग साठ प्रतिशत में असंगठित क्षेत्र का हाथ है। सिंचाई, बिजली परियोजनाऐं या विशाल भवनों का निर्माण शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जहां असंगठित श्रमिकों का श्रम न लगा हो। देर आये दुरूस्त आए की तर्ज पर भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए असंगठित सेक्टर कामगार सामाजिक सुरक्षा विधेयक 2007 को लोकसभा में पारित कर दिया। इस विधेयक से सरकार सबसे पहले 23 करोंड़ भूमिहीन मजदूरों को लाभ देगी। सरकार की योजना असंगठित क्षेत्र के जुड़े लोगों के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत 30 हजार प्रति परिवार तक का बीमा कवर देना है। श्रम मन्त्रालय के आंकड़ो के अनुसार कृशि क्षेत्र में स्त्री और पुरूषों को मिलने वाली मजदूरी में 27.6 प्रतिशत का अन्तर है। मगर महात्मा गांधी नरेगा के आने के बाद इसमें जबरदस्त सुधार आया है। बीड़ी मजदूरों के कल्याण के लिए आवंटन 21 हजार करोड़ से बढ़ाकर 43 हजार करोड़ करने की सिफारिश की है। असंगठित क्षेत्र से जुड़े विधेयक के तहत प्रत्येक राज्य और जिले में गैर संगठित श्रमिक कल्याण संघ का गठन किये जाने का प्रावधान है।

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