अब हमें नींद से जगना होगा। अब हमें लड़ना होगा। किस बात पर गर्व करे?? लाखों करोड़ के घोटालों पर? 85 करोड़ भूखे गरीबों पर? 62 प्रतिशत कुपोषित इंसानों पर? या क़र्ज़ से मरते किसानों पर? किस बात पर गर्व करे?? जवानों की सर कटी लाशों पर? सरकार में बैठे अय्याशों पर? स्विस बैंकों के राज़ पर? किस बात पर गर्व करे?? राज करते कुछ परिवारों पर? उनकी लम्बी इम्पोर्टेड कारों पर? रोज़ हो रहे बलात्कारों पर? या भारत विरोधी नारों पर? किस बात पर गर्व करे?? जवानों की खाली बंदूकों ? सुरक्षा पर होती चूकों पर? पेंशन पर मिलते धक्कों पर? या इप्ल् के चौकों-छक्कों पर? किस बात पर गर्व करे?? किसानों से छिनती ज़मीनों पर? युवाओं की खिसकती जीनों पर? संस्कृति पर होते रेलों पर? या क्रिकेट-कॉमनवेलथ खेलों पर? किस बात पर गर्व करे?? साढ़े 900 के सिलेंडर पर? इस झूठी शान पर? या 'इंडियन' होने की पहचान पर? किस बात पर गर्व करे?? किस बात पर गर्व करे? अगर जनता नरेन्द्र मोदी को प्रधान मंत्री ना बनाये तो देश कैसे आगे बढे केजरीवाल के दिल्ली से भागने के प्रमुख कारण :- गर्मियां आ रही है फ़ोकट में पानी दे पाना नामुमकिन। कॉमन वेल्थ घोटाले पर कुछ न कर पाना। बिजली कम्पनियो का दाम घटाने से सीधा इंकार। आम आदमी पार्टी की आपसी फूट। दिल्ली की कानून व्यवस्था में कोई सुधार नहीं। मीडिया द्वारा केजरीवाल के झूठ का समय समय पर पर्दाफास करना। केजरीवाल को स्वयं एवं अपने साथियो की अनुभवहीनता का एहसास होना। कांग्रेस के साथ हुए गुप्त समझौते का उजागर होना | लोकसभा चुनावों की तैयारी ना कर पाना जिससे कांग्रेस के एन्टी वोट जो भाजपा को मिलने जा रहे हैं उसमे सेंध नहीं लग पा रही है | बार बार केजरीवाल के विधायक और मंत्रियों की काली करतूतें उजागर होना | जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल विधेयक के प्रस्तुत करने से पूर्व उप राज्यपाल की सहमति प्राप्त करने हेतु किसी भी प्रकार की कानूनी बाध्यता न होने के सम्बन्ध में दलीलें प्रस्तुत की थीं और उन दलीलों के पक्ष में कई जाने माने संविधान विशेषज्ञों के नाम का इस्तेमाल किया था उनसे लग रहा था कि उनका पक्ष किसी हद तक सही था. परन्तु जब तीन विशेषज्ञों ने तो पहले ही यह कह कर पल्ला झाड लिया था कि उनसे जनलोकपाल के बारे में राय ही नहीं ली गयी थी तथा आज जिस प्रकार से पूर्व सोलीसीटर जनरल सोली सोराबजी ने भी स्पष्ट कर दिया कि “मुझे बिल नहीं भेजा गया था. मैंने इसे पढ़ा नहीं. इसलिए न तो मैंने इसके पक्ष में राय दी है न विपक्ष में ” तथा जिस प्रकार उन्होंने "आप" को हिदायत दे डाली है कि अपने कामों को सही ठहराने के लिए उनकी राय का इस्तेमाल न करें, उसे देखकर आम आदमी यह सोचने को विवश है कि कहीं आम आदमी पार्टी केवल झूठ के आधार पर जनता को गुमराह करने की नयी ढंग की राजनीति तो नहीं कर रही है केजरीवलजी शुरु से ही झूठ का सहारा ले रहे हैं.. पहले बोले की चार कॉन्स्टिट्यूशन एक्सपर्ट ने उनको सपोर्ट किया है अब उसमे से
