शनिवार, 30 मार्च 2013

शिक्षा है मेरा अधिकार


शिक्षा का अधिकार कानून को आज तीन साल पूरे हो गए हैं। 1 अप्रैल 2010 से यह अस्तित्व में आया था। सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार,शिक्षा का अधिकार और अब भोजन का अधिकार जैसे कानून किसी भी देश की दिशा और दशा बदल सकते है बशर्ते की उन्हें अच्छी सोच के साथ लागू किया जाए। 3 साल बीत जाने के बाद भी कई स्कूल आरटीई के प्रावधानों का मज़ाक उड़ रहे है। बावजूद इसके की कानून के सभी पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट भी अपनी मुहर लगा चुका है। आरटीई को लेकर दरअसल बहस 25 फीसदी आरक्षण स्कूलों में लागू कराने पर रही। मगर बुनियादी सुविधा मसलन खेलन का मैदान, लड़कियों के लिए शौचालय, शिक्षा की गुणवत्ता और ड्राप आउट रेश्यों जैसे मुददों पर अब तक कई स्कूलों ने कुछ नही किया। सबसे बुराहाल शिक्षा का गुणवत्ता को लेकर है। हमारा उददेश्य बच्चों को सिर्फ स्कलू से जोड़ना नही है अपितु उन्हें गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करना है जो की नही हो रहा है। आज देश में 8.50 लाख शिक्षक ऐसे है जिन्हें किसी तरह की कोई ट्रेनिंग नही दी गई है। 11 लाख शिक्षकों की कमी है। इसमें सबसे ज्यादा हालात खराब देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश की है। आरटीई में छात्र शिक्षक अनुपात 30ः1 का प्रावधान है। मगर कई राज्यों में तो यह अनुपात 70ः1 का है। कई विद्यालय आज भी केवल एक शिक्षक के बल पर चल रहें है।बावजूद इसके सरकार शिक्षा पर भारी भरकम खर्च कर रही है। ऐसे में यह जरूरी है की जिन विद्यालयों ने कानून के प्रावधान को तीन सालबीते जाने के बाद भी इसे लागू करने में आनाकानी की है उसके खिलाफ सख्त से सख्त कारवाई हो।

1 टिप्पणी:

  1. jab tak buniyaadi sawaal par paise kharch nahi kiye jayenge, tab tak sirf rajya sarkaron ko paise de dene se kaam nahi hoga, quality aur standard political will se aayegi, jahan har koi sirf bhrastachar me duba hua hai to kahan se koi vikaas hoga aur private schools apne tarj par paise lete hain par quality bhi acchi provide karte hain, isliye log wahan pe khich rahe hain par bharat ka ek bada rabka ab bhi govt schools me jata hai , unka kya hoga koi nahi keh sakta

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