शुक्रवार, 5 जून 2009

नापाक पाक और दो मुहॉं अमेरिका

लाहौर हाइकोर्ट से जमात उद दावा के चीफ हाफिज मुहम्मद सईद के रिहाई का आदेश भारतीय कूटनीतिकारों के लिए एक बढा झटका है। उससे बडा झटका अमेरिका ने दिया है जो आतंकवाद को अपना सबसे बडा शत्रु मानता है। इस मामने में बोलने को तैयार नही। उलटा एक एडवाजरी जारी कर अपने नागरिकों को पाकिस्तान और भारत में सोच समझ कर जाने की चेतावनी दे दी। अमेरिका का दोहरा रवैया एक बार फिर सबके सामने आ गया। हांलाकि भारत सरकार ने इस बयान पर अपनी नाखुशि जाहिर कर दी। आखिर अमेरिका का इसके पीछे क्या आशय हो सकता है। अमेरिका आतंकवाद को अपनी तरह से परिभाशित करता आया है। अलकायदा और तालीबान उसके लिए बडा खतरा है। इन्ही को मिटाने की चाहत वो रखे हुए है। इसके लिए उसे पाकिस्तान की जरूरत है। पैसे के दम पर इसमें वो सफल भी हो रहा है। आज भारत की आतंकवाद के प्रति नीति जीरो टौलरैंस की है। कूटनीतिक प्रयासों के साथ साथ उसे सुरक्षा के व्यापक इंतजाम करने चाहिए। जमीन आसमान और समंदर में सख्त पहरा हो। खुफिया तंत्र इतान मजबूत हो कि किसी भी साजिश का भंडाफोड समय रहते हो सके। उधर पाक ने कश्मीर राग अलाप कर अपनी सोच उभार दी है। इसलिए भारत की विदेश नीति की चुनौतियां कम नही है। मगर यह झटका एक सीख भी देता है। अपने भरोसे आगे बडो।।झटका इसलिए भी क्योंकि पहली बार नानुकूर करने वाले पाकिस्तान को भारत ने मजबूर कर दिया यह मानने के लिए कसाब उनके देश का नागरिक है। 26 ग्यारह हमले को अंजाम पाकिस्तान की जमीन से दिया गया। जमात उद दावा पर प्रतिबंध लगाने से लेकर उसके चीफ हाफिज मुहम्मद सईद की गिरफतारी को भारत एक बडी कामयाबी के तौर पर देख रहा था। हाल ही में अमेरिका कांग्रेस की रिपोर्ट में यह भी खलासा हुआ कि पाक के 60 परमाणु मिसाइलों का मुंह भारत की ओर है। इतना ही नही इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान गुपचुप तरीके से परमाणु प्रसार में लगा है। वो पाकिस्तान जिसे अपनी माली हालत सुधारने के लिए समय समय पर अमरीका का मुहं देखना पडता है। कहानी यही खत्म नही होती लश्करे तैयब्बा से जुडा आजम चीमा और जैश ए मुहम्मद का चीफ मौलान मसूर अजहर पर पाबंदी लगाने के लिए ब्रिटेन और चीन ने और सबूत की मॉग की है। भारत ने इस मामले की अपील संयुक्त राश्ट्र में की थी। यह उस पाकिस्तान की कहानी है जिसके प्रधानमंत्री से लेकर राश्ट्रपति और आर्मी चीफ आतंकियों को निस्तोनाबूद करने की कसम खा रहे है। और इस अभियान में उनका सबसे बडा साथी अमेरिका है। इन सारे घटनाक्रमों के बाद पाकिस्तान की कथनी और करनी में एक बार फिर अंतर दिखाई देने लगा है। अब देखना यह होगा कि पाकिस्तान और अमेरिकी रवैये का जवाब भारत किस तरह से देता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके ब्लॉग को देखा , पोस्ट पढ़कर राष्ट्रवाद की बू आती है .............. अगर सच है तो हमने आपको आमंत्रण भेजा है हमारे सामुदायिक ब्लॉग पर लिखने हेतु , स्वीकार कीजियेगा .

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