गुरुवार, 28 जून 2012

कंपनी विधेयक 2011


हमारे देश का कंपनी एक्ट 1956 का है। इसे आए हुए 55 साल बीत चुके हैं। इसमें अब तक 24 संशोधन हो चुके है। सरकार गहन विमर्श के बाद इसमें बदलाव करके नया कंपनी विधेयक लोकसभा में पेश कर चुकी है।वर्तमान दौर में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय आर्थिक परिदृश्य में व्यापक  बदलाव देखने को मिले है, और आगे भी यह बदलाव जारी रहेंगे। इस लिहाज से कंपनी एक्ट में बदलाव जरूरी था। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1956 में कंपनियों की संख्या 30 हजार थी जो आज बढ़कर 30 लाख से उपर हो गई है।  नए बिल में सीएसआर और कारपोरेट गर्वेनेंस का खासतौर पर जिक्र किया गया है। अगर बिल की खास बातों पर अगर नजर मारेतो माइनोरिटी शेयरधारक को संरक्षण देना, बोर्ड में एक महिला डायरेक्टर का होना आवश्यक, और आडिटर का रोटेशन जैसी बातें इसमें अहम हैं।फिलाहाल कंपनी विधेयक 2011 को दुबारा स्थायी समिति के पास भेजा गया है। विधेयक के प्रारूप के मुताबिक कंपनियों के लिए अपने दस्तावेजों को इलोक्ट्रेनिक फार्म में रखना अनिवार्य किया जा रहा है। साथ ही सीएसआर को भी अनिवार्य बना दिया गया है। मतलब यह कंपनियां लाभ का 2 फीसदी हिस्सा सामाजिक कार्यो में लगाऐंगी। कहा यह भी जा रहा है की सत्यम से सबक लेकर भी सरकार बहुत कुछ बदलाव कर रही है मसलन आडिटर की स्वतंत्रता जरूरी बहुत जरूरी है। अभी पब्लिक सेक्टर कंपनियों के लिए अपने लाभ का 5 फीसदी सीएसआर के तौर पर देते थे। अब कहा जा रहा है की सीएसआर के मामले में कंपनियां खुद फैसला करें और अगर वह ऐसा नही कर पाते तो इसका कारण बताऐं। अभी तक भारतीय कंपनी का विलय विदेशी कंपनी के साथ नही हो सकता था। हां विदेशी कंपनियों का विलय भारतीय कंपनियों के साथ हो सकता है। मतलब कोरस का विलय टाटा स्टील में हो सकता है मगर टाटा स्टील का विलय कोरस में नही हो सकता। इसमें संशोधन किया गया है। साथ ही इस बिल में इन्साइडर टेड्रिंग को अपराध की श्रेणी में लाया गया है।

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