रविवार, 10 मार्च 2013

नमोः नमोः मोदी

नरेन्द्र मोदी इन दिनों टेलीविजन चैनलों के लाडले बने हुए हैं। उनको कैमरे कैद करने के लिए आतुर है और उनके बोलवचन के लिए चैनलों के रिपोर्टर पागलों की तरह घूम रहें है। एक चैनल ने तो बकायदा सर्वे कर उन्हें देश का सबसे पसंदीदा प्रधानमंत्री घोषित कर दिया। बाकि भी अलग अलग अंदाज में मोदी परिक्रमा में जुटे हुए हैं। देश के सामने मूल प्रश्न आज यह है की गुजरात को विकास का माडल मानने वाले नरेन्द्र मोदी क्या भारत को विकास का माडल बना पाऐंगे। इस सवाल का जवाब शायद अभी कोई नही दे पाए। लेकिन इसमें कोई दो राय नही कि उन्होने अपने उपर विकासपुरूष होने का मुलम्मा चढ़ा लिया है। कल ही उन्होने धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित किया। इंडिया फस्र्ट। मगर सवाल है, क्या भारत का मतदाता मोदी फस्र्ट का नारा लगाऐगा? मोदी बीजेपी के खेवनहार बन पाऐंगे? उनके नाम पर मतदाता बीजेपी को वोट डालेगा। क्या भारत की समस्याओं का समाधान मोदी के गुजरात माडल में छिपा है। मैं भी मानता हूं किवह एक कुशल प्रशासक है। उन्होंने गुजरात में विकास किया है। मगर गुजरात हमेशा से विकास दर के मामले में अव्वल रहा है। हां यह कहा जा सकता है कि आज के इस माहौल में  भी उनकी छवि अभी तक एक साफ सुधरे नेता की है। मगर 2002 के उन दंगों का क्या, जिसमें 2 हजार से ज्याद मुसलमान मारे गए। अगर वह एक कुशल प्रशासक थे तो इतनी बडे़े पैमाने में एक खास समुदाय के लोगों का मारा जाना क्या उनकी प्रशासकिय अक्षमता को नही दर्शाता। क्या उस समय उन्होनें राजधर्म का पालन किया, जिसके पालन की सीख उन्हें तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दी थी। बाकी छोेड़िए उन्होने आज तक इस मासकिलिंग के मामले में देश से क्षमा भी नही मानी। इससे बेहतर तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है जिन्होन बिना संकोच  के साथ 1984 के सिख दंगों से माफी मांग ली। खैर मैं राजनीतिक दलों से ज्यादा अच्छा मोदी को समझता हूं जो मोदी के नाम पर मुसलमानों को को डराकर अपना वोट बैंक भरते है। चाहे वह बिहार में लालू हों या यूपी में मुलायम। कांग्रसे भी इसे धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता का रंग देने में जुटी रहती है। यह सभी बातें भारत के विकास के लिहाज से खतरनाक है। भारत के सामने गरीबी, अशिक्षा, बरोजगारी और आतंकवाद की चुनौति है। मोदी को देश को बताना चाहिए कि वह इसपर क्या सोचते हैं। बहरहाल इतना साफ है कि बीजेपी के पास मोदी के अलावा कोई  और ऐसा नेता नही है, जिसको आगे रखकर वह 2014 का आम चुनाव लड़ सके।

3 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
    अपनी कुरसी के लिए जज्बात को मत छेड़िये

    हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
    दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िये

    ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
    ऐसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेड़िये

    हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
    मिट गये सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िये

    छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़
    दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये.... :- अदम गोंडवी

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