शनिवार, 6 अगस्त 2016

आजादी के 70 साल

जलाओं दिये पर, रहे ध्यान इतना।
अंधेरा घना कहीं, रह नही जाए।
गर्व हो रहा है। मै खुशी से फूला नही समा रहा हूं। आजादी की 70वी वर्षगांठ मना रहे हैं। इस पावन बेला पर देशवासियों को शुभकामनाऐं देना चाहता हूं। मगर कुछ सवाल मेरे मन में बिजली की तरह कौंध रहे है। जिसका जवाब न मिलता न कोई देने को तैयार दिखता। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी देश को सम्बोधित करते दिखेंगे। देशवासियों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर संदेह नही है। फिर ऩए सपनों की उड़ान होगी। घोषणाओं की बरसात होगी। आखिर हो भी क्यों ना। आने वाले सालों में जनता के वोट का हिसाब किताब जो करना है। आज एक सवाल नीति निर्माताओं से । आजादी के 70 सालों में  क्यों आबादी का एक बडा हिस्सा आज भी गरीब है? भूखा है? मूलभूत सुविधाओं से वंचित है? शिक्षा स्वास्थ पानी बिजली सडक और आवास से क्यों वंचित है? जवाब है उनके पास। फिर कैसा आजादी का जश्न? ये क्या महान देशभक्त सेनानियों का अपमान नही। क्या इसी दिन के लिए उन्होने कुर्बानी दी थी। आजाद भारत की उनकी कल्पना का ये मखौल है। देश में 30 करोड जनता आज भी गरीब है। 40 करोड लोग असंगठित क्षेत्र से आते है। 77 फीसदी आबादी की हैसियत एक दिन में 20 रूपये से अधिक खर्च करने की नही है। 41 फीसदी किसान विकल्प मिलने पर किसानी छोडना चाहते है। 3 लाख ज्यादा किसान  हालात से हार मानकर आत्महत्या कर चुके है। 42 फीसदी बच्चे कुपोषण का शिकार तो 69 फीसदी महिलाओं में खून की कमी है। 1 करोड 12 लाख  बाल मजदूर है। बेरोजगारी चरम पर है। आधी आबादी खुले में शौच के लिए जाती है। आबादी के बडे हिस्से के पास पीने का साफ पानी नही है। भ्रष्टाचार ने पूरे देश को अपनी गिरफ़्त में ले रखा है। महंगाई आम आदमी के थाली से निवाला छीन रही है। आतंकवाद, नक्सलवाद और उग्रवाद आज भी आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा है। फिर भी आजादी का जश्न । कोरी घोषणाऐं। झूठे आश्वासन। देश की तस्वीर   तकदीर बदलने का सब्जबाग। विकास का फायदा हर व्यक्ति तक पहुचाने का झूठा वादा। मगर देश बदलने की जिद का स्वांग भरने में क्या जाता है। अच्छे दिन लाऐंगे ये कहने में क्या जाता है। कभी तो बदलेगी मुल्क की तस्वीर। सनद रहे। ये तभी संभव है जब हम बदलेंगे। अधिकारों के लिए चिल्लाने के बजाय जिम्मेदारी से काम करेंगे। देश के हालत सरकारें नही बदलती? जनता बदलती है। देश स्मार्ट तब बनता है जब जनता स्मार्ट होती है। इसलिए हम सब को देश के विकास के यज्ञ में आहूति देनी होगी। कवि की इन पंक्तियों के साथ लेखनी को विराम।
 गहरा जाता है अंधेरा, हर रात निगल जाती एक सुनहरा सवेरा।
फिर भी मुझे सृजन पर विश्वास है, एक नई सुबह की मुझे तलाश है।
जय हिन्द

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