शनिवार, 23 नवंबर 2013

वोट फार शौचालय

साफ सुथरा रहना किसकों पसन्द नही। गंदगी से निजात हर कोई पाना चाहता है। मगर भारत में स्वच्छता ज्यादातर आवाम के लिए दूर की कौड़ी है। कारण साफ है। जागरूकता और सुविधाओं का आभाव। इसी के चलते 1 से पाॅच साल तक के बच्चे काल के गाल में समाते जा रहे है। 10 में से पांच बड़ी जान लेवा बीमारी आस पास की गंदगी की देन है।  उल्टी दस्त, पीलिया मलेरिया डेंगू और पेट में कीड़े की बीमारी रोजाना हजारों मासूमों की आंखों को हमेशा लिए बन्द कर देत हंै। अकेले डायरिया हजारें बच्चों को मौंत की नींद सुला रहा है। इनमें से एक तिहाई अभागों को तो इलाज ही नही मिल पाता। यह उस देश की कहानी है जो अपनी आर्थिक तरक्की में इतराता नही थकता। जहां सेंसेक्स प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को विकास का शिल्पी माना जाता है। जहां देश की आधी आबादी केा समान अधिकार देने की गाहे बगाहे आवाज़ सुनाई देती है। वही ज्यादातर महिलाऐं खुले में शौच जाने को मजबूर है। 1986 में सरकार ने केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता अभियान के सहारे इस बदनुमा दाग को धोने की कोशिश जरूर की। मगर हमेशा की ही तरह और योजनाओं की तरह यह योजना भी अधूरे में ही दम तोड़ती दिखाई दी। तब जाकर 1999 में सरकार ने सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान का नारा छेड़ा। अभियान के तहत सरकार शौचालय बनाने के लिए सरकार सब्सिडी दे रही है। सरकार के मुताबिक 2012 तक योजना के तहत तय किये गए उदेश्यों को पूरा कर लिया जाना था मगर हाल ही में एनएसएसओं के आंकड़े के जरिये यह पता चला है की भारत की 53 फीसदी आबादी आज भी खुल में शौच जाने के लिए मजबूर है। हालांकि सरकार ने इसका नाम बदलकर निर्मल भारत अभियान रख दिया है। जबकि नाम बदलने के बजायजमीन पर हालात को बदलना जरूरी है। उनमें ऐसे राज्य भी शामिल है जो दूसरे राज्यों को अपने लिए माडल बनाने का दंभ भरते हैं। मगर हमारे मुल्क में निर्धारित टारेगेटों केा समय से प्राप्त करना दूर की कौडी है। भविष्य के लिए भी सिर्फ कयास लगाए जा सकते है। आजादी के 67 सालों के बाद अगर हम केवल 37.2 फीसदी घरों तक शौचालय पहुंचा पाऐं है तो इतनी विशाल आबादी तक पहुंचने में एक लंबा वक्त लगेगा। एक देश जो अपने को विकसित राष्ट बनाने की ओर अग्रसर है। अपनी विकास दर पर इतराता है। राज्यों के मुख्यमंत्री विकास का ढंगा पीटते है अगर वहां शौचालय तक का प्रबंध नही है तो उनके विकास के दावों को पोल अपने आप खुल जाती है। मसलन गुजरात में यह कवरेज  केवल 34.24 फीसदी है, बिहार में 18.61, झारखंड में 8.33 फीसदी, मध्यप्रदेश 13.58 फीसदी, महाराष्ट 44.20 फीसदी, ओडिशा 15.32 फीसदी, राजस्थान 20.13 फीसदी तमीलनाडू 26.73 फीसदी, उत्तरप्रदेश 22.87 फीसदी पश्चिम बंगाल 48.70 फीसदी और छत्तीसगढ़ 14.85 फीसदी घरों में शौचालय का प्रबंध है। इनमें से ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्यों के विकास का तारीफ करते नही अघाते।  जिन राज्यों ने अच्छा काम किया है उसमें सिक्किम सहित उत्तरपूर्व के ज्यादातर राज्य के साथ साथ गोवा और पंजाब शामिल हैं । दिल्ली और चंडीगढ़ में भी यह समस्या का समाधान काफी हर तक निकाला जा चुका है। आज सच्चाई यह है कि विश्व में खुले में शौच करने वाले लोगों में 60 फीसदी भारतीय हैं। इस सबसे पूरे विश्व मे भारत की गंदी तस्वीर उभरती है। यह अब सिद्ध हो चुका है कि गंदे शौचालयों के कारण स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान होता है। भारत में हर साल 5 साल से छोटे 4-5 लाख बच्चे मौत के मुंह में समा जाते हैं और इसका प्रमुख कारण है गंदगी के कारण फैलने वाला हैजा तथा अन्य संक्रामक रोग। नये साक्ष्य सामने आये हैं कि साफ-सफाई न होने के कारण भारतीय बच्चों की लम्बाई कम होती जा रही है और उनकी आर्थिक उत्पादकता में कमी आ रही है। चिकित्सा अनुसंधानों से साफ हो गया है कि कुपोषण, जिसे प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय शर्म कहा है, का सीधा संबंध साफ-सफाई की खराब व्यवस्था और गंदे वातावरण से है। खुले में मल त्याग महिलाओं का अपमान है और उनके स्वाभिमान पर खुली चोट है। इससे पता चलता है कि साफ-सफाई केवल स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा ही नहीं है, बल्कि यह जीवन, जीविकोपार्जन और इन सबसे ऊपर मानवीय गरिमा को भी प्रभावित करता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें