गुरुवार, 25 अगस्त 2011

प्रवासी भारतीय


भारत में निवेश यूं तो बड़े पैमाने पर आ रहा है मगर भरतवंशियों का हिस्सा इसमें बहुत कम है। एक अनुमान के मुताबिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में प्रवासीय भारतीयों का हिस्सा महज 6 फीसदी है। यह चीन के मुकाबले बहुत कम है। एक सर्वे के मुताबिक चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेष में प्रवासियों चीनियों का हिस्सा 67 फीसदी है। जानकार इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार सरकार की नीतियों को ठहराते है। भारत सरकार ने दुनिया भर में फैले 2.5 करोड़ भारतीयों को लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना की। मंत्रालय केा प्रवासी भारतीयों मंत्रालय नाम दिया गया। मगर मंत्रालय सुविधाओं के आभाव में कुछ भी करने की स्थिति में नही है। स्थिति देखकर ऐसा लगता है, नाम बड़े और दर्शन छोटे। निवेश बढाने के लिए नीतियों में बदलाव की दरकार है। मगर कहानी इतने से सुधरने वाली नही है। सरकार को भरतवंषियों को यह विश्वास दिलाना होगा कि उनके निवेश से भारत की आर्थिक सेहत में बदलाव आयेगा। हमारे देश में प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की शुरूआत 9 जनवरी 2003 को  एनडीए सरकार के कार्यकाल में हुई। इस परंपरा का मूल मकसद दुनिया भर में फैले प्रवासी भारतीयों केा अपनी जडों से जोड़ना था। दिल्ली में आयोजित हुए पहले सम्मेलन में पूर्व प्रधानमंत्री  अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 देशों के प्रवासियों केा दोहरी नागरिकता देने का ऐलान किया। मगर उसपर कुछ खास नही हो पाया। हां जरूर मनमोहन सरकार ने उन्हें मत डालने का अधिकार जरूर दे दिया। इसी तरह परंपरा निभाने का कारवां आगे बड़ता जा रहा है। खास बात यह कि भरतवंशी भी इसमें बड़चड़कर कर भाग ले रहे हैं। आज देखें आशवासन और वादों की लम्बी फेहरिस्त तैयार हो गई। कुछ में काम हुआ कुछ कागजों में ही सिमट कर रह गई। जरूरी है इन वादों को बिना देरी किए पूरा किया जाए।

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