रविवार, 26 दिसंबर 2010

कांग्रेसवाणी

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का अंकाड़ा जब 200 को पार कर गया तो पार्टी में हर कोई फूले नही समा रहा था। कोई इसे सोनिया राहुल का करिश्मा बताते नही थक रहा था तो कोई इसे काम का इनाम बता रहा था। चुनाव ने सबकों चैंकाया भी। खासकर आंध्रप्रदेष में मिली 33 लोकसभा सीटें या दिल्ली उत्तराखंड की एकतरफा जीत। ऊपर से यूपी के फैसले ने तो मानों मन की मुराद पूरी कर दी। यह कांग्रेस का फीलगुड फैक्टर का दौर था। प्रधानमंत्री ने मंत्रीमंडल के सहयोगियों को कह दिया की पहले 100 दिन के कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करें और फिर रिपोर्ट कार्ड पेश करें। सारे मंत्री इसी पर लग गए। कोई शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन की बात कर रहा था तो कोई एक दिन में 20 किलोमीटर सड़के बनाने की। माहौल ऐसा बना गया कि मानों कांगे्रसी 60 साल के तकलीफों को 100 दिन में दूर कर देंगे। बहरहाल जनता यह सब देख रही थी। यही वह दौर था जब खाद्य आधारित महंगाई अपने चरम पर थी। आवष्यक चीजों के दाम आसमान छू रहे थे। सरकार कम होनी की भविष्यवाणी करकर अपना दामन बचा रही थी। इसके बाद अचानक एक अखबार ने खबर प्रकाशित की की केन्द्र सरकार के दो मंत्री होटल में रूकते हैं और बिल करोड़ो में पहुंच गया है। ध्यान रहे यह 100 दिन के पहले की उपलब्धि है। इसके पास कांग्रेसियों के बचत का नाटक शुरू हुआ। बिजनेस क्लास की जगह इकोनामी क्लास में सफर कर उदाहरण पेश किए जाने लगे। ऐसा लग रहा था की हिन्दुस्तान की सारी फिजूलखर्ची रूक गई है। मगर एक साहब को यह सब पसन्द नही आया। भला वो भी कब तक नाटक करते कह दिया इकोनामी क्लास कैटल क्लास है। फिर नाम आ गया आइपीएल में। आगे क्या हुआ आप जानते है। सनद रहे की महंगाई से जनता को कोई राहत नही मिल पा रही थी। इस मोर्चे पर जनता के पास वाकई कुछ था तो भविष्यवाणियां। किसी तरह 100 दिन खत्म हुए। लम्बे चैड़े वादों का कुछ नही हो पाया। खैर इसमें किसी को हैरानी नही हुई। पब्लिक है यह सब जानती है। कांग्रेस के लिए सबसे दुखी समाचार आंध्रप्रदेश से आया वह कि राजशेखर रेडडी नही रहे। इसके बाद यहां लगभग मृत हो चुके तेलांगाना मुददे ने जो जोर पकड़ा उसने सरकार की जडें हिला दी। इस बीच मीडिया राष्टमंडल खेलों की तैयारी के पीछे हाथ धोकर  पड़ गया। भ्रष्टाचार के कई सीन सामने आए। बहरहाल जांच चल रही है। सरकार की न सिर्फ देश में भी किरकिरी हो गई बल्कि उसकी विदेशी साख पर मानो रोडरोलर चल गया। वो तो भला हो खिलाड़ियों का जिन्होने लाज बचा दी। इधर रेल हादसों की संख्या में तेजी से बढोत्तरी हुई। सरकार को अपनी नक्सल नीति के चलते भी विरोध का सामना करना पड़ा। खासकर कुछ बड़े हादसों के चलते। बिहार में एकला चलो का नारा फ्लाप शो साबित हुआ। इसके बाद तो मानो पहाड़ ही टूट गया। राजा के खेल में सरकार ऐसी फंसी की आगे कुआ पीछे खाई की नौबत आ गई। इस खेल ने मिस्टर क्लिन को भी मुश्किल में डाल दिया। बची खुसी कसर सुप्रीम कार्ट की सख्त टिप्पणीयों ने पूरी कर दी। चाहे वह सड़ते राशन मुफ्त में बांटने को लेकर हो या मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर। बहरहाल साल खत्म होने को है मगर कांगे्रस की मुष्किल कम होने काम नाम नही ले रही है। डीएमके डरा रहा है ममता धमका रही है। सुप्रीम कोर्ट रूला रहा है और विपक्ष चिड़ा रहा है। आंध्रप्रदेष का हाल क्या होगा। किसी को पता नही। बहरहाल हम तो यही दुआ करेंगे की 2011 का सूरज इस पार्टी के लिए नया सवेरा लेकर आए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें