गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

चीनी पर घमासान

चीनी को सरकार ने किया बाजार के हवाले।
इससे बढ़ेगा सब्सिडी का बिल। यह दुगना बढ़कर 5300 करोड़ हो जाएगी।
अभी तक चीनी के उत्पादन से लेकर वितरण और आयात से लेकर निर्यात तक सरकार का नियंतण था।
अपने उत्पादन का 10 फीसदी 20 रूपये किलो के हिसाब से सरकार को देती है। अब यह नही देना होगा।
चीनी के आयात और निर्यात को एक टैरिफ ढांचे के द्धारा नियंत्रित किया जाएगा।
चीनी के खरीद मूल्य को लेकर किसान कर रहे हैं आंदोलन
किसानों की मांग 3000 रूपये प्रति  की मांग
गन्ना मिल 2300 में सहमत
किसानों के आंदोलन ने पकड़ हिंसक रूप
क्या किसानों की मांग वाजिब
अभी सरकार चीनी के उत्पादन से लेकर वितरण तक में नियंत्रण रखती है। यानि बाजार में कितनी चीनी उतार नी है यह सरकार तय करेगी।
 कितनी चीनी का निर्यात करना है यह सरकार करेगी।

पश्चिम महाराष्ट्र
स्वाभिमानी सेतकारी संगठन की मांग। यह किसानों का संगठन।
कांग्रेस फैसल नही ले पा रही है। एनसीपी इसके विरोध में है। शिवसेना और बीजेपी किसानों के मांग का समर्थन करते है। अन्ना और
अरविंद केजरीवाल किसानों का मांग को जायज़ बता रहें हैं।
किसान मांग कर रहे है 3000 प्रति टन
एफआरपी है 1750 प्रति टन 9.5 प्रतिशत रिकवरी और साथ में 170 रूपये 1 फीसदी अतिरिक्त रिकवरी में।
यह 2150 प्रति टन आता है। सुगल मिल 2300 प्रति टन देने को तैयार।
जुलाई में 17 फीसदी बढ़ाया गया।
कोलापुर सांगली और सतारा जिले । इन्हे सबसे बड़ा रिकवरी जोन माना जाता है।
एक आंकड़ा कहता है कि 2011-12 में चीनी का उत्पादन 26.2 मिलियन टन हुआ। इससे पहले साल में 24.42 मिलियन टन हुआ। हमारी साला
जरूरत है 22 मिलियन टन।

लेवी सुगर 10 फीसदी
नान लेवी सुगर 90 फीसदी
इसमें से 65 फीसदी नान हाउसहोल्ड सेक्टर के लिए।
पहले बेसिक रिकवरी रेट 9.5 फीसदी था। रंगराजन साहब ने इसे 10.3 फीसदी कर दिया है।
0.1 फीसदी के उपर 1.70 पर क्वींटल किसानों को दिया जाए।

किसान संगठन क्या कहते है।
कोओपरेटिव सेक्टर बंद हो जाएगा।
जो मिलों को गन्न आपूर्ति हेाती है उसके लिए क्षेत्र निर्धारति होते थे।
दो मिलों के बीच 15 किलोमीटर की दूरी का मापदंड सही नही है।

क्या कहती है रंगराजन समिति।
लेवी चीनी प्रणाली की व्यवस्था खत्म करनी चाहिए।
चीनी मिलों को खुले बाजार में चीनी बेचने की आजादी हो।
गन्ना आरक्षित भूमि खत्म की जाए। किसानों और मिलों के बीच करार की अनुमति। इससे गन्ना की आपूर्ति और प्रतिस्पार्धा बाजार में आएगी।
दो मिलों के बीच कम से कम दूरी को खत्म किया जाए।
यानि अगर यह सिफारिश अमल में आती है तो सरकार को खुले बाजार से चीनी खरीदनी पड़ेगी।
यह रिपोर्ट जैसे ही आयी चीनी मिलों के शेयर 5 फीसदी उपर उठ गए।
इस समिति ने सभी स्टेक होल्डर से बातचीत की है। खास जिन राज्यों में बड़े पैमाने में गन्ना होता है।
तब जाकर एक व्यक्ति उन सिफारिशों के गलत करार देता है तो आप पर विश्वास क्यों करें।

