गुरुवार, 28 जून 2012

गठबंधन का भविष्य


                                                   
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर एनडीए और यूपीए दोनों मे फूट पड़ गई है। जहां दीदी ने दादा के समर्थन को लेकरकुछ भी साफ नही किया है,वहीं एनडीए के दो महत्वपूर्ण घटक दल जेडीयू और शिवसेना राष्ट्रपति के लिए कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करेंगे। इस चुनाव ने गठबंधन में बनते बिगड़ते समीकरणों को हवा देनी शुरू कर दी है।  जेडीयू भाजपा से नाराज है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उसे बर्दाश्त नही हैं। प्रधानमंत्री सुधारों को लेकर विश्व बिरादरी को भरोसा दे चुके है। आर्थिक सुधारों पर फैसला ने लेने के टीस मिटाना चाहते हैं। मगर तृणमूल सुप्रीमों के रहते क्या सरकार इन सुधारों को अंजाम दे पाएगी। 16वीं लोकसभा का नजारा गठबंधन के लिहाज से कैसा होगा।क्या सरकार को ममता का विकल्प मिल गया है? क्या मुलायम सिंह यूपीए-2 के खेवनहार होंगे ठीक उसीतरह जिस तरह उन्होंने 2008 में अमेरिका के साथ नागरिक परमाणु समझौते के मुददे पर यूपीए की सरकारबचाई थी। सवाल मायावती और नीतिश कुमार को लेकर भी है मगर लगता नही की ये दल यूपीए की डूबती नैया का सहारा बनेंगे। इतना तय है कि ममता के रहते हुए सुधारों की राह में सरकार का चलना नामुमकिंन है। तीस्ता वाटर ट्रीटी से लेकर बीमा पेंशन बैकिंग रिटेल में एफडीआईल, लोकपाल और तेल के दाम बढ़ाने को लेकर वह हमेशा सरकार की किरकिरी करती रहीं है। एनसीटीसी के खिलाफ सरकारको झुकाना और बंगाल को स्पेशल पैकेज देने का दवाब वह आए दिन सरकार पर डालती रही हैं। कुछ सवाल और भी है खासकर वामदलों का प्रणव को समर्थन के पीछे आधार व्यक्तित्व है, बंगाली अस्मिता या ममता और कांग्रेस की दूरियों में उसे उसका फायदा नजर आ रहा है। उधर बीजेपी को संगमा का समर्थनक्या भविष्य की रणनीति का हिस्सा खासकार क्या वह 2014 से पहले अपने पुराने साथियों जयललिता औरनवीन पटनायक को दुबारा साधाना चाहती है।

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