सोमवार, 26 नवंबर 2012

आधार योजना और चुनौतियां

आधार! भारत में यह शब्द आजकल आम चर्चा का विषय है। इसलिए नही की यह हिन्दी के शब्दकोष से निकला एक बेहद अच्छा और भावपूर्ण शब्द है। बल्कि इसलिए यह राजनीतिक तौर पर यूपीए दो के महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री की आधार योजना को अंतिम रूप देने को लेकर हुई पहली बैठक इसकी तस्दीक है। भारत सरकार की मंशा इस योजना के सहारे सब्सिडी का सीधा फायदा जरूरतमंदों तक पहुंचाना है। फिलहाल कई राज्यों में इस योजना का प्रयोग पाइलट प्रोजेक्ट के तौर पर चल रहा है। मगर प्रधानमंत्री के मुताबिक 2014 यानि चुनावी साल तक 60 करोड़ लोगों तक आधार कार्ड पहुंच जाएगा। तो क्या आधार योजना अगले लोकसभा चुनाव का बड़ा मुददा साबित होगी? वैसे भी किसानों की कर्ज माफी और मनरेगा जैसी योजनाऐं का फल सरकार को 2009 के आम चुनाव में मिल चुका है। इससे उत्साहित सरकार के रणनीतिकार इस योजना  में भी वही गुण ढूंढ रहे हैं।  बहरहाल अगले साल 1 जनवरी से 16 राज्यों के 51 जिलों से इसकी शुरूआत होने जा रही है। आधार कार्ड के तहत 12 अंक का एक विशिष्ठ पहचान संख्या दी जाएगी। इस कार्ड के के जरिये आपको नकद भुगतान के अलावा और कई सेवाऐं प्राप्त होंगी। मसलन बैंक में खाता खोलने, टेलीफोन कनेक्शन लेने, हवाई या रेल सफर के लिए रेल टिकट लेने में आधार कार्ड का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इस समय भारत सरकार 1.50 करोड़ छात्रों को वजीफा देती है। तकरीबन 2 करोड़ बुर्जुग पेंशन के दायरे में आते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 3 करोड़ परिवार लाभार्थी हैं और देश में रोजगार की गारंटी देने वाली विश्व की सबसे बड़ी योजना माहात्मा गांधी नरेगा के तहत 5 करोड़ परिवार के खाते में सीधे नकदी जाएगी। यह सोच अपने आप में नायाब है मगर जमीन पर कैसे लागू होगी इसको लेकर संषय बरकरार है। आज सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता था। योजना आयोग के मुताबिक सरकार केन्द्र से जरूरमंदों को जो एक रूपया भेजती है उसे उस तक पहुंचाने के लिए अतिरिक्त खर्चा 3.50 रूपया आता है। यानी सरकार के पैसों की चांदी कोई और ही काट रहा है। वैसे भी पूर्व प्रधानमंत्री स्व राजीव राजीव गांधी की यह कहावत सुप्रसिद्ध है की केन्द्र से भेजे जाने वाले एक रूपये में से गरीब को सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाता  हैं। दुर्भाग्य देखिए तीन दशक बीते जाने के बाद भी हालात में कोई परिवर्तन नही आया। वैसे नकद राशि सीधे खाते तक पहुंचाने के पीछे सरकारी तर्को की भरमार है। जैसे जरूरमंदों तक पैसा पहुंचेगा, बर्बादी रूकेगी, खर्च घटेगा और सरकारी धन की लूट रूकेगी। सबसे ज्यादा फायदा खुद सरकार को मिलेगा जिसका सब्सिडी का बजट बढ़ता जा रहा है। मगर मुख्य सवाल यह है कि आधार योजना क्या वाकई सरकारी पैसों की लूट को रोक पाएगी? क्या गरीब तक सरकारी मदद पहुंच पाएगी। इसे समझना सबसे जरूरी है। क्योंकि इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए यहां कई मंत्रालयों के बीच समन्वय की दरकार होगी। आधार योजना में वित्त, सामाजिक अधिकारिता, मानव संसाधन, अल्पसंख्यक, श्रम और रोजगार, स्वास्थ्य, खाद्य, पेट्रोलियम और नैचूरल गैस, कैमिकल और फर्टीलाइजर मंत्रालय सहित योजना आयोग की भूमिका अहम होगी। सवाल यह है कि जब यहां 2 मंत्रालयों के बीच समन्वय नही है इतने सारे मंत्रालयों के विचारों का संगम कैसे होगा। क्या आधार योजना को सफल बनाने के लिए यह सभी मंत्रालय एक जुट होकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करेंगे। दूसरी ओर  इसके विरोध करने वालों के तर्कों को भी दरकिनार नही किया जा सकता। मसलन क्या बीपीएल परिवारों की सही पहचान कैसे होगी। जब गरीब का ही नही पता तो योजना का क्या हश्र होगा।  यानि जब सही पात्र व्यक्ति का चयन नही हो पाएगा तो आधार की सफल होने की संभावना न के बराबर है। इसलिए कौन गरीब, कितने करीब, इन दो सवालों का जवाब हमें सबसे पहले ढंूढना होगा। खासकर राज्य सरकारों की जिम्मेदारी यहां पर महत्वपूर्ण होगी। अभी हालात यह है की पीडीएस में फर्जी राशन कार्डो की भरमार हैै। 2 करोड़ से ज्यादा हम निरस्त कर चुके हैं और न जाने कितन इस सिस्टम में मौजूद है। अकेल दिल्ली में एक महिला के नाम पर 800 से ज्यादा फर्जी राषन कार्ड पाए गए। इसका विरोध करने वाले आधार योजना को पीडीएस पर लागू न करने की सलाह दे रहे है। हालांकि भारत सरकार ने अभी इस तरह के संकेत नही दिए है कि राषन प्रणाली के लिए भी वह नकद भुगतान का रास्ता अख्तियार करेंगे। इस समय सरकार मुख्यतः तीन क्षेत्रों में भारी सब्सिडी देती है। फूड, फर्टीलाइजर और पेट्रोलियम। ज्यादातर विषेषज्ञ पीडीएस में नकद राशि के भुगतान के खिलाफ कई तर्क दे रहे हैं। पहला हर साल होने वाली बंपर पैदावार के प्रोक्यूरमेंट का क्या होगा जिसे एफसीआई करता है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का क्या होगा? उससे भी ज्यादा आने वाले समय में खा़द्यान्न संकट की स्थिति आ सकती है। दूसरा उस सामाजिक समस्या का क्या जिसके मुताबिक घर में आए पैसे को कहां खर्च करना है, यह अधिकार महिलाओं के पास नही हैं। शायद इसलिए भी महिलाऐं अनाज के बदले नकदी नही चाहती। हाल ही में एक संस्था द्धारा 9 राज्यों में 100 चयनीत गांवों के 1227 परिवारों में एक सर्वे किया गया। इसमें यह बात सामने आई की आंध्र प्रदेश में 91 फीसदी, ओडिशा में 88 फीसदी, छत्तीसगढ़ 99 फीसदी, छत्तीसगढ़ और हिमांचाल प्रदेश में 81 फीसदी लोगों ने अनाज के बदले नकद राशि लेने का विरोध करने की बात कही है। इसलिए जरूरी है कि सरकार खाद्य सुरक्षा काननू लाने से पहले पीडीएस के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन करे। वैसे वितरण प्रणाली को दुरूस्त करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। छत्तीसगढ़ द्धारा अपनाये गए माॅडल की आज हर कोई तारीफ करता है। ऐसा क्या है कि बाकि राज्य अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरूस्त क्यों नही कर सकते। आधार कार्ड के पक्ष में एक मजबूत तर्क यह है कि इससे सबसे ज्यादा फायदा उनका होगा जिनके पास अपनी पहचान साबित करने का कोई तरीका नही। खासकर वे लोग जो अपनी रोजी रोटी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते है या दूसरे शब्दों में जिन्हें हम घुमन्तु समाज कहते हैं। कहा जाता है कि जनसंख्या में इनकी हिस्सेदारी 11 फीसदी के आसपस है। डाक्टर बालकृष्ण रेंगे समिति के मुताबिक आजतक भारत में इनकी गणना ही नही हुई। इनमें नोमेडिक ट्राइब, डिनोटीफाइड नोमेडिक ट्राइब, चरवाहे, सपेरे, बंदर का करतब दिखाने वाले आदि। इनकी संख्या तकरीबन 4 करो़ड के आसपास है। यानि 50 लाख परिवार। अगर ईमानदारी से इनको भी आधार कार्ड मुहैया कराया जाएगा जैसे की कहा जा रहा है तो यह एक बहुत बड़ा कदम साबित होगा। एक और मुष्किल सरकार के इस महत्वकांक्षी कार्यक्रम को मुष्किल में डाल सकती है। हमारे देष में 40 प्रतिषत आबादी की पहुंच बैकिंग व्यवस्था तक है। निजि बैंक गांवों में बैंकों की षाखा खोलने में दिलचस्पी नही दिखाते। इतना जरूर है  पिछले 3 सालों में  सरकार इसको लेकर गंभीर हुई है।  स्वाभिमान योजना के सहारे लोगों को बैकों को जोड़ने का प्रयास चल रहा है। मगर सच्चाई यह है कि बैंकों का कार्यक्षमता किसी से छिपी नही हैं। अभी हालात यह है कि बैंक मनरेगा तक का भुगतान समय से नही कर पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में हुए एक अध्यन के मुताबिक मनरेगा के तहत की 600 रूपये की मजदूरी बैंक से मजदूरी करने का औसल खर्च परिवहन और दूसरी जगहो ंपर 150 रूपये आया। इसलिए इसे लागू करने से पहले सरकार को इस पहलू पर गौर करना होगा। आधुनिक भारत के निर्माण में तकनीक की भूमिका को नकारा नही जा सकता। मगर साथ ही जमीनी हालात से मुंह भी नही चुराया जा सकता। तकनीक का फायदा हम रेलवे रिजर्वेशन व्यवस्था में देख चुके हैं। लिहाजा इस योजना से लोग उम्मीद पाल रहे हैं तो गलत नही।





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