रविवार, 17 अक्तूबर 2010

कुछ किये बिना जयजयकार नही होती कभी

क्वालालामपुर में 25 पदक। मेनचेस्टर में 30 स्वर्ण सहित 69 पदक, मेल्बर्न में 22 स्वर्ण सहित 50 पदक और राष्ट्रमण्डल खेलों में इस बार 38 गोल्ड, 27 सिल्वर और 36 ब्रोन्ज सहित कुल 101 मेडल। क्या हम शतक लगाऐंगे। यह सवाल हर आमोखास के दिमाग में कौन्द रहा था। लोकसभा टीवी के कार्यक्रम लोकमंच में में भी हमारा अनुमान यही था की इस बार हमारी तैयारी को देखते हुए लगता है कि हमें सैकड़ा जमाने से कोई नही रोक सकता। हालांकि यह किसी करिश्मे से कम नही था की एथलेटिक्स में भी हमें मेडल प्राप्त हुए। मगर इस मेजबानी ने देश में विभिन्न खेलों के लिए हमारे दिल में एक अहसास जगाया। मैं नही जानता था की तीरन्दाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाली दीपिका कुमारी एक साधारण परिवार से आती है। दीपिका ने जब गोल्ड पर निशाना लगाया तो पूरे देश ने जाना की इस खिलाड़ी ने इस मुकाम को पाने के लिए कितनी साधना की होगी। हमेशा की ही तरह यहां भी निशानेबाजों में सबसे ज्यादा पदक जीते। निशानेबाजी ने हमारे खाते में 14 गोल्ड, 11 सिल्वर और 5 ब्रोन्ज मेडल आये। इसके बाद कुश्ती में 10 स्वर्ण, 5 सिल्वर और 4 ब्रोन्ज मेडल जीते। कुश्ती में 6 गोल्ड मेडल फ्री स्टाइल कुश्ती में और 4 ग्रीमोरोमन में हासिल किये। एथलेटिक्स जिसमें हमारी आशा न के बराबर थी वहां भारतीय खिलाडियों ने हमें गलत साबित किया। कुल मिलाकर इस इस खेल में हमें 2 स्वर्ण प्राप्त हुए। डिस्कस थ्रो में कृष्णा पुनिया ने गोल्ड जीतकर सबको चौंका दिया। इस खेल में सिल्वर और ब्रोन्ज भी हमारे खाते में आया। मुक्केबाजी में हालांकि आशा के अनुरूप मेडल नही मिले लेकिन हमारे मुक्केबाजों के मुक्के जमकर विपक्षियों पर बरसे। जिमनास्टिक जिसके बारे में आशा न के बराबर थी वहां आशीष कुमार ने गलत साबित करके दिखा दिया। टेनिस खिलाड़ी भी उतना नही कर पाये जितनी हम उनसे उम्मीद लगाये बैठे थे। महज सोमदेव देव वर्मन ने भारत की एक गोल्ड जीतकर लाज बचाई। हाकी में शरूआत में झटका खाकर हमने पाकिस्तान और इंग्लैण्ड को धूल चटा दी। यह बात दिगर है कि फाइनल में हमें आस्ट्रेलिया ने 8-0 से धो डाला। बैडमिंटन में साइना नेहवाल ने उलटफेर भरे मैच में भारत की जीत दिलाई। यही वह मेडल है, जिसने हमें दूसरे स्थान में लाकर खड़ा कर दिया। दिल्ली में हुए इन खेलों ने क्रिकेट के दबदबे वाले इस देश में दूसरें खलों के प्रति भी दशZको को दिवाना होते हुए देखा है। अगर यह रफतार कायम रही तो वह दिन दूर नही जब विश्व में हमारा रूतवा होगा। ऐसा नही होगा की 1 अरब से ज्यादा आबादी वाले इस देश को ओलम्पिक में 1 स्वर्ण पदक से सन्तोष करना पड़ेगा।

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