कैसे होगा भुगतान
गन्ने की आपूर्ति के समय एफआरपी। हर 6 माही आधार पर संबधित राज्य चीनी उसके बाइ प्रोडेक्ट का एक्स मिल मूल्य निर्धारति करेंगी। किसान को चीनी और उसके बाइ प्रोडेक्ट का 70 प्रतिशत मूल्य पाने का अधिकार होगा।

इससे पहले तीन और समितियों इस मुददे पर अपने सुझाव दे चुकी है।
1998 में महाजन समिति
2004 में टुटेजा समिति
2009 में थोराट समिति
इसे पहले 9171- 1972 और 1978 -1979 में इस क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त करने के प्रयास किए जा चुके है। मगर नतीजा सिफर रहा।
2010 में खुद कृषि मंत्री शरद पवार इसका प्रयास कर चुके है मगर सफलता नही मिली।
सुगर कंट्रोल आर्डर 1966 के मुताबिक सालाना 15 फीसदी का ब्याज़ बकाया राशि पर देना होता है अगर तय समय से आप 14 दिन तक भुगतान
नही कर पाए।

चीनी में हमारी मिलिंग कैपेसिटी 32 मिलियन टन है। जो हमारी मांग से 40 गुना ज्यादा है।
पिछले 2 सालों में गन्ने के दाम 50 गुना बड़े है। उससे भी बड़ा सवाल यह है की बाजार से चीनी खरीदने के लिए हमें कितने दाम चुकाने पड़ रहे
 है। किसान की उत्पादन लागत क्या है। 5 करोड़ किसान इससे जुडे हुए हैं।


समिति कहती है इससे चीनी की कीमत तर्कसंगत और चीनी के व्यापार में बढ़ोत्तरी होगी।

कुछ किसान संगठनों का कहना है कि इससे दक्षिण भारत के ही किसानों का लाभ होगा। दरअसल दक्षिणी राज्यों में चीनी की रिकवरी खास
तमिलनाडू कर्नाटक महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश में 12 से 14 प्रतिशत है। जबकिउत्तर भारत के राज्यों में यह रिकवरी दर 8 से 9 फीसदी है। जबकि
आपने 70 और 30 के बंटवारे का जो फार्मूला तैयार किया है वह 10.3 फीसदी रिकवरी पर होगा।
हम सभी जानते है की आय छिपाने के चलते चीनी की मिलें रिकवरी कम दिखाती है।

क्या है एफआरपी
केन्द्र हर साल सुगर कंट्रोल आर्डर और सीएसीपी की सिफारिश पर एफआरपी की घोषणा करता है।
उत्तर भारत के राज्या अपने कानून के तहत एसएपी की घोषणा करते है।
एसएपी हमेशा एफआरपी से ज्यादा हेाता है। जिन राज्यों में यह लागू होता है वही उस राज्य का गन्ने का
न्यूनतम मूल्य होता है।

लेवी चीनी क्या है
हर सुगर मिल को अपने उत्पादन का 10 फीसदी सरकार को देना होता है जिसे सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत देती है।
1.3.2002 को 13.50 प्रति किलो
इसे 23 रूपये प्रति किलो करने पर हो रहा है गंभीरता से विचार।
दूसरे सबसे बड़े उत्पादक और सबसे बड़े उपभोक्ता है।

2012-13 के लिए सीएसीपी की सिफारिश
210 रूपये प्रति क्वींटल
2011-12 के सुगर सीजन में
एफआरपी - 170 रूपये प्रति क्विंटल
यपूी में इस दौरान एसएपी था 240 प्रति क्विंटल।
इससे पहले था एसएमपी स्टैटचरी मिनिमम प्राइस

सीएसीपी का कहना है की इसमें मुनाफा उत्पादन लागत रिस्क फैक्र और परिवहन की लागत का ध्यान रखा जाता है।

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