मंगलवार, 29 जुलाई 2014

भारत नेपाल संबंध

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नेपाल की दो दिवसीय यात्रा से पहले दो दिन काठमांडू में अपनी टीम के साथ बिताए। अपने अनुभव से मैं कह सकता हूं की यूपीए सरकार ने राजनीतिक तौर पर नेपाल के साथ संबंधों को लेकर कुछ खास नही किया। खासकर ऐसा देश जो प्राकृतिक और सांस्कृतिक तौर पर दोनों देशों को जोड़ता है। जल विद्युत परियोजनाओं की अपार संभावनाऐं। वहां के आमजनमानस में मोदी को लेकर एक कौतूहल। खासकर मोदी की हिंदूवादी छवि उन्हें खिंचती है। मोदी के गुजरात माॅडल और कार्यशौली की जानकारी भी वो रखतें है। मगर नेपाल को राजनीति अस्थिरता के डंक ने ऐसा डंसा की वह बेहाल है। गरीबी अशिक्षा खराब सड़कें बेरोज़गारी गंदी नदियां प्रदूषण जैसी समस्याऐं राजधानी में आम है। नेपाली समुदाय को इस तस्वीर के बदल जाने की आस है। पर्यटन को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सोच से उनकी उम्मीदें बड़ी हैं। वह चाहतें है की जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहतें हैं उसी प्रकार श्रेष्ठ नेपाल की नींच भी उनकी यात्रा में रखी जाए। नेपाल के साथ हमारे व्यापारिक रिश्तों में भी प्रचुर संभावनाऐं हैं। वर्तमान में यह 4.7 अरब डाॅलर है। कुल विदेशी निवेश का 48 फीसदी भारत नेपाल में निवेश करता है। यानि व्यापार घाटा नेपाल की लिए बड़ी चिंता का विषय है। ठीक उसी तरह जिस तरह चीन और भारत के बीच हमारे लिए यह चिंता का कारण है। मगर जल विद्युत  क्षेत्र में आगे बड़कर नेपाल इस घाटे को कम कर सकता है। भारत सरकार नेपाल को रोड और रेल बनाने में मदद कर सकती है। नेपाल सरकार को पीपीपी यानि सार्वजनिक निजि भागीदारी का महत्व समझाने की जरूरत है। इससे उसके पर्यटक क्षेत्रों को जोड़ा जा सकता है। पर्यटन क्षेत्र का अगर सही दोहन किया जाए तो नेपाल अपनी आर्थिक तरक्की की नई इबारत लिख सकता है साथ की विश्वास और सम्मान के साथ इस रिश्ते को आगे ले जाना जरूरी है। भगवान पशुपति नाथ का प्राचीन मंदिर पर्यटकों की पसंदीदा जगह है। इसके अलावा सीता की जन्मस्थली जनकपुर,भगवान बु़द्ध की जन्मस्थली लुंबीनी के अलावा भी कई ऐसे क्षेत्र है जो पर्यटकों के आकर्षक का केन्द्र बनाए जा सकते हैं। 

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