बुधवार, 10 अप्रैल 2013

जमीन अधिग्रहण


सरकार वही है मशीनरी वही है क्या विधेयक कानून का शक्त में आने से सब कुछ ठीक ठाक हो जाएगा।
भारत ने अब तक 1 फीसदी जमीन रिडस्टब्यूट की है।
मंत्रियों के समूह ने जमीन अधिग्रहण बिल को दी हरी झंडी। माना जा रहा है की शीतकालिन सत्र में इसे
संसद में पेश किया जाएगा।
कब से होगा लागू
कितने लोगों की सहमति चाहिए। पहले 80 फीसदी अब 66 फीसदी। आदिवासी क्षेत्र में जमीन लेने
के लिए पंचायत की सहमति जरूरी।
पुर्नवास और पुर्नस्थापन में जमिन मालिक और जो उसमें निर्भर है दोनो का ख्याल।
बहुुफसली जमीन का अधिग्रहण न हो।
क्या सरकार को निजि उघोगो के लिए किसान से जमीन अधिग्रहित करनी चाहिए। सरकार में ही मतभेद।

इंडस्ट्री निजि व्यक्ति अगर जमीन खरीदता है तो आआर का प्रावधान वहां लागू न हो।
अगर सरकार जमीन अधिग्रहण में भूमिका निभाए तभी हो आर एण्ड आर लागू हो।
आरएण्ड आर का पैसा कम करा जाए इसे उघोगपतियों पर भारी बोझ पड़ेगा।

शहरी क्षेत्र में मुआवजा बाजार दर के हिसाब से।
मुआवजा राज्य सरकार के उपर ।
सिंचाई परियोजना के लिए अगर जमीन अधिग्रहित की जाती है
दूसरी परियोजानाअेां के पसेसन से पहले पुर्नवास जरूरी।

एक अनुमान के मुताबिक पिछले 2 दशक में 7 लाख 50 हजार एकड़ जमीन माइनिंग के लिए अधिग्रहित
की गई है। और 2 लाख 50 हजार एकड़ जमीन उघोगों के लिए ली गई है।

प्रत्येक भूमिहीन और आश्रयहीन परिवारों को 10 डिसमिल मतलब 4035 स्कावर फिट मतबल 1 डिसमिल
का मतबल 435.61 स्कवायर फिट।  भूमि की गारंटी दे सरकार।

मकसद जमीन अधिग्रहण की नीति पारदर्शी हो और लोगों को उनकी जमीन का सही दाम मिले।
बिल का नाम राइट टू कंपनसेशन, रिसैटैलमेंट रिहैबीलीटेशन एण्ड ट्रांसपेरेसी इन लैंड एक्वीजीशन एक्ट।

पहले गांव में जमीन का दाम- बाजार भाव से चार गुना
पहले शहर में जमीन का दाम- बाजार भाव से दो गुना
अब
शहर से 10 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाली जमीन बाजार भाव से दो गुना
40 से 50 किलोमीटर दायरे में 4 गुना

कुछ बुनियादी बातें
1-सार्वजनिक उददेश्य को स्पष्ट किया गया है। उससे आप संतुष्ट हैं।
2-अर्जेसी क्लाज कहां लगेगा यह स्पष्ट किया जाएगा।
नेशनल डिफेंस एण्ड सिक्योरीटी पर्पस
आरएण्ड आर प्राकृतिक आपदा के समय
3-अधिग्रहण और पुर्नवास साथ साथ
4- खाघ सुरक्षा
बहुफसली जमीन का अधिग्रहण नहीं।
अगर होगा तो जिले में 5 फीसदी
5- पुर्नवास के क्षेत्र में 25 बुनियादी सेवाऐं।
स्कूल स्वास्थ्य सड़क दुकाने

निजि क्षेत्र के लिए जमीन अधिग्रहण में पुर्नवास का प्रावधान
100 एकड़ ग्रामीण
50 एकड़ शहरी क्षेत्र में
प्राइवेट निगोशियेशन, जिला अधिकारी के यहां एप्लीकेशन देनी होगी।
पुनर्वास से संबंधित अधिकारी कमीशनर उस प्लान को अप्रूवल देगा।

विधेयक में कहा गया है की राज्य अपना कानून बना सकते है चूंकि जमीन की खरीद फरोख्त राज्यों का विषय है।
राज्य मुआवजे में बढ़ोत्तरी भी कर सकते हैं।
मुआवजा देने की समय सीमा- तीन महिने
पुनर्वास  के लिए समय सीमा - 6 महिने

विशेष आर्थिक क्षेत्र कानून पर भी लागू होगा पुर्नवास के प्रावधान
पेंडिग प्रोजेक्ट पर भी पुर्नवास के प्रावधान लागू होंगे।
अगर मुआवजा तय समय से नही दिया जाता तो 12 फीसदी कंपनसेशन नोटीफीकेशन की तारीक के दिये जाएगी।

सोशल इंपेक्ट एसेसेमेंट
नेशनल लेवर में समिति
राज्यों की समिति एलएएण्डआरआर
मुख्य सचिव राज्यों के पुर्नवास अधिकारी
जिलाधिकारी

जमीन का इस्तेमाल पांच साल तक नही होता तो उसे वापस करने का प्रावधान
पहले यह समयसीमा 10 साल की थी।
सार्वजनिक निजि भागीदारी से जुड़ी परियोजनाओं के सरकार की भूमिका नही होनी चाहिए। मंत्रालय ने इसे
मानने से इंकार कर दिया है।

जमीन अधिग्रहण बनाम विकास
यह बहस दशकों पुरानी है। मगर अब यह सरकार के लिए मुश्किले पैदा कर रही है। जमीन अधिग्रहण सरकार के लिए चुनौति बना गया है।
समय से अधिग्रहण ने होने के चलते कई परियोजनाऐं अधर में लटकी है। कई परियोजनाअेंाकी लागत आसमान छू रहीं है। इतना नही नही अब
 विदेशी निवेशक भी जमीन अधिग्रहरण में होती
देरी के चलते दूसरें देशों का रूख कर रहें है।
आखिर क्यों बन ऐसे हालात
118 साल पुराने जमीन अधिग्रहरण कानून समय रहते कानून में बदलाव क्यों नही किया गया
जमीन अधिग्रहण और पुर्नवास विधेयक 2011, 7 सितंबर 2011 को लोकसभा में पेश किया
जा चुका है हम बताऐंगे आपको इसमें क्या है खास
यह कानून 1894 के कानून की जगह लेगा
जमीन अधिग्रहरण का ंक्यों करते है किसान विरोध
किसी तरह जमीन अधिग्रहरण लगा रहा है विकास में रोड़े
देश में बड़ी योजनाऐं कैसे लटकी है अधिग्रहण समय से हो पाने के चलते
आज इनसाइट पर इसी पर चर्चा।

118 साल पुराने कानून के सहारे हम

जमीन अधिग्रहण
देरी से चल रही परियोजनाऐं
कुल 566 परियोजनाऐं इनमें 234 देरी से चल रही हैं
सड़क   95
बिजली  45
पेट्रोलियम 30
कोयल  17
रेलवे   26
पोर्ट और बंदरगाह 12
जमीन अधिग्रहण की देरी का सबसे ज्यादा असर सड़क परियोजनाओं पर पड़ रहा है।

केन्द्र सरकार ने विशेष जमीन अधिग्रहण यूनिट राज्यों में स्थापित की हैं।
जमीन अधिग्रहण में तेजी लाने के लिए सरकार हाई पावर समिति बनाने जा रही है।
चुनौति क्या रहेगी।

छत्तीसगढ सरकार का कहना
विधेयक का अध्याय की तीन धारा 10 एक के मुताबिक किसी भी सिंचित बहु फसली भूमि का अर्जन नही किया जाएगा।यह विचार आपत्तिजनक
है और अव्यवहारिक है  इस संर्पूण अध्याय को हटा देना चाहिए। जिले में जो पांच प्रतिशत आपने कहा उसे राज्य में पांच प्रतिशत कर देना चाहिए।

धारा 10 तीन कहता है बहुफसली सिंचित जमीन को अगर अर्जन किया जाता है तो समतुल्य क्षेत्र बंजर भूमि का विकास किया जाए।
इस उपबंध को अनिवार्य नही बनाना चाहिए क्योंकि जो फ्री होल्ड बंजर भूमि है उसे पाना कठिन है।
मान लिजिए भूमि अर्जन समवर्ती सूची में आता है तो राज्य सरकार अपने हिसाब से संशोधन कर सकते हैं।
बहुफसली क्षेत्र को परिभाषित किए जाने की जरूरत है।
शहरी विकास मंत्रालय कहता है कि महानगरों में इस पर छूट दी जाए। वहां सिंचित भूमि है भी नही।

कृषि मंत्रालय कहता है कि अधिग्रहण करने वाला उतनी जमीन सिंचित बनाएगा।

सहमति को लेकर
80 फीसदी पर भी सवाल
महाराष्ट सरकार 51 फीसदी
विद्युत मंत्रालय 50 फीसदी
निजि लोगों के लिए 80 फीसदी स्वाकार्यता हासिल करना कठिन ही नही नामुमकिन है।
ग्राम सभा का अपना रोल हो।
12वीं योजना में आप 50 लाख करोड़ रूपया अपने बुनियादी ढांचे में खर्च करने की बात
 कर रहें हैं। 50 फीसदी आप निजि क्षेत्र से लाना चाहतें है। मगर इससे पहले आपको इन प्रक्रियाओं केा
तो दुरूस्त करना पड़ेगा।

नया जमीन अधिग्रहण और पुर्नवास विधेयक 2011 में क्या है खास
इसमें किसानों के अधिकारों

आप शेयर प्रदान करेंगे। नाराजगी इस बात की है कि किसान बाजार का विशेषज्ञ नही है।
मसलन जनजातिय इलाकों में भूमि की खरीद फरोक्त बहुत कम होती है लिहाजा वहां रेट कैसे तय किया जाए।

विधेयक का खंड 38 राष्टीय सुरक्षा प्राकृतिक आपदाओं से उपजी अपात स्थिति में अधिग्रहण के लिए विशेष शक्तियां। 48 घंटे का नोटिस
मुआवजा बाजार मूल्य से 75 फीसदी अतिरिक्त।
इमरजेंसी क्लाज का इस्तेमाल रेयरेस्ट आफ द रेयर स्थिति में
फिक्की का यह कहना है की आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि लोग अपनी जमीन
बेचकर किसानी से पिंड छुड़ाना चाहते है। मगर सरकार उन्हें ऐसा करने नही दे रही है
कंपनियों को भारी भरकम पैसा आर एण्ड आर में खर्च करना पड़ेगा
क्योंकि कोई अपर लिमिट नही रखी गई है।
प्राइवेट कंपनी को बाजार भाव में सीधे जमीन किसान से खरीदने का हक मिलना चाहिए? फिक्की
जमीन अधिग्रहण कानून 1894 में क्या थी खामियां
निजि क्षेत्र के लिए जमीन अधिग्रहण करना
पब्लिक परपस को सही तरीके से परिभाषित नही किया गया
अरजेंसी क्लाज का गलत इस्तेमाल
उपजाउ जमीन का अधिग्रहण
सही मुआवजा नही मिलना
अधिग्रहरण का पुर्नवास और आजिविका से संबंध नही होना
भ्रष्टाचार और पारिदर्शिता का अभाव लोगों की नाराजगी। एक अनुमान के मुताबिक 1950 के बाद
4 से 6 करोड़ लोग विस्थामित हुए हैं । इसमें से 50 फीसदी आदिवासी हैं। केवल 20 फीसदी लोगों के
पनर्वास की व्यवस्था हो पाई है।
नए कानून में क्या है खास
निजि क्षेत्र के लिए होने वाले अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी लोगों की मंजूरी
जमीन अधिग्रहण और पुनर्वास साथ साथ
बहुफसली जमीन का अधिग्रहण किसी भी कीमत पर नही केवल खास परिस्थितियों में
सोशल इंपैक्ट ऐसैसमेंट जरूरी
अरजेंसी क्लास का इस्तेमल रक्षा, सुरक्षा और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में
न्यूनतम मुआवजा ग्रामीण क्षेत्र में रजिस्टर्ड वैल्यू के चार गुना और शहरी क्षेत्र में दो गुना
इसके अलावा 20 फीसदी अपरिसियेटेड जमीन मालिक को देनी होगी
25 फीसदी कंपनी के शेयर मुआवजे के तौर पर
पुर्नसार में क्या है खास
प्रति महिने प्रति परिवार 3000 रूपये का मुआवजा 12 महिने तक
एक नौकरी, या 5 लाख या 20 साल तक 2 हजार प्रति माह
घर जाता है तो इंदिरा आवास योजना के तहत घर दिया जाएगा

विस्थापन का दर्द
डाॅ वाल्टर फर्नांडिस का अध्यन क्या कहता है।
1947 से 2004 की अवधी में करीब 6 करोड़ के विस्थापन का अनुमान। जमीन तकरीबन 25 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र और इसमें 7 मिलियन हेक्टेयर
वन क्षेत्र और 6 मिलियन हेक्टेयर अन्य सामान्य संपदा संसाधन शामिल है।
देश में जनजातिय लोगों की संख्या कुल आबादी का 8.08 फीसदी है मगर विस्थापन या प्रभावित लोगों में इनकी संख्या कुल 40 फीसदी है।
विस्थापितों में 20 फीसदी संख्या दलितों की है और 20 फीसदी ओबीसी की। केवल एक तिहाई व्यक्तियों का पुर्नवास।

क्या निजि कंपनियों के लिए सरकार को भूमी अर्जन करना चाहिए
भूमि सरकार का विषय है जबकि अधिग्रहण समवर्ती सूची के तहत आता है।









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