गुरुवार, 28 जून 2012

देख तमाशा कुर्सी का- भाग 1


जेडीयू का प्रणब मुखजी को समर्थन देना व्यक्तिगत है या पार्टी की सोझी समझी रणनीति का हिस्सा। कुछ लोग इसे बिहार में मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने की मात्र कवायद के तौर पर देख रहे हैं साथ ही कुछ का कहना है की जेडीयू और बीजेपी की मित्रता अपने आखिरी पड़ाव में है। जहां तक मुस्लिम वोट बैंक का सवाल है 2010 के विधानसभा चुनावों में उन्हें अच्छा वोट मिला। जहां तक मुस्लिम वोटों का बिहार में सवाल है 1977 और 1989 में कांग्रेस के खिलाफ पड़ा। मतलब इसके 1989 तक कांग्रेस इनके वोटों की चैंपियन रही। 1989 के बाद 2005 तक लालू प्रसाद यादव को यह वोट पड़ा। इसके बाद नीतिश कुमार इसे कई मायने मेंअपने पक्ष में करने में सफल रहे। अब सवाल यह कि जेडीयू मोदी पर इतनी हमलावर क्यों। क्या नीतिश कुमार भी प्रधानमंत्री का ख्वाब पाले हुए है। जैसा ख्वाब ममता जयललितामुलायम और मायावती पाले हुए है। मगर यह कैसे मुमकिन होगा क्योंकि इन क्षत्रपों का दबदबा अपने राज्यों से बाहर नही है। वोट प्रतिशत के हिसाब से मायावती इस रेस में आगे है मगर यह मुमकिन दूर दूर तक नही दिखाई देता। कुछ लोग एनडीए का संगमा को समर्थन  को रणनीति का हिस्सा मानते है यह जानते हुए की प्रणव मुखर्जी की जीत तय है। क्या अगले चुनाव में जयललिता और पटनायक बीजेपी के साथ होंगे। यह मुमकिन है क्योंकि पहले यह दल साथ रहे चुके है।बीजेपी और बीजेडी 11 साल पुराना गठबंधन 2009 में टूटा। दोनो दल 1998 में साथ आए। इसके बाद 1998, 1999 और 2004 में चुनाव साथ मिलकर लड़ा। 2000 और 2004 में ज्यादातर सीटें जीती। मगर 2004 में कंधमाल घटनाक्रम और सीटों पर बात न बनती देख नवीन पटनायक ने बीजेपी से अलग होने का फैसला किया। जहांतक बात जयललिता की हैबीजेपी और जयललिता 1998 में साथ आए। 39 लोकसभा सीट में से एआडीएमके 18 सीटेंएमडीएमके 3 सीट राजीव इंदिरा कांग्रेस 1 सीट और बीजेपी को 3 सीटें मिली। इसे के साथ दक्षिण खासकर तमिलनाडू में बीजेपी का खाता खुला। मगर क्या बीजेपी उन 13 महिनों को याद नही करेगी की आखिर किस तरह जयललिता ने उसे गच्चा दिया था। इसके बाद डीएमके से उसका मेल हुआ।
 2004 में उसने आपसे नाता तोड़ा और यूपीए में शमिल हो गया।

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