तीन ने मना कर दिया.. अब सोराबजी ने वी मना कर दिया . अब जबरदस्ती बिना सेंटर के अग्रीमेंट के बिल लाने के जिद्द को कैसे जस्टिफाइ करेंगे केजरीवाल.. कोई इसे त्याग' नहीं मानेगा। कैसा त्यागपत्र? त्याग कहां है इसमें? आप कोई भी एक म़ुद्दा बनाकर, उसे बढ़ाकर, उसे 'अदर एक्सट्रीम' तक ले जाकर जिम्मेदारी से हटना चाह रहे थे, सो हट गए। शीला के नाम से सत्ता में आए थे... अम्बानी का नाम लेकर भाग निकले... मजे की बात यह कि अधिकाँश चैनलों में मुकेश अंबानी का पैसा लगा हुआ है, फिर भी मीडिया पर सर्वाधिक कवरेज केजरी को मिल रहा है, और फिर भी इस "रोतले" को शिकायत है. किसी भी आपिये ने अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि - १) यदि गवर्नर के पत्र पर आपत्ति थी, तो उसे लेकर कोर्ट क्यों नहीं गए? २) आठ दिन रुक जाते तथा उस विधेयक को दोबारा राष्ट्रपति-केन्द्र के पास भेजते... जब वहाँ से वापस आता तो काँग्रेस-भाजपा के खिलाफ "एक्...सपोज"(?) केस और अधिक मजबूत बनता... तब इस्तीफ़ा देते... लेकिन ना तो "युगपुरुष" को न्यायालय पर यकीन है और ना ही इन्हें वहाँ ठहरना था... बस भागने की जल्दी हो रही थी... इनका मन तो नौटंकी-धरने में ही रमा हुआ है... इतना शानदार मौका गँवा दिया कुछ कर दिखाने का.
वो सेंटर को अपना बिल . . सेंटर मना कर देती फिर हम सब केजरीवाल को सपोर्ट करते.?
तीन ने मना कर दिया.. अब सोराबजी ने वी मना कर दिया . अब जबरदस्ती बिना सेंटर के अग्रीमेंट के बिल लाने के जिद्द को कैसे जस्टिफाइ करेंगे केजरीवाल.. कोई इसे त्याग' नहीं मानेगा। कैसा त्यागपत्र? त्याग कहां है इसमें? आप कोई भी एक म़ुद्दा बनाकर, उसे बढ़ाकर, उसे 'अदर एक्सट्रीम' तक ले जाकर जिम्मेदारी से हटना चाह रहे थे, सो हट गए। शीला के नाम से सत्ता में आए थे... अम्बानी का नाम लेकर भाग निकले... मजे की बात यह कि अधिकाँश चैनलों में मुकेश अंबानी का पैसा लगा हुआ है, फिर भी मीडिया पर सर्वाधिक कवरेज केजरी को मिल रहा है, और फिर भी इस "रोतले" को शिकायत है. किसी भी आपिये ने अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि - १) यदि गवर्नर के पत्र पर आपत्ति थी, तो उसे लेकर कोर्ट क्यों नहीं गए? २) आठ दिन रुक जाते तथा उस विधेयक को दोबारा राष्ट्रपति-केन्द्र के पास भेजते... जब वहाँ से वापस आता तो काँग्रेस-भाजपा के खिलाफ "एक्...सपोज"(?) केस और अधिक मजबूत बनता... तब इस्तीफ़ा देते... लेकिन ना तो "युगपुरुष" को न्यायालय पर यकीन है और ना ही इन्हें वहाँ ठहरना था... बस भागने की जल्दी हो रही थी... इनका मन तो नौटंकी-धरने में ही रमा हुआ है... इतना शानदार मौका गँवा दिया कुछ कर दिखाने का.
वो सेंटर को अपना बिल . . सेंटर मना कर देती फिर हम सब केजरीवाल को सपोर्ट करते.?
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