सोमवार, 1 जून 2009

मिशन इकोनॉमी



बाजार में रौनक लौटने लगी है। क्या यह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जादू है। आर्थिक मंदी के प्रभाव से मुरझाये बाजार में अचानक तेजी आ गई है।
निवेशक अब बाजार में अपना पैसा झोंक रहे है। 2008 -09 की 6.7 फीसदी
विकास दर ने भी आशा बंधाई है। हालांकि जानकार पहले इस तेजी के बने रहने पर संकोच जताते रहे। लेकिन अब वो इसकी तेजी के प्रति आश्वस्त है। सरकार के लिए आर्थिक क्षेत्र में कई चुनौतियॉं मुंह बायें खडी है। अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने के साथ साथ रोजगार पैदा करने और मॉंग बढ़ाने के लिए नीतियॉं तय करती होंगी। जिन क्षेत्रों में हालात खराब है उनके लिए कुछ कदम उठाने होंगे। सरकार को यह भी तय करना चाहिए की जो दो बेलाआउट उसने दिसम्बर और जनवरी में दिये। करों में जो राहत दी गई उसका असली फायदा क्या आम आदमी तक पहुंचा है। रिजर्व बैंक ने जिस तेनी से मौद्रिक उपाये किये क्या उतनी ही तेजी से बैंकों ने इसका फायदा आम आदमी को पहुंंचाया है। वित्त मंत्रालय की कमान संभालने के बाद प्रणव मुखर्जी ने इसके संकेत भी दिये। बैंको ने एनपीए का खौफ दिखाकर लोन देने में कंजूसी बरती। लोन देने के बजाय उन्होने अपना धन रिजर्व बैंक के पास रखना ही बेहतर समझा। बडे बडे उघोगों ने मंदी के नाम पर लोगो की रोजी रोटी से खिलवाड किया। ऐसा नही था कि हालात इतने खराब हो चुके थे। ज्यादा मुनाफा कमाने की हमारे उघोग जगत की प्रवति पर कौन बोले। उन्हें राहत की डोज तो बडे पैमाने पर चाहिए। मगर जनता के फायदे के लिए अपने मुनाफे का हिस्सा देना उन्हें गवारा नही। मनमोहन सरकार के सामने करने को बहुत कुछ है। विनिवेश की रूकी हुई गाडी को अब वो सरपट भगा सकते है। इससे राजकोशीय घाटे को कम करने के लिए संसाधन सरकार जुटा पायेगी। बुनियादी ढॉंचे में निवेश बढाना प्राथमिकता में होगा। इसके अलाव प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भी दरवाजे खोलने होंगे। बीमा बैकिंग और खुदरा बाजार में इसकी जरूरत है। साथ ही सरकार को नरेगा जैसी योजनाओं को बढावा देने के लिए कुछ और कदम उठाने होगें। नरेगा योजना की तारीफ में नया नाम आईएलओ का जुडा है। इसके बाद इसी मॉडयूल को शहर में लागू करने में सरकार को आसानी होगी। खाघ सुरक्षा कानून जितनी जल्दी अमल में लाया जायेगा उतना बेहतर है। शिक्षा स्वास्थ्य और कृशि को बड़ावा देने के लिए कुछ और कदम की आवश्यकता होगी। भूमण्डलीकरण का यह दौर चुनौतियों से भरा है। ऐसा जरूरी नही की सबकुछ आपके हिसाब से चले। खतरा तो उठाना ही पडेगा। टीम मनमोहन को पास खुलकर खेलने का मौका है। सवाल यह है कि समग्र विकास की अपनी कथनी को क्या वो करनी में बदल पायेगें।

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