शनिवार, 19 अप्रैल 2014

मेरा वोट,मेरी हुकुमत पार्ट-2

देश में आम चुनाव का रंग चढ़ा हुआ है। मतदान को लेकर मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह है। राजनीतिक दल आरोप प्रत्यारोप के साथ देश की दशा और दिशा बदलने की गुलाबी तस्वीर बनाने का सब्ज़बाम दिखा रहें है। 60 साल के बदले 60 महिने देने की बात कही जा रही है। देश आज एक अभूतपूर्व स्थिति से गुजर रहा है। चुनौतियों का पहाड़ मुंह बायें खड़ा है। मगर भारत के जनमानस की धैर्य की प्रशंसा करनी होगी, की बदलाव के लेकर उसका विश्वास आज भी मौजूदा व्यवस्था में कायम है। मगर भारत जैसे देश की जटिलताओं को देखकर मौजूदा चुनौतियों का समाधान इतना आसान नहीं है? इसका मतलब यह नही है की हम बदलाव नही ला सकते। मगर इस बात में दम कम है कि केवल केन्द्र सरकार की प्रतिबद्धता से देश बदला जाएगा? इस देश को न सिर्फ प्रधानमंत्री प्रतिबद्ध चाहिए बल्कि 28 ऐसे मुख्यमंत्री चाहिए जो कुछ कर गुजरतना चाहते हों। बदलाव लाने के लिए प्रतिबद्ध हों? भारत की संघीय प्रणाली में तीन सूचियां है। पहला केन्द्र की सूची, दूसरा राज्य की सूची ओर तीसरा समवर्ती सूची है। सबसे गौर करने वाली बात यह है कि जनमानस से जुड़े ज्यादातर विषय राज्यों के अधीन आते हैं। उदाहरण के लिए महिला सुरक्षा की बात करतें हैं। हम जानते हैं कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। यानि अकेले केन्द्र सरकार के कहने भर से या कठोर कानून बना देने से महिलओं को सुरक्षा नही मिल सकती। क्योंकि इस दिशा में प्रयास केन्द्र और राज्य को मिलकर करने होंगे? यानि जब तक सब मिलकर समन्वय के साथ कार्य नहीं करेंगे अपेक्षित परीणाम का हमेशा बस इंतजार करना पड़ेगा? यही कारण है कि केन्द्र में अब तक 15 सरकारें रही मगर बुनियादी सवाल आजादी के 6 दशक के बाद भी कायम हैं? मसलन गरीबी, अशिक्षा, कुपोणण, अपराध और भेदभाव। अगर हम शिक्षा व्यवस्था को सुधारना चाहतें है तो इसके लिए अकेले केन्द्र कुछ नही कर सकता। हालांकि शिक्षा समवर्ती सूची में है बावजूद इसके राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देना होगा। हजारों करोड़ खर्च करने के बावजूद क्या हम सही मायने में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे पाऐं इसका आंकलन करने बैठेंगे तो जवाब ना में होगा। इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव नही आ पाया है। केन्द्र सरकार ने 2006 में राष्ट्रªीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरूआत की मगर राज्यों की हिलाहवाली के चलते अपेक्षित परिणाम नही मिल पाए। कई राज्यों में इस पैसे की खुली लूट हुई खासकर तब जब सालाना 3.50 करोड़ लोग बीमारियों पर खर्च के चलते गरीबी रेखा से नीचे चले जातें हैं। अकेले केन्द्र सरकार सालाना सामाजिक क्षेत्र में 3 लाख करोड़ से ज्यादा खर्च करती है। यानि साल दर साल सरकार का बजट आवंटन बढ़ रहा है। मगर यह बड़ा हुआ पैसा नतीजों में तब्दील नही हो रहा है। इसपर अगर आपने सवाल जवाब कर लिया तो जवाब आपको सधा हुआ मिलेगा। विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। केन्द्र सरकार सिर्फ धन मुहैया कराती है। उस धन के बदले उसे राज्य से यूटीलाइजेशन सर्टीफिकेट मिल जाते हैं। समय आ गया है कि इस पूरी व्यवस्था में आमूचूल परिवर्तन लाया जाए। जिम्मेदारी और जवाबदेही हर तबके की हो और इसकी शुरूआत हमारे जनप्रतिनिधि से हो। जब तक हम यह निश्चित नही करेंगे की जनता का पैसा उसके कल्याण के लिए खर्च हो रहा है तब तक हम सफल नही हो पाऐंगे। इस बात को धार एक और उदाहरण से मिल सकती है। देश में महंगाई आज सबसे बड़ा मुददा है। पूरा जनमानस बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है। खासकर खाद्य आधारित महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी। जिस महंगाई को अपने दूसरे कार्यकाल में 100 दिन में कम करने की बात कहने वाल सरकार पूरे कार्यकाल में इसी मुददे से जूझती रही। उसी महंगाई को आते ही दूर करने के वादे किए जा रहें हैं? सच्चाई यह है कि आने वाले दिनों में भी इससे निजात मिल जाएगी ऐसा लगता नही। पिछले कई वर्षो से सावर्जनिक वितरण प्रणाली यानि सस्ता राशन उपलब्ध करने की योजना चल रही है। यही आज भोजन के अधिकार के तौर पर हमारे सामने है। मगर योजना आयोग की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ की 51 फीसदी गरीबों का सस्ता अनाज़ काले बाजार में बिक जाता है। सरकार के पास ऐसी एक दर्जन से ज्यादा रिपोर्ट उपलब्ध हैं जिसमें इस बात की पुष्टि हुई है। खासरकार पूर्वोत्तर राज्यों में सस्ते राशन की खुली लूट है। केन्द्र सरकार का कहना है कि उसका काम राज्यों को सस्ती दरों पर अनाज आवंटन करना है। उसके वितरण और कालाबाजारी में नियंत्रण की पूरा जिम्मा राज्यों के तहत आता है। राज्य सरकारें आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत कार्यवाही कर सकती है। एक साधारण प्रश्न है कि क्या जिस देश में 51 फीसदी गरीब का राशन कालेबाजार में बिक जाता है और एक भी खाद्य मंत्री और सचिव को सज़ा नही हुई? क्या कभी इनकी संपति की जांच हुई? ये लोग चंद दिनों में करोड़ों के स्वामी बन जाते हैं और आम आदमी अपने आप को छला महसूस करता है। क्योंकि राज्यों ने इस व्यवस्था में सुधार लाने के लिए गंभीर पहल नही की। इसी तरह बाकी योजनाओं का भी हाल है। यह विचारणीय प्रश्न है कि जिस देश में भोजन के लिए अधिकार मिला हो, घर के लिए गांव में इंदिरा आवास योजना हो, शहर में राजीव आवास योजना हो, कुपोषण के लिए एकीकृत बाल विकास योजना हो, बिजली के लिए राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतिकरण योजना हो, स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रªीय स्वास्थ्य मिशन हो, रोजगार के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रªीय रोजगार गारंटी योजना हो, शिक्षा का अधिकार हो, यानि भारत में हर समस्या से निजात के लिए एक कार्यक्रम है। बावजूद इसके यह सारी समस्याऐं आज बड़े पैमाने में हमारी परेशानियों का कारण है? अगर कोई आकर कह दे कि हम इन समस्याओं को सुलझा लेंगे तो यह किसी छलावे से कम नहीं? इसलिए जनता अगर किसी चमत्कार की उम्मीद कर रही है तो सतर्क रहने की जरूरत है। इसमें कोई दो राय नही की देश को एक सशक्त नेतृत्व चाहिए। एक मजबूत सरकार चाहिए। मगर व्यक्तित्व ऐसा चाहिए जो व्यवस्था को बदल सके। मौजूदा व्यवस्था बेहद कमजोर है। इसमें बदलाव लाए बिना हम इस समस्याओं का अवसर का रूप नही दे सकते। हर पांच साल में राजनीतिक दल एक घोषणा पत्र से साथ आतें हैं। जनता से वादों की झड़ी लगा देतें है। मगर घोषणा पत्र कानूनी तौर पर राजनीतिक दलों पर बाध्य नही होता। इसलिए यह दस्तावेज महज़ एक कपोल कल्पना साबित होता है। जरूरी है कि नई सरकार को राज्यों के साथ मिलकर ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे एक साथ कार्य करने की नई संस्कृति को जन्म मिले। जब लक्ष्य सबका जनकल्याण होगा तो कदम भी इसी दिशा की तरफ बढ़ेगें। केवल एक व्यक्ति या सरकार इस कार्य को पूरा नही कर सकती। खासकर इस चुनाव में जिस तरह से अपेक्षाओं का पहाड़ राजनीतिक दलों ने खड़ा किया है अगर वह पूरा नही हुआ तो जनता क्या करेगी इसका पता नही। बस इतना मालूम है कि अब देश का सबसे बड़ा वर्ग युवा है। उसको वादे नहीं, नतीजे चाहिए, भाषण नही, काम चाहिए। अगर सरकारें इस दिशा में काम करने की गंभीर पहल नही करती तो उसे इस वर्ग के आक्रोश को झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। खासकर इस आम चुनाव में यह वर्ग बड़ी संख्या में मतदान का साक्षी बन रहा है। इस आशावाद के साथ कि आने वाले दिन में परिवर्तन होगा। ऐसा परिवर्तन जो समाज में उन्हें सम्मान के साथ जीने का अवसर प्रदान करेगा।

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