मंगलवार, 2 जून 2009

बंदे में है दम

उतराखंड में कपकोट सीट जीताकर भगत सिंह कोश्यारी ने अपना लोहा आखिरकार मनवा लिया। अब बारी केन्द्रीय नेतृत्व की है कि वो इस मामले को कितनी गंभीरता से लेते है। इस बार बीजेपी चूकी तो फिर संभल नही पायेगी। दरअसल विधायकों का एक बडा कुनबा मुख्यमंत्री खंडूरी को नही पसंद करता। इसकी शिकायत लेकर वो दिल्ली भी आ चुके है। मगर दिल्ली के नेताओं ने इसे तरजीह नही दी । नतीजा 1984 के बाद कांग्रेसियों ने प्रदेश की पॉचों सीट पर अपना कब्जा जमा लिया। प्रदेश अध्यक्ष बच्ची सिंह रावत तो हारे ही खंडूरी भी अपनी सीट नही जितवा पाये। इससे यह जाहिर होता है की खंडूरी की कार्यशौली से जनता कितनी खुश है। उधर कांग्रेसीयो के खुश होने के लिए कुछ ज्यादा नही है। बीजेपी के कामकाज से नाराज लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया। मगर कांग्रेसी ठहरे जीत में सब कुछ भूल जाते है। कपकोट में कांग्रेस का तीसरे पायदान में जाना क्या दिखाता है। क्या सही व्यक्ति को टिकट नही दिया गया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष से यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए। जरूरी यह है कि इस हार की समीक्षा जरूरी है। बेजेपी में फेरबदल के संकेत मिल रहे है मगर क्या कांग्रेस में बदलाव की जरूरत नही है। आज उतराखण्ड में कांग्रेस को एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत हैं। समय रहते कांग्रेस को यह बदलाव कर देने चाहिए। वरना अगला फैसला बीजेपी के पक्ष में जाते देर नही लगेगी। कांग्रेस के पास उत्तराखंण्ड में इंदिरा हरदेश सरीखी मजबूत नेता है। मगर कांग्रेसी खुद अन्दर खाने विधानसभा में उनकी जड़ काट चुके है। मगर फैसला केन्द्रीय नेतृत्व को लेना है। अब वो दौर भी नही रहा जब नारायण दत्त तिवारी जैसे नेता के नाम पर वोट मिल जाए। अब जनता ने वोट काम के आधार पर देना शुरू कर दिया है। पीडब्लूडी विभाग संभालते हुए इंदिरा हिरदेश सडकें बनाने में यह कारनामा दिखा चुकी है। अब सिर्फ इंतजार है कि बीजेपी कोश्यारी को लाती है या नही। इधर कांग्रेसियों को भी बदलाव की जरूरत है। मगर कब करेंगे।

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