शनिवार, 13 जून 2015

बिन विचारे जो करे, सो पाछे पछताये!

बीजेपी के नेताओं का अतिउत्साह आप्रेशन म्यांमार में सरकार की किरकिरी कर गया। देश चाहे छोटा हो या बड़ा उसकी संप्रभुता उसके लिए सर्वोपरीहोती है। जब भारत में आप राज्यों के कामकाज में दखल नही दे सकते तो दूसरे देशों के बारे में सावर्जनिक टिप्पणी या यूं कहना की उनके जमीन पर जाकर उग्रवादियों पर हमला किया, किसी भी देश की संप्रभुता का मजाक बनाना है। प्रधानमंत्री कीविदेश नीति के पंचामृत मसलन संवाद, संस्कृति, सम्मान,सुरक्षा और समृद्धि के भी यह खिलाफ है। रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने अपने बयान से एक और भूचाल ला दिया कि आंतकियों को आतंकियों से मिटायाजाए। इन बयानों ने पाकिस्तान को बैठे बैठाये मुददा दे दिया। कुछ इसी तरह की गलती कोस्टगार्ड मामले में अलग अगल बयानों से हुई। एक तरफ मोदी सार्क देशों को साधने में लगे हैं। दुनिया में भारत की साख बड़ा रहें हैं। नतीजतन पाकिस्तान  सार्क में अलग थलग पड़ गया है। उसपर हमारे बचकाने बयान भारी पड़ रहें हैं। अब बात 56 इंच के सीने की।सीना आपका 56 का हो या 156 इंच का। क्या आप पाकिस्तान के खिलाफ इस तरह के आपरेशन को अंजाम दे सकतें हैं? मुंबई हमलों का मुख्य अरोपी जकीउर रहमान लखवी और मास्टरमाइंड हाफिज सईद खुले आम पाकिस्तान में घूम रहें है। भारत के खिलाफ आग उगल रहें है। इनके खिलाफ कोई कुछ नही करता। दाउद को पकड़कर क्यों नही लाया जाता। दूसरे देश की छोड़िये आपके श्रीनगर में आए दिन अलगाववादी भारत विरोधी गतिविधियों को हवा देने और पाकिस्तान जिन्दाबार के नारे लगाते में जुटे हैं। हम उनका क्या बिगाड़ पाए। एक एनसीटीसी तो आप राज्यों के मत के बिना बना नही सकते दूसरे देश की संप्रभुता के चीरहरण का अधिकार आपको किसने दिया। राज्यवर्धन सिंह राठौर से इसका जवाब मांगा जाना चाहिए। कहने का तात्पर्य कोई भी बयान समय पात्र और परिस्थिति को ध्यान में रखकर दिया जाए। आपका अतिउत्साह देश के शक्ति बोध को नुकसान पहुंचा रहा है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें