शनिवार, 23 नवंबर 2013

राजनीति में वादाखिलाफी क्यों!

चुनावी बिसात पर राजनेताओं का विकास का उदघोष। मानों भविष्य के कर्णधार देश को बदलने के लिए छटपटा रहें है। जनमानस को यकिन दिला रहें हों की समाज सेवा का कीड़ा कुछ कर गुजरने की चाह लिए हिलोरे मार रहा है। पांच साल में भारत को न जाने कहां पहुंचा देंगे। 66 साल का रिकार्ड के बारे में पूछना मना है। सड़क, बिजली, पानी, महंगाई, बेरोजगारी, सुरक्षा और क्षेत्रीय समस्याऐं का समाधान इनके मुताबिक इनके पास है। मगर इससे पहले इन्हें लोकतंत्र में पांच साल का सर्टिफिकेट चाहिए। यानि आपके मताधिकार का प्रयोग इनके पक्ष में होना चाहिए। इसके बाद ही यह आपकी सेवा करेंगे। यह सही बात भी है। क्योंकि कानून बनाने की ताकत संसद को है। विधानसभाओं का हैं। विकास की योजना सरकार बनाती है। मगर सवाल यह है क्या वाकई सियासतदान इस काम में माहिर हैं। आपका जवाब मुझे मालूम है। क्योंकि आजतक यही होता आया है। इसलिए 60 से 70 फीसदी लोगों को  जनता बदल देती है। मगर अगले पांच साल का बदलाव कुछ अलग नही होता इसलिए सवाल यह कि जनता कितने प्रयोग करेगी। इसलिए जरूरी है कुछ
जरूरी बदलाव। मसलन चुनावी घोषणा पत्र को कानूनी रूप दिया जाए। कोई सरकार विधायक यहां तक की गांव का सरपंच इन्हें पूरा नही करता तो उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी हो। चुनावी में सस्ता या फ्री अनाज, लैपटाप टीवी फ्रिज मंगलसूत्र आरक्षण या कुछ भी ऐसा जो लालच पैदा करता हो  तो इसपर प्रतिबंध लगना चाहिए। चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को और मजबूत बनाया जाए। आदर्श आचार संहिता को मजबूती से लागू किया जाए। हमारे नेताओं में एक खूबी कूट कूट के भरी है। मौके पर चैका लगाना। मगर जब दबाव रहेगा तो वादा करने से पहले 100 बार सोचेंगे। फिर न कोई कहेगा 100 दिन में महंगाई कम कर देंगे न ही कोई यह कहेगा 5 साल दे दो सब बदल दूंगा। भारत 1 अरब 25 करोड़ की जनसंख्या वाला देश है। यहां सभी
समस्याओं का निदान आसान नही मगर नामुमकिन नही। सिर्फ जरूरत है बेदाग और निशकलंक नेतृत्व की, तभी हम भारत की तकदीर और तस्वीर बदल सकते हैं। 

1 टिप्पणी:

  1. साहित्य-सलाह - महान साहित्यकार अषोक चक्रधर जी को समर्पित
    चाकू पर कद्दू को पटको या कद्दू पर चाकू
    दोनो से कद्दू कटता है, अब मान केजरी काकू
    जनता पर ये भार पडेगा, तुम्हे क्या लेना देना है
    आम आदमी के पि!जरे मे!, कुछ तोते कुछ मैना है!

    छत के नीचे छिपकलियो! को यही भ्रम तो होता है
    षदियो! से ये भार भवन का ,मेरा व!ष ही ढोता है
    रथ के नीचे चलने वाले कुत्ते की भी यही सोच हेै
    सारी जनता मस्ती मे! है केवल मुझ पर ही तो बोझ है

    नये-नये बछडो! से खेती बाडी कभी नही होती है
    हल,फल दानो एक साथ है!,केवल ताकत ही खोती है
    चलने मे! कुछ तेजी तो है पर अनुभव की बात नही हेै
    राजनीति मे! हल्के पन की, भारत मे! औकात नही है

    यू0पी 0मे! अखिलेश देख लो,कलकत्ता मे! ममता
    दिल्ली मे! राहुल की देखो ,राजनीति की क्षमता
    जिस अन्ना ने जन्म दिया हेै,उसको ही धुतकार रहे हो
    अन्ना ने जो मान लिया है ,उसको तुम नक्कार रहे हो

    हल्के पन की राजनीति को सारी दुनिया जान रही हेै
    अह!कार की परिभाशा को जनता भी पहचान रही हैे
    जिनके तुम विपरीत खडे़थे,वही तुम्ही को ठेल रहे है!
    मुझको तो लगता है दिल्ली वाले सब कुछ झेल रहे है!

    हे भारत भाग्य -विधाता,भारत को भारत मे! रहने दो
    ये डेढ़ अरब की जनता हेै,इसको भी कुछ कहने दो
    कविताओ! के वाक युद्व से सासन कभी नही चलता हेै
    कवि आग कहता हे भारत केवल अनुभव से पलता है!!
    राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
    ऋशिकेष
    मो09897399815